पशुओं में गर्भपात कराने वाला मुख्य रोग ब्रूसेलोसिस: उपचार एवं रोकथाम

0
779

 

पशुओं में गर्भपात कराने वाला मुख्य रोग ब्रूसेलोसिस: उपचार एवं रोकथाम

 

ब्रूसीलोसिस एक अत्यंत संक्रामक रोग है, जो ब्रूसेला जाति के जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है।’

  • इसे ‘लहरदार बुखार’, ‘भू-मध्यसागरीय ज्वर’, ‘माल्टा ज्वर’के नाम से भी जाना जाता है।
  • ब्रूसीलोसिस मुख्यत: मवेशियों शूकर, बकरी, भेड़ और कुत्तों को होने वाला पशुजन्य रोग है।
  • संक्रमण मनुष्य में संक्रमित सामग्री जैसे कि जन्म के समय निकलने वाले पदार्थ के  साथ पशुओं के प्रत्यक्ष संपर्क या पशु उत्पाद सेवन से अप्रत्यक्ष रूप या हवा में उपस्थित वातानीत एजेंटों को सांस के भीतर लेने से फैलता है।
  • मनुष्य में संक्रमण का प्रमुख स्रोत कच्चे दूध का सेवन एवं कच्चे दूध से निर्मित पदार्थ हैं।

ब्रुसेलोसिस एक छूत की बीमारी है | इसे तूह जाने की बीमारी भी कहा जाता है | इसके कारण पशु तीसरी तिमाही (६-८ महीने) के दौरान तूह जाते है | मनुष्य में यह बीमारी माल्टा बुखार के नाम से जानी जाती है |

ब्रुसेलोसिस रोग गाय, भैंस, भेड़ एवं बकरी में फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो बुसेला बैक्टीरिया के कारण होती है,जो  पशुओं से मनुष्यों में एवं मनुष्यों से पशुओं में फैलती है। इस बीमारी से ग्रस्त पशुओं में 7-9 महीने के गर्भकाल में गर्भपात (Abortion) हो जाता है।

इस रोग को अडुलेट ज्वर और माल्टा ज्वर भी कहते है। ये रोग पशुशाला में बड़े पैमाने पर फैलता है तथा पशुओं में गर्भपात हो जाता है, जिससे बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता है।ये बीमारी मनुष्य के स्वास्थ्य एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भी बेहद घातक रोग है।

ब्रुसेलोसिस रोग का कारण –

ब्रूसेलोसिस ब्रूसेला नामक जीवाणु से होता है। गाय, भैंस में ये रोग ब्रूसेल्ला एबोरटस नामक जीवाणु द्वारा होता हैं तथा भेड़ एव बकरी में ये ब्रूसेल्ला मेलिटरंसिस जीवाणु से होता है।  यह जीवाणु ग्याभिन पशु की बच्चेदानी में रहता है तथा अंतिम तिमाही में गर्भपात करवा देता है।

READ MORE :  Epidemiology, Treatment and Control of Theileriosis in Cattle

एक बार संक्रमित हो जाने पर जीवन काल तक यह जीवाणु पशु के दूध तथा गर्भाश्य के स्त्राव में निकालता है।पशुओं में ब्रुसेल्लोसिस रोग संक्रमित पदार्थ के खाने से, जननांगों के स्त्राव से, योनि स्त्राव से, संक्रमित चारे से, रोगी पशु का कच्चा दूध पीने से, असावधानी पूर्वक जेर निकलने से तथा संक्रमित वीर्य से, कृत्रिम गर्भाधान द्वारा फैलता है।

मानव में रोग का कारण –

मनुष्यों में ब्रूसेल्लोसिस रोग सबसे ज्यादा रोगग्रस्त पशु का कच्चा दूध पीने से फैलता है।कई बार गर्भपात होने पर पशु चिकित्सक या पशुपालक द्वारा असावधानी पूर्वक जेर या गर्भाशय से होने वाले स्त्राव को छूने से जीवाणु त्वचा के किसी कट या घाव से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है।

ब्रूसेल्लोसिस रोग के लक्षण

पशुओं में गर्भावस्था की अंतिम तीन महीनों में गर्भपात होना इस रोग का मुख्य लक्षण है। गर्भपात के बाद चमड़े जैसी जेर का निकलना इस रोग की प्रमुख पहचान है। पशुओं में जेर का रूकना एवं गर्भाशय की सूजन एवं नर पशुओं में अंडकोष की सूजन इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। जोड़ों पर सूजन आ जाती है।

मनुष्य में इस रोग से तेज बुखार आता है जो बार-बार उतरता और चढ़ता रहता है, थकान, मांसपेशियां तथा जोड़ों और कमर में दर्द भी होता रहता है ,अंडकोष में सूजन मुख्य लक्षण है।

संचरणकेप्रकार –

(१) रोगी पशु का कच्चा दूध पिने से

(२) रोगी पशु के दूध से बने पदार्थो जैसे क्रीम एवं मक्खन खाने से

(३) गर्भपात हुए पशु के जेर मरे हुए बच्चे एवं बीमार गाय या भैंस के गर्भ से निकले तरल के संपर्क में आने से

READ MORE :  CHRONIC RESPIRATORY DISEASE (CRD) IN POULTRY

(४) जीवाणु युक्त चारा खाने एवं जीवाणु युक्त पानी पीने से

(५) कृतिम गर्भाधान में जीवाणु युक्त वीर्य का इस्तेमाल करने से

(६) रोगी सांड के गाय और भैस से मिलाप करने से

पशुओंमेंलक्षण –

(१) पशु का तीसरी तिमाही (६-८ महीने) में गर्भपात हो जाता है |

(२) मरा हुआ बच्चा या समय से पहले ही कमजोर बच्चा पैदा होता है|

(३) दूध की पैदावार कम हो जाती है |

(४) पशु बाँझ हो जाता है |

(५) नर पशु में बृषणों में सूजन हो जाती है, और प्रजनन सकती काम हो जाती है |

(६) सूअर में गर्भपात के साथ जोड़ो और बृषणों में सूजन पाई जाती है|

(७) भेड़, बकरियों में भी गर्भपात हो जाता है |

मनुष्योंमेंलक्षण –

(1) बुखार का रोज बढ़ना और घटना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है|

(२) थकान और कमजोरी

(३) रात को पसीना आना और शरीर में कंपकपी होना

(४) भूख न लगना और बजन घटना

(५) पीठ दर्द एवं जोड़ो का दर्द होना

(६) बृषणों में सूजन एवं रीढ़ की हड्डी में सूजन भी मुख्य लक्षणों में से एक है |

रोग की जांच

इस रोग में प्रयोगशाला परीक्षण आवश्यक होता है ।इस रोग के लिए रोज बगाल टेस्ट एव एसएटी टेस्ट कर सकते है। पशु की जाँच की जा सकती है ।

ब्रूसेल्लोसिस रोग का उपचार एवं रोकथाम –

  • इसका उपचार आमतौर पर मनुष्यों में एंटीबायोटिक दवाओं के सहारे कुछ हद तक इस रोग के उपचार में सफलता पायी गयी है।
  • ब्रूसेलोसिस नियंत्रण के लिए सभी पशुओं का टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • नए खरीदे गए पशुओं को ब्रुसेल्ला संक्रमण की जाँच किये बिना अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ नहीं रखना चाहिए।
  • किसी पशु को गर्भकाल के तीसरी तिमाही में गर्भपात हुआ हो तो उसे तुरंत फार्म के बाकी स्वस्थ पशुओं से अलग कर दिया जाना चाहिए।आसपास के स्थान को भी जीवाणु रहित करना चाहिए, क्योंकि उसके स्त्राव द्वारा अन्य पशुओं में संक्रमण फैल जाता है।
  • अगर किसी पशु को बार-बार गर्भपात हो रहा है तो उसकी खून की जाँच करानी चाहिए।
  • स्वस्थ गाय, भैसों के बच्चों में 4-8 माह की आयु में ब्रुसेल्ला एस-19 वैक्सीन से टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • गर्भाशय से उत्पन्न मृत नवजात एवं जैर को चूने के साथ मिलाकर गहरे गड़े में जमीन के अन्दर दबा देना चाहिए। रोगी मादा पशु के कच्चे दूध को स्वस्थ नवजात पशुओं को नहीं पिलाना चाहिए एवं मनुष्यों को दूध उबाल कर ही उपयोग करना चाहिए।
  • मादा पशु के बचाव के लिए 6-9 माह के मादा बच्चों को इस बीमारी के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • ब्याने वाले पशुओं में गर्भपात होने पर पशुपालक को उनके संक्रमित स्त्राव, मल-मूत्र आदि के सम्पर्क से बचना चाहिए क्योंकि इससे उनमें भी संक्रमण हो सकता है।
READ MORE :  Cattle Lumpy Skin Disease (LSD)

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON