एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण : रेबीज़

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एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण : रेबीज़

डॉ संध्या मोरवाल

सहायक आचार्य

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय

नवानिया, उदयपुर

 

“एक स्वास्थ्य” के अनुसार मनुष्य स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और वातावरण, इन तीनों का आपस में गहरा संबंध है। पिछले कुछ समय से मनुष्य और पशु कुछ ऐसी बीमारियों का सामना कर रहे हैं जो चिंता का विषय है। ये रोग कारक के म्यूटेसन की वजह से समस्या पैदा कर रहे हैं और इसी वजह से एक स्वास्थ्य दृस्टिकोण का महत्व और बढ़ जाता है।

एक स्वास्थ्य पद्यति का अनुप्रयोग संक्रामक रोगों को नियंत्रण करने के लिए उत्तरदायी दृष्टिकोण है। संक्रामक रोग वो रोग होते हैं जो पशुओं में और मनुष्यों में किसी कारक की वजह से होते हैं। ये कारक कोई भी हो सकता है जैसे बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ और कवक । कारक का प्रकार पर्यावरण की स्थिति और पशुओं के रख रखाव की अनुचित व्यवस्था बीमारियों के फैलाव को उचित वातावरण प्रदान करती है।

बहुत सारे रोग पशुओं से मनुष्यों में और मनुष्यों से पशुओं को प्रभावित करते हैं ऐसे रोगों को जूनोटिक रोग कहते हैं जैसे रेबीज़। इस आर्टिकल का मुख्य उद्येश्य पशुपालकों में रेबीज़ के बारे में जागरूकता फैलाना, यह कैसे फैलता है और इसे जानवर से जानवर या जानवर से मनुष्य में होने से कैसे रोक सकते हैं के बारे में बताना है।

रेबीज़ नामक बीमारी वायरस जनित, संक्रामक और जुनोटिक बीमारी है।  यह रोग सभी गरम खून वाले जीवों को प्रभावित करता है, इसमे मनुष्य भी शामिल है। यह रोग न्यूरो ट्रोपिक लायसा वायरस के कारण होता है। यह रोग (वायरस) संक्रमित जानवरों के चाटने या काटने से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। रेबीज़ रोग संक्रमित पशु की लार के द्वारा फैलता है। रेबीज़ रोग पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली , गाय, बकरी, घोड़ा, ऊँट) और जंगली जानवर (लोमड़ी, चमगादड़, जंगली नेवला) आदि के काटने से या खरोचने से फैलता है।

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रेबीज़ रोग को लेकर चिंता थोड़ी और बढ़ जाती है क्योकि यह जानलेवा रोग तो है ही इस रोग के लक्षण मनुष्य में बहुत देर बाद नज़र आते है जिसके कारण प्रभावित पशु और व्यक्ति को बचना बहुत मुश्किल हो जाता है।

प्रत्येक वर्ष 28 सितंबर को दुनिया भर में “विश्व रेबीज़ दिवस”´मनाया जाता है जिसका उद्येश्य लोगो में इस जानलेवा रोग के प्रति जागरुकता फैलाना है। “विश्व रेबीज़ दिवस”´की शुरुआत 2007 में हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से विश्वभर में हर वर्ष 59000 मनुष्यों की रेबीज़ से मृत्यु होती है। सोच विचार वाली बात तो ये है कि इन आंकड़ो में बच्चों कि संख्या ज्यादा है। रेबीज़ रोग 90 प्रतिशत संक्रमित कुत्ते के काटने से होता है। जिसमे 60 प्रतिशत आवारा कुतों के काटने से ओर 40 प्रतिशत पालतू जानवरो से होता हैं |यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि एक बार अगर वायरस प्रभावी हो गया और लक्षण दिखने लगे तो मनुष्य / पशु दोनों का बचना मुश्किल है |

रेबीज़ के लक्षण:  रेबीज़ मुख्यत: दो तरह से लक्षण प्रकट करता है। एक तो रेबीज़ संक्रमित के नर्वल सिस्टम से होते हुए दिमाग में पहुंचता है और दिमाग में सूजन पैदा करता है जिससे संक्रमित कौमा में चला जाता हैऔर फिर उसकी मृत्यु हो जाती है। दूसरी तरह में यह वायरस संक्रमित कि त्वचा या मांसपेशियों के संपर्क में आता है जिससे यह रीढ़ कि हड्डी और मस्तिष्क तक जाता है और लक्षण दिखते हैं।

            रेबीज़ के लक्षण तभी प्रकट होते  है जब वायरस संक्रमित के दिमाग में पहुंचता है और कितने जल्दी लक्षण आएंगे यह भी इसी बात पर निर्भर करता है कि कुत्ते ने दिमाग के कितना नजदीक काटा है। शुरुआत में सिरदर्द होना, बुखार, अनिद्रा, पानी से डर इत्यादि लक्षण प्रगत होते हैं और यह उग्र रेबीज़ के रूप में जाना जाता है। दूसरा रेबीज़ का रूप पैरालिटिक रूप होता है जिससे संक्रमिर व्यक्ति धीरे-धीरे पैरालाइज़ हो जाता है और मृत्यु तक हो जाती है।

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            रेबीज़ का उपचार : सर्वप्रथम घाव को अच्छे से साबुन के पानी से तेज प्रवाह में 15-20 मिनट धोवे और उसके बाद जितना जल्दी हो चिकित्सक की राय लें और पोस्ट एक्सपोजर टीकाकरण करवाये साथ ही उस संक्रमित पशु का भी ध्यान रखे कम से कम 10-15 दिन तक।

            रेबीज़ रोग से बचाव: रेबीज़ एक भयनक बीमारी है लेकिन इससे बचा जा सकता है और रेबीज़ से बचाव ही इसका इलाज़ है।

  • सर्वप्रथम वे लोग जो पशुओं कि देखभाल करते हैं, पशुपालक, पशु चिकित्सक, पशु पैरावेट्स, प्रयोगशाला मे काम करने वाले लोग समय पर अपना टीकाकरण ज़रूर करावे।
  • अगर आपके घर में कोई भी पालतू जानवर है तो उसका टीकाकरण ज़रूर करवाएँ।
  • रेबीज़ का टीकाकरण कुत्तों में प्रथम तीन महीने पर और उसके बाद हर वर्ष करवाएँ।
  • अगर आपके पालतू पशु को किसी रेबीज़ संक्रमित जानवर ने काटा है तो उसका टीकाकरण 0, 3, 7, 14, 28, 90 दिन तक करवाये।
  • अपने पशुओं को बाहर बाज़ार में / सड़क पर आवारा न घूमने दें।
  • अपने पशुओं को जंगली और संक्रमित पशुओं के संपर्क में ना आने दें।
  • अगर आप ऐसे किसी देश की यात्रा करते हैं जहां रेबीज़ होता है तो वहाँ जाने से पहले अपना टीकाकरण अवश्य करवाएँ।
  • आवारा पशुओं की जानकारी पशु रोग नियंत्रण को देवे।

रेबीज़ के लिए हम कह सकते हैं कि बचाव ही उपचार है।

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