पशुओं में बाँझपन – एक गंभीर समस्या

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पशुओं में बाँझपनएक गंभीर समस्या

डॉ० ज्ञानेश कुमार* , डॉ० कैलाश कुमार और डॉ० निखिल पाल बाजिया

अरावली वेटरनरी कॉलेज, सीकर, राजस्थान    

भारत एक कृषि प्रधान देश है, कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की नीव है ׀ परन्तु बढती आबादी व उपजाऊ भूमि की कमी के कारण भारत में बहुत से किसान भाईओं की जीविका पशुपालन पर निर्भर है ׀ अतः भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और पशुपालन दोनों का ही विशेष योगदान है ׀ सकल घरेलु कृषि उत्पाद में पशुपालन का २८.६३ % योगदान सराहनीय है ׀

भारत में पशुओं की संख्या अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा होते हुए भी प्रति जानवर उत्पादकता बहुत कम है ׀ पशुपालन में इस बड़े नुकसान के पीछे पशुओं का बाँझपन होना एक बहुत बड़ी समस्या है ׀ और बाँझ पशुओं को रखना हमारे पशुपालकों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बना रहता है ׀

अतः पशुओं के  बाँझपन के  कारण और इसके निवारण को समझना अत्यंत आवश्यक हो गया है ׀

पशुओं के  बाँझपन के  कारण

पोषण की कमी

प्रसव के बाद ज्यादातर अधिक दूध देने वाली गाय वा भैसे ऊर्जा (energy) की कमी से ग्रसित हो जाते है ׀ ऐसा पाया गया है कि जिन पशुओं मे विभिन्न खनिज तत्व और विटामिन की कमी हो जाती है वे बाँझपन के शिकार हो जाते है, और उचित खान पान की व्यवस्था ना हो पाने पर समस्या और गंभीर हो जाती है ׀

 जीवाणुओ (Bacteria), विषाणुओ (Virus) और कृमि (Helminth) का संक्रमण 

            पशुओं के रहने के स्थान और आस पास के वतावरण की उचित देख रेख न हो पाने पर पशुओ में  कीटाणुओ के संक्रमण का खतरा रहता है ׀ पर ज्यादातर बाँझपन का कारण कस्टकारी प्रसव के बाद उचित देखभाल ना हो पाने से जीवाणुओ और विषाणुओ का गर्भाशय में संक्रमण है ׀ जो आगे चलकर मेट्रे׀इटीस (गर्भाशय में सूजन) और पायोमेट्रआ (गर्भाशय में पीक पड़ जाना) का कारण बन जाते हैं ׀

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  पशुओं में गर्मी के लक्षण ना पहचान पाना

      पशुओं (गाय –भैस ) में यौन चक्र १८ – २३ (औसतन २१ दिन) का होता है ׀ और पशू केवल १८ – २४ घंटे ही गर्मी के लक्षण दिखाते हैं ׀ अतः ज्यादातर किसान भाई गर्मी के लक्षण उचित निगरानी य फिर ज्यादा जानकारी ना होने के कारण गर्मी के लक्षण नहीं पहचान पाते

सही समय पे कृत्रिम गर्भादान ना हो पाना

      सही समय पे कृत्रिम गर्भादान ना हो पाना भी बाँझपन का एक महत्वपूर्ण कारण है ׀

अंडाणुओ या हार्मोन का असंतुलन

      अंडाशय (Ovary) से अंडाणुओ का ना निकलना (anovulation) या फिर देर से निकलना (delayed ovulation)  वा  अंडाशय से निकलने वाले हॉर्मोन की कमी या असंतुलन , फोलिकल का समय हो जाना (follicular atresia) सिस्टिक ओवरी , कार्पस लुटियम का असझम होना (lutial insfficiency) भी बाँझपन का कारण है ׀

जन्मजात दोष्

    पशुओं के प्रजनन अंगों जैसे की अंडाशय, गर्भाशय, गर्भाशय की नलिका, गर्भाशय ग्रीवा और योनी में होने वाले जन्म जात विकार भी बाँझपन का कारण है ׀

उदाहारण :- हाइपोप्लसिया (hypoplaisa) या अप्लासिया (aplasia)

परन्तु जन्म जात दोष बहुत ही दुर्लभ देखने को मिलते हैं अतः ये ज्यादा  चिंता का विषय  नहीं है ׀

 बांझपन का उपचार वा निवारण

  • पशुओं के पोषण पर ध्यान देना अति आवश्यक है, क्यों की पोषण की कमी होने पर पशुओं का गर्भधारण बहुत ही मुश्किल है ׀ अतः पशुओं को उचित मात्रा में ऊर्जा के श्रोत के साथ साथ प्रोटीन, विटामिन वा खनिज की आपूर्ति कराना भी आवश्यक है ׀
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गर्भावस्था के अंतिम महीनों में हरे चारे के साथ साथ १.५ से २.० किलो अतिरिक्त सान्द्र मिश्रण खिलाना चाहिए ׀ ब्याने के २४ से ४८ घंटे बाद कैल्सियम देने से दुग्ध ज्वर होने की संभावना कम हो जाती है ׀

यह गर्भधारण की दर में वृद्धी करने के साथ साथ संक्रमण की दर भी कम करता है ׀

  • पशुओ की निरंतर छः महीने के अंतराल पे डीवोर्मींग (deworming) करनी चाहिए जिससे की पशु शरीर के अंदरूनी वा बाहरी कीड़ों से ग्रसित ना हो ׀ पशुओं में प्रसव के बाद डीवोर्मींग (शरीर के कीड़े मारने की प्रक्रिया) भी प्रजनन दर में वृद्धी करता है ׀
  • प्रजनन अंगों के संक्रमण होने पर प्रजनन झमता में गिरावट आ जाती है ׀ इसमें ज्यादातर संक्रमण कष्टकारी प्रसव, जेर के रुक जाने आदि के कारण उत्पन्न होती हैं ׀ इनमे प्रमुख लक्षण गर्मी में आने पे या फिर लगातार योनी से सफेद या पीले रंग का पदार्थ निकलता है ׀

उचित एंटीबायोटिक आदि के टीके या तो मांस में या गर्भाशय में डालकर इन संक्रमित रोंगों की रोकथाम की जा सकती है ׀

  • पशुओं में ब्याने के कम से कम २४ घंटे तक जेर गिरने का इन्तजार करना चाहिए , उसके बाद यदि जेर नहीं निकली तो तुरंत पशुचिकित्सक को दिखाएं और आवस्यक्तानुसार इलाज करवाएं ׀

हाथ से जबरदस्ती जेर निकालने का प्रयास न करें, ब्याने के बाद प्रोस्टाग्लैंडीन और ऑक्सीटोसिन के टीके लगवाने से पशु आसानी से जेर गिरा देते हैं ׀ टीके हमेशा पशुचिकित्सक की सलाह से ही लगवाएं ׀

  • पशुओं में गर्मी के लक्षण पहचानने के लिए उपयुक्त होगा की उनकी निगरानी पे ज्यादा समय दिया जाय, विशेषतः सुबह और शाम के समय जिससे की पशुओं में गर्मी के लक्षण जैसे की बार बार पेशाब करना , योनी से पानी जैसे पदार्थ की धार गिरना, बार बार चिल्लाना, नर पशु की उपस्थित में शांत खड़े रहना आदि को देखकर आसानी से गर्मी में आने वाले पशुओं को पहचाना जा सके ׀
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  • पशुओं में कृत्रिम गर्भादान का समय भी सही होना चाहिए ׀ इसके लिए सरल उपाय यह है की गर्मी वाली अवस्था को तीन भागों में बाँट दें और अंतिम एक तिहाई भाग में ही कृत्रिम गर्भादान कराएँ ׀ पशुओं में ब्याने के बाद कम से कम २ महीने बाद ही गर्भादान कराएँ ׀

  • पशु पालकों को यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है की पशु जनन कार्य हेतु परिपक्व है की नहीं, उसके पहले पशु को गर्भित ना कराएँ ׀
  • ज्यादतर देशी गाय ३० -३६ माह में वा संकर गायें १६ – २० माह में जनन कार्य हेतु परिपक्व हो जाती हैं ׀
  • पशु के गर्मी में ना आने पर पशुचिकित्सक को दिखाएँ और आवस्य्क्तानुसार इलाज करवाएं जैसे की –
  • स्थिर कार्पस लुटियम में प्रोस्टाग्लैंडीन का प्रयोग ,
  • अण्डों के ना निकलने पे गोनाडोट्रोपिन और विटामिन, तथा फॉस्फोरस के टीके
  • अण्डों के देर से निकलने पर दो बार १२ घंटे के अंतराल पे कृत्रिम गर्भादान भी करा सकते हैं ׀
  • ग्रभित पशु को हमेशा साफ़ सुथरी जगह और अन्य पशुओं से अलग ही रखें, तथा उसकी खुराक का पूरा ध्यान रखें, उसे संतुलित आहार वा साफ़ पानी पिलायें ,
  • पशु में अगर कोई गर्भपात की समस्या दिखे तो तुरंत पशुचिकित्सक की सलाह लें ׀
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