पशुओं में न्यूमोनिया के कारण एवं बचाव
डॉ0 संजय कुमारए डॉ. रजनी कुमारी’ए डॉ. कौशलेन्द्र कुमार, डॉ0 पीण्के.सिंह एवं डॉ0 सविता कुमारी’’
पशुपोषण विभाग
बिहार पषु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना – 800014
’आई. सी.ए. आर. कॉम्प्लेक्स, पटना बिहार
’’सुक्ष्म जीव विभाग, बी0भी0सी0, पटना-800014
न्यूमोनिया क्या है ?
न्यूमोनिया मुख्यतः फेफड़े का संक्रमण से होता है, जो किसी भी पशुओं में हो सकता है। हवा में मौजूद बैक्टीरिया एवं वायरस सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच जाता है। कई बार फफूंद की वजह से भी फेफड़े संक्रमित हो जाते है। अगर कोई पशु पहले से किसी बीमारी जैसे फेफड़ों के रोग, हृदय रोग से पीड़ित है तो उन्हें गंभीर संक्रमण यानि गंभीर न्यूमोनिया होने का खतरा रहता है।
न्यूमोनिया में जब एक या दोनों फेफड़े में तरल पदार्थ भर जाता है। तो फेफड़े को ऑक्सीजन लेने में कठिनाई होने लगती है। बैक्टीरिया से होने वाला न्यूमोनिया दो से चार सप्ताह में ठीक हो सकता है, जबकि वायरस से होने वाले न्यूमोनिया को ठीक होने में अधिक समय लग जाता है।
न्यूमोनिया के लक्षण
छोटे जानवरों में कोई विषेष लक्षण दिखाई नहीं देता है। छोटे जानवर देखने से बीमार लगे तो उन्हें न्यूमोनिया हो सकता है। सर्दी, हाई फीवर, कफ, कंपकपी, षरीर में दर्द, मांसपेसियों में दर्द, सॉंस लेने में दिक्कत ये सारे न्यूमोनिया के मुख्य लक्षण होते हैं।
न्यूमोनिया के कारण
न्यूमोनिया होने के मुख्य वजह सर्दी को माना जाता है लेकिन स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार न्यूमोनिया होने के कुछ अन्य कारण भी हैं
- बैक्टीरिया – जैसे स्ट्रेटोकोकस स्पेषीज, स्टाफाइलोकोकस स्पेषीज, माकोपलाजमा स्पेषीज आदि बैक्टीरिया से न्यूमोनिया बहुत आम बात होती है।
- वायरस – जैसे राइनो वाइरस, इकोइन पलूटो न्यूमोनिया, रियो वाइरस, रीकिनो वाइरस आदि वाइरस से न्यूमोनिया होती है।
- पारासाइट (कृमि)- जैसे डिक्टोकेलस स्पेषीज एसकेरिस स्पेषीज, टोक्सोपलाजमा आदि से भरमीनस न्यूमोनिया होती है।
- फंगस – जैसे बलास्टो स्पेषीज, हीस्टोपलाजमा एसपरजीलस, मूयोकोमाइकोसिस स्पेषीज से न्यूमोनिया होती है।
- ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया – भारत में पशुओं की छोटी-बड़ी बीमारियों में पशुपालकों द्वारा बॉंस की नाल, रबर, की नली, लकड़ी कॉच की बोतल आदि के द्वारा तरह-तरह की देषी दवाईयॉं पिलाना एक आम बात है। सही वैानिक तरीके से ड्रेन्चिंग नहीं करने पर दवा के घोल का कुछ भाग पेट में जाने के बदले फेफड़ों में चला जाता है, जिससे न्यूमोनिया हो जाता है। कभी-कभी पशु की मौत भी हो जाती है। अतः हम कह सकते हैं, कि ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया पशुपालकों की लापरवाही या असावधनी से उत्पन्न होने वाला रोग है, जिसमें एक रोग के इलाज में दूसरे रोग का चक्कर लग जाता है।
प्रायः पशुचिकित्सक द्वारा पशुपालक से पूछने पर यह बताया जाता है, कि इससे पहले प्राथमिक चिकित्सा में उसके द्वारा हल्छी, तेल, राई, छाछ, देषी जड़ी-बूटियों आदि का घोल पिलाया गया था। कई बार पशु के जबड़ों और होठों के पास स्पष्ट रूप से तेल, हल्दी लगी हुई नजर भी आती है। ऐसे में ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया का लक्षण कितना गंभीर है, यह इस बात पर निर्भर करता है, कि उसे ड्रेन्चिंग में कैसी दवा पिलाई गयी है तथा कितनी मात्रा में घोल ष्वसन तंत्र में गया है। यदि पिलाई गयी घोल की दवा अधिक जलन वाली है तथा पानी में अधिक घुलनषील है तो इसका असर गंभीर होता है। यदि गलत ड्रेन्चिंग में काफी मात्रा में तरल पदार्थ एकाएक ष्वास नली में चला जाय तो पशु की मृत्यु भी हो सकती है। इसमें पशु बेचैन हो जाता है, खॉसी होती है और सामान्य न्यूमोनिया में पाये जाने वाले प्रायः सभी लक्षण नजर आते हैं। मवाद जैसा हल्का पीला नेजिल डिस्चार्ज आना, सांस में तकलीफ, तेज सांस, तेज नाड़ी एवं घरघराहट भी देखी जा सकती है। एक खास बात यह है कि ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया में ष्षारीरिक तापमान सामान्य से कम रहता है, जबकि सामान्य न्यूमोनिया में बुखार हो जाता है। इस रोग का कोर्स 2-6 दिन का होता है, लेकिन यह फेफड़ों में जा चुके फ्लूइड की क्वालिटी और क्वांटिटी पर निर्भर करता है। ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया में मृत्यु दर अधिक होती है।
- अन्य कारण – ठंडे मौसम, बन्द कमरों में जानवर रखने से, अचानक से मौसम बदल जाने पर, धूल-कण एवं पौलेन ग्रेन ष्वास के नली में घुसने से भी न्यूमोनिया होते हैं
न्यूमोनिया का उपचार
न्यूमोनिया से बचाव एवं रोकथाम
पशुओं को एक स्वच्छ कमरे में रखें। इस बात का ध्यान रखे कि पशुओं के कमरे में सूर्य का प्रकाष अवष्य आये। कमरे हवादार होनी चाहिए।
षरीर, खासकर छाती और पैरों को गर्म रखने के लिए कमरे को गर्म रखें तथा पशुओं को अच्छी तरह से ढंके।
अधिकांषतः न्यूमोनिया का इलाज, डॉक्टर की देख-रेख में, बिना अस्पताल में दाखिल हुए हो सकता हैं
आमतौर पर मौखिक एंटीबायोटिक दवाओं, आराम, तरल पेय पदार्थ, और घर पर देखभाल पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए पर्याप्त है।
एंटीबायोटिक जैसे टेट्रासाइकिलिन 15-20 मि0ग्रा0/कि0ग्राम वजन के अनुसार देना चाहिए। स्ट्रोटोपेनीसीलीन 25 मि0ग्रा0/कि0ग्रा0 वजन एवं एम्पीसीलीन $ क्लोसासीलीन वाली दवा 7-10 मि0ग्रा0 वजन के आधार पर पशुओं को देना चाहिए।
स्टेराइड जैसे डेक्सामिथासीन 5 मि0ली0 बड़े जानवर के लिए एवं 2-3 मि0ली0 छोटे जानवरों को देना चाहिए।
एनटीहीसटामीनीक एवं एनालजेसिक जरूरत के अनुसार डॉक्टर के सलाह पर देना चाहिए।
ब्रोकोडाइलेटर एवं एक्सपेक्टोरेन्ट आयुर्वेदिक दवा इस प्रकार देनी चाहिए।
ब्रुकोप्राइटिर – 30-40 ग्राम दो बार
कैसलोन – 50-60 ग्राम दो बार
कोफलेक्स – 40-50 ग्राम दो बार
पारासीटीक न्यूमोनिया में इंजेक्सन
लीवामीजो / 7.5 मी0ग्रा0/कि0ग्रा0 वजन के हिसाब से मॉंस मे देनी चाहिए।
फंगल न्यूमोनिया में
नीसटेटीन / 22000 यूनीट मॉंस के द्वारा /कि0ग्रा0 भार के हिसाब से मुॅख द्वारा देना चाहिए।
ड्रेन्चिंग कैसे करें, इसकी जानकारी आवष्यक है। (1) दवा पिलाते समय पशु के सिर को अधिक उॅचा नहीं रखें। (2) दवा भरी हुई बोतल या बॉस की नाल को मुॅह के आगे से डालने के बजाये एक तरफ से डालें। (3) जीभ को पकड़कर बाहर नहीं निकालें बल्कि इसको अंदर स्वतंत्र रखें ताकि दवा पिलाते समय जीभ दवा को अंदर निकल सके और यदि इसे पकड़कर बाहर निकाल दिया तो दवा काफी बाहर गिरेगा और पेट के बजाय फेफड़ों में चली जाएगी। (4) दवा के घोल को एकाएक मुंह के अंदर खाली नहीं करें बल्कि पशु के निगलते रहने के साथ धीरे-धीरे डालें।
इसके बावजूद यदि गलती से ड्रेन्चिंग न्यूमोनिया की षिकायत देखने को मिलती है तो पशु को तुरंत ’एड्रेनलिन’ की सूई 4-8 मि0ली0 अंतः सिरा या अंतः मांस विधि से लगवा देना चाहिए। यह ब्रौकोडाइलेटर का काम करता है। और पशु को तुरंत आराम देता है।इसके बाद ’सल्फाडिमिडिन’ 33.3 प्रतिषत की अंतः सिरा सूई एक सप्ताह तक और ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन’ की सूई चले तो अच्छा है। साथ में कैफलान या िंटंक्चर बेंजोइन का वाष्प भी प्रतिदिन तीन बार सुंघाना चाहिए, ताकि ष्वसनतंत्र में इकट्ठा हुए फ्लूइड को नष्ट या कम किया जा सके। ’कफ इलेक्चुअरी’, जिसमें पोटेषियम आयोडाइड मिला हो, देने से बेहतर परिणाम मिलते हैं, क्योंकि यह ष्वसनतंत्र के फ्लूइड को सोख लेता है।