पॉलीहाउस खेती क्या होती है?: पॉलीहाउस में आधुनिक तकनीक से उगाएं बेमौसमी सब्जियां
पॉलीहाउस खेती क्या है (Polyhouse Farming)
Polyhouse Farming को आम भाषा में ग्रीनहाउस खेती बोलते हैं। यह एक प्रकार की घर जैसा करके खेती करा जाता हैं, जिसमें फुल से लेकर सब्जियों तक का खेती करा जाता है । पॉलीहाउस फार्मिंग को प्लास्टिक की छत के नीचे किया जाता है।
पॉली हाउस (Polyhouse)
भारत को एक कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है और यहाँ के अधिकतर लोग कृषि के माध्यम से ही अपना जीवन यापन करते है | हालाँकि यहाँ फसलों का उत्पादन प्राकृतिक मानसून पर निर्भर होता है, जिसके कारण यहाँ कभी-कभी पैदावार काफी अच्छी हो जाती है और कभी-कभी उप्तापदन बिल्कुल न के बराबर होता है | इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए वर्तमान में किसानों द्वारा पॉली हाउस के माध्यम से तकनीकी रूप से कृषि करने लगे है |
फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए पॉली हाउस अत्यधिक कारगर सिद्ध हुआ है | आज देश के प्रत्येक कोनें में किसानों द्वारा फसलों के उगानें में पॉली हाउस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है | पॉली हाउस क्या होता है ? इसके बारें में जानकारी देने के साथ ही आपको यहाँ Polyhouse बनाने के लिए सब्सिडी, खर्च और लोन के बारें में पूरी जानकारी विधिवत रूप से दी जा रही है |
पॉलीहाउस एक प्रकार का ग्रीनहाउस है, जहां विशेष प्रकार की पॉलीथिन शीट का उपयोग कवरिंग सामग्री के रूप में किया जाता है | जिसके तहत फसलों को आंशिक रूप या पूरी तरह से नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। आधुनिक समय के पॉलीहाउस जीआई स्टील फ्रेम पर बने होते हैं और प्लास्टिक से ढके होते हैं | जो एल्यूमीनियम ग्रिपर के साथ फ्रेम पर फिक्स होते हैं। कवर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सफेद प्लास्टिक की फिल्म उच्च गुणवत्ता की होती है | पॉलीहाउस के अंदर पानी देने के उद्देश्य से ज्यादातर ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित की जाती है।
दूसरे शब्दों में, वर्तमान समय में आधुनिक ढ़ंग से कृषि करनें अर्थात फसलों को उगानें के लिए एक विशेष प्रकार की पालीथीन या चादर से ढका हुआ घर होता है | इस घर के वातावरण को फसलों अनुकूल कर हर मौसम में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जाता है | पाली हाउस में बाहरी वातावरण का प्रभाव नही पड़ता है | पॉलीहाउस को शेडनेट हाउस, ग्रीन हाउस और नेट हाउस आदि नामों से जाना जाता है | दरअसल पॉलीहाउस खेती खेती का एक आधुनिक तरीका है, जिसमें हम हानिकारक कीटनाशकों और अन्य रसायनों के अधिक उपयोग के बिना उच्च पोषक मूल्यों के साथ अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते है |
पॉलीहाउस खेती एक कृषि पद्धति है, जिसमें पौधों को नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया जाता है। इसमें किसान पौधे की जरूरत और बाहरी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार तापमान और आर्द्रता के स्तर को नियंत्रित कर सकते हैं। पॉलीहाउस पौधों को लगातार बदलते मौसम और गर्मी, धूप और हवा जैसी जलवायु परिस्थितियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पौधों को वर्ष के किसी भी समय बढ़ने में मदद करता है । पॉलीहाउस खेती में उपज को प्रभावित करने वाले हर कारक को नियंत्रित किया जा सकता है।
पॉलीहाउस को पॉलीटनल, ग्रीन-हाउस या ओवर-हेड टनल के रूप में भी जाना जाता है। जिसका आंतरिक वातावरण जल्दी गर्म हो जाता है क्योंकि सौर विकिरण पॉलीहाउस में मौजूद मिट्टी, पौधों और अन्य वस्तुओं को गर्म करते हैं। पॉलीहाउस की छत और दीवारें आंतरिक गर्मी को रोक कर रखती हैं। जिस कारण पॉलीहाउस से निकलने वाली गर्मी की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है जो पौधों और मिट्टी को गर्म करती रहती है। हालाँकि कई ऐसे स्वचालित उपकरण हैं जिनका उपयोग आंतरिक आर्द्रता, तापमान और वेंटिलेशन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
पॉलीहाउस की संरचना स्टील से बनाई जाती है जिसे प्लास्टिक की शीट या हरी नेट से कवर किया जाता है। एक बार बनाई गई पॉलीहाउस की संरचना को 10 सालों तक आपकी फसल को कीट-रोगों से तो दूर रहेगी ही, इसके साथ-साथ मौसम की मार से भी बचायेगी। इस शानदार तकनीक को अब भारतीय किसान बिना किसी शर्त के और बहुत ही कम खर्चे में अपना बना सकते हैं, जिसमें सरकार आर्थिक अनुदान भी देती है।
फायदे की तकनीक है पॉलीहाउस में खेती
आपको बता दें कि पॉलीहाउस यानी संरक्षित ढांचे में सब्जियों की खेती करने के जितने लाभ गिनाए जाएं उतने कम हैं।
- ग्रीनहाउस पद्धति में खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें आप मौसमी और बेमौसमी सब्जियों को बेहद आसानी से उगा सकते हैं।
- पॉलीहाउस में खेती करने से फसल में कीट और बीमारियों की संभावना तो कम रहती ही है, साथ ही इसमें रसायनों और उर्वरकों की भी कोई खास जरूरत नहीं होती। सिर्फ गोबर की काद या वर्मी कंपोस्ट जैसी कम लागत के जरियों से भी अच्छी और गुणवत्तापूर्ण उपज ले सकते हैं।
- पॉलीहाउस में उगने वाली फसल सर्दी, गर्मी, तेज हवा, भारी बारिश और ओलों की मार से भी बची रहती है।
- इसकी उत्पादन इकाई लगाने से आपका कीटनाशकों का खर्चा तो बचेगा ही, पानी का खर्च भी बेहद कम आयेगा। इसमें खेतों के मुकाबले मानव श्रम की भी काफी बचत होगी।
पॉलीहाउस में क्या उगाएं?
वर्तमान में ज्यादातर किसान पॉलीहाउस में टमाटर, खीरा और शिमला मिर्च की खेती को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, क्योंकि उनकी मांग सालभर बाजार में बनी रहती है। इनके अलावा, पत्तेदार सब्जियां, कद्दू वर्गीय सब्जियां, गोभी वर्गीय सब्जियां और टमाटर वर्गीय सब्जियां पॉलीहाउस में लगाकर भी आप अच्छा लाभ कमा सकते हैं। पॉलीहाउस में किसान ऑफ सीजन सब्जियों सब्जी के साथ गेंदा, जरबेर, गुलदाउदी, रजनीगंधा, कारनेशन, गुलाब, एन्थूरियम आदि फूलों की खेती भी कर सकते हैं। इस संरक्षित ढांचे में खेती करने से गुणवत्ता और उत्पादकता तो बढेगी ही, साथ ही इसके जरिए खुले खेतों के मुकाबले 5 से 10 गुना ज्यादा पैदावार और आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में ग्रीनहाउस खेती तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रही है। पॉलीहाउस फार्मिंग से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। ग्रीनहाउस एक महंगा मामला लग सकता है। हालाँकि, सरकारें सब्सिडी प्रदान करती हैं। यहां ग्रीनहाउस तकनीक, ग्रीनहाउस का निर्माण और रखरखाव के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।
ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस के बीच अंतर
ग्रीनहाउस किसी प्रकार की पारदर्शी सामग्री से बना होता है जिससे घर के अंदर सूक्ष्म जलवायु का निर्माण होता है। माइक्रॉक्लाइमेट बनाने के लिए विभिन्न सामग्रियों जैसे कांच, लकड़ी, पॉलीथीन आदि का उपयोग ग्रीनहाउस कवर के रूप में किया जाता है।
पॉलीहाउस एक प्रकार का ग्रीन हाउस है जहां पॉलीथीन को कवर के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत में, निर्माण की कम लागत के कारण पॉलीहाउस खेती सबसे लोकप्रिय ग्रीनहाउस तकनीक है। लैथ हाउस एक अन्य ग्रीनहाउस तकनीक है जहाँ लकड़ी को आवरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
पॉली हाउस ग्लास हाउस या ग्रीनहाउस की तुलना में किफायती है लेकिन बाद में पॉलीहाउस की तुलना में अधिक टिकाऊ होता है।
पॉलीहाउस खेती के लिए उपयुक्त फसलें
- फल: पपीता, स्ट्रॉबेरी आदि।
- सब्जियां: करेला, गोभी, शिमला मिर्च, रंगीन शिमला मिर्च, फूलगोभी, मिर्च, धनिया, भिंडी, प्याज, मूली, पालक, टमाटर आदि।
- फूल: कार्नेशन, गुलदाउदी, जरबेरा, ग्लेडियोलस, गेंदा, आर्किड, गुलाब आदि।
पॉलीहाउस की खेती में इन बातों का रखें खास ख्याल
घटती जोत और अधिक मुनाफे के चलते किसान भाइयों के लिए पॉलीहाउस (polyhouse farming) आय सृजन का उत्तम स्रोत है। बेशक संरक्षित खेती में लाभ और उपज का प्रतिशत साधारण खेती की तरीकों से ज्यादा है। लेकिन संरक्षित खेती करने वाले किसानों को कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
- सर्दियों के समय सुरक्षा ढांचे के शेडनेट यानी पर्दों को दोपहर में 2-3 घंटे के लिए खोल देना चाहिये। ऐसा करने से नमी से पैदा होने वाले कीट-रोगों की संभावना कम होती है और फसल को भी सूरज के प्रकाश से पोषण मिल जाता है।
- पॉलीहाउस की नर्सरी में नमी के साथ-साथ पोषण की जरूरत होती है, इसलिए टपक सिंचाई के जरिए पानी में उर्वरकों का घोल बनाकर नर्सरी में दें, इससे नमी और पोषण दोनों की कमी पूरी हो जायेगी।
- पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस को कटने-फटने से बचाने का प्रबंधन कार्य भी करते रहना चाहिये, क्योंकि खुली फसल में कीट-रोग जल्दी ही घर कर जाते हैं। कटे-फटे स्थान की सिलाई करें और समय-समय पर पॉलीहाउस की पॉली को बदलते रहें।
- पॉलीहाउस की गुणवत्ता का अच्छा होना बेहद जरूरी है क्योंकि सस्ते और जुगाड़ साधनों में मरम्मत का खर्चा ज्यादा आयेगा। इसलिए अच्छी गुणवत्ता का ढांचा ही आपको कम खर्च में अच्छा लाभ दे सकता है।
- संरक्षित खेती से अगर आप अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो अच्छे रखरखाव की भी सख्त जरूरत होती है। ऐसे में सिंचाई के लिए अच्छा पानी, उत्तम भूमि, अच्छी किस्म के बीज, नर्सरी और तकनीक प्रबंधन की भी आवश्यकता होती है।
- संरक्षित खेती (integrated farming) के लिए ढांचे या नर्सरी को 1-2 फीट ऊपर ही तैयार करें, जिससे वर्षा का पानी फसल को प्रभावित न करें जल निकासी भी सुनिश्चित हो सके।
- अच्छी आमदनी अर्जित करने के लिए अपने पॉली हाउस में उन्हीं सब्जियों की खेती करें, जिनकी मांग बाजार में अधिक हो या फिर बाजार में आपकी मांग का उचित भाव मिल सके।
- सबसे जरूरी बात, पॉली हाउस या संरक्षित ढांचे का निर्माण उस स्थान पर करवायें, जहां से मंडी या बाजार निकट पड़ता हो। इससे उपज को बिक्री के लिए बाजार ले जाने में लागत कम आएगी और सब्जियों को सुरक्षित और आसानी से बाजार तक पहुंचाया जा सके।
संरक्षित खेती (integrated farming) के लिए सरकारी मदद
भारत में खेती-किसानी को बढ़ावा देने के लिए अब सरकार की कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार है। इसलिए जिन किसान भाइयों ने संरक्षित खेती के लिए पॉली हाउस या ग्रीनहाउस लगाने की प्लानिंग कर ली है, उन्हें सरकार द्वारा आर्थिक मदद देती है। भारत सरकार के कृषि से जुड़े उपक्रमों के तहत संरक्षित खेती की संरचना स्थापित करने में सभी राज्य सरकारों की तरफ से 50 प्रतिशत तक की छूट है। हालांकि राज्य सरकारों ने संरक्षित खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी का प्रावधान रखा है।
हमारे ज्यादातर किसान खेती-किसानी में नई तकनीकों को आर्थिक आर्थिक तंगी के चलते अपना नहीं पाते। लेकिन अब कृषि क्षेत्र में सरकार औऱ कृषि वैज्ञानिकों के योगदान के चलते निश्चिंत होकर खेती करने का समय है।
इतना ही नहीं, अगर खेती करने के आपके प्रोजेक्ट में जैविक या प्राकृतिक तौर-तरीके और बेमौसमी सब्जियों की खेती भी शामिल है तो आपको 50 प्रतिशत के साथ-साथ 25-30 प्रतिशत का अतिरिक्त राहत भी मिल सकती है। आर्थिक सहूलियत और राहत के चलते अब हमारे किसान कृषि में नई तकनीकों का इस्तेमाल करके किसान भाइयों का खेती में प्रदर्शन पहले से बेहतर हो सकेगा। इससे दूसरे किसान भाइयों को भी कृषि तकनीकों की तरफ रुख करने की प्रेरणा मिलेगी।
पॉलीहाउस के प्रकार (Types of Polyhouses)
पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली पर आधारित पॉलीहाउस 2 प्रकार के होते हैं-
स्वाभाविक रूप से हवादार पॉलीहाउस (Naturally Ventilated Polyhouse)
इन प्रकार के पॉलीहाउस में कोई पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली नहीं होती है। खराब जलवायु से पौधों को बचाने के लिए पर्याप्त वेंटिलेशन बनाए रखना ही एकमात्र उपलब्ध विकल्प है। यह प्रक्रिया पौधों को कीटों और रोगजनकों से बचा सकती है।
मैन्युअल रूप से नियंत्रित पॉलीहाउस (Manually Controlled Polyhouse)
मैन्युअल रूप से नियंत्रित पॉलीहाउस मुख्य रूप से फसलों के विकास करने या प्रकाश, तापमान, आर्द्रता आदि को समायोजित करके ऑफ-सीजन में पैदावार बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इस प्रकार के पॉलीहाउस कृषि में उत्पादकता में सुधार के लिए कई नियंत्रण प्रणाली स्थापित की जा रही हैं।
पॉलीहाउस की श्रेणियाँ (Categories of Polyhouses)
पॉलीहाउस खेती प्रणालियों को 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है-
लो-टेक पॉलीहाउस (Low-Tech Polyhouse)
इस प्रकार के पॉलीहाउस की स्थापना लागत कम होती है और इसे बनाए रखना बहुत आसान होता है। आमतौर परइन प्रणालियों के निर्माण के लिए स्थानीय निर्माण सामग्री जैसे बांस और लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा एक पराबैंगनी (यूवी) फिल्म का उपयोग कोटिंग सामग्री के रूप में किया जाता है, जो ठंडी जलवायु के लिए बहुत प्रभावी कार्य करता है। यह सामग्रियां किसानों को तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करने में मदद करती हैं और इन प्रणालियों में किसी भी स्वचालित उपकरण का उपयोग नहीं किया जाता है।
मध्यम तकनीक वाले पॉलीहाउस (Medium Tech Polyhouse)
इन पॉलीहाउस के निर्माण के लिए हवा से होने वाले नुकसान से बचने के लिए इसके लेआउट को मजबूत करने के लिए लोहे के पाइप का उपयोग किया जाता है। अंदर की नमी के स्तर और तापमान को बनाए रखने के लिए कूलिंग पैड का उपयोग किया जाता है। गर्म जलवायु के दौरान, पॉलीहाउस कृषि की आंतरिक स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए थर्मोस्टेट और निकास-पंखों का उपयोग किया जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस (Hi-Tech Polyhouse)
इस प्रणाली में उचित तापमान, आर्द्रता और अन्य मापदंडों को बनाए रखते हुए आंतरिक जलवायु और फसल की स्थिति को बनाए रखने के लिए स्वचालित नियंत्रण शामिल हैं। यह प्रणाली बेमौसम में फसल उगाने के लिए बहुत उपयोगी है।
पॉलीहाउस में उगायी जानें वाली फसलें (Crops Grown in Polyhouse)
पॉलीहाउस में कई प्रकार की सब्जियां, फलों की फसलें और सजावटी पौधे उगाए जा सकते जाते है, जो इस प्रकार है-
सब्जियों की फसलें (Vegetable Crops)
खीरा | माइक्रोग्रीन्स |
गाजर | ब्रोकोली |
टमाटर | ग्रीष्मकालीन स्क्वैश |
बैंगन | लेटस |
हरी बीन्स | पत्तेदार सब्जियां |
पत्ता गोभी | अदरक |
चिली | जड़ी बूटी |
भिंडी | हल्दी |
शिमला मिर्च | करेला |
पालक | —- |
फलों की फसलें और सजावटी पौधे (Fruit Crops &Ornamental Plants)
रसभरी | खट्टे फल |
आड़ू | जरबेरा |
तरबूज | गुलाब |
स्ट्रॉबेरी | चमेली |
पॉली हाउस बनाने में खर्च और सब्सिडी (Expenses &Subsidies for Building a Polyhouse)
पॉलीहाउस स्थापित करने में लगभग 750 रुपये से 1000 रुपये प्रति वर्ग मीटर का खर्च आता है। लागत की सीमा सामग्री की गुणवत्ता, स्थान, आकार, आकार और संरचना जैसे कुछ कारकों पर निर्भर करती है। हम सहायक सामग्री के रूप में बांस, धातु के पाइप, लकड़ी आदि का उपयोग कर सकते हैं। स्टील और अन्य धातु के पाइपों में अन्य सामग्रियों की तुलना में अधिक स्थायित्व होता है। हालांकि पॉलीहाउस को स्थापित करना और उसका रखरखाव करना महंगा है, लेकिन अगर हम इसका उचित तरीके से उपयोग करते हैं, तो हम बड़े पैमाने पर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। सरकार पॉलीहाउस की स्थापना के लिए 25 से 50% सब्सिडी देकर पॉलीहाउस खेती को प्रोत्साहित कर रही है।
एक हजार वर्ग मीटर (One thousand square meters) क्षेत्र मेंपॉली हाउस के निर्माण में लगभग 10 से 12 लाख रुपये की लागत आती है| हालाँकि इसके लिए नाबार्ड बैंक (Nabard bank) की तरफ से लोन भी दिया जाता है | हालाँकि छोटे और माध्यम वर्गीय किसान 500 वर्ग मीटर तक का भी पॉली हाउस बना सकते हैं और इसके लिए भी वह बैंक से ऋण प्राप्त कर सकते है | पॉलीहाउस के निर्माण की लागत पॉलीहाउस के आकार और पॉलीहाउस में उपयोग की जाने वाली तकनीक के आधार पर भिन्न होती है।
- कम लागत/प्रौद्योगिकी पॉलीहाउस (पंखे सिस्टम और कूलिंग पैड को छोड़कर) = 500 – 700 रुपये / वर्ग मीटर।
- मध्यम लागत/प्रौद्योगिकी पॉलीहाउस (पंखे सिस्टम और कूलिंग पैड सहित) = 1000 – 1500 रुपये / वर्ग मीटर।
- उच्च लागत/प्रौद्योगिकी पॉलीहाउस (पूरी तरह से स्वचालित और जलवायु नियंत्रित) = 3000 – 4000 रुपये / वर्गमीटर।
पॉलीहाउस पर सब्सिडी (Subsidy on Polyhouse)
मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) के अंतर्गत पॉलीहाउस निर्माण पर सरकारी सब्सिडी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। सब्सिडी 50% से 80% तक हो सकती है। सब्सिडी का विवरण और कुल सब्सिडी वाली राशि के भुगतान की शर्तों पर संबंधित राज्य के बागवानी विभाग (DoH) से प्राप्त की जा सकती है।
जो किसान भाई पॉलीहाउस स्थापित करना चाहते हैं, वह राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा शुरू की गई योजनाओं के माध्यम से लाभ उठा सकते हैं। यदि किसान 2,000 वर्ग मीटर या अधिक में अपना पॉलीहाउस स्थापित करता है, तो कुछ राज्य 80% तक सब्सिडी प्रदान करते हैं।
पॉलीहाउस खेती के लाभ (Polyhouse Farming Benefits)
- पॉलीहाउस फसलों को हवा, बारिश, विकिरण, वर्षा और अन्य जलवायु कारकों से बचाता है।
- यह फसलों के चारों ओर माइक्रॉक्लाइमेट बनाता है, जो उत्पादन और गुणवत्ता के संबंध में अधिकतम वृद्धि में मदद करता है।
- पॉलीहाउस उत्पादन को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिए Co2 की उच्च सांद्रता भी प्रदान करता है, जिसके कारण पॉलीहाउस की पैदावार खुले खेत की खेती से कहीं अधिक होती है।
- आप पॉलीहाउस में विभिन्न परिस्थितियों में पौधों को उगा सकते हैं, जो कि उस विशेष जलवायु क्षेत्र में खेती करना असंभव है। उदाहरण के लिए भारत के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी उगाना।
- पॉलीहाउस फसलें आपको खेती आपको न्यूनतम क्षेत्र में अधिकतम लाभ दे सकती हैं। स्वचालन के अधिकतम स्तर के साथ, मैनुअल गतिविधियों की संख्या, श्रम पर निर्भरता और समग्र श्रम लागत कम हो जाती है।
पॉलीहाउस कैसे तैयार करे ( Types Of Poly House )
वैसे तो पॉलीहाउस आकार मे तो एक ही तरह के होते है। आप पॉली हाउस को लोहे के पाइप या बांस का बनवा सकते है। लेकिन इनको बनाने मे आने वाली लागत व इनकी उम्र के आधार पर पॉलीहाउस दो तरह के होते है। निचे हम बात करेंगे की पॉलीहाउस कैसे तैयार करे पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।
बांस से तैयार होने वाले पॉली हाउस
बांस से तैयार पॉली हाउस के ढ़ाचे को बनाने के लिए बांस का ही उपयोग किया जाता है। बांस के द्वारा पॉली हाउस का निर्माण करने से किसान को लागत बहुत कम आती है। इस तरह से तैयार पॉली हाउस उपकरण की आवश्यकता बहुत ही कम होती है। बांस से तैयार पॉली हाउस को नेचुरल वेंटीलेटर पॉली हाउस भी कहा जाता है। क्योंकि इस तरह के पॉलीहाउस का तापमान बिना किसी उपकरणों के प्राक्रतिक नियंत्रित होता है। बांस से बने हुए पॉली हाउस की उम्र कम होती है।
लोहे के पाइप से तैयार पॉली हाउस
अगर कोई किसान लोहे के पाइप से पॉली हाउस का निर्माण करता है, तो इसमे बांस से बने पॉली हाउस की तुलना मे काफी ज्यादा खर्च आता है। क्योंकि पॉली हाउस का ढांचा को तैयार करने के लिए लोहे के पाइप का इस्तेमाल किया जाता है। लोहे वाले पॉली हाउस मे उपकरणों का खर्च भी काफी अधिक होता है। क्योंकि इस तरह के पॉलीहाउस मे तापमान को कृत्रिम तरीके से उपकरणों की मदद से तैयार किया जाता है। लोहे के पाइप से बने पॉली हाउस की उम्र की सालों तक की होती है।
पॉलीहाउस कैसे बनवाए ?
किसान भाई पॉली हाउस को आसानी से तैयार कर सकते है। पॉलीहाउस कैसे तैयार करते है आज के समय मे बहुत सारी निजी कंपनी भी पॉली हाउस को बनाने का काम करती है। आप अपनी आय के अनुसार पॉली हाउस बनवा सकते है। लोहे के पाइप का पॉली हाउस को बनाने मे कुशल कारीगर की आवश्यकता होती है। लेकिन बांस के ढ़ाचे वाले पॉली हाउस को किसान भी आसानी से बना सकते है।
1 एकड़ मे पॉलीहाउस के निर्माण मे कितनी लागत आती है
पॉलीहाउस कम से कम कितने एकड़ मे बनवाए | पॉलीहाउस कम से कम 1 एकड़ मे बनवाए, 1 एकड़ से कम जमीन मे पॉलीहाउस का निर्माण करने मे लागत अधिक आती है। |
1 बीघा मे पॉलीहाउस के निर्माण मे लागत | 1 बीघा मे पॉलीहाउस का निर्माण करने मे 10 से 11 लाख रुपये की लागत आती है। |
1 एकड़ मे पॉलीहाउस लगवाने के खर्च या लागत | पॉलीहाउस बनवाने का 1 स्कवायर मीटर का सरकारी रेट 844 रुपये है। |
1 स्कवायर मीटर पॉलीहाउस निर्माण की लागत | 1 स्कवायर मीटर पॉलीहाउस निर्माण की लागत लगभग 1034 रुपये आती है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न: आप कम लागत वाले पॉलीहाउस का निर्माण कैसे करते हैं?
उत्तर:
पॉलीहाउस की फ्रेम संरचना को विकसित करने के लिए आसानी से उपलब्ध बांस, लकड़ी और धातु के तार का उपयोग करके कम लागत वाले पॉलीहाउस का निर्माण किया गया था। 200µ की यूवी स्टेबलाइज्ड फिल्म ने छत को घेर लिया और साइड की दीवारों पर 75% शेड नेट लगा दिया। पॉलीहाउस खेती के लिए कम लागत वाले पॉलीहाउस के निर्माण के कई रास्ते हैं जिसमें नई तकनीक से प्रभावी तरीके से फसलें उगाई जा सकती हैं।
प्रश्न: पॉलीहाउस खेती भारत में इतनी लोकप्रिय क्यों हो रही है?
उत्तर:
भारत में पॉलीहाउस खेती लोकप्रिय हो रही है क्योंकि किसान फसल उगाने के लिए बड़े स्थानों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं। अत: इस विधि से फसलों की बेहतर उपज प्राप्त होती है। पॉलीहाउस फार्मिंग सेटअप में ऊर्ध्वाधर फसल उत्पादन का एक अन्य लाभ यह है कि यह मौलिक है और फसलों की आसान वृद्धि की ओर जाता है। इसलिए, हम उपरोक्त कारणों से भारत में पॉलीहाउस खेती की तेजी से लोकप्रियता देखते हैं।
प्रश्न: पॉलीहाउस का उपयोग खेती में क्यों किया जाता है?
उत्तर:
पॉलीहाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में काफी फायदेमंद होता है, जिससे फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना कम होती है, जिससे फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसलिए पॉलीहाउस खेती खेती की बाधाओं से लड़ने में काफी प्रभावी है।
प्रश्न: क्या पॉलीहाउस खेती लाभदायक है?
उत्तर:
यदि खेती की प्रक्रिया का सही ढंग से पालन किया जाए तो पॉलीहाउस खेती 100% लाभदायक है। बहरहाल, एक पॉलीहाउस का निर्माण महंगा हो सकता है, और एक वाणिज्यिक पॉलीहाउस के निर्माण की लागत ₹1,00,00,000 तक जा सकती है। इस प्रकार पॉलीहाउस खेती अत्यधिक लाभदायक है और किसानों को नई प्रौद्योगिकी नवाचार प्रदान करती है ताकि हम फसलों को पर्यावरण के अनुकूल विकसित कर सकें।
पॉली हाउस में सब्जियों का उत्पादन
पॉली हाउस (प्लास्टिक के हरित गृह) ऐसे ढाँचे हैं जो परम्परागत काँच घरों के स्थान पर बेमौसमी फसलोत्पादन के लिए उपयोग में लाए जा रहे हैं। ये ढाँचे बाह्य वातावरण के प्रतिकूल होने के बावजूद भीतर उगाये गये पौधों का संरक्षण करते हैं और बेमौसमी नर्सरी तथा फसलोत्पादन में सहायक होते हैं। साथ ही पॉली हाउस में उत्पादित फसल अच्छी गुणवत्ता वाली होती है।
पॉली हाउस की संरचना
ढाँचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं। जैसे- गुम्बदाकार, गुफानुमा, रूपान्तरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि। पहाड़ों पर रूपान्तरित गुफानुमा या झोपड़ीनुमा डिजायन अधिक उपयोगी होते हैं। ढाँचे के लिए आमतौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग करते हैं जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं। अस्थाई तौर पर बाँस के ढाँचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं जो सस्ते पड़ते हैं। आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है। इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है। निर्माण लागत तथा वातावरण पर नियन्त्रण की सुविधा के आधार पर पॉली हाउस तीन प्रकार के होते हैं।
1. लो कास्ट पॉली हाउस या साधारण पॉली हाउस : इसमें यन्त्रों द्वारा किसी प्रकार का कृत्रिम नियन्त्रण वातावरण पर नहीं किया जाता।
2. मीडियम कास्ट पॉली हाउस : इसमें कृत्रिम नियन्त्रण के लिए (ठण्डा या गर्म करने के लिए) साधारण उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं।
3. डाई कास्ट पॉली हाउस : इसमें आवश्यकता के अनुसार तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश, वायु संचार आदि को घटा-बढ़ा सकते हैं और मनचाही फसल किसी भी मौसम में ले सकते हैं।
सब्जियों का चुनाव
पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, पछेती फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में अगेती फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पातगोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं। फसलों का चुनाव क्षेत्र की ऊँचाई के आधार पर कुछ भिन्न हो सकता है। वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए अगेती फूलगोभी, टमाटर, मिर्च आदि की पौध भी पॉली हाउस में डाली जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीष्म में शीघ्र फलन लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियों टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च की पौध भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार की जा सकती है।
उन्नत किस्में
टमाटर : सामान्य किस्में- पन्त टी-3, पूसा गौरव संकर किस्में- रूपाली, नवीन, एमटीएच-15, अविनाश-2, मनिषा, नूतन
बैंगन : सामान्य किस्में- पन्त सम्राट, पन्त ऋतुराज, पूसा, उत्तम संकर किस्में- पन्त संकर बैंगन-1, पूसा हाईब्रिड-5, पूसा हाईब्रिड-6, पूसा हाईब्रिड-9
शिमला मिर्च : सामान्य किस्में- केलिफोर्नियावण्डर, योलोवण्डर, बुलनोज, चायनीज जायण्ट संकर किस्में- भारत, इन्दिरा, लैरियो, हीरा, ग्रीनगोल्ड, डीएआरएल-202
मिर्च : पन्त सी-1, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, पंजाब सुर्ख, अग्नि
मटर : आर्किल, पन्त सब्ली मटर-3, पूसा प्रगति, वीएल मटर-7
फ्रेंचबीन : पन्त अनुपमा, पन्त बीन-2, वी.एल. बौनी बीन-1, पूसा पार्वती, कनटेण्डर
भिण्डी : परभनी क्रान्ति, पंजाब-7, अरका, अनामिका
खीरा : सामान्य किस्में- प्वाइनसेट, जापानी लौंग ग्रीन, फुले शुभांगी संकर किस्में- पन्त संकर खीरा, प्रिया डीएआरएल-101, यूएस-6125, मालनी
लौकी : सामान्य किस्में- पूसा नवीन, कल्याणपुरा हरी लम्बी संकर किस्में- पन्त संकर लौकी-1 व 2, पूसा हाईब्रिड-1
करेला : पन्त करेला-1, कल्याणपुर बारामासी, पूसा दो-मौसमी
सस्य क्रियाएँ एंव देखभाल
पॉली हाउस के भीतर उगाई जाने वाली सब्जियों में वे सभी सस्य क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जिन्हें खुले खेत में अपनाते हैं। गोबर की खाद का भरपूर उपयोग करना चाहिए। बीच-बीच में मिट्टी का निर्जमीकरण आवश्यक होता है जिसके लिए फार्मेलडिहाइड तथा अन्य रसायन या प्लास्टिक शीट बिछाकर सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या बढ़ाकर पौधों की उचित छटाई व ट्रेनिंग द्वारा बेलदार फसलों से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। साधारण पॉली हाउस में दिन में उचित वायु संचार का प्रबन्ध अत्यावश्यक है।
उपज तथा आय की सम्भावनाएँ
पन्त नगर विश्वविद्यालय में किये गये परीक्षणों में जाड़े में लौकी, खीरा, करेला आदि की बुवाई करके प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र से 18-17 किलोग्राम सब्जियों की पैदावार मिली है। नवम्बर के प्रारम्भ में लगाये गये टमाटर से 15-20 किलोग्राम तथा सितम्बर में लगाई गई शिमला मिर्च से 4-10 किलोग्राम की पैदावार मिली है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार मिला है। एक 100 वर्गमीटर का एंगिल आयरन का साधारण पॉली हाउस बनाने में लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है। विवेकपूर्ण फसलों के उत्पादन से प्रथम दो वर्ष के भीतर ही लागत वसूल हो सकती है। उसके बाद के वर्षों में केवल उत्पादन लागत तथा 4 वर्षों में प्लास्टिक शीट बदलने का खर्चा शेष रहने से काफी मुनाफा कमाने की सम्भावना रहती है।
पर्वतीय क्षेत्र में पॉली हाउस
ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जहाँ पर ठण्ड अधिक पड़ती है तथा ओला एवं विपरीत परिस्थितियाँ भी रहती है। वहाँ पर खुली दशाओं में सब्जियों का उगाना सम्भव नहीं होता है। साथ ही वर्षा ऋतु में अधिक फसल को नुकसान होता है। इन स्थानों के लिए ‘पाली हाउस व ग्लास हाउस’ के अन्दर फसल उगाना काफी लाभप्रद पाया जाता है तथा इससे कृषक अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। पाली हाउस में विभिन्न सब्जियाँ जैसे- टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, पत्ता गोभी, मिर्च, लौकी आदि सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।
टमाटर : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र अगस्त में।
शिमला मिर्च : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अगस्त-सितम्बर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र मार्च-अगस्त में।
खीरा : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र फरवरी-अगस्त में।
टमाटर की रोपाई हेतु पॉली हाउस के अन्दर भूमि से लगभग 15 से.मी. उठी हुई क्यारियाँ बनानी चाहिए। इन क्यारियों का आकार 1.0 मीटर चौड़ा व 0.15 मीटर ऊँचा तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। पौध से पौध की दूरी 50 से.मी. व लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. रखी जा सकती है। एक क्यारी में दो लाइन होनी चाहिए। एक क्यारी से दूसरी क्यारी के बीच की दूरी 70 से.मी. से कम नहीं रखनी चाहिए। क्यारियाँ समतल हों जिससे सिंचाई में आसानी होती है। क्यारियाँ तैयार करने के पश्चात् फार्मोलिन का 0.2 प्रतिशत (2 मिलीलीटर) का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। पॉली हाउस को एक दिन के लिए बन्द रखें। यह छिड़काव पौध लगाने से लगभग 20 दिन पूर्व करना चाहिए। इसके द्वारा फफून्दी से लगने वाली बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।
टमाटर की फसल के लिए 35 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर तथा 150:100:80 किलोग्राम एनपीके खेत की तैयारी के समय डालें। रासायनिक उर्वरकों को पूरे फसल चक्र में तीन भाग बनाकर डालें। उपरोक्त मिश्रण का लगभग 15 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से रोपाई के पहले प्रत्येक कूड़ में दें। रोपाई के 20 दिन बाद 20 ग्राम प्रति पौधा व 50-50 दिन बाद पुनः 10 ग्राम प्रति पौधा देकर फसल की अच्छी तरह से गुड़ाई करनी चाहिए।
बुवाई एवं रोपण की दूरी
टमाटर (अ)- 60 गुणा 50 से.मी. (डण्डों के सहारे पौधों को साधना शाखाओं की कटाई न करने पर) (ब)- 50 गुणा 15-20 से.मी. (प्रत्येक पौधे के केवल मुख्य तनों को रस्सी के सहारे साधने पर)।शिमला मिर्च- 15 गुणा 50 से.मी.। खीरा- 100 गुणा 50 से.मी.।
खाद एवं उर्वरक
प्रत्येक वर्ष प्रतिवर्ग मीटर 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाएँ। इसके अतिरिक्त उपरोक्त फसलों में 12-15 ग्राम नत्रजन, 6-9 ग्राम फास्फोरस तथा 6-9 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में दें।
पौधों की काट-छाँट व सहारा देना
टमाटर की अल्प परिमित तथा अपरिमित के सघन रोपण में केवल मुख्य तने को पतली रस्सी की डोरी के सहारे बढ़ने दिया जाता है। शाखाओं को समय-समय पर छाँटते रहना चाहिए। किसी भी बेलवाली सब्जी को डण्डे तथा सुतली के सहारे साधना आवश्यक है।
तापक्रम पर नियन्त्रण
साधारण पॉली हाउस में ठण्ड के समय रात में खिड़की-दरवाजे बन्द रखे जाते हैं जबकि ग्रीष्म में तापक्रम न बढ़ने देने के लिए दिन रात खुला रखने की आवश्यकता पड़ती है।
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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