अफ्रीकन स्वाईन फीवर (ए0 एस0 एफ) / वार्थोग फीवर

0
242

अफ्रीकन स्वाईन फीवर (0 एस0 एफ) / वार्थोग फीवर

डा. मनोज कुमार सिन्हा, डा. अवनिश कुमार गौतम, डा. मंजू सिन्हा एवं डा. विजय कुमार

बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना

 

अफ्रीकन स्वाइन फीवर एक विषाणुजनित, अत्यंत संक्रामक, रक्तस्त्रावी एवं उभरती हुई मगवजपब बीमारी है। यह सभी उम्र के धरेलू एवं जंगली सुअरों (Domestic and wild) को प्रभावित करती है। सर्वप्रथम यह बीमारी 1900 के दषक में शुरूआती तौर पर पूर्वी अफ्रीका में पाया गया था। तत्पष्चात 1950 के दषक में युरोप में एवं हाल के दिनों में कई एषियाई देषों जैसे चीन, भारत आदि में ए0 एस0 एफ0 का प्रकोप देखा गया है।

भारत में हाल में पूर्वोतर क्षेत्रों के राज्य असम एवं अरूणाचल प्रदेष में इसके पहले प्रकोप का पता चला। वायरस की प्रकृति, महामारी विज्ञान, संचरण चक्र एवं वायरल प्रवेष तंत्र के कारण बिहार में भी इस बीमारी का प्रकोप एवं पुष्टि हुई है। बिहार में सर्वप्रथम फरवरी 2022 में सारण जिले में अफ्रीकन स्वाईन फीवर की पुष्टि हुई। बिहार के अन्य जिले नालन्दा, पुर्वी चम्पारण एवं रोहतास में भी इस बीमारी की पुष्टि हो चुकी है एवं सैकड़ों सुअरों के मरने की सूचना प्राप्त है। पशुपालन विभाग की तत्परता एवं पशु

परीधी के दायरे में आने वाली सुअरों का बनससपदह एवं आसपास के इलाकों में सैनिटाइजेषन का कार्य तेजी से कर बीमारी की रोकथाम की जा रही है।

अफ्रीकन स्वाईन फीवर Asfaviridae family के Afsavirus नामक विषाणु से होता है। यह विषाणु मल में कई दिनों तक जीवित रह सकता है, दुषित सुअर बाड़े में कई महीनों तक, रक्त में अठारह महीनों तक पोर्क उत्पादों में 140 दिनों तक, जमे हुए शवों एवं मांस में कई वर्षों तक जीवित रह सकता है।

मृत्यु दरः इस बीमारी की मृत्यु दर (Mortality rate) 100% तक है।

संवेदनषील पशुः

अफ्रीकन स्वीईन फीवर बिमारी सिर्फ सुअर परिवार के सदस्यों में होती है अन्य कोई भी जानवर इससे प्रभावित नही होते हैं। धरेलू सुअर, जंगली सुअर ;बुष सुअर, वारथोग्स सुअरद्ध इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। जंगली सुअर को विषाणु का संग्रहक माना जाता है।

READ MORE :  INFECTIOUS BOVINE RHINOTRACHEITIS (IBR)/ RED-NOSE

बीमारी का संक्रमणः

  • मुलायम किलनिया (Ornithodours eraticus) जंगली सुअरों से घरेलू सुअरों में संक्रमण का मुख्य वाहक है।
  • घरेलू जानवरों को झुण्ड मे संक्रमण सीधे सम्पर्क में आने से फैल सकता है अथवा दूषित रक्त, फार्म के बरतनों, फार्म के दूषित अवषेष (मल-मूत्र इत्यादि) और फार्म के विभिन्न उपकरणों और औजारों के द्वारा भी एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है।
  • यह विषाणु बिना पके/अथवा कम पके हुए Pork उत्पादों द्वारा भी फैलता है।
  • संक्रमित और जंगली सुअरों के एक फार्म से दूसरे फार्म अथवा एक गाव से दूसरे गाव में आवागमन से भी बीमारी फैलती है।

बीमारी के लक्षणः

ए0 एस0 एफ0 विषाणु की रोग उभ्दवन काल आमतौर पर सीधे सम्पर्क में आने के बाद 05 से 21 दिनों की होती है।

ए0 एस0 एफ0 के लक्षण मुख्यतः चार रूपों में दिखाई देते हैं।

  1. अति तीव्र (Peracute)
  2. तीव्र  (Acute)
  3. उपतीव्र  (Sub-acute)
  4. जीर्ण (Chronic) 

अति तीव्र के लक्षणः

रोग के अति तीव्र में पशुओं की मृत्यू अचानक बिना लक्षण दिखाई दिए हो जाती है। कभी कभी तेज बुखार (1040 – 1070) होता है, जो एकमात्र बीमारी का संकेत है।

तीव्र के लक्षणः

  • रोग के तीव्र रूप में तेज बुखार (1040 – 1070) के साथ-साथ भूख की कमी, आलस, कमजोरी, उदासी एवं पशु का जमीन पर लेटे रहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
  • त्वचा पर लालिमा, नाक एवं शरीर के पिछले हिस्से एवं कान की त्वचा पर रक्त के चकते (Haemorrhagic Patches)और इन त्वचा का नीला पड़ जाना तथा रक्तयुक्त दस्त होना प्रमुख लक्षण हैं।
  • गाभीन सुअरों में गर्भपात का होना।
  • श्वास संबंधी परेषानियों का होना
  • 7 – 10 दिनों के भीतर जानवरों की मृत्यु होना प्रमुख लक्षण है।
READ MORE :  PARAKERATOSIS IN DOMESTIC ANIMALS

उपतीव्र के लक्षणः

रोग के उपतीव्र रूप् में तीव्र रूप के समान ही लक्षण परन्तु कम गंभीरता के साथ दिखाई देते हैं।

जीर्ण के लक्षणः-

  • कम बुखार या रूक-रूक कर बुखार आना, कम भूख लगना, आलस्य, खासी, जोडों में सूजन, दस्त, कभी-कभी उल्टी के साथ त्वचा के घावों के उपरांत मृत्यु हो जाती है।
  • रोग के सभी प्रकार के रूपों में समूह का एक साथ जमघट होना और आमतौर पर कंपकंपी के साथ असामान्य श्वांस के लक्षण दिखते हैं।
  • संक्रमित सुअरों में पोस्टमार्टम के दौरान पाये जाने वाले लक्षण, शव परीक्षण करने पर आंतरिक अंगों में रक्त स्त्रावी धब्बे (Haemorrhagic Patches) दिखायी देते हैं।
  • आॅंतों में आंतरिक रक्त स्त्राव के लक्षण दिखायी देते हैं।
  • प्लीहा (Spleen)गहरे लाल और काले रंग के साथ आकार में बढ़ जाते हैं।
  • पाचक तंत्र, यकृत (Liver) गुदा (Kidney) के लसिका तंत्र में सूजन एवं रक्त स्त्राव पाया जाता है।
  • टांसिल में सूजन एवं लाल हो जाता है।
  • शव परीक्षण के दौरान हृदय के चारों तरफ पाये जाने वाली गुहा और शरीर के अन्य गुहाओं में अतिरिक्त तरल पदार्थ भरे होते हैं।

नमुना संग्रहणः उपर्युक्त किसी भी प्रकार के लक्षण एवं सुअरों के मरने की सूचना पर यथाषीघ्र नजदीकी पशुचिकित्सालय से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए एवं बीमारी के पूष्टिकारक निदान (Confirmatory diagnosis) के लिए नमूने को संग्रह कर शीतश्रंृखला का संधारण करते हुए भारत सरकार द्वारा चिन्हित प्रयोगषाला मे भेजा जाना चाहिए।

  • जीवित पशुओं से Whole Blood, EDTA भायल में सीरम एवं नेजल स्वाव का संग्रहण करना चाहिए।
  • मृत पशुओं में पोस्टमार्टम के क्रम में लीवर, कीडनी, स्पीलीन, इंटेस्टाईन एवं हार्ट टिषु को संग्रहित करना चाहिए।
  • पी0सी0आर0 एवं वायरस आइसोलेषन हेतु शीतश्रृखला संधारित एवं इमियोनो हिस्टोपैथोलोजी हेतू 10% buffered formalin में नमूनों को प्रयोगषाला में भेजा जाना चाहिए।

सार्वजनिक स्वास्थय के लिए जोखिमः

अफ्रीकन स्वाईन फीवर से राहत की बात यह है कि इस बीमारी से मानव जाति को कोई खतरा नही है। यह बीमारी जूनोटिक प्रकृति का नही है। परन्तु इस बीमारी के प्रकोप से कई देषों में मांस व्यापार काफी प्रभावित हुआ है। इससे उन किसानों को काफी आर्थिक क्षति हुई है जिनके जीविको-पार्जन का साधन मांस/सुअर उधोग पर निर्भर है। वत्र्तमान में इस बीमारी को भारत सरकार द्वारा जारी जैव उपायों को अपना कर रोका जा सकता है।

READ MORE :  Therapeutic management of Prostatic Disorders in Dogs

रोकथाम एवं नियंत्रणः

ए0 एस0 एफ0  का कोई ईलाज एवं उपचार अथवा कोई टीका उपलब्ध नहीं है। केवल जैव सुरक्षा उपायों को अपनाना ही बीमारी से बचाव का एकमात्र तरीका है।

  • रोगग्रस्त जानवरों को स्वस्थ जानवरों से अलग रखना चाहिए। फार्म में बीमारी का प्रकोप होने पर रोगग्रस्त अथवा सम्पर्क में आये जानवरों को तत्काल, अलग से बनाये गये बाड़ों में स्थांनांतरित कर देना चाहिये।
  • भारत सरकार द्वारा निर्धारित SOP/Guidelines का अक्षरषः पालन करते हुए रोगग्रस्त जानवारों को निस्तारण/षमन कर देना चाहिए।
  • तत्पष्चात् पूरे फार्म एवं आसपास के क्षेत्रों को सेनेटाईज करना चाहिए।
  • ए0 एस0 एफ0 विषाणु को 8/100 सोडियम हाइडोआक्साईड (30 मिनट) सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल 2 – 3 प्रतिषत (3 मिनट), Chlorine 2-3%(3 मिनट), (Formalin 3/1000,3 minuts), (3%Orthophenyl 30 minutes) and Iodine compound के द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है।
  • विषाणु Ether एवं Chloroform के लिए अतिसंवेदनषील है इसलिए विषाणु को इन रसायनिक पद्वार्थो का उपयोग कर नष्ट किया जाना चाहिए।
  • भारत सरकार के Guidelines के अनुसार बीमारी के उदभदन स्थल से 1 कि0मी0 परिधि को संक्रमित जोन घोषित किया जाता है एवं इसके बाद 09 कि0मी0 परिधि तक में कम से कम तीन माह तक Surveillance का काम किया जाना चाहिए।
  • जिन देषों, प्रांतों, राज्यों में इस बीमारी की पृष्टि की सूचना है वहाॅं से सुअर एवं सुअर के उत्पादों पर निषेध लगाकर इसके आगंे के प्रसार को रोका जा सकता है।

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON