पशुओं में जठरांत्र शोथ (गैस्ट्रोएन्टराइटिस)
डॉ. ज्योत्सना शक्करपुडे, डॉ. अर्चना जैन, डॉ. नीतू राजपूत, डॉ. मधु शिवहरे, डॉ. नरेश कुरेचिया, डॉ. दानवीर सिंह यादव, डॉ. अशोक पाटिल, डॉ. रश्मि चौधरी एवं डॉ. कविता रावत , पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, महू
पशुओं के जठरांत्र पथ की गतिशीलता में बाधा आ जाने से उनको जठरांत्र शोथ हो जाता है| जिसे जठरांत्र संबंधी मार्ग की सूजन द्वारा पहचाना जाता है जिसमें पेट तथा छोटी आंत दोनो शामिल हैं, तथा एक आमाशय वाले पशुओं में उल्टियां शुरू हो जाती है|
जठरांत्र शोथ इसके मूल के आधार पर तीव्र, लगातार या पुराना हो सकता है। पशुओं के आहार में तत्काल परिवर्तन से या जठरांत्र पथ मैं गैस उत्पादन करने वाले आहार से यह रोग होता है| अधिक रेशे वाले चारों से भी यह रोग उत्पन्न हो जाता है, पशुओं के दांत खराब होने पर जब आहार को ठीक प्रकार से चबा नहीं पाते अथवा फाइकोमाइसिटिस वाले पादप आहार में लेने से यह रोग होता है, कुछ विषैले पौधे भी इस रोग का कारण बन जाते हैं इन पौधों मे आर्सेनिक, सीसा, पारा, तांबा आदि अधिक होने पर उनको खाने से यह रोग हो सकता है| नवजात बछड़ों को आवश्यकता से अधिक दूध पिलाने पर श्वेत अतिसार रोग हो जाता है|
रोगजनक
इस रोग में जठरांत्र पथ में सूजन आने पर उसकी गतिशीलता तथा उत्सर्जन क्रिया बढ़ जाती है| जब आंत में तरंग गति बढ़ जाती है तो शरीर का तापमान बढ़ जाता है कुछ पशुओं को कब्ज हो जाती है तथा कुछ को प्रवाहिका हो जाती है कुछ पशुओं में मल के साथ रक्त अथवा श्लेष्मा आने लगता है पशुओं के पोषण में बाधा होने पर दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है कुछ पशु दांत किटकिटाना जैसे लक्षण दिखाते हैं और कुछ का शरीर कांपने लगता है तथा उन्हें मूर्छा आ जाती है ऐसी स्थिति में मृत्यु भी हो सकती है यह मृत्यु शरीर में जल की कमी के कारण होती है पशु की आंखें अंदर की ओर धस जाती है|
श्लेष्म झिल्ली की सूजन कई अलग-अलग कारकों के कारण हो सकती है, वायरस से लेकर बैक्टीरिया या परजीवी तक। यह एक वायरल, फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण के कारण हो सकता है, लेकिन खराब भोजन खाने, विषाक्त पौधों को खाने या ऐसे खाद्य पदार्थों को खाने से भी जो अच्छा नहीं लगता है और लंबे समय तक तनाव की स्थिति मे भी। यह रोग बीमार पशु के संपर्क में आने पर दूसरे पशु मे फैल सकता है।
रक्तस्रावी जठरांत्र
यह सामान्य जठरान्त्र से अधिक गंभीर है। इस तरह के गैस्ट्रोएन्टेरिटिस के कारण मल गहरे लाल रंग का दिखाई देता है, क्योंकि यह रक्त के साथ आता है। आपको उचित उपचार और निदान के लिए पशु चिकित्सक के पास तुरंत जाना होगा। यदि इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो यह थोड़े समय में पशु की मृत्यु का कारण बन सकता है|
रोग के लक्षण
दस्त और उल्टी। यह सीधे पेट को प्रभावित करता है इसलिए रोग के दौरान जठरांत्र प्रणाली को सबसे अधिक नुकसान होगा। अधिकांश मामलों में जिनमें ये लक्षण होते हैं, पशु चिकित्सक निर्धारित करता है कि यह गैस्ट्रोएन्टेरिटिस है, हालांकि उल्टी या दस्त अन्य बीमारियों से संबंधित हो सकते हैं। इसके अलावा सामान्य बेचैनी, पेट दर्द भी है, भूख न लगना और थकान। पशु को बुखार भी हो सकता है, इसलिए हम उसकी नाक और उसके कान में गर्मी को नोटिस करेंगे। उल्टी और दस्त के साथ निर्जलीकरण होता है, जिसे पशु की त्वचा को उठाकर देखा जा सकता है। हम पशु की त्वचा को थोड़ा खींचते हैं, और अगर यह जल्दी से अपनी जगह पर लौटती है, तो यह अभी भी हाइड्रेटेड रहेगा, अगर समय लगता है तो यह है कि निर्जलीकरण इसे काफी प्रभावित करता है।
निदान
दो-चार दिन में पशु को स्वत: इस रोग से छुटकारा मिल जाता है या यह रोग तीव्र हो जाता है प्रणाम सिर्फ 1 सप्ताह के भीतर पशुओं की मृत्यु हो सकती है कभी-कभी शव परीक्षा होने पर आंतों में रक्त भी पाया जाता है पशु आहार में कोई विषैला पदार्थ होने पर भी ऐसा होता है जठरांत्र शोध में श्लेष्मकला अतिविकसित हो जाती है|
उपचार
पशु को कम मात्रा में शीघ्र पाचक तथा हरा चारा तथा गेहूं के जोकर जैसा चारा खिलाना चाहिए| यदि विषैला आहार खाने पर यह रोग हुआ हो तो रोगी पशु को खनिज तेल या अरंडी का तेल का मिश्रण देना चाहिए| इस रोग में जीवाणु भी श्लेष्मकला को हानि पहुंचाते हैं; इसीलिए एंटीबायोटिक जैसी औषधियों का प्रयोग करना चाहिए| एक आमाशय वाले पशुओ मे उल्टी होने की स्थिति में उल्टी को रोकने के लिए दवा दी जाती है। यदि पशु जल्दी से निर्जलित हो जाता है, तो पशु द्रव चिकित्सा का सहारा लेगा, जिसमें मुंह के माध्यम से तरल पदार्थ प्रदान करना शामिल है|हमें पशु के खाने और पीने के बर्तन या जगह साफ करने चाहिए, उनमें बैक्टीरिया के प्रसार से हमेशा बचना चाहिए, इसके अलावा, पशु का पेट खराब होने पर कुछ घंटों के उपवास की आमतौर पर सलाह दी जाती है ताकि शरीर अगले भोजन तक खुद को साफ कर सके और आंतों की श्लेष्मा ठीक हो जाए।