पालतू पशुओं में अन्तः परजीवी नियंत्रण एवं रोकथाम
डॉ. अविनाश कुमार चौहान, डॉ. करतार सिंह, डॉ. देवेन्द्र प्रसाद पटीर और डॉ. दिलीप सिंह मीणा
राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर
सामान्य जानकारी
जो परजीवी पशु के शरीर के अन्दर पाये जाते है। उन्हें अन्तः परजीवी कहते है।
पालतु पशुओं मे कई प्रकार के अन्तः परजीवी संक्रमण होते है। जो उनकी दुर्बलता पाचनतंत्र में गड़बडी, खुन की कमी तथा मांस, दुध व ऊन के उत्पादन मे गिरावट (कमी) आदि के लिए जिम्मेदार होते है।
कुछ अन्तः परजीवी संक्रमण तो कम उम्र के पशुओं मे असामयिक मृत्यु के लिए भी जिम्मेदार होते है। जिसकी वजह से पशु पालको को काफी मानसिक व आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।
अन्तः परजीवी शारीरिक बनावट के आधार पर कई वर्गो में बांटे गए हैं जैसे कि पताकृमि, फिताकृमि, गोलकृमितथा एककोशिकीय सुक्ष्म परजीवी आदि।
चूकि पशुओं में परजीवी संक्रमण के लिए कोई समुचित टीका उपलब्ध नही होने के कारण उनके बारे में अधिक से अधिक पशु पालकों को जागरूक कर के हम उनसे होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।
अन्तः परजीवीयों के संक्रमण का मिलना पशुओं के रख¬ रखाव पर निर्भर करता है।
अन्तः परजीवीयों के संक्रमण के कारक
व संक्रमितचारा/चारागाह
व दूषित/अशुद्व जल स्रोत
व घोंघे
व मक्खी, मच्छर
व कीड़े-मकोड़े
व किलनी, माइट्स इत्यादि
अन्तः परजीवीयों के कारण पशुओं पर होने वाले हानिकारक प्रभाव
क्र.म.- परजीवी -प्रभावित अंग- संक्रमण का तरीका- प्रमुख लक्षण
1 फैसिओला जाइगोटिका
(लीवर फ्लूक) लीवर तथा बाइल डक्ट परजीवी के लार्वा से सवंमित चारा खाने से भुख मे कमी, पेट का फुलना, मलत्याग व चलने मे परेशानी तथा जबडे के नीचे सुजन
2 हिमान्कस स्पी. मेसिस्टोसिरस डिजीटेटसए ट्राइकोस्ट्रांगाइलस स्पी. (सभी गोल कृमि) पेट (एबोमेजम) लार्वा से दूषित घास खाने से भुख न लगना, दस्त, पानी की कमी, खुन की कमी, शरीर के भार मे कमी, शरीर का चमकहीन होना
3 टोक्सोकेरा बिटुलोरम, ब्युनोस्टोमम स्पी. स्ट्रागिल्वाइडिस (गोल कृमि) छोटी आँत माँ के दुध से लार्वा से संक्रमित घास खाने से कली मिट्ठी के जैसे दस्त, खुन की कमी
4 मोनिजिया बेनेडनी (फीताकृमि) छोटी आँत लार्वा से संक्रमित, घास खाने से पानी की कमी, वजन मे कमी, खुनी दस्त
5 इसोफेगोस्टोमम स्पी. ट्राइचुरिस स्पी. (गोलकृमि) बड़ी आँत लार्वा से संक्रमित, घास खाने से दस्त व उपच, गांठ नुमा घाव
6 एम्फीस्टोम (रूमेन फ्लूक) छोटी आँत व पेट (रूमेन, रेटीकुलम) लार्वा से संक्रमित, घास खाने से पिचकारी के समान तेज दस्त, पानी की कमी जबड़े के नीचे सूजन
7 थाईलेरिया रक्त किलनी द्वारा पशु का रक्तचुसने से लसिका ग्रंथियों मे सूजन, ज्वर, कष्टदायक सांस व खूनी दस्त
8 बवेसिया रक्त किलनी द्वारा पशु का रक्त चुसने से ज्वर, खून की कमी, लाल पेशाब
9 ट्रिपनोसोमा रक्त मक्खी द्वारा पशु का रक्त चूसने से ज्वर, उत्तेजित होकर इधर-उधर भागना, छुटपटाना, मुर्छित होना जमीन पर गिरपड़ना
अन्तः परजीवीयों के संक्रमण का निदान
सामान्यतः अन्तः परजिवियों के द्वारा होने वाली बीमारियों के लक्षण अन्यः बिमारियों जैसे ही होते है। अतः लक्षणों के आधार पर निदान मुश्किल होता है। फिर भी चराये जाने का इतिहास व लक्षणों के मिलान द्वारा संभावित निदान किया जा सकता है।
मल/गोबर परीक्षण के द्वारा
रक्त परीक्षण के द्वारा
शव विच्छेदन के आधार पर भी अन्तः परजिवियों के संक्रमण का निदान किया जा सकता है।
पशुओं में परजीवी संक्रमण की तीव्रता की जाँच उनके प्रतिग्राम मल/गोबर मे मौजूद परजीवी के अण्डों को सुक्ष्मदर्शी से गिनकर किया जा सकता है।
अन्तः परजीवियों के उपचार एव ंरोकथाम
अन्तः परजीवियों के उपचार एवं रोकथाम करने के लिए सबसे क्षेत्र विशेष के बारे में पहले जानकारी होनी चाहिए कि उस क्षेत्र विशेष मे कौन-कौन से अन्तः परजिवी मिलते है।
परजीवी रोकथाम मे कृमिनाशी दवाओं का अपना एक विशेष स्थान है। परन्तु किसी एक विधि से नियंत्रण सम्भव नही है।
एक आदर्श कृमिनाशी दवाँ का उपयोग करें जो अन्तः परजीवी की सभी अवस्थाओं पर प्रभावी है।
पशुओं के चुगान तथा रखरखाव हेतु वैज्ञानिक पद्वति को अपनाया जाना चाहिए।
जैविक रोकथाम में पशुपालन के साथ-साथ मुर्गीपालन किया जाना चाहिए। जो अन्तः परजीवी के संक्रमण कारको को नष्ट करते है।
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