पशुओं में किळनी से हाने वाली हानियाँ एवं नियंत्रण

0
766

पशुओं में किळनी से हाने वाली हानियाँ एवं नियंत्रण

डॉ शशि प्रधान, डॉ अमिता तिवारी, डॉ कबिता रॉय, डॉ ब्रजेश सिंह, डॉ रनवीर सिंह जाटव, डॉ शिवांगी शर्मा

डिपार्टमेंट ऑफ़ वेटरनरी मेडिसिन, कॉलेज ऑफ़ वेटरनरी साइंस एनिमल हसबेंडरी जबलपुर

 

बछड़ों की मृत्यु दर होती है। पशुओं के शरीर पर बाह्य परजीवी जैसे कि जुएं, पिस्सु या चिचड़ी आदि पशुओं का खुन चूसते हैं। जिससे उनमें खुन की कमी हो जाती है तथा वे कमजोर हो जाते एवं किलनी से फैलने वाली बीमारी जैसे थायलोरिओसिस बबोओसिस एवं एनाप्लामोसिस आदि। ये पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता घटा देते हैं तथा वे अन्य बहुत सी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पशुओं में बाह्य परजीवी के व्रकोप को रोकने के लिए अनेक दवाईयाँ उपलब्ध हैं, जिन्हें पशु चिकित्सक ही सलाह के अनुसार उपयोग करके इनसे बचा जा सकता है।

किलनी के द्वारा पशुओं में हानें वाली हानियाँःएक किलनी हर रोज 1 से 2 मि+.ली. रक्तचूसती है जिससे पशु काफी कमजोर हाने लगता है। पशु में रक्तक्षीणता के लक्षण दिखाई देने लगते हैं किलनी से पशु के शरीर पर जख्म हो जाते हैं तथा काफी खुजली होने लगती है। जख्मों पर मक्खियों के बैठने से कभीकभी कीड़े भी हो जाते हैं और त्वचा काफी खुरदरी और भद्दी दिखने लगती है। किलनी अनेक विषाणु, जीवाणु, रिकेटसियल और रक्त प्रोटोजोआ के पर बुरा असर डालती हैं। कभीकभी किलनी पशु को ज्यादा संख्या में घेरने पर पशु को बुखार टिक परोलायसिस आदि लक्षण दिखाई देते हैं।

इन सभी कारणों से पशु काफी बैचेन हो जाता है, खाना-पीना कम कर देता है तथा कमजोर हो जाता है जिससे दुग्ध तथा अन्य उत्पादों में व कार्य क्षमता में भी कमी आ जाती है। ऐनिमिया व खुजली बाल छोड़ने लगते हो जाता है वृद्धि दर कम हो जाती है । बीमारी से लड़ने की क्षमता कम होती है और कई बार पशु की मृत्यु हो जाती है।

READ MORE :  पशुओं के उपचार के लिए विभिन्न घोल, लोशन एवं मलहम बनाने की विधि तथा उनका उपयोग।

किलनी का नियंत्रण– सामान्यता किलनी का पूर्ण रूप से खत्म करना संभव हनीं होता, परन्तु कुछ हद तक नियंत्रण करके पशु की शारीरिक उत्पादक क्षमता व कार्य क्षमता को बरकरार रखा जा सकता है।

1- आवास – आवास में ढलान हो  रोज आवास को धोएं। गोबर को पशु के आवास से दूर फेंकें, आवास के चारों ओर साफ-सफाई हो। आवास में दरारें हों तों सीमेन्ट से भरें ।  पशुओं के आवास को बुटाक्स एक्स्टीक पेक्टसाइड आदि का छिड़काव करें । किलनी का प्रकोप गर्मी वाली आर्द्रता व बरसात के दिनों में ज्यादा होता है। ध्यान रखें कि एक किलनी एक बार में लोखें की संख्या में अण्डे देती हैं तथा यह किलनी फर्श के नीचे या बिन उपयोग वाली बोरे या दिवाल की दरारें आदि के अन्दर अण्डे देती हैं। यदि पक्का सीमेन्ट का पशु आवास हो तो स्प्रिट-लेम्प या चिमनी के द्वारा उन्हें जला दें ताकि अण्डे व बच्चे नष्ट हो जावें। यदि कच्चा दीवाल या फर्श हो तों किलनी नाशक रसायन का उचित मात्रा का घोल बनाकर ड़िकाव करें।

2   पशु स्थानान्तरण— जिस जगह में किलनी हो वहाँ से पशुओं को हटाकर नई जगह रखना चाहिए। अगर बाहर चराने ले जाते हों तो पशुओं को रोज एक ही स्थान पर न चराने ले जाएं।

3आग लगाना– जहाँ पर भीकिलनी का आवास हो वहाँ आग लाग देना चाहिए। अगर पशु हों तो उन को हटाकर नई जगह रखें । फिर आग लगायें या पशु के शरीर की किलनी को ब्रश से निकालकर मिट्टी के तेल में डालकर या डालकर या जलाकर नष्ट करना चाहिए।

READ MORE :  सक्रमित पशुओं में बीमारी की जांच हेत लैब के लिय् नमूने एकत्रित कैसे करें?

4- कीटनाशक दवाई का पशुओं के शरीर पर उपयोग करें

निम्नलिखित में से कोई एक विधि का उपयोग करें –

क- -पशुओं के शरीर पर टिककिल चूर्ण दस्ताना पहनकर लगायें व एक घण्टे के बाद उसे नहला दें।

पशुओंको एवर मेकटिन का इंजेक्शन लगावाएं।

पशुओं के शरीर में बुटाक्स, एक्स्टीक पेक्टसाइड आदि का छिड़काव कर एकदो घण्टे के बाद उसे दास्ताना पहनकर नहला दें। ठीक इसी प्रकार पशु के चारागाह आदि में यदि किलनी प्रकोप है तो उचित परामर्श के अनुसार घोल बनाकर या नहालाकर किलनी की संख्या को कम किया जा सकता है।

नीम को पीसकर या नीम का घोल शरीर पर लगाने से पशु को किलनी से काफी राहत मिलती है।

सवधानियाँयह सभी दवाईयाँ जहरीली होती हैं। इसलिए इनका प्रयोग अतिसावधानी से तथा पशु चिकित्सक की सलाह से ही करें।  पशुओं को दवाई लगाने के एक घण्टे पहले पानी पिला दें। पशुगृह में फवारते समय पशु के सामने रखा पानी आदि वस्तु हटा दें तथा पानी के बर्तन एवं बाल्टी इत्यादि साफ धोकर ही इस्तेमाल करें। दवाई फवारने वाले व्यक्ति दवाई को हाथ लगाएं या दस्ताने पहनें तथा काम होने के पश्चात् दवाई की शीशी सुरक्षित जगह पर रखें और हाथ पैर अच्छी तरह से पानी से धो लें।  गर्भावस्था के दौरान भेड़ को टंकी में नहीं डुबाना चाहिये। अगर टंकी में डुबाते हैं तो पशु का सिर घोल से ऊपर होना चाहिए जिससे पशु घोल को पी सके। पनी में दवाई की सही मात्रा मिलाएं। पशुओं के मुंह आंखों घाव पर दवाई लगाएं, तथा पशुओं को दवाई लगााने के बाद एकदूसरे के शरीर को चटने दें।

READ MORE :  गायों मे अनिर्गत अपरा (जेर न डालना)

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON