पशुओं के ब्रुसोलोसिस रोग का डेयरी उधोग पर प्रभाव

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पशुओं के ब्रुसोलोसिस रोग का डेयरी उधोग पर प्रभाव

डॉ संध्या मोरवाल

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय

नवानिया, उदयपुर

 

परिचय:-

      डेयरी फार्म पर बहुत सारे रोग (जीवाणु, वायरल, फ़गस तथा परजीवी ) का खतरा हमेशा बना रहता है किसी भी फार्म की आर्थिक आय इसी बात पर निर्भर रहती है की फार्म के पशुओ का स्वास्थे कैसा है और पशु बीमारियों से कितना दूर है। इस लेख मे फार्म पर होने वाली सामान्ये बीमारी ब्रुसोलोसिस के कारण, लक्षण, फैलाव और रोग के प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानेगे।

ब्रुसोलोसिस आर्थिक रूप से एक महत्वपूर्ण जूनोटिक बीमारी है, यह एक विश्वव्यापी रोग है जो बड़े पशु (गाय, भैंस ), छोटे पशु (भेड़ एवं बकरी) और पालतू शवान से लेकर सुअर तक को हो सकता है। इस रोग से विकासशील देशों मे बहुत नुकसान हो रहा है । भारत देश जहा गाय व भैंस की जनसंख्या सबसे ज्यादा है ओर दूध उत्पादन भी बहुत हैं इसलिए यह रोग डेयरी उधोग के लिये एक चुनोती के रूप में सामने आ रहा है।

भारत देश में डेयरी उधोग को ब्रुसोलोसिस रोग से हर साल भारी आर्थिक नुकसान  का सामना करना पड़ रहा है। इस रोग से पशु समय पर गर्भ धारण नही कर पाता है या गर्भपात का सामना करना पड़ता है जिससे पशु की उत्पादकता घटने के साथ साथ पशु का शारीरिक विकास रुक जाता है ओर डेयरी पालन प्रभावित होता है।

भारत में ब्रुसोलोसिस के मामले दिन प्रतिदिन बड़ते जा रहे है इसका मुख्ये कारण नियंत्रण नीति का अभाव, बछड़ों का टीककरण  समय पर ना कर पाना, समय रहते रोग का परीक्षण ना होना, उपचार व्यवस्था का अभाव होना, लोगो में जानकारी का अभाव ये सब कारक इस रोग के फ़ैलने में मुख्य भूमिका निभाते है।

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पशुओं (गाय, भैंस, भेड़, बकरी) में ब्रुसोलोसिस एक अत्यंत गंभीर संक्रामक जीवाणु जनित रोग है जो ब्रुसेला नामक जीवाणु से होता है। इस रोग से प्रभावित पशु समय पर गर्भ धारण नहीं कर पता है, बाँझपन का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से पशुपालक को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इस बीमारी को माल्टा बुखार, अनडुलेटिंग बुखार, बेग्स रोग,  संक्रामक गर्भपात के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग गाय और भैंस में ब्रुसेला एवोर्ट्स, बकरी में ब्रुसेला मेलिटेन्सिस, भेड़ में ब्रुसेला ओविस, कुत्ते में ब्रुसेला कनिस और सुअर में ब्रुसेला सुइस नामक स्पीसीज़ से होता है।

पशुधन के लिए खतरा होने के साथ साथ इस रोग को  विश्व पशु स्वास्थ संगठन द्वारा रेबीज के बाद दुनिया में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण जूनोटिक बीमारी के रूप में मान्यत दी गई है। यह रोग पशु के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, मनुष्य स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रोग है। इस रोग से हर साल लाखों पशुओं के साथ-साथ मनुष्य (मुख्यत: पशु चिकित्सक, पशु पैरावेट्स, प्रयोगशाला कर्मी और पशुपालक) भी प्रभावित होते हैं और मृत्यु का भी सामना करते हैं। इस रोग की खास बात यह है कि एक बार पशु इस रोग की चपेट में आ जाता है तो फिर वह पशु अपने पूरे जीवनकाल में इस रोग के जीवाणु को अपने दूध के द्वारा, गर्भाशय के स्त्राव के द्वारा, एक पशु से दूसरे पशु में और मनुष्यों में फैलता रहता है। यह रोग पशुओं से मनुष्यों में फैलता है इसलिए इसको जुनोटिक बीमारी भी कहते हैं, इसी कारण डेयरी उधोग में इसकी महत्वता ओर बढ़ जाती है।

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पशुओं में ब्रुसोलोसिस रोग के लक्षण :-

  • प्रभावित पशु दना-चारा कम खाने लगता है।
  • शरीर से कमजोर हो जाता है।
  • गर्भपात (अक्सर अंतिम तिमाही में) हो जाता है।
  • मादा प्रभावित पशु में बांझपन हो जाता है।
  • पशु थैनेला नमक रोग से भी ग्रसित हो जाता है।
  • दुग्ध उत्पादन कम हो जाता है।
  • पशु के शरीर का वजन कम हो जाता है।
  • नर पशु के वृषणकोश में सूजन आ जाती है।
  • गर्भधारित पशु से कमजोर / मारा हुआ बच्चा पैदा होता है।

      ब्रुसोलोसिस रोग संक्रमण का फैलाव :-

  • हवा में आसानी से फैल सकता है।
  • प्रभावित पशु मुख्यत: गर्भपात होने से बाद, जो मनुष्य या पशु उसके स्त्राव के संपर्क मे आता है सीधे तौर पर या किसी माध्यम से।
  • बूचड़खाने मे काम करने वाले मनुष्य आसानी से इस रोग से संक्रमित हो जाता है।
  • प्रयोगशाला मे काम करने वाले लोग (जांच के दौरान)
  • मनुष्यो मे यह रोग किसी संक्रमित जानवर के सीधा संपर्क मे आने से या फिर संक्रमित पदार्थ के संपर्क मे आने से यह रोग हो सकता है।
  • संक्रमित पशु का कच्चा दूध पीने से या पश्चुरिकरण दूध को उपयोग में ना लाने से।

मनुष्य में ब्रुसोलोसिस के लक्षण :-

  • प्रभावित मनुष्य के शरीर का तापमान रोज बढ़ना और कम होना इस रोग का मुख्य लक्षण है।
  • इस रोग से प्रभावित मनुष्य को भूख कम लगना
  • शरीर में दर्द रहना (मुख्यत: जोड़ो में ओर सिर दर्द) |
  • रात में पसीना आना |
  • वृषणों में सूजन होना।

      ब्रुसोलोसिस रोग का प्रबंधन :-

  1. पशुओ में टीकाकरण करवाना: पशुओं में जब वो 4 माह के होते हैं, टीकाकरण करवाकर इस रोग से बचा जा सकता है। एक बार टीकाकरण करवाने से जीवन भर के लिए बचाव हो जाता है। (brucella abortus s -19 strain calf hood vaccine)
  2. प्रभावित पशु का अन्य पशुओ से अलग रख-रखाव करना।
  3. गर्भपात होने के बाद भ्रूण अन्य संक्रमित पदार्थ का सम्पूर्ण रूप से निष्क्रमण करना।
  4. प्रभावित पशु का कच्चा दूध, माँस इत्यादि का उपयोग नहीं करना।
  5. दुर्भाग्यपूर्ण यदि कोई मनुष्य प्रभावित हो जाता है तो पूर्ण इलाज़ करवाये।
  6. संक्रमित नर को प्रजनन के काम में न ले।
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निष्कर्ष :-

ब्रुसोलोसिस रोग भारत में किसानों, पशुपालक, और डेयरी पालक को आर्थिक नुकसान का कारण बनता जा रहा है, जिसमें रोग के उपचार की कीमत, गर्भपात, पशु में  बांझपन, दूध उत्पादन में कमी, लंबे समय तक पशु का गर्भधारण ना करना शामिल है। किसी भी डेयरी पालक की आर्थिक आय उस फार्म के मादा पशु के गर्भ धारण से लेकर दूध उत्पादन पर निर्भर करती है। समये पर बछिड़ो/ बछिड़ियों में टीकाकरण और पशु को इस् रोग से बचाव ही इस रोग का सम्पूर्ण उपचार हैं।

 

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