ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से घर के पिछवाड़े में कड़कनाथ मुर्गी पालन : आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सामाजिक-आर्थिक मॉडल
आमतौर पर घर के पिछवाड़े में मुर्गीपालन छोटे पैमाने पर मुर्गियों, बत्तखों या अन्य मुर्गों को पालने की प्रथा है, यह उपभोग के लिए अंडे और मांस का उत्पादन करने का एक कम लागत वाला और टिकाऊ तरीका है, और परिवारों के लिए आय के स्रोत है।
2022 में भारतीय पोल्ट्री उद्योग का आकार 28.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया और 2028 तक 44.97 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। 1960 तक बैकयार्ड पोल्ट्री की पुरानी प्रथा केवल एक अवधारणा थी। एक ग्रामीण परिवार द्वारा 15-20 पक्षियों को स्वतंत्र रूप से पालने को एक सांस्कृतिक गतिविधि और बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की भागीदारी वाली प्रथा के रूप में देखा जाता था, अंडे और मांस की बढ़ती मांग के साथ, यह सांस्कृतिक गतिविधि धीरे-धीरे कृषि व्यवसाय में बदल गई।
घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन से अधिक लाभ
भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। यहां के निवासियों का जीवन स्तर शहरों में रहने वालों की तुलना में अपेक्षाकृत समृद्ध नहीं है। विगत वर्षो में भारत सरकार ने कुक्कुट पालन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुधारने का एक उत्तम साधन मानते हुए इसके विकास हेतु अनेक प्रयास किये हैं। आज मुर्गीपालन एक दृढ़ उद्योग का रूप ले चुका है। वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे अनुसंधानों से विकसित नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने से मुर्गीपालन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है। व्यवसायिक प्रजातियों के विकास से प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति अण्डों एवं मांस की उपलब्धता 1961 में 7 अण्डे व 188 ग्राम से बढ़कर वर्तमान में लगभग 45 अण्डे व 1000 ग्राम अनुमानित है। यद्यपि इसमें वास्तविक वृद्धि हुई है पर ग्रामीण लोगों को इसकी उपलब्धता कम व अत्यन्त उच्च कीमतों पर होती है।
भारत में कुपोषण एवं गरीबी की समस्या को दूर करने के लिए पारम्परिक मुर्गी पालन अथवा घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसमें प्राय: 5-20 मुर्गियों का छोटा सा समूह एक परिवार के द्वारा पाला जाता है, जो घर एवं उसके आस-पास में अनाज के गिरे दाने, झाड़-फूसों के बीच कीड़े-मकोड़े, घास की कोमल पत्तियां तथा घर या होटल/ढाबे की जूठन आदि खाकर अपना पेट भरती हंै। इस प्रकार घर के रखरखाव एवं खाने-पीने पर कोई खास खर्च नहीं आता है।
नस्ल का चुनाव
वास्तव में पारम्परिक कुक्कुट पालन की भारत में अधिक प्रांसगिकता है। इस पद्धति से मुर्गी पालन के लिए उपलब्ध 11 प्रजातियों में कड़कनाथ, नर्मदा निधि वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम-ग्रामलक्ष्मी प्रमुख है। देशी प्रजाति के पक्षियों की वृद्धि दर व उत्पादन कम होने की वजह से इनकी लोकप्रियता घटती गई। हाल ही में केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली में देशी और उन्नत नस्ल की विदेशी प्रजाति की मुर्गियों को मिलाकर कुछ संकर प्रजातियां विकसित की गई हंै। इनमें कैरी श्यामा, कैरी निर्भीक, हितकारी एवं उपकारी प्रमुख है। ये प्रजातियां भारत के वातावरण एवं परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम साबित हुई है और इनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 180-200 अंडे की है।
मुर्गीपालन की अन्य नस्लों के मुक़ाबले कड़कनाथ को पालना आसान और कम खर्चीला है, क्योंकि इन्हें बीमारियाँ कम होती हैं। इसका रखरखाव बॉयलर और देसी मुर्गी के मुक़ाबले आसान होता है। कड़कनाथ का माँस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसमें आयरन और प्रोटीन की प्रचुरता तथा कोलेस्ट्रॉल यानी फैट बेहद कम होता है। कड़कनाथ का माँस, अंडा और चूजा, सभी की ख़ूब माँग है इसीलिए बढ़िया दाम मिलते हैं।
मुर्गीपालन जहाँ बड़े-बड़े पॉल्ट्री फ़ार्म के रूप में होता है, वहीं छोटे और मझोले पैमाने पर किसान भी इसे अपनाते हैं, क्योंकि इससे उनका ‘कैश फ्लो’ यानी नकदी आमदनी बनी रहती है। इसीलिए, मुर्गीपालन को अतिरिक्त कमाई के लिए भी अपनाया जाता है। बॉयलर और देसी मुर्गी के अलावा कड़कनाथ नस्ल का भी मुर्गीपालन में अच्छा दबदबा है।
वैसे तो हरेक नस्ल की अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ होती हैं, लेकिन कड़कनाथ की ख़ूबियों ने हाल के वर्षों में मुर्गीपालकों को ख़ासा आकर्षित किया है। इसे देखते हुए कई राज्य सरकारों और बैंकों की ओर से कड़कनाथ को प्रोत्साहित करने की योजनाएँ चलायी जा रही हैं।
बेहद गुणवान हैं कड़कनाथ
कड़कनाथ का माँस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसमें आयरन और प्रोटीन की प्रचुरता तथा कोलेस्ट्रॉल यानी फैट बेहद कम होता है। इसे दिल के मरीज़ों और डाइबिटीज के रोगियों के लिए बढ़िया माना गया है। ये होम्योपैथी और तंत्रिका विकार की दशा में भी औषधि का काम करता है। आदिवासी समाज में इसके रक्त से अनेक गम्भीर रोगों के इलाज़ भी प्रचलित है। इसके माँस का सेवन कामोत्तोजना बढ़ाने के लिए भी करते हैं। इन्हीं विशेषताओं की वजह से न सिर्फ़ ख़ुद कड़कनाथ का भाव ऊँचा रहता है, बल्कि इसका माँस और अंडा भी बढ़िया दाम पाते हैं। कड़कनाथ के चूज़ों को बेचने से भी अच्छी आमदनी होती है, क्योंकि इसकी बाज़ार में ख़ूब माँग है और ये जल्दी बिकने वाली नस्ल है। इसीलिए ये स्थानीय बाज़ारों के अलावा ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं।
ज़ोरदार है कड़कनाथ की माँग
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई कृषि विज्ञान केन्द्र कड़कनाथ के चूजों की माँग पूरा नहीं कर पाते हैं। वहाँ से कुछ मुर्गीपालक जहाँ 15 दिन का चूजा ले जाते हैं, वहीं कुछ लोग एक दिन का चूजा ले जाना भी पसन्द करते हैं। चूजे का दाम 70-100 रुपये के बीच होता है। कड़कनाथ का चूजा साढ़े तीन से चार महीने में वयस्क या बेचने लायक हो जाता है। बाज़ार में इसकी कीमत 3,000-4,000 रुपये होती है। वैसे तो इसका माँस 700 से 1000 रुपये प्रति किग्रा तक बिकता है। लेकिन सर्दियों में माँस की खपत बढ़ने पर दाम 1000 से 1200 रुपये प्रकि किलो तक हो जाता है।
आहार व्यवस्था
अच्छा उत्पादन एवं अधिक लाभ प्राप्त करने के लिये कुक्कुट पालकों को मुर्गियों के आहार पर ध्यान दें। प्राय: देखा गया है कि किसी विशेष मौसम में उत्पादित होने वाला एक विशेष प्रकार का अनाज ही मुर्गियों को खिलाया जाता है, जिससे पक्षियों को आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में प्राप्त नहीं होते हंै। अत: पक्षियों को वर्ष के दौरान पैदा होने वाले अनाजों को मिश्रित करके खिलायें। यदि सम्भव हो तो सम्पूर्ण आहार के रूप में उन्हें प्रोटीन, खनिज लवण व विटामिन भी दें। सम्पूर्ण आहार की मात्रा क्षेत्रीय उपलब्धता के आधार पर घटाई या बढ़ाई जा सकती है।
प्रजनन व्यवस्था
प्राय: ऐसा देखा जाता है, कि एक बार मुर्गी खरीदने के बाद एक झुंड में उन्हीं से बार-बार प्रजनन करवाया जाता है, जिससे इन ब्रीडिंग (अन्त: प्रजनन) के दुष्प्रभाव सामने आते हंै। इससे अण्डों की संख्या निषेचन एवं प्रस्फुटन में कमी आती है तथा बच्चों की मृत्यु दर बढ़ती है। अत: इन्हें प्रतिवर्ष बदल दें। इससे अण्डा उत्पादन व प्रजनन क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ चूजों की मृत्यु दर में कमी आती है।
सुरक्षा के आवश्यक उपाय
बीमारियों से बचाव के सम्बन्ध में जानकारी रखना प्रत्येक मुर्गी पालक के लिए आवश्यक हो जाता है।
- मुर्गियों को तेज हवा, आँधी, तूफान से बचायें।
- मुर्गियों के आवास का द्वार पूर्व या दक्षिण पूर्व की ओर होना अधिक ठीक रहता है जिससे तेज चलने वाली पिछवा हवा सीधी आवास में न आ सके।
- आवास के सामने छायादार वृक्ष लगवा दें ताकि बाहर निकलने पर मुर्गियों को छाया मिल सके।
- मुर्गियों का बचाव हिंसक प्राणी कुत्ते, गीदड़, बिलाव, चील आदि से करें।
- आवास का आकार बड़ा हो ताकि उसमें पर्याप्त शुद्ध हवा पहुँच सके और सीलन न रहे।
- मुर्गियाँ समय पर चारा चुग सकें इसलिए बड़े-बड़े टोकरे बनाकर रख लें।
- कुछ व्याधियाँ मुर्गियों में बड़े वर्ग से फैलकर भंयकर प्रभाव दिखाती है जिसमें वे बहुत बड़ी संख्या में मर जाती है। अत: बीमार मुर्गियों को अलग कर दें। उनमें वैक्सीन का टीका लगवा दें।
- मुर्गी फार्म की मिट्टी समय-समय पर बदलते रहें और जहां रोगी कीटाणुओं की संभावना हो वहां से मुर्गियों को हटा दें।
- एक मुर्गी फार्म से दूसरे मुर्गी फार्म में दूरी रहे।
- मुर्गियां खरीदते समय उनका उचित डॉक्टरी परीक्षण करा लें तथा नई मुर्गियों को कुछ दिनों तक अलग रखकर यह निश्चय कर लें कि वह किसी रोग से ग्रस्त तो नहीं है। पूर्ण सावधानी बरतने पर भी कुछ रोग हो ही जाये तो रोगानुसार चिकित्सा करें।
रोगों से बचाव एवं रोकथाम
मुर्गियों को विभिन्न प्रकार से संक्रामक रोगों से बचाने के लिए कुक्कुट पालकों को मुर्गियों में टीकाकरण अवश्य करा दें। जहां तक संभव हो एक गांव या क्षेत्र के सभी कुक्कुट पालकों को एक साथ टीकाकरण करवाने का प्रबंध करना चाहिए, इससे टीकाकरण की लागत में कमी आती है। बर्ड फ्लू जैसी भयानक बीमारियों से बचने के लिए मुर्गियों को बाहरी पक्षियों/पशुओं के संपर्क से बचायें। यदि कोई मुर्गी बीमार होकर मर गई हो तो उसे स्वस्थ पक्षियों से तुरन्त अलग कर दें तथा निकटस्थ पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर मरी मुर्गी का पोस्टमाटर््म करवाकर मृत्यु के सम्भावित कारणों का पता लगायें तथा अन्य मुर्गियों को बचाने के लिए उपयुक्त कदम उठायें। इस प्रकार आधुनिक तकनीक अपनाकर पारम्परिक ढंग से मुर्गी पालन कर ग्रामीण परिवारों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है।
कड़कनाथ मुर्गी पालन – आय का अच्छा साधन
घर के पिछवाड़े में मुर्गी पालन
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development) Image-Courtesy-Google Reference-On Request.