गांठदार त्वचा रोग के लक्षण एवं उपचार
प्रतिभा जारेड़ा 1*, दीपक चोपड़ा 2, बीरेंद्र सिंह 3,
भारत दुनिया में सबसे बड़ा पशुधन तथा दुग्ध उत्पादक देश है। 20वीं पशु गणना के अनुसार देश में गोवंश की आबादी 19.25 करोड़ है, जबकि भैसों की आबादी 10.98 करोड़ है।देश की एक बड़ी आबादी पशु पालन से जुड़ी हुई है, यदि कोई भी पशुजन्य रोग महामारी का रूप लेकर पशुओ को ग्रसित करता है तो इसका सीधा असर उनके दूध उत्पादन पर पड़ता है, और पशुपालकों की आय प्रभावित होती है। अभी कुछ समय से भारत के गौवंश पशुधन में गांठदार त्वचा रोग या लंपी स्किन डिजीज के संक्रमण के मामले पहली बार बहुतायत में दर्ज किए गए है। इससे जहां हजारों की संख्या में गोवंश की मौत हो चुकी है, बड़ी संख्या में गोवंश बीमारी से ग्रसित है। प्रभावित क्षेत्र के गायों में दूध उत्पादन की क्षमता बेहद गिर गयी है। कई जगह तो दूध मिलने में कठनाई आ रही है तो कई जगह दूध के दाम बढ़ गए हैं। इस बीमारी के बाद यह महसूस हो रहा है कि पशु पालन इस देश के लिए कितना जरूरी है और इसके लिए आवश्यक सुविधाओ के साथ साथ जरूरी उपचार की समुचित आवश्यकता भी महसूस हो रही हैं।
गांठदार त्वचा रोग / लंपी स्किन डिजीज को पहली बार वर्ष 1929 अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कुछ हिस्सों में देखा गया था। यह रोग मवेशियों औऱ एशिया जल भैंस(बुबलस बुबलिस) में प्राकृतिक संक्रमण के रुप में होता है। गांठदार / ढेलेदार त्वचा रोग सर्वप्रथम एशियाई जल भैंसो में पाया गया। यह वेक्टर जनित चेचक रोग है और इसमे त्वचा पिंडो की उपस्तिथि से इस रोग की पहचान की जाती है। भारत में गांठदार त्वचा रोग का पहला मामला मई 2019 में ओड़िसा राज्य में मिला था। यह रोग मनुष्यो को प्रभावित नही करता है। इस बीमारी से अधिकांश डेयरी किसानों और पशुपालकों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
गांठदार त्वचा रोग का कारण
गोवंशों में यह रोग लंपी स्किन डिजीज विषाणु के संक्रमण के कारण होता है। यह विषाणु शीपपोक्स ओर गोटपॉक्स विषाणु की प्रजातियों में से एक है और यह विषाणु कैप्रिपॉक्स विषाणु वंश में पाया जाता है।
गांठदार त्वचा रोग के लक्षण
- इस बीमारी में सिर, गर्दन और जननांगों के आस पास गांठे बनने लगती है।
- धीरे धीरे ये गांठे घावों में बदल जाती।
- आंख ओर नाक से पानी बहने लगता है।
- इस बीमारी में गायों को तेज बुखार आता है।
- मादा पशुओ का गर्भपात हो जाता है।
- गाय दूध देना कम कर देती है।
- गंभीर मामलों में गाय पशुधन की मौत भी हो जाती है।
गांठदार त्वचा रोग फैलने का कारण
गांठदार त्वचा रोग / लंपी स्किन डिजिज पशुओ की लार, दुषित जल एवं चारे के अलावा मच्छरों, मक्खिओ और जुओ के माध्यम से भी फैलती है।
गांठदार त्वचा रोग का उपचार
- इस रोग के विषाणु जनित संक्रमण के कारण इसका कोई उचित इलाज संभव नही है।
- इसी कारण पशुओं का लक्षण आधारित और द्वितियक जीवाणु संक्रमणों से बचने के लिए एंटीबायोटिक, एंटी-इम्फ्लेमेटरी और एंटी-हिस्टामिनेक आदि दवाइयाँ देनी चाहिए।
- त्वचा के घावो का इलाज, 2% सोडियम हाईड्रोक्साइड, 4% सोडियम कार्बोनेट और 2% फॉर्मेलिन आदि एंटीसेप्टिक दवाओं के द्वारा किया जाना चाहिए।
रोकथाम ओर नियंत्रण
गांठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम तीन रणनीतियों से कम किया जा सकता है, जो निम्नलिखित है-
- जैव सुरक्षा उपाय
- पशुशाला में सख्त जैव सुरक्षा उपाय अपनाये जाने चाहिए।
- नए जानवरो को अलग रखना चाहिए।
- प्रभावित क्षेत्रो में जानवरों की आवाजाही बंद कर देनी चाहिए।
- त्वचा की गांठो और घावो की जांच प्रति दिन करनी चाहिए।
- प्रभावित जानवर को चारा, पानी और उपचार के साथ झुंड से अलग रखना चाहिए और प्रभावित जानवर को चरने वाले क्षेत्र में नही जाने देना चाहिए।
- मच्छरों और मक्खिओ के काटने पर नियंत्रण करने के लिए उचित कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए।
- एक फार्म के श्रमिक को दूसरे फार्म में नही जाना चाहिए, इसके साथ साथ श्रमिक को अपने शरीर की सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए।
- संक्रमित पशुओ की देखभाल करने वाले श्रमिक को स्वस्थ पशुओ से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
- यदि अपने फार्म पर या आस-पास असाधारण लक्षण वाले पशु को देखने पर तुरन्त नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी सूचना देनी चाहिए।
- पूरे फार्म की दीवारों ओर फर्श की उचित साफ सफाई और देख रेख का सही प्रबंध होना चाहिए, इसके लिए हमें फिनोल 2% या आयोडीन युक्त कीटनाशक घोल का प्रयोग करना चाहिए।
- टीकाकरण
- हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटिड भारतीय कंपनी ने एलएसडी वैक्सीन को विकसित करके, इसका परीक्षण पूरा कर लिया है।
- लंपी स्किन डिजिज से ग्रसित कुछ क्षेत्रों में होम्यो नेस्ट कंपनी के होम्योपैथी प्रोडक्ट एलएसडी 25 किट के माध्यम से इलाज करके बहुत ही प्रभावी परिणाम मिले है।
- संक्रमित पशुओ का वध ओर प्रबंधन
- यदि कोई पशु लंबे समय तक त्वचा रोग के ग्रस्त हो जाने के कारण मर जाता है, तो उसे दूर ले जा कर गड्ढे मैं दबा देना चाहिए।
- जो सांड इस रोग से ठीक हो गए है, उनके खून ओर वीर्य की जांच प्रयोगशाला में करवानी चाहिए, सही नतीजे आने पर ही उनके वीर्य का उपयोग करना चाहिये।
पारंपरिक उपचार
- लंपी रोग के संक्रमण से बचाव के लिए स्वस्थ पशुओ के लिये
- एक खुराक के लिए एक मुट्ठी तुलसी के पत्ते, 5 – 5 ग्राम दाल चीनी व शाँठ पाउडर, 10 नग काली मिर्च के तथा आवश्यकतानुसार गुड़ की मात्रा मिलाकर तैयार कर पशुओं को सुबह- शाम लड्डू बनाकर खिलाया जाना लाभकारी है।
- लंपी रोग का संक्रमण हो जाने पर पहले 3 दिवस में
- पान के पत्ते, काली मिर्च, ढेले वाले नमक के 10 – 10 नग को अच्छी तरह पीसकर आवयश्कतानुसार गुड़ में मिलाकर एक खुराक तैयार कर लेंगे। प्रतिदिन इस तरह की 4 खुराक तैयार कर प्रत्येक 3 – 3 घंटे के अंतराल पर संक्रमित पशु को खिलाये।
- लंपी रोग होने के 4 से 14 दिन तक
- नीम व तुलसी के पत्ते 1 – 1 मुट्ठी, लहसुन की कली, लॉंग, काली मिर्च 10 – 10 नग, पान के पत्ते 5 नग, छोटे प्याज 2 नग, धनिये के पत्ते व जीरा 15 – 15 ग्राम तथा हल्दी पाउडर को 10 ग्राम मात्रा की अच्छी तरह पीसकर गुड़ में मिलाकर एक खुराक तैयार कर लेंगे। प्रतिदिन की 3 खुराक तैयार कर सुबह, शाम व रात को लड्डू बनाकर खिलाया जाना लाभकारी है।
- फिटकरी के पानी से पशु को नहलाये।
- रोगी पशुओ को 25 लीटर पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्ती का पेस्ट एवं अधिकतम 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर नहलाना लाभकारी है, इस घोल से नहलाने के 5 मिनट बाद सादे पानी से नहलाना चाहिए।
- पशु के बाड़े में धुंआ करें।
- संक्रमण रोकने के लिए पशु में गोबर के छाणे/कण्डे/ उपले जलाकर उसमे गुग्गल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोबान को डालकर सुबह शाम धुआँ करे, जिससे मक्खी – मच्छर का प्रकोप कम होता है।