इस महीनें भेड़ बकरियों में पीपीआर, भेड़ चेचक और फड़किया रोग होने की संभावना रहती है, इन रोगों से बचाव के टीके लगवा लें।
पशुओं को अत्यधिक तापक्रम एवं धूप से बचाने के उपाय करें। मुंहपका-खुरपका रोग, गलाघोंटू, ठप्पा रोग, फड़किया रोग आदि के टीके नहीं लगवाएं हो, तो लगवा लें। मुंहपका-खुरपका रोग से ग्रस्त पशुओं को अलग स्थान अथवा बाड़े में बांधें, ताकि संक्रमण स्वस्थ पशुओं में नहीं हो। अगर आस-पास के पशुओं में यह रोग फैल रहा है, तो अपने पशुओं का सीधा संपर्क रोगी पशुओं से नहीं होने दें। मुंहपका-खुरपका रोग से ग्रस्त गाय का दूध बछड़ों को नहीं पीनें दें, क्योंकि उनमें इस रोग के कारण मौत भी हो सकती है। रोगग्रस्त पशुओं के मुंह, खुर और थनों के छालों को लाल दवा का एक प्रतिशत घोल बना कर धोयें। भेड़ बकरियों में पीपीआर, भेड़ चेचक और फड़किया रोग होने की संभावना रहती है, इन रोगों से बचाव के टीके लगवा लें। पशुओं को अत: परजीवी और कृमि-नाशक दवाई पशु चिकित्सक से परामर्श करके सही मात्रा में अवश्य दें। यह भी पढ़ें- अगर पशुओं किलनी की समस्या है तो इन तरीको को अपनाएं पशुओं को बाह्य परजीवी से बचाने के लिए उपयुक्त दवाई पशु चिकित्सक से परामर्श करके अवश्य दिलवाएं। पशुशाला में फर्श, दीवार आदि साफ रखें, तुलसी या नीबू घास का गुलदस्ता पशु शाला में लटका दिया जाए, क्योंकि इसकी गंध बाह्य परजीवियों को दूर रखती है। पशुशाला को कीटाणुरहित करने के लिए नीम तेल आधारित कीटनाशक का प्रयोग करें। बरसात के मौसम में पशु घरों को सूखा रखें और मक्खी रहित करने के लिए नीलगिरि या निम्बू घास के तेल का छिड़काव करते रहें। पशुओं को खनिज मिश्रण 30-40 ग्राम प्रतिदिन दें, जिससे पशु की दूध उत्पादन और शारीरिक क्षमता बनी रहें।