दुधारू पशुओं में अनेक कारणों से बहुत सी बीमारियाँ होती है| सूक्ष्म विषाणु, जीवाणु, फफूंदी, अंत: व ब्रह्मा परजीवी, प्रोटोजोआ, कुपोषण तथा शरीर के अंदर की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया में विकार आदि प्रमुख कारणों में है| इन बीमारियों में बहुत सी जानलेवा बीमारियां है था कई बीमारियाँ पशु के उत्पादन पर कुप्रभाव डालती है| कुछ बीमारियाँ एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती है जैसे मुह व खुर की बीमारी, गल घोंटू, आदि, छूतदार रोग कहते हैं| कुछ बीमारियाँ पशुओं से मनुष्यों में भी आ जाती है जैसे रेबीज़ (हल्क जाना), क्षय रोग आदि, इन्हें जुनोटिक रोग कहते हैं| अत: पशु पालक को प्रमुख बीमारियों के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है ताकि वह उचित समय पर उचित कदम उठा कर अपना आर्थिक हानि से बचाव तथा मानव स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहयोग कर सके| दुधारू पशुओं के प्रमुख रोग् निम्नलिखित है:जीवाणु जनित रोग
1. गलघोंटू रोग (एच.एस.):
गाय व भैंसों में होने वाला एक बहुत ही घातक तथा छूतदार रोग है जुकी अधिकतर बरसात के मौसम में होता है यह गोपशुओं की अपेक्षा भैंसों में अधिक पाया जाता है| यह रोग नहुत तेज़ी से फैलकर बड़ी संख्या मे पशुओं को अपनी चपेट में लेकर उनकी मौर का कारण बन जाता हैं जिससे पशु पालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है| इस रोग के प्रमुख लक्षणों में तेज़ बुखार, गले में सूजन, सांस लेने में तकलीफ निकालकर सांस लेना तथा सांस लेते समय तेज़ आवाज होया आदि शामिल है| कईं बार बिना किसी स्पष्ट लक्षणों के ही पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है|
उपचार तथा रोकथाम:- इस रोग से ग्रस्त हुए पश को तुरन्त पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए अन्यथा पशु की मौत हो जाती है| सही समय पर उपचार दिए जाने पर रोग ग्रस्त पशु को बचाया जा सकता है| इस रोग की रोकथाम के लिए रोगनिरोधक टीके लगाए जाते हैं| पहला टीका 3 माह की आयु में दूसरा 9 माह की अवस्था में तथा इसके बाद हर साल यह टीका लगाया जाता हैं| ये टीके पशु चिकित्सा संस्थानों में नि:शुल्क लगाए जाते हैं|
2.लंगड़ा बुखार (ब्लैक क्कार्टर):
जीवाणुओं से फैलने वाला यह रोग गाय व भैंसों दोनों को होता है लिकिन गोपशुओं में यह बीमारी अधिक देखी जाती है तथा इससे अच्छे व स्वस्थ पशु ही ज्यादातर प्रभावित होते हैं| इस रोग में पिछली अथवा अगली टांगों के ऊपरी भाग में भारी सूजन आ जाती हैं जिससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है या फिर बैठ जाता है| पशु को तेज़ बुखार हो जाता है तथा सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़-कड़ की आवाज़ आती है|
उपचार तथा रोकथाम:- रोग ग्रस्त पशु के उचार हेतू तुरन्त नजदीकी पशु चिकित्सालय में संपर्क करना चाहिए ताकि पशु को शीघ्र उचित उपचार मिल सके| देर करने से पशु को बचना लगभग असंभव हो जाता है क्योंकि जीवाणुओं द्वारा पैदा हुआ जहर (टोक्सीन) शरीर में पूरी को बचना लगभग असंभव हो जाता है जोकि पशु की मृत्यु का कारण बन जाता है| उपचार के लिए पशु को ऊँची डोज़ में प्रोकें पेनिसिलीन के टीके लगाए जाते हैं तथा सूजन वाले स्थान पर भी इसी दवा को सुई द्वारा माँस में डाला जाता है| इस बीमारी से बचाव के लिए पशु चिकित्सक संस्थाओं में रोग निरोधक टीके नि:शुल्क लगाए जाते है अत:पशु पालकों को इस सुविधा का अवश्य लाभ उठाना चाहिए|
3.ब्रुसिल्लोसिस (पशुओं का छूतदार गर्भपात):
जीवाणु जनित इस रोग में गोपशुओं तथा भैंसों में गर्भवस्था के अन्तिम त्रैमास में गर्भपात हो जाता है| यह रोग पशुओं से मनुष्यों में भी आ सकाता है| मनुष्यों में यह उतार-चढ़ाव वाला बुखार (अज्युलेण्ट फीवर)नामक बीमारी पैदा करता है| पशुओं में गर्भपात से पहले योनि से अपारदर्शी पदार्थ निकलता है तथा गर्भपात के बाद पशु की जेर रुक जाती है| इसके अतिरिक्त यह जोड़ों में आर्थ्रायटिस (जोड़ों की सूजन) पैदा के सकता है|
उपचार व रोकथाम:- अब तक इस रोग का कोई प्रभाव करी इस्लाज नहीं हैं| यदि क्षेत्र में इस रोग के 5% से अधिक पोजिटिव केस हों टो रोग की रोकथाम के लिए बच्छियों में 3-6 माह की आयु में ब्रुसेल्ला-अबोर्टस स्ट्रेन-19 के टीके लगाए जा सकते हैं| पशुओं में प्रजनन की कृत्रिम गर्भाधान पद्यति अपना कर भी इस रोग से बचा जा सकता है|
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