लंपि स्किन डिजीज :पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह

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लम्पी स्किन डिजीज : पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह

– डॉ जितेंद्र सिंह डिप्टी चीफ वेटनरी ऑफिसर, जौनपुर ,उत्तर प्रदेश

अभी राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और देश के अनेक प्रांतों में, यहां तक कि दुनिया के अनेक देशों में, गायों में एक गंभीर बीमारी “लंपी स्किन डिजीज” नाम की महामारी का प्रकोप चल रहा है।
विगत कुछ वर्षों से लंपी स्किन डिजीज, हिंदी में जिसे पशु चेचक भी कह सकते हैं इस महामारी का प्रकोप हर वर्ष दुनिया में कहीं ना कहीं आ रहा है।
गायों में लंपी स्किन डिजीज की बीमारी एक पुरानी बीमारी है जो दक्षिण अफ्रीका से लगते हुए क्षेत्रों में एक स्थाई महामारी है लेकिन आजकल पूरी दुनिया के अनेक क्षेत्रों में इसका प्रकोप दिखाई दे रहा है। इसके दो कारण हो सकते हैं पहला कारण तो यह हो सकता है कि लंपी स्किन डिजीज का वायरस अपने आप को विकसित कर रहा है, अधिक विकसित कर रहा है और उसकी मारक क्षमता भी बढ़ रही है। दूसरा कारण हो सकता है कि क्लाइमेट चेंज के कारण, जो मौसम में परिवर्तन हो रहा है ऐसा मौसम इस वायरस के लिए ज्यादा अनुकूल सिद्ध हो रहा है। जो भी हो देश भर में इस महामारी का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
यह बीमारी गायों की इम्युनिटी के हिसाब से अनेक बार बहुत साधारण बुखार होकर निकल जाती है और अनेक बार अत्यंत गंभीर रूप धारण कर लेती है और गायों के लिए जानलेवा सिद्ध होती है।
ऐसी गंभीर स्थिति में बीमार होने वाली गायों की संख्या भी बढ़ जाती है और मृत्यु दर भी बढ़ जाती है तथा बीमारी के बाद में जीवित रहने वाली गायों की स्थिति भी अत्यंत ही दुखद हो जाती है।
अभी तक वैज्ञानिकों का मानना था कि लंपी स्किन डिजीज से गायों की मृत्यु नहीं होती है लेकिन इस बार जो महामारी सामने आई है इसमें स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लंपी स्किन डिजीज से गायों की बड़ी संख्या में मृत्यु हुई है यह भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का बड़ा विषय है।
लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है जो कैपरी पॉक्स वायरस (Capri poxvirus) से फैलती है। कैपरी पॉक्स नामक वायरस वायरस से बकरियों में गोट पॉक्स नाम की बीमारी फैलती है और भेड़ों में सीप पॉक्स नाम की बीमारी फैलती है और गायों में लंपी स्किन डिजीज नाम की बीमारी फैलती है। तीनों बीमारियां एक ही वायरस से फैलती है, बस उनका वैरियेन्ट अलग अलग होता है।
इन तीनों वायरस के वेरियेन्टस का आपस में कैसा संबंध है? इस पर अभी वैज्ञानिक एकमत नहीं है लेकिन बहुमत से ऐसा माना जाता है कि यह एक ही वायरस की अलग-अलग स्ट्रेनस है। एक स्ट्रेन गोट पॉक्स करती है, एक स्ट्रेन शीप पॉक्स करती है और एक स्ट्रेन लंपी स्किन डिजीज करती है। यह जो वायरस की अलग-अलग स्ट्रेनस है या वेरिएंट है यह अपने वाहक पशु को नहीं पहचानते और अनेक बार भेड़ का वैरीअंट बकरी को बीमार कर देता है और बकरी का वैरीअंट भैड़ को बीमार कर देता है। लेकिन ऐसी स्थिति में गंभीर लक्षण उत्पन्न नहीं होते।
इसको वैज्ञानिकों की भाषा में क्रॉस इन्फेक्शन कहते हैं इसीलिए इनके वैक्सीनेशन से भी क्रॉस प्रोटेक्शन मिलता है यह दोनों बातें हमें ध्यान में रखनी चाहिए।
लंपी स्किन डिजीज, कैपरी पॉक्स नामक वायरस से होती है जो सभी प्रकार की गायों और भैंसों को प्रभावित करता है। इसमें सबसे पहले गाय को बुखार आता है और एक या दो दिन बाद गाय की स्किन पर बहुत सारे गोल दाने उभर जाते हैं इसी प्रकार तीसरा प्रमुख लक्षण है जिसमें गाय को अनेक स्थानों पर लटकती हुई सूजन दिखाई देती है जिसे वेंट्रल एडिमा (Ventral edema) ऐसा बोलते हैं। मानो जैसे पानी के भरे हुए गुब्बारे लटक रहे हो, यह लंपी स्किन डिजीज का मुख्य लक्षण है। इसके साथ ही चौथा लक्षण है कि गाय के सारे शरीर पर जहां जहां लिंफ नोड्स होते हैं उनमें गांठ बन जाती है अर्थात सूजन आ जाती है। पूरे शरीर के लिंफ नोड्स को हम देख सकते हैं। लिंफ नोड्स की सूजन को हाथ से अनुभव किया जा सकता है।

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बीमारी के लक्षण

यह बीमारी गायों की सभी प्रजातियों में होती है। दूध देने वाली गायों की इम्यूनिटी थोड़ी कम होती है इसलिए सबसे पहले दूध देने वाली गायों में आती है और इसी प्रकार बछड़ों में अधिक नुकसान करती है लेकिन सभी प्रकार के गाय बैलों को यह बीमारी होती है।
अभी तक की जो जानकारी है, वह बताते हैं कि यह बीमारी अंग्रेजी जानवरों खास करके जर्सी नस्ल में जानलेवा होती है और होल्सटीन एचएफ में भी अत्यंत घातक होती है लेकिन भारतीय प्रजाति की गायों में जिन्हें जेबू कैटल की प्रजाति माना जाता है इतनी जानलेवा नहीं होती। हालांकि भारत में पिछले साल से यह बीमारी अनेक प्रांतों में रिकॉर्ड की गई थी और अनेक अध्ययन बताते हैं कि पहली बार जब यह बीमारी का प्रकोप होता है तो वह सबसे गंभीर होता है उसके बाद जब उसका दूसरी बात प्रकोप होता है वह उतना गंभीर नहीं होता।

फैलती कैसे हैं यह बीमारी

यह बीमारी हवा से नहीं फैलती।
यह बीमारी छींकने से नहीं फैलती।
यह बीमारी थूक और लार से नहीं फैलती है।
यह बीमारी साथ में चारा खाने से नहीं फैलती।
यह बीमारी साथ में पानी पीने से नहीं फैलती।
यह बीमारी साथ में रहने से नहीं फैलती।
यह बीमारी छूत की बीमारी नहीं है।
यह बीमारी गायों का खून चूसने वाले कीड़ों और मक्खी मच्छरों से फैलती है। एक गाय के खून से दूसरे गाय के खून में फैलती है इसलिए इंजेक्शन की सुई को दूसरी गाय के उपयोग में नहीं लें क्योंकि यह सुई के माध्यम से भी फैल सकती है। तो यह वायरल डिजीज गायों का खून चूसने वाले जितने भी मक्खी मच्छर कीड़े हो सकते हैं उन सब के माध्यम से फैलती है। गायों को काटने वाले मक्खियां होती है, गायों को काटने वाले मच्छर होते हैं, खून चूसने वाले चिंचड और पिस्शु होते हैं इनके माध्यम से यह बीमारी दूसरी गायों में फैलती है। यह बात हम ठीक से समझ में रखे।
सामान्यतया इस बीमारी का प्रकोप वर्षा के दिनों में खासकर अतिवृष्टि के दिनों में महामारी का रूप लेती है क्योंकि हवा में नमी और उपयुक्त गर्मी बीमारी को फैलाने वाले मक्खी मच्छरों के लिए अत्यंत ही उपयुक्त प्रजनन का समय होता है। इसके कारण बड़ी मात्रा में बीमारी फैलाने वाले मक्खी मच्छर उत्पन्न होते हैं जो इस बीमारी को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
गायों के स्वास्थ्य एवं इम्यूनिटी के आधार पर इस बीमारी मैं गायों की मृत्यु दर में बहुत अंतर पाया जाता है। बहुतायत में एक या दो प्रतिशत मृत्यु दर ही पाई जाती है लेकिन अगर गंभीर प्रकोप खड़ा हो जाता है तो 40% से भी अधिक मृत्यु दर पाई जा सकती है। लंपी स्किन डिजीज अत्यंत ही घातक बीमारी है। इस बीमारी के होने के बाद जो पशु जीवित बचे रहते हैं। वह अत्यंत कमजोर हो जाते हैं और दुधारू पशुओं का दूध सूख जाता है। गायों को दोबारा हीट में आने में भी समस्या आती है। बीमारी के दौरान अनेक गर्भवती गायों का गर्भ गिर जाता है और जिन सांडों को यह बीमारी हो जाती है उनकी प्रजनन क्षमता के समाप्त होने की संभावना बनी रहती है। इस प्रकार यह बीमारी किसान को अनेक प्रकार से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाती है।

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रोग के बारे में सही जानकारी आवश्यक

यह बीमारी गायों का खून चूसने वाले मक्खी मच्छर के काटने से होती है। जब यह मच्छर काटते हैं तो वायरस गाय के खून में चला जाता है और 2 से 4 सप्ताह तक का समय यह वायरस अपनी संख्या बढ़ाने में लगाता है जिसे इनक्यूबेशन पीरियड बोलते हैं। मच्छर के काटने के 15 से 30 दिन तक मैं यह बीमारी कभी भी शुरू हो सकती है। इस पीरियड में गाय में कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता। बीमारी शुरू होती है तो सबसे पहले बुखार आता है और गाय की खाल पर अनेक दाने एक साथ दिखाई देते हैं, मुंह में लार टपकने लगती है, आंखों से और नाक से पानी आने लगता है, चमड़ी की सूजन नीचे की ओर लटकने लगती है और सारे शरीर में लिंफ नोड्स में सूजन आ जाती है। अब यह जो चमड़ी पर दाने या नोड्यूल है यह इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। यह सारे नोड्यूल्स गाय की ऊपरी स्किन में ही होते हैं। सामान्यतया चमड़ी के नीचे की ओर नोड्यूल्स नहीं जाते। जब यह बीमारी उतरने को होती है तो अनेक नोड्यूल्स अपने आप सूख जाते हैं लेकिन बहुत सारे नोड्यूल्स ठीक नहीं हो पाते और कई महीनों तक बने रहते हैं और कई बार वे फूट जाते हैं और उनमें ऊपरी बैक्टीरियल इनफेक्शन भी हो जाता है। घाव का रूप ले लेते हैं या अल्सर बन जाते हैं। यह बीमारी बछड़ों और दूध देने वाली गायों को और कमजोर सेहत वाली गायों को जल्दी शिकार बनाती है और अभी तक जो वैज्ञानिकों के पास जानकारी है उसके अनुसार एक बार बीमार पड़ने के बाद में 3 महीने से अधिक की इम्यूनिटी डवलप हो जाती है।
जहां आसपास पानी के बहुत सारे स्रोत भरे हुए हैं वहां यह बीमारी अधिक दिनों तक चलती रहती है जैसे बहुत सारे तालाब झीलें आदि अधिकता से उपलब्ध है तो यह बीमारी बनी रहती है क्योंकि गायों को काटने वाले मक्खी मच्छरों का उत्पादन चालू रहता है तो इस बीमारी के भी प्रकोप चालू रहते हैं।
और यह भी ध्यान में रखें कि यह वायरस किसी भी प्रकार के स्प्रे वगैरह से खत्म नहीं होता और अधिक गर्मी से भी यह खत्म नहीं होता लेकिन गर्मी से निष्क्रिय अवश्य होता है लेकिन जैसे ही अनुकूल मौसम आएगा यह वायरस वापस आक्रमक हो जाएगा ऐसी जानकारी वैज्ञानिक दे रहे हैं।

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बचाव और उपचार

बचाव और अगर आपके इलाके में यह भयंकर महामारी अभी तक नहीं आई है तो आप अपने निकट के पशु चिकित्सक से संपर्क करके शीप पॉक्स वैक्सीन से, या गोट पोक्स वेकसीन से वैक्सीनेशन करवाएं। यह वैक्सीनेशन गायों में बहुत उपयोगी है। क्योंकि यह एक ही वायरस से होने वाली बीमारियां है इसलिए इसमें क्रॉस प्रोटेक्शन मिलता है और गायों को भीषण नुकसान से बचाया जा सकता है। अपने आसपास वेटरनरी चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें। यह वैक्सीन दुनिया के अनेक भागों में लगाया जाता है और इसके बहुत अच्छे परिणाम आए हैं। सभी मित्रो से निवेदन कि वेटरनरी चिकित्सक की सलाह से ही उपचार करें।
और जहां महामारी का प्रकोप हो गया है वहां वैक्सीनेशन का कोई अधिक लाभ नहीं होता इसलिए केवल वे लोग ही वैक्सीनेशन लगाएं जिनके गांव में या इलाके में अभी तक यह बीमारी नहीं आई है।
अगर यह बीमारी हमारे इलाके में आ गई है और हमारी गायों को भी आ गई है तो उसका सिंप्टोमेटिक ट्रीटमेंट ही किया जा सकता है। देश के जाने-माने पशु चिकित्सकों के अनुसार वह इस प्रकार है। लेकिन अपने आसपास के पशु चिकित्सक की सलाह से ही प्रारंभ करें।
आमतौर पर इस स्वरूप का इलाज हेतु अधिकांश पशु चिकित्सकों की सलाह निम्न प्रकार है। फिर भी अपने निकटतम पशुचिकित्सक के मार्ग दर्शन से ही उपचार करे। फील्ड स्तर पर इलाज कर रहे पशु चिकित्सकों का मानना है कि इस समय गाय को सबसे पहले बुखार आता है तब उपचार शुरु कर देना चाहिये और सात से दस दिन तक अवश्य लें।
इस बीमारी का कोइ इलाज उपलब्ध नही है इसलिये लक्षणो पर आधारित ही उपचार उपलब्ध है।

Treatment line of Lumpy Skin Disease

(tentative, under the supervision of expert vet)
Use Flunixin Meglumine 1ml@45kg body weight for 7 to 10 days for one times a day When you First see Fever.
Use Avil 15 ml per Animal body weight (OD) for 5 days
Use Gentamicin (12.5ml) + Amikacin (2.5ml) BID for 5 days
Oral Vitamin ADE Syrup 20-30 ml daily for 10 days
Vitamin c Injection 10ml
Supportive Fluid Therapy with NS or DNS (fever)
If edema is Seen more, Lasix should be used, Start with 5ml
Give Boiled Daliya andChoker with 100gram Soda +100 gram Gud and20 gram salt. Soft and grean leaves grass
NB-यह उपचार का तरीका केवल वेटेनेरी चिकितसकों के विचारार्थ है। कोइ भी किसान भाई अपने हिसाब से दवाइयां शुरु नही करे

https://www.pashudhanpraharee.com/lumpy-skin-disease-ka-upchar/

https://www.patrika.com/jodhpur-news/lumpy-skin-disease-in-cow-7623132/

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