पशुओ में होने वाले मुख्य रोग तथा उनका इलाज
डॉ. अनिता राठौड़
पशु व्याधिकी विभाग
पशु चिकित्सा एवम् पशु विज्ञान महाविधालय, नवानिया, उदयपुर
पशुओ में विभिन्न कारणों से बीमारियाँ होती हैं, जिसमे मुख्यतया जीवाणु, कवक (फफूंद), बाहरी त्वचा / चमड़ी पर पाये जाने वाले परजीवी, कुपोषण तथा शरीर के अन्दर होने वाली क्रिया में बदलाव होने से होती हैं | कुछ बीमारियाँ पशुओ के उत्पादन तथा विकास पर बुरा प्रभाव डालती हैं |
कुछ बीमारियाँ एक पशु से दुसरे पशु के पास जाने से फैलती हैं, जैसे खुर पक्का मुह पक्का बीमारी, गलघोटू आदि | कुछ बीमारियाँ पशु के काटने तथा लार से दुसरे पशुओ में फैलती हैं, जैसे रेबीज | कुछ बीमारियाँ पशुओ से मनुष्यों तथा मनुष्यों से पशुओ में फैलती हैं, जिसे जुनोटिक रोग कहते हैं जैसे टीबी| अत: पशुपालको को इन बीमारियों के बारे में जानकारी रखना जरूरी हैं, ताकि वह सही समय पर पशु का इलाज करवा सके |
पशुओ में होने वाले अलग – अलग रोग :-
- पशुओ में जीवाणुओं से होने वाले रोग :-
- गलघोंटू (H.S.)
- लंगड़ा बुखार / काली टांग (B.Q.)
- ब्रुसेल्लोसिस (गर्भपात)
- पशुओ में विषाणुओं से होने वाले रोग :-
- रेबीज
- खुर पक्का मुह पक्का
- पशुओ में जीवाणुओं से होने वाले रोग :-
- गलघोंटू (H.S.)
इस रोग को साधारण भाषा में गलघोंटू के अतिरिक्त ‘घूरखा’, ‘घोंटुआ’, ‘अषढ़िया’, ‘डकहा’ आदि नामों से भी जाना जाता है। यह गाय व भैंसों में बारिश के दौरान होने वाली गंभीर बीमारी हैं | यह जीवाणु पाश्चुरेला मल्टोसीडा से होती हैं | इस रोग की गंभीरता के कारण पशु के मरने की सम्भावना 80% तक होती हैं |
लक्षण :-
- तेज बुखार (1070F)
- दुध उत्पादन में अचानक कमी
- लार गिरना
- नाक बहना
- गले व गर्दन में दर्द के साथ सूजन आना
- साँस लेने में तकलीफ
- मृत्यु
बचाव :-
- बीमार पशुओ को स्वस्थ पशुओ से अलग रखे |
- भीड़ में पशुओ को नही रखना चाहिए |
- पशुओ का चारा पानी अलग से करना चाहिए |
- मरे हुए पशुओ को जमीन में चुने व नमक के साथ गाढ़ना चाहिए |
टीकाकरण :-
हर 6 महने के अन्तराल पर (वर्ष में दो बार) पशुओ को टीका लगाना चाहिये | पहला टीका बारिश से पहले (मई – जून में) तथा दूसरा टीका सर्दी से पहले (अक्टूबर – नवम्बर में) लगाना चाहिए |
- लंगड़ा बुखार / काली टांग (B.Q.) :-
यह बीमारी स्वस्थ दिखने वाले पशुओ में ज्यादा होती हैं | पशु को तेज बुखार आता हैं | इस बीमारी से पशुओ के पिछली टांगो के ऊपर की तरफ भारी सूजन आ जाती हैं जिससे पशु लंगड़ा कर चलता हैं | सूजन को दबाने पर कड़ – कड़ की आवाज आती हैं |
उपचार :-
पशु को तुरन्त प्रभाव से नजदीकी पशुचिकित्सालय में दिखाना चाहिए, ताकि पशु का समय पर इलाज हो सके | यह जीवाणु बहुत खतरनाक होता हैं | इसका जहर बहुत जल्दी से शरीर में फैल जाता हैं तथा पशु की मृत्यु हो जाती हैं | इसलिए प्रोकेन पेनीसिलीन का टीका लगाना चाहिए तथा सुई लगाने पर सूजन में कमी होती हैं |
- पशुओ में विषाणुओं से होने वाले रोग :-
- रेबीज (पशुओ में होने वाला पागलपन) :-
यह बीमारी कुत्ते के काटने से Lyssa Virus पशुओ के शरीर के अन्दर करते हैं तथा मष्तिष्क को प्रभावित करता हैं | पशु के शरीर के घाव पर लार गिरने से भी यह बीमारी फैलती हैं | यह बीमारी पशुओ से इंसानों में भी हो सकती हैं | यह बीमारी बहुत जल्दी (10 दिन से लेकर कुछ महीनो में) हो सकती हैं |
लक्षण :-
यह बीमारी दो तरीको से होती हैं :-
- उग्र रूप :- इसमें बीमारी भयानक रूप धारण कर लेती हैं तथा रोग के लक्षण प्रकट होते हैं |
- शांत रूप :- इसमें पशु एकदम शांत रहता हैं तथा इसमें रोग के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं |
इस बीमारी में गाय व भैंस काफी उतेजित हो जाते हैं तथा बहुत तेजी से भागने की कोशिश करता हैं | पशु जोर – जोर से रम्भाना लगता हैं | पशु अपने सिर को दीवार या किसी पेड़ पर मारने लगता हैं | पशु कमजोर हो जाता हैं और उसकी मृत्यु हो जाती हैं |
उपचार :-
एक बार लक्षण पैदा हो जाने के बाद इलाज बिल्कुल सम्भव नहीं हैं | इसीलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि किसी स्वस्थ पशु को कोई रोगी पशु कटता हैं तो उसे तुरन्त पशुचिकित्सालय ले जाना चाहिए | लक्षण पैदा होने से पहले ही उसे रेबीज का टीका लगा देना चाहिए तथा काटने के बाद रेबीज का Post Bite Immunization 0, 3, 7, 14, 28 व 90 दिन पर करते हैं |