जानवरों में गांठदार चर्म रोग (एलएसडी) या लम्पी त्वचा रोग
गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लम्पी रोग नामक यह संक्रामक रोग इस साल अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत आया.
भारत में मंकीपॉक्स के संक्रमण के खतरों के बीच मानसून के इस सीजन में जानवरों में ‘लम्पी’ नामक लाइलाज बीमारी कहर बनकर टूट रही है. चौंकाने वाली बात यह है कि जानवरों में त्वचा संक्रमण जरिए तेजी से फैलने वाली इस बीमारी के इलाज के लिए अभी तक कोई टीका भी तैयार नहीं किया गया है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात समेत भारत के कई राज्यों में सैकड़ों गायों की मौत से लाखों पशुपालक परेशान नजर आ रहे हैं. अकेले राजस्थान में ‘लम्पी’ बीमारी से करीब 1200 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है.
राजस्थान में 1200 गायों की लम्पी से मौत
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में इन दिनों जानवरों में त्वचा संबंधी संक्रमण पैदा करने वाली ‘लम्पी’ बीमारी तेजी से फैल रही है. एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते तीन महीनों के दौरान राजस्थान के विभिन्न जिलों में करीब 1200 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है और तकरीबन 25,000 से अधिक जानवर ‘लम्पी’ के वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं होने की वजह से पशुपालक खासकर गायों को पालने वाले किसान ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं.
अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत में फैल रही लम्पी
चौंकाने वाली बात यह है कि राजस्थान, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों के जानवरों में लम्पी नामक संक्रामक बीमारी ने पाकिस्तान के रास्ते प्रवेश किया है. राजस्थान के अधिकारियों का कहना है कि गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लम्पी रोग नामक यह संक्रामक रोग इस साल अप्रैल में पाकिस्तान के रास्ते भारत आया. इस रोग के सामने आने के बाद राजस्थान में पशुपालन विभाग ने तेजी से कदम उठाए हैं और प्रभावित इलाकों में अलग-अलग टीम भेजी गई है. रोगी पशुओं को अलग-थलग रखने की सलाह दी गई है.
क्या कहती है सरकार
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने लम्पी रोग से बड़ी संख्या में गायों की मौत की बात स्वीकारते हुए कहा है कि सरकार केंद्रीय वैज्ञानिक दल की सिफारिशों के आधार पर इसके इलाज के लिए जरूरी कदम उठाएगी. एक केंद्रीय दल ने हाल ही में प्रभावित इलाके का दौरा किया था. पशुधन पर इस रोग के कहर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले जोधपुर जिले में पिछले दो सप्ताह में 254 मवेशी इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं.
लम्पी का क्या है लक्षण
भारत में सबसे पहले यह बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी. इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है. लम्पी त्वचा संबंधी बीमारी के संक्रमण में आने के बाद पशु दूध देना कम कर देते हैं. ऐसे में बहुत से परिवार जिनकी जीविका दूध उत्पादन से चल रही थी, उनके सामने परेशानी खड़ी कर दी है. बीमारी के जानकार बताते हैं कि जानवरों की इस बीमारी से पशुपालकों में खौफ बना हुआ है.
जानवरों में कैसे फैलता है लम्पी का संक्रमण
बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह कहते हैं कि जानवरों में लैम्पी यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स से फैलती है. अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं. ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है.
पहली बार 1929 के दौरान अफ्रीका में पाई गई थी लम्पी
लम्पी नामक जानवरों की संक्रामक बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी. पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई. इस बीमारी ने साल 2015 में तुर्की और ग्रीस, 2016 में रूस जैसे देश में तबाही मचाई. जुलाई 2019 में लम्पी को बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है.
2019 से सात एशियाई देशों में फैल चुकी है बीमारी
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, लम्पी साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुकी है. साल 2019 में भारत और चीन, जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान, भूटान, अक्टूबर 2020 वियतनाम में और नंवबर 2020 में हांगकांग में यह बीमारी पहली बार सामने आई. लम्पी को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने अधिसूचित बीमारी घोषित किया है. विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन अनुसार, अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है, तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन को जल्द सूचित करें.
लम्पी के इलाज के लिए कोई टीका नहीं
लम्पी बीमारी से बचाव के बारे में डॉ केपी सिंह बताते हैं कि अभी तक इस बीमारी का टीका नहीं बना है, लेकिन फिर भी ये बीमारी बकरियों में होने वाली गोट पॉक्स की तरह ही है. इसलिए अभी गाय-भैंस को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा रहा है, जिसका अच्छा परिणाम भी सामने आ रहा है. इसके साथ ही, दूसरे पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार और लक्षण के हिसाब से इलाज कराएं. आईवीआरआई में इस बीमारी से बचने का टीका बनाया जा रहा है. आने वाले एक साल में इसका टीका आ सकता है.
उपचार
लम्पी त्वचा रोग के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं और सल्फोनामाइड्स का उपयोग करके द्वितीयक संक्रमण की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है। एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग स्थानीय भी किया जा सकता है, और साथ में नॉन स्टेरोइडल एंटी इन्फ्लामेंटरी ड्रग्स भी दी जा सकती है। संक्रमित जानवर आमतौर पर ठीक हो जाते हैं। पूर्ण स्वस्थ होने में कई महीने लग सकते हैं खासतौर से जब द्वितीयक जीवाणु संक्रमण होता है।
कैसे फैलता है लम्पी त्वचा रोग–
मंकी पॉक्स की तरह वायरस से फैलने वाला लम्पी त्वचा रोग मच्छरों, मक्खियों, जूं एवं ततैयों के कारण फैलता है। जिसे ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ (LSDV) कहते हैं। यह मवेशियों के सीधे संपर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के माध्यम से फैलती है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए 2.68 लाख पशुओं को टीका लगाया गया है।
लम्पी त्वचा रोग की होती हैं 3 प्रजातियां-
लम्पी त्वचा रोग की मुख्यतः तीन प्रजातियां होती हैं। बताया जाता है कि पहली और सबसे मुख्य प्रजाति ‘कैप्रिपॉक्स वायरस’ (Capripoxvirus) है। इसके अलावा गोटपॉक्स वायरस (Goatpox Virus) और शीपपॉक्स वायरस (Sheeppox Virus) दो अन्य प्रजातियां हैं।
लम्पी त्वचा रोग के लक्षण-
जानवरों में बुखार आना, आंखों एवं नाक से स्राव, मुंह से लार निकलना, पूरे शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना, दूध उत्पादन में कमी आना और भोजन करने में कठिनाई इस बीमारी के लक्षण हैं। इसके अलावा इस रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं। गर्दन और सिर के पास इस तरह के नोड्यूल ज्यादा दिखाई देते हैं। कई दफा तो ये भी देखा जाता है कि इस रोग के चलते मादा मवेशियों में बांझपन, गर्भपात, निमोनिया और लंगड़ापन झेलना पड़ जाता है।
कहां फैला है लम्पी त्वचा रोग-
गुजरात के 14 जिलों – कच्छ, जामनगर, देवभूमि द्वारका, राजकोट, पोरबंदर, मोरबी, सुरेंद्रनगर, अमरेली, भावनगर, बोटाद, जूनागढ़, गिर सोमनाथ, बनासकांठा और सूरत में इसके मामले पाए गए हैं। राज्य के कृषि एवं पशुपालन मंत्री राघवजी पटेल ने कहा, 880 गांवों में इस बीमारी के मामले पाए गए हैं और 37,121 पशुओं का इलाज किया गया है। मंत्री ने कहा, तालुका स्तर की महामारी विज्ञान रिपोर्ट के अनुसार, लम्पी त्वचा रोग के कारण अब तक 999 मवेशियों की मौत हो चुकी है।
संक्रमण से बचाव के उपाय
- लम्पी के संक्रमण से पशुओं को बचाने के लिए अपने जानवरों को संक्रमित पशुओं से अलग रखना चाहिए.
- अगर गोशाला या उसके नजदीक किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए.
- रोग के लक्षण दिखने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए. मेला, मंडी और प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए.
- गोशाला में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए.
- मुख्य रूप से मच्छर, मक्खी, पिस्सू और चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए.
- रोगी पशुओं की जांच और इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए.
- अगर गोशाला या उसके आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए.
- एक पशुशाला के श्रमिक को दुसरे पशुशाला में नहीं जाना चाहिए,
- पशुपालकों को भी अपने शरीर की साफ-सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए.
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