मुर्गी पालन :- मुर्गियों में रोगों के लक्षणों की पहचान और प्रबंधन।
डॉ संध्या मोरवाल
सहायक आचार्य
पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय
नवानिया, उदयपुर
परिचय:-
पिछले कुछ दशकों में पूरी दुनिया में मुर्गीपालन के व्वासाय का बहुत तेजी से विकास हुया है । भोजन के रूप में इसकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण चिकन की खपत में बढोंतरी हुई है और इसे दूसरो के तुलना में स्वस्थ और अच्छा मांस माना जाता है। मुर्गियों को अंडा और मांस के लिए ही पाला जाता है लेकिन जैसे जैसे कुक्कुट उद्योग का विकास हुआ, बीमारी का प्रकोप और उससे जुड़ी चुनौतियाँ अधिक सामान्य और प्रबंधन के लिए महंगी हो गई है । किसी भी पौल्ट्री फार्म मैं बीमारियां मुख्त चार तरह से फैल सकती है:- a) आदमियो के आगमन से , b) पौल्ट्री फार्म में नए पक्षियो के आने से, c) खाने पीने के बर्तन और खाने पीने से , d) बाहर के दूसरे पक्षी, चूहे, और पशुओ से। अगर आपको संदेह है की आपकी मुर्गी अस्वस्थ है तो सबसे पहले आप अपने पूरे मुर्गी फार्म को ध्यान से देखना है। आपको अपने पक्षियों का तब निरीक्षण करना है जब आपके पक्षी आराम कर रहे हो इसे समय में आप पक्षियों का स्वास्थ ठीक से देख पायेगें। इस आर्टिक्ल में हम कुछ बीमारी के सामान्य लक्षण और उनके प्रबंधन के बारे मै चर्चा करेगें जिनका उपयोग करके हम अपने चूज़ो और अन्य पौल्ट्री में संभावित बीमारी का पता लगा सकते है। लेकिन उचित निदान और उपचार के लिए अपने नज़दीकी पशु चिकित्सक से जरूर परामर्श करे।
कुक्कटो में बीमारियों के सामान्य लक्षण :-
- पक्षी के पंखो का असमय नुकसान होना ।
- पक्षी का सामान्य निष्क्रियता व्यवहार।
- आखों से और नाक से किसी भी तरह का स्त्राव का आना।
- असामान्य ड्रूपिंग।
- पक्षी का सुस्त रहना और बंद आंखे रखना।
- पक्षी के खुरदरे पंख होना (असामान्ये पंख होना)।
- पक्षी के झुके हुए पंख होना ।
- पक्षी का अपने कूबड़ पर बैठना या लटना ।
निम्नलिखित तालिका वयस्क और युवा मुर्गियों में बीमार/ रोगग्रस्त पक्षियों के तुलना में स्वस्थ पक्षियों द्वारा प्रदर्शित सामान्य लक्षण:-
क्रम संख्या | रोग की विशेषता | स्वस्थ पक्षी | रोगग्रस्त पक्षी |
1
|
सामान्य मुद्रा /पूछ की स्थिति | Ø सक्रिये/ पूछ ऊची रखना | Ø पूंछ और पंख गिराए हुऐ।
Ø सिर को शरीर के पास रखता है या पीठ के ऊपर या पैरों के बीच घुमाकर बैठना जाता है । |
2 | सिर | Ø आखो और नाक से किसी भी तरह का असामान्ये स्त्राव नही होता,
Ø कोम्ब और वत्त्लेस साफसुथरे |
Ø असामान्ये कोम्ब और वत्त्लेस का रंग
Ø सिकुड़ी हुई कोम्ब Ø सुस्त आँखें या पानीदार आखों Ø चेहरा सिकुड़ा हुआ या सूजा हुआ
|
3 | मांसपेशियों | Ø मज़बूद मांसपेशियों।
Ø पकड़ने पर अपना पूरा बचाव करने की कोशिश करता है । |
Ø वजन और ताकत में कमजोर होना ।
Ø जांघों का असामान्य आकार होना। Ø मांसपेशियों का असामान्य आकार ।
|
4 | पैर और तांगे | ü जोड़ो का चिकना होना।
ü छूने मै ठंडा महसूस होना । |
Ø छूने मै गरम महसूस होना।
Ø जोड़ो का बडा हुआ होना। Ø पैरो का फटा होना। Ø शरीर का वजन सही से नही लेना। |
5 | पंख | ü दिखने में चिकने और साफ सुथरे। | Ø पंखो पर किसी तरह (असामान्य) के निशान का होना ।
Ø फुला हुआ। |
6 | भूख और प्यास | Ø खाना पीना असामान्य । | Ø कम खाना या बिलकुल नही खाना।
Ø जरूरत से जायदा पानी पीना । |
7 | ड्रूप्पिंग | Ø स्लेटी , सफेद टोपी के साथ भूरा,
Ø निश्चित रूप एवम आकार |
Ø सफ़ेद
Ø हरी Ø पीली Ø लाल Ø सफेद पानी वाली |
8 | पेट का आकार | Ø ठोस
Ø मोटे पक्षी मै वसा का महसूस होना |
Ø बहुत सख्त या बहुत नरम हो सकता है । |
9 | सांस लेना | Ø चुपचाप
Ø चोंच बंद (गरम मौसम में पक्षी मुंह खोलकर सांस ले सकते हैं ) |
Ø खाँसना
Ø छिकना Ø घडघड़ाहट की आवाज़ आना Ø हाफ़ता हुआ |
10 | वेंट की स्थिति | Ø स्वच्छ
|
वेंट क्षेत्र के आसपास सूजन
ऊतकों का उभार |
मुर्गीफार्म में मुर्गियों की बीमारियों की रोकथाम और प्रबंधन :-
स्वच्छ कुक्कट पालन के अच्छे प्रयासो के साथ -साथ स्वच्छ वातावरण प्रदान करने के बाद नियमित रोग निवारक उपाय करके हम कुक्कुटो को बहुत सारी बीमारियों से बचा सकते है, ये निवारक उपाए निम्नलिखित है :-
1 मुर्गीफार्म पर परजीवी नियंत्रण (आन्तरिक और बाहरी) ।
2 चूजों और मुर्गीयों का टीकाकरण।
3 बीमार कुक्कुट को स्वस्थ पक्षी से अलग करके उसका नियमितरूप से इलाज करना।
4 अलग-अलग आयु के पक्षी को अलग-अलग स्थान रखकर ।
5 पक्षियो और कुक्कट फार्म पर कम करने वालों के बीच साफ सफाई और जैव सुरक्षा का पालन करके।
- 1.मुर्गीफार्म पर परजीवी नियंत्रण (आन्तरिक और बाहरी) :- कुक्कट जिस जगह पर रखते है वो जगह ओर जो उनकी देख रख करते है वो कर्मचारी परजीवी के फैलाव मैं बहुत बड़ा माध्यम पैदा करते है । जगह की अच्छी साफ सफाई के साथ साथ अगर कुक्कुट का नियमित रूप से परजीवी का नियंत्रण किया जाये तो कुक्कट शारीरिक और मानसिक तनाव मैं नही आएगा ओर हमे अंडे ओर मांस का उत्पादन अच्छा मिलेगा। नियमित रूप से परजीवी नियंत्रण करने से कुक्कट की रोगो के प्रति रोगनिरोधक क्षमता भी अच्छी बनी रहती है। मुर्गीफार्म पर परजीवी नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए :-
- बाहरी परजीवियों के लिए नियमित रूप से मुर्गियों का निरीक्षण करना ।
- किसी भी क्रमि के लक्षण देखने पर तुरंत ड्रूप्पिंग की जांच करवाए।
- जब भी पेट के केड़ों की दवाई दे तो हमेशा देवाई की शीशी पर लिखी सूचना पूरी तरह से पढे फिर हीं काम में लेवे ।
- मुर्गीफार्म की साफ सफाई रोज करवाए तथा कुछ भी असामनाए दिखे उसको अनदेखा न करे ।
- हर उम्र के चूजो और मुरगियों की जगह थोड़े थोड़े समये बाद बदलते रहे ।
- मुर्गीफार्म हमेशा सूखा रहना चाहिए क्योकि गीली जगह में परजीवी का भी खतरा रहता है और दूसरी बीमारियो का भी फलने का खतरा भी बड़ जाता है।
- अगर किसी भी तरह के ज़ू, चिचड़ी और खटमल मुर्गीफार्म पर देखे तो तुरंत किसी उचित कीटनाशक का छिड़काव करवाए और ध्यान रखे की मुर्गीफार्म की दरारे और कोनो में कीटनाशक का छिड़काव जरूर करे ।
समये समये पर अपने नजदीकी पशुचित्सक को जरूर संपर्क करे।
2.चूजों और मुर्गियों का टीकाकरण:-
चूजो और मुर्गियों का समय पर सिर्फ टिका करण करके भी हम बहुत सी बीमारियो से हमारी मुर्गियों का बचाव कर सकते है । एक उपयुत टीकाकरण सूची का पालन करके और सही टिकाकरण स्टॉक खरीद कर हम चूजों को वाइरस और जीवाणु से होने वाली बीमारियो से बचा सकते है । जब भी नए चूजो को खरीदे हमेशा उनसे टिककरण किए हुए ही चूजे खरीदे । पॉल्ट्री टीककरण में निंम्नलिखित टीके शामिल होते है :- मैरेक्स रोग ,न्यूकैस्टल रोग, एवियन एंनफेलोमाइलाइटिस, चिकन एनीमिया, एग्द्रोप सिंड्रोम 76, मुर्गी हैजा , मुर्गी फॉक्स, संक्रामक ब्रोंकाइटिस, संक्रामक बरसल रोग संक्रामक कोरजाई।
मुर्गियों का टीकाकरण करवाते समय सावधानिया:-
- मुर्गियों का टिकाकरण करवाते समय हमेशा डिस्पोजेबल सीरिञ्ज और सुई का उपयोग करना चाहिए ।
- अगर टीके को कुछ दिन सग्रहित करना पड़े तो, भंडारण की स्थिति में हमेशा टीके की शीशी पर लगे लेबल पर दिए गए निर्देशों का पालन करना चाहिए।
- टीकों में उपयोग की गई सभी सीरिञ्जोन और सुइयों को उचित तरीके से निस्तारण चाहिए।
- टीकाकरण वाली जगह के आसपास साफ सफाई रखे और ध्यान रखे की टीकाकरण उपकरण के पास कभी भी डिटर्जेंट या कीटाणुनसक दवाई का उपयोग ना करे ।
- टीकाकरण करवाते समये बहुत सारे पक्षी एक साथ ना रखे। थोड़े थोड़े पक्षियों का झुंड बनाकर टीकाकरण करवाए ।
मुर्गियों का टीकाकरण की विधिया:-
- मुह के दवारा (पेयजल में मै दवाई डालकर) ।
- स्प्रे और नेबुलाइजेशन (एक दिन के चूज़े में) ।
- आखों में (आँख में डालने की दवाई)
- मास्पेसियों और चमड़ी में सुई लगाकर ।
- (अंडो) इन ओवों लगाकर ।
3 बीमार कुक्कुट को स्वस्थ पक्षी से अलग करके उसका नियमितरूप से इलाज करना:-
- अपने पक्षियो का नियमितरूप से निरीक्षण करें । पक्षियो में किसी भी बीमार या अस्वस्थ होने के लक्षण या झुंड के भीतर समस्यों जैसे चोंच से पंख को कुतरना, दस्त लगना, दाने चारा कण खाना, देखे तो उसको हल्के में ना लेवे।
- स्वस्थ और मुख्ये झुंड से बीमार मुर्गियों को हटा दे ओर उसकी उचित देखरेख करे तथा किसी पशु चिकित्सक से परामर्श ले।
- बीमार पक्षी को पूरी तरह से ठीक होने तक मुखे झुंड से अलग ही रखे।
- बीमार पक्षी का खाना पीना भी अलग ही करवाए।
4 अलग-अलग आयु के पक्षी को अलग अलग रखकर ।
- मुर्गीफार्म मै पहले से रह रहे पक्षियों के झुंड में छोटे और नए पक्षियों को कभी भी शामिल ना करे क्योकि येसा करने से छोटे पक्षियों में रोग के स्थानांतरण का खतरा बढ़ जाता है।
- पुराने और बड़े पक्षी उन बीमारियों और विकारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण हो चुका होता है जिनका युवा पक्षियों को अवगत नहीं कराया गया है एसे मै अक साथ रखना थोड़ी समसया उत्पन्न कर सकता है।
- जब भी मुर्गीफार्म मै प्रतिदिन काम शुरू करे हमेशा छोटे चूजो के साथ कम शुरू करना चाहिए और बड़े मुर्गियों पर खतम करना चाहिए इससे बीमारिया के फलने का खतरा कम हो जाता है ।
- एक उम्र के सभी पक्षी एक साथ रखने से उनकी साफ साफई, उनको कृमिनाशक दवाई देना और टीकाकरण करना आसान हो जाता है ।
5 पक्षियो और कुक्कट फार्म पर कम करने वालों के बीच साफ सफाई और जैव सुरक्षा का पूरा उपयोग करके :- जैव सुरक्षा से तात्पर्य उस प्रबंधन वयव्था से है जिसका उद्देश्य जानवरों, मनुष्यों या किसी क्षेत्र में रोग पैदा करने वाले कारको के संचरण और प्रसार को बाहर करना या कम करना है। जैव “जीवन” को बताता है तो सुरक्षा का मतलब “सुरक्षा” । पौल्ट्री के अच्छे स्वास्थे के लिए जैव सुरक्षा का बहुत बड़ा महतव है। यदि जैव सुरक्षा को मुर्गीफार्म मै पूरी तरह लागू किया जाये तो मुर्गियों को बहुत सी समस्याओं से बचाया जा सकता है।
पक्षियो और कुक्कट फार्म पर प्रतिदिन के जैव सुरक्षा नियम:-
- जब भी संभव हो फार्म नियमित रखरखाय किया जाना चाहिए ।
- पौल्ट्री फार्म पर कम करने वाले मजदूरों को साफ सुथरे कपड़े और जूते पहने चाहिए जिनको रोज धोना भी चाहिए ।
- पौल्ट्री फार्म में आते जाते समय हाथो पैरो को अच्छे से धोना चाहिए।
- पौल्ट्री फार्म में बाहर के दूसरे पशु, पक्षी और जगली जानवर को नही आने देना चाहिए ।
- पौल्ट्री फार्म में आने वाले वाहन को भी कीटाणुनाशक पदार्थ से साफ करना चाहिए उसके बाद ही अंदर आने देना चाहिए ।
- चूजों के प्रवेश से पहले उनसों अच्छे तरह से कीटानुरहित और फ्यूमिएट करना चाहिए ।
- मुर्गियों को खाने पीने के स्थान की रोज साफ सफाई होनी चाहिए तथा खाने पीने में काम मै आने वाले बर्तनो को रोज साफ करे।
- मुर्गियों के रहने की जगह हमेशा सुखी रहनी चाहिए, मुर्गीफार्म मै नमी बीमारियों को बुलावा देती है।
निष्कर्ष:- मुर्गियों पालन को अगर एक अच्छे व्वसाय के रूप मै आगे बड़ाना है तो मुर्गियों को बीमारियों से बचाकर रखना होगा। जिसके लिए नियमित रूप से मुर्गीफार्म के पक्षियों की समय से डीवोर्मिंग करवानी होगी साथ ही कीटाणु और वायरस जनित रोगों के प्रति टीकाकरन भी समय समय पर करवाना होगा। सफल और स्वस्थ पॉल्ट्रीफार्म इसी बात पर निर्भर करता है की मुर्गीपालक अपने फार्म की कितनी देख रेख रखता हैं।