मेंलामाईनयुक्त दुध – बच्चो के लिए घातक

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मेंलामाईनयुक्त दुध – बच्चो के लिए घातक

Dr. Subhash Kumar Verma
Assistant Professor, Ph.D. (LPT)
Department of Livestock Products Technology
College Of Veterinary Science and Animal Husbandry, Anjora
Dau Shri Vasudev Chandrakar Kamdhenu Vishawavidyalya, Durg

आज कल दुघ में मिलावट मुख्यतः चीन दूरा बनाये गए नवजात षिषुवो कें भोजन अर्थात पदिंदज उपसा वितउनसं से मेटालाइन की मिलावट की चर्चा ने पूरे विष्व में खौफ पैदा कर रखा है।
ज्ञात ऑकडो के अनुसार संदूषि ;बवदजंउपदंजमकद्ध दूध पाउडर का सेवन करने से 39965 बच्चे बीमार पड़ गये. 12892 बच्चे अस्पताल में भर्ती हो गये जिसमें से 104 की हालत गंभीर थी तथा 4 बच्चों की मौत हो गई । बीमार पड़ने वाले बच्चों में से 80 प्रतिषत बच्चों की उम्र दो साल से कम बताई गई।
उपरोक्त आँकड़ो से हम यह अनुमान लगा सकते है कि मेलामाइन बच्चों के लिए कितना हानिकारक है। मेलामाइन कोल इन्डस्ट्री का एक बाईप्रोडक्ट है जिसमें 66 प्रतिषत नाईट्रोजन पाया जाता है। अपनी इसी विषिष्ट रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग मिलावट में किया जाता है। मेलामाइन क्रायोमेजिन नामक पेस्टिसाइड के मेटाबोलेजिम से भी बनता है। मेलामाइन का इस्तेमाल पलास्टिक, लकड़ी का समान, कपड़े का मिल, रबड़ उधोग आदि में किया जाता है। आज पूरे विष्व स्तर पर चीन इसका सबसे बड़ा उत्पादक व निर्यातक है।
दूध पाउडर बनाने वाली कम्पनी और किसान दूध में पानी मिला देते हैं जिससे उसका घनत्व तो बढ़ जाता है परन्तु औसतन प्रोटीन की मात्रा कम हो जाती है। प्रोटीन को सामान्यतः नाईट्रोजन के आधार पर माना जाता है, इसलिए ये लोग दूध या दूध के प्रोडक्टस में मेलामाइन नाईट्रोजन की मात्रा बढा देते है जिससे प्रोटीन की माप सामान्य हो सके। इस प्रकार दूध में बाहरी रूप से अधिकतम ।चचंतमदज ीपही चतवजमपद समअमस दिखाकर लोगों को गुमराह करते है।
मेलामाइन कम मात्रा में हमारे ्यरीर के लिए हानिकारक नही है, परन्तु यह ्यरीर में जाकर सायनुरिक एसीड़ से मिलकर अधुलनषील मेलामाइन सायनुरेट बनाता है जिससे किड़नी स्टोन बनती है तथा किड़नी से संबंधित अन्य बीमारियाँ होती है जो जानलेवा भी हो सकती है। सायनुटिक एसिड मेलामाइन पाउडर में भी पाया जाता है।
चीन में पहले भी पषुओं के भोजन में मेलामाइन की मिलावट की गई थी जिसके सेवन से बहुत सी जानें गई थी। मेलामाइन का सेवन खाने के रूप में, सुंधने या त्वाचा के दूरा अवषोड्ढित होने पर ्यरीर के लिए हानिकारक होता है, साथ ही यह प्रजन्न अंगों को भी हानि पहुँचा सकता है।
मेलामाइन का समजींस कवेम स्क्50. 30 ग्राम प्रति कि0ग्राम वजन है। थ्।क् के अनुसार 25 भाग मेलामाइन प्रति दस लाख भोजन वयस्कों के लिए सुनक्षित है परन्तु बच्चो के भोजन में मेलामाइन का प्रयोग गैरकानूनी है।
आज चीन में दूध पाउडर के साथ साथ अन्य प्रोडक्टस जैसे फ्रोजेन दही, दूध, आईसक्रिम, केन्ड काफी, ड्रिक्स आदि में मेलामाइन की मिलावट पायी गयी है।
मेलामाइन संदुड्ढित प्रोडक्ट से बचने के लिए हम सभी को मिलकर ध्यान देना चाहिए। मसलन जब सामान आयात किया जाता है तब राष्ट्रीय स्तर पर थ्।व्ध् ॅभ्व् दूरा इसकी जाँच होनी चाहिए परन्तु बहुत सा सामान अनौपचारिक स्तर पर भी आयात किए जाते है, जिसकी जाँच संभव नही हो पाता है। इसलिए देष के फुड इन्स्पेक्टरों को भी सक्रिय रहना चाहिए जिससे गैर कानुनी तौर पर आयात किये गए सामान का पता लगाया जा सके तथा उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सके । सरकार को भी किस हद तक मिलावट की गई है आदि के अनुसार सामान बनाने व बेचने वालो को दंडित किया जाना चाहिए। खाद्य पदार्थ बनाने वाली कम्पनी को भी अपने दायित्व का अहसास होना चाहिए। उन्हें ्युरू से लेकर अन्त तक पूरी स्वच्छता एवं सफाई का ध्यान रखना चाहिए। सरकार को भी समय समय पर निरीक्षण कर उनके दायित्व को याद दिलाते रहना चाहिए।
आम जनता को भी खाद्य-पदार्थ खरीदते समय उनकी पैकिंग की तारीख, सामान कहाँ से आया है, किस कम्पनी ने बनाया है, आदि की जाँच करने के बाद ही खरीदना चाहिए, ताकि खाद्य-पदार्थो से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकें।
उपरोक्त बातों पर ध्यान देकर हम अपने बच्चों को मेलामाइन युक्त खाद्य-पदार्थो की चपेट से बचा सकते है।

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पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए परजीवी बीमारियाँ दूर करना

ग्रामीण भाई गाय, भैस, बकरी से ज्यादा दूध प्राप्त करना चाहते है, परन्तु यह देखा जाता है कि उनका पषु उनकी अपेक्षाओं पर खरा नही उतरता है। पषुओ को हरा- चारा, चोकर, खली, खनिज – मिश्रण आदि अगर सही मात्रा में नही दिया जाए तो इसकी कमी से पषुओं में दूध उत्पादन क्षमता कम हो सकती है।
कभी – कभी उचित आहार देने पर भी पषु की दयनीय स्थिति होने का मुख्य कारण उनके पेट में पलने वाले परजीवी (फैसिओला, सिस्टिजोम, एम्फीस्टोम, गोल कृमि) है जो अघिकतर पषु की मृत्यु का कारण तो नही बनते है परन्तु पषु के विकास व दुध उम्पादकता को अवष्य ही रोकते है यह परजीवी पषुओं के भोजन को स्वयं खाकर पषुओं को भुखा रखते है। साथ ही ये परजीवी कुछ ऐसे द्रब्य – प्रदार्थ छोड़ते है जो पषुओं कें लिए हानिकारक होते है, अतः अपने पषुओं को इन परजीवी बिमारियों से बचाना आवष्कय है।

परजीवी बीमारी को कैसे जाने :-
यदि आपके दूरा उचित आहार देने पर भी पषु दूध कम दे रहा है या षरीर का विकास ठीक से नही हो रहा है तो इस स्थिति के लिए पषुओं में परजीवी की उपस्थिति ही मुख्य कारण हेता है। परजीवी की अधिक संख्या पषुओं को रोगग्रस्त कर देती है।
इस रोग के प्रमुख लक्षण
1़ पहले अधिक भूख लगना
2 बाद में भूख कम लगना या न लगना
3 हल्का बुखार होना
4 पषु का सुस्त होना
5 थूथन का सूख जाना
6 झुड से अलग रहना तथा
7 दोनो जबड़ो के बीच पानी भर जाना

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यदि पषुओं में उपरोक्त लक्षण प्रकट हो रहे है तो सर्वप्रथम अपने पषु – चिकित्सक से सम्पर्क करें और अपने पषुओं का इलाज करवाएँ। अघिकतर परजीवी रोग एक या दो पषुओं में न होकर एक साथ कई पषुओ पर होता है जो एक साथ चराये जाते है। अतः सारे पषुओं का एक साथ इलाज कराना उचित होगा क्योंकि इससे परजीवी बीमारी को रोकथाम में भी मदद मिलेगी।
प्रजीवी को फैलाने में पषुओं के मल पदार्थ का विषेष योगदान होता है। इसमें गाय, भैस, बछड़ा बछिया के गोबर का योगदान सबसे अघिक है।

परजीवी बीमारी की रोकथाम
सामान्यतः पषु पालक केवल अधिक बीमार पशु का इलाज कराना पसंद करते है और कम बीमार पशु पर ध्यान नही देते है। परिणाम यह होता है कि धीरे धीरे कम बीमार पशु अधिक बीमार हो जाते है और कभी कभी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

अतःपषु बिमार ही न पड़े, हमें ऐसे ब्यवस्था करनी चाहिए व निम्नलिखित बातो पर ध्यान रखना चाहिए :-
1़ सबसे पहले तो गाँव के बाहर से कोई भी जानवर खरीदकर लाये ंतो उसकी बीमारी की जाँच जरूर करवा लें।
2़ पषु के मल पदार्थ या गोबर ही सही ब्यवस्था करें ताकि गोबर ज्यादा देर तक जमीन पर न रहे। साथ ही गोबर या मल को पोखर, तालाब या नाला के पानी में न मिलने दें जिससे पर्णकृमि का जीवन चक्र पूरा न हो और सरकेरिया पैदा न हो पाये।
3़ मध्यवर्ती पोषी (इन्टरमिडियेट होस्ट) जैसे धोंधा आदि को नस्ट कर देना चाहिए, ताकि पर्णकृमि की जीवन चक्र पुरा न हो और अंडे व लारवा का विकास न हो सके। पाया गया है कि निक्लोसामाइड ;छपबसवेंउपकमद्ध 4 मि0 गा्रम प्रति लीटर पानी के हिसाब से यदि पोखर व तालाब में मिला दिया जाये तो पोखर या तालाब के सारे धोंधे व मच्छर मर जाते है तथा इस रसायन का असर 15 – 20 दिनों बना रहता है।
4़ यदि पशु बीमार पड़ गया हो तो उसके इलाज के लिए ब्रोड़ स्पेक्ट्रम दवायें जैसे ऐरोजोल, एफिल, फलूकोडिन – डी0 एस का इस्तेमाल कर सकते है। पर्णकृमि के लिए फ्लुकोडिन प्लस आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है।
5़ पशु परजीवी बीमारी से मुक्त रह सके, इसके लिए हम तीन महीने पर वयस्क जानवरों को ऐरोजोल या फ्लुकोडिन डी0 एस बोलस तथा छोटे पशुओं ओर गर्भवती जानवरों को एकिल बोलस खिलाना चाहिए।

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