पशुओं में सर्रा रोगः एक संक्षिप्त परिचय

0
1583

पशुओं में सर्रा रोगः एक संक्षिप्त परिचय

डा0 विजेन्द्र कुमार पाल
सहायक प्राध्यापक
पशु परजीवी विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, कुमारगंज, अयोघ्या।

सर्रा रोग क्या है?
सर्रा एक हिन्दी शब्द है जिसका अर्थ होता है “सड़ा हुआ“ क्योंकि इस बीमारी से पशु धीरे-धीरे कमजोर होते चले जाते है और यदि इलाज न किया जाए तो जानवर की मृत्यु भी हो सकती है। यह रोग खून में पाए जाने वाले प्रोटोजोअन परजीवी ‘‘ट्रिपैनोसोमा इवान्साइ” द्वारा होती है। इस रोग को सर्रा या ट्रिपैनोसोमोसीस भी कहते है।
यह रोग किन-किन पशुओं मे पाया जाता है?
यह रोग ऊंट, घोड़ा, गधा, खच्चर, मवेशी, भैंस, हाथी, बकरी, भेड़, कुत्ता, बिल्ली, हिरण और अन्य स्तनधारीयों में पाई जाता है। । बाघ, लोमड़ी, लकड़बग्घा आदि भी परजीवी को आश्रय देते हैं।
सर्रा रोग का संक्रमण पशुओं मे कैसे और कब होता है?
यह बीमारी विभिन्न प्रकार की मक्खियों जैसे टेबेनस, हेमेटोपोटा, क्राइसोप्स आदि के काटने से फैलता है। टेबेनस मक्खि को भारत के कई राज्य में ज्यादातर लोग डांस मक्खी के नाम से भी जानते है। जब ये मक्खियां बीमार पशुओं का रक्त चुसती है तब प्रोटोजोअन परजीवी ‘‘ट्रिपैनोसोमा इवान्साइ” को अपने लार में लेकर दूसरे स्वस्थ पशुओं में छोड़ देती है। कुत्तो एवं अन्य मांसाहारी पशुओं में यह बीमारी ताजा मांस खाने से भी फैलती है।
उत्तर भारत में इस बीमारी का संक्रमण अधिक आम है। उत्तर भारत में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान है। बरसात में एवं बरसात के दो-तीन महिने में ट्रिपैनोसोमा इवांसी का संक्रमण अधिक पाया जाता है क्योंकि इस दौरान मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है।
पशुओं में सर्रा संक्रमण के मुख्य लक्षण कौन-कौन से होते है?
निम्न पशुओं में सर्रा संक्रमण के मुख्य लक्षण इस प्रकार है।
घोड़ा :- घोड़े में यह रोग गाय-भैंस की तुलना में अधिक गंभीर होता है। घोड़े में तापमान के साथ रुक-रुक कर बुखार होना, आंख, नाक, गुदा और योनि की श्लेष्मा झिल्ली पर रक्तस्राव, पैरों और शरीर के निचले हिस्से में सूजन होना, एनीमिया, क्षीणता, लिम्फ नोड्स और प्लीहा की वृद्धि मुख्य लक्षण है।
मवेशी और भैंस :- मवेशी और भैंस संक्रमण का मुख्य भंडार होते है। इन पशुओं में सर्रा की
निम्न तीन अवस्था पाई जा सकती है।
1- गंभीर अवस्था – इस अवस्था में सुस्त और नींद में रहना, चौंका देने वाली चाल, आंखें घूरना, सांस लेने में समस्या, चक्कर आना, तंत्रिका उत्तेजना, कठोर वस्तु के खिलाफ सिर दबाना, स्पष्ट अंधापन, कराहना, बार-बार पेशाब आना, अत्यधिक लार आना, शरीर कांपना आदि लक्षण पाये जाते है।
2-अति तीव्र अवस्था – इस अवस्था में पशु नर्वस फॉर्म यानि तंत्रिका उत्तेजना में होता है और ऐंठन के कारण 2 से 3 घंटे में ही मर जाता है। यह लक्षण सर्पदंश, एंथ्रेक्स, पेस्टुरेलोसिस, विषाक्तता आदि से भ्रमित करता है।
3-उप तीव्र और जीर्ण अवस्था – इस अवस्था के मुख्य लक्षण सुस्त, नींद, दोनों आंखों से लैक्रिमेशन, प्रगतिशील क्षीणता, रुक-रुक कर बुखार, पैरों में सूजन, दस्त और थकावट है। भैंस में गर्भपात की भी सूचना मिलती है।

READ MORE :      Management of Prolapse in Cattle and Buffalo

घोड़े एवं भैंस में सर्रा संक्रमण के लक्षण।
ऊंटः- इस बीमारी को सूडान में गुफर और भारत में तेबरसा (3 साल की अवधि) के भी नाम से जाना जाता है। आंतरायिक बुखार, सुस्त दिखना, एनीमिया, कूबड़ गायब, जानवर उत्तरोत्तर कमजोर और क्षीण हो जाता है । संक्रमण के कुछ महीनों के भीतर मृत्यु भी हो सकती है।
कुत्ता – बुखार, एनोरेक्सिया, सिर की सूजन, वक्ष, कॉर्नियल अस्पष्टता या यहां तक कि अंधापन, स्वरयंत्र के कारण आवाज का बदल जाना, मांसपेशियों में ऐंठन, चौंका देने वाली चाल और उत्तेजना जैसे आदि लक्षण कुत्तों में पाया जाता है जिसे रेबीज समझकर भ्रमित किया जा सकता है।
भेड़ और बकरी :- तापमान के साथ बुखार होना, तीव्रता के लक्षण, क्षीणता और रक्ताल्पता हो सकते हैं।
संक्रामित पशुओं में सर्रा रोग का निदान किन-किन विधियों द्वारा किया जाता है?
(1) संक्रमण के लक्षण के आधार पर- उपरोक्त लक्षणो के आधार पर रोग की पहचान काफी हद तक हो जाती है।
(2) सूक्ष्मदर्शी परीक्षण- तीव्र संक्रमण की स्थिति में रक्त स्मीयर परजीवियों के लिए सकारात्मक हो सकता है। तापमान की ऊंचाई पर लिया गया रक्त स्मीयर परजीवियों के लिए सकारात्मक हो सकता है। पुराने मामलों में पैरासिटिमिया कम हो जाती है।

संक्रमित पशुओं के रक्त की जॉच। संक्रमित पशुओं के रक्त स्मीयर में ट्रिपैनोसोमा इवान्साइ।
(3) जैविक टीकाकरण – निम्न या उप नैदानिक संक्रमण का पता लगाने के लिए, संदिग्ध जानवर के 0.5 मिलीलीटर रक्त को प्रयोगशाला पशुओं में अंतःस्रावी रूप से टीका लगाया जाता है। चूहे और गिनी सूअर संतोषजनक प्रयोगशाला जानवर हैं।
संक्रामित पशुओं का उपचार कैसे किया जाता है?
1. क्विनापाइरामाइन (एंट्रीसाइड)- यह नवीनतम और सबसे प्रभावी दवाएं हैं। तीन रूप में उपलब्ध हैं।
(क) एंट्रीसाइड मिथाइल सल्फेट- यह उपचारात्मक दवा है और खुराक 3-5 मिलीग्राम /किलोग्राम शरीर के वजन, चमड़े के नीचे।
(ख) एंट्रीसाइड क्लोराइड- रोगनिरोधी दवा और खुराक 2 ग्राम/पशु, चमड़े के नीचे। 90 दिनों तक सुरक्षा प्रदान करता है।
(ग) एंट्रीसाइड प्रोसाल्ट- दोनों का संयोजन 3ः2 के अनुपात में। खुराक 7.4 मिलीग्राम/किग्रा शरीर का वजन, चमड़े के नीचे। यह व्यापक रूप से उपचारात्मक और रोगनिरोधी दोनों उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
2 डिमिनाजिन एसिट्यूरेट (बेरेनिल)- यह उपचारात्मक दवा है और खुराक 3.5 -7 मिलीग्राम /किलोग्राम शरीर के वजन, मांस में। यह कम प्रभावी होता है।
3 आइसोमेटामिडियम क्लोराइड (समोरिन) – खुराक 0.5 – 1.0 मिलीग्राम/किग्रा शरीर का वजन, गहरी मांस में उपयोग किया जाता है।
सर्रा रोग को कैसे नियंत्रीत किया जा सकता है?
1. बचावी दवाओं का उपयोग करके सर्रा को रोका जा सकता है।
2. रोग वाहक मक्खी के प्रजनन स्थल को नष्ट करके, लिंडेन, मैलाथियान, डेल्टामेथ्रिन आदि जैसे कीटनाशकों का उपयोग करके और जानवरों के शेड, फ्लाई प्रूफ नेट और उचित निपटान मल आदि के द्वारा मक्खीयों को नियंत्रित किया जा सकता है।
3. आनुवंशिक रूप से प्रतिरोधी नस्ल का विकास करके। जैसे “एन दामा“ मवेशी जो एक ट्रिपैनोटोलरेंट नस्ल है।
4. नियमित रोग निगरानी, अच्छे निदान केंद्र की उपलब्धता और क्षेत्र में दवा प्रतिरोध की समस्या को ध्यान में रखते हुए सही ट्रिपैनोसाइड का चयन करके इस बीमारी को नियंत्रीत किया जा सकता है।

READ MORE :  MANAGEMENT OF POST-CERVICAL UTERINE TORSION IN A MURRAH BUFFALO: A CASE REPORT

https://www.pashudhanpraharee.com/%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%97-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%87/

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/93093e91c94d92f94b902-92e947902-92a93694192a93e932928/91b92494d924940938917-92e947902-92a9369419

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON