हरे चारे का दुग्ध उत्पादन में महत्त्व : हरा चारा उत्पादन तकनीक

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हरे चारे का दुग्ध उत्पादन में महत्त्व : हरा चारा उत्पादन तकनीक

पशुपालन व्यवसाय की सफलता मुख्यतः हरे चारे पर निर्भर करती है। पशुधन के लिए उपयोगी एवं आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए हरा चारा एक मात्र सस्ता स्त्रोत है। भारत में पशुधन के लिए 61 करोड़ हरे चारे एवं 86 करोड़ टन सूखे चारे की आवश्यकता है। जबकि इनकी उपलब्धतता क्रमशः महज 21 एवं 48 करोड़ टन है। सर्वविदित है कि पौष्टिक हरा चारा उत्पादन से ही दुग्धोत्पादन पर व्यय को कम किया जा सकता है। ग्रीष्मकाल में पशुधन के लिए हरे चारे की सर्वाधिक कमी रहती है जिसका दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य एवं दूध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

पशुओं के भोजन में हरे चारे की एक खास भूमिका होती है। यह दुधारु पशुओं के लिए फायदेमंद भी होता है। हरे चारे के रूप में किसान अनेक फसलों को इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कुछ फसलें ऐसी होती हैं, जो लम्बे समय तक नहीं चल पाती हैं, यहाँ कुछ खास फसलों के बारे में जानकारी दी गई है, जो सेहतमंद होने के साथ-साथ लम्बे समय तक हरा चारा मुहैया कराती हैं।

भारत के जो किसान खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं, उनके लिए दुधारु पशुओं और पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या से दोचार होना पड़ता है। बारिश में तो हरा चारा खेतों की मेंड़ या खाली पड़े खेतों में आसानी से मिल जाता है, परन्तु सर्दी या गरमी में पशुओं के लिए हरे चारे का इंतजाम करने में परेशानी होती है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि खेत के कुछ हिस्से में हरे चारे की बोवनी करें, जिससे अपने पालतू पशुओं को हरा चारा सालभर मिलता रहे।

पालतू पशुओं के लिए हरे चारे की बहुत कमी रहती है, जिस का दुधारु पशुओं की सेहत व दूध उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए जायद में बहु कटाई वाली ज्वार, लोबिया, मक्का और बाजरा वगैरह फसलों को चारे के लिए बोया जाता है।

हालांकि मक्का, ज्वार जैसी फसलों से केवल 4-5 माह ही हरा चारा मिल पाता है, इसलिए किसान कम पानी में 10 से 12 महीने हरा चारा देने वाली फसलों को चुन सकते हैं।जानकार किसान बरसीम, नेपियर घास, रिजका वगैरह लगाकर हरे चारे की व्यवस्था सालभर बनाए रख सकते हैं।

भारत वैश्विक दुग्ध उत्पादन परिदृश्य में पहले स्थान पर है, परन्तु प्रति पशु दुग्ध उत्पादकता में वह विकसित डेयरी देशों के औसत से बहुत पीछे है। हमारे देश में पशुधन उत्कृष्टता की अपेक्षा संख्या में दूसरे  देशों की तुलना में बहुत अधिक है।   देश की कुल सकल आय का लगभग 15 प्रतिशत आय पशुधन से प्राप्त होती है।   इन मूक प्राणियों के भरण पोषण की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण इनकी उत्पादन क्षमता में निरंतर कमीं होती जा रही है।   देश में श्वेत क्रांति की सफलता में हरे चारे का महत्त्वपूर्ण भूमिका है लेकिन  हरे चारे एवं दाने की कमीं के कारण देश में  औसत दुग्ध उत्पादन 1-2 लीटर प्रति दिन प्रति पशु है।   सम्पूर्ण देश में हरे  चारे की कमीं एक विकट समस्या है।  दरअसल देश की कुल कृषि योग्य भूमि के  मात्र 4.4  प्रतिशत क्षेत्रफल में ही चारा फसलें उगाई जाती है जो देश की विशाल पशु संख्या के लिए अपर्याप्त है।  हरे चारे की खेती एवं चरागाहों से आच्छादित कुल क्षेत्र से वर्तमान में हमारे पशुधन को 45-60 प्रतिशत हरे चारे की आवश्यकता की पूर्ति हो पा रही है।  वर्षा ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतुओं में चारे की हमेशा कमीं बनी रहती है।  प्रत्येक वर्ष के मई-जून और अक्टूबर-नवम्बर दो ऐसे समय होते है जब हरे चारे का सबसे अधिक संकट रहता है।  चारे के आभाव के समय में पशुओं को धान का पुआल तथा भूसा जैसे अल्प पोषकता वाले सूखे चारे खिलाये जाते है।  सूखे चारे से पशु जीवित तो रहते है परन्तु उनका दुग्ध उत्पादन बहुत कम हो जाता है।

अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए दुधारु पशुओं के लिए पौष्टिक दाने और चारे के साथ हरा चारा खिलाना बहुत जरुरी है। हरा चारा पशुओं के अंदर पोषक तत्वों की कमीं को पूरा करता है। एक दुधारू पशु जिसका औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे प्रति दिन कम से कम 10  किलोग्राम की मात्रा में हरा चारा खिलाया जाना चाहिए । पशुपालन में 60-70 प्रतिशत खर्चा चारा-दाना पर आता है।  एक तरफ तो हरे चारे की भारी कमी है, वहीँ दूसरी तरफ पशुओं को दिए जाने वाले दानें और खली की कीमतें निरंतर बढ़ रही है। पौष्टिक दाना चारा के अभाव में  धान की पैरा कुट्टी अथवा भूसा ही पशुओं को खिलाना पड़ता है जिससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता निरंतर घटती जा रही है। ऐसे में पुशु पालन (डेयरी उद्योग) घाटे का सौदा बनता जा रहा है। इसलिए शहरी क्षेत्र में स्थापित अधिकांश पशुपालन इकाई (डेयरी) अलाभकारी होती जा रही  है बहुतेरे पशुपालक इस पवित्र धंधे को छोड़ने विवश है।  दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि लाने हेतु दुधारू पशुओं को उत्तम किस्म का हर चारा उपलब्ध कराना आवश्यक है।  वर्ष पर्यंत चारे वाली फसलों की उन्नत खेती कर पशु पालकों को उत्तम किस्म का गुणवत्ता युक्त हरा चारा उपलब्ध कराने से देश में बीमार डेयरी उद्योग को उत्पादक और  आर्थिक रूप से लाभकारी बनाया जा सकता है। शहरी क्षेत्रों के आस-पास के ग्रामीण युवा/बेरोजगार अपने खेतों में हरा  चारा उत्पादन कर देश में श्वेत क्रांति को एक नया आयाम देने में योगदान कर सकते है. यदि आपके पास कृषि भूमि है तो न्यूनतम लागत और थोड़े से परिश्रम से चारा उत्पादन  को शानदार रोजगार और आमदनी का साधन बना सकते है।

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ग्रीष्मकाल में पशुधन के लिए पौष्टिक हरा चारा उत्पादन

इस समस्या के समाधान हेतु पशुपालकों को उपलब्ध सिंचित कृषि भूमि पर हरा चारा उत्पादन करना चाहिए जिससे पशुपालन में दाना-खली के खर्चो में कटौती की जा सके और पशुधन के लिए पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध कराकर दुग्ध उत्पादन को बढाया जा सकें। ग्रीष्मकाल में ज्वार, बाजरा एवं मक्का को चारा फसल के रूप में उगाकर हरा रसीला पौष्टिक हरा चारा आसानी से पैदा किया जा सकता है। इन फसलों को वैज्ञानिक तरीके से उगाकर भरपूर पैदावार ली जा सकती है. ग्रीष्मकाल में ज्वार, बाजरा एवं मक्का फसल से अधिकतम हरा चारा उत्पादन हेतु सस्य तकनीक अग्र प्रस्तुत है।पशुओं की उत्पादन क्षमता उनको दिए जाने वाले आहार पर निर्भर करती है। पशुओं को संतुलित आहार दिया जाय तो पशुओं की उत्पादन क्षमता को निश्चित ही बढ़ाया जा सकता है।  हरे चारे के प्रयोग से पशुओं को आवश्यकतानुसार शरीर को विटामिन ’ए’ एवं अन्य विटामिन मिलते हैं।  इसलिए प्रत्येक पशुपालक को अपने पशुधन से उचित उत्पादन लेने के लिए वर्ष पर्यन्त हरा चारा खिलाने का प्रबन्ध अवश्य करना चाहिए।

पशुओं से अधिक दुग्ध उत्पादन लेने के लिए किसान भाईयों को चाहिए कि वे ऐसी बहुवर्षीय हरे चारे की फसले उगाऐं  जिनसे पशुओं को दलहनी एवं गैरदलहनी चारा वर्ष भर उलब्ध हो सकें।  रबी एवं खरीफ के लिए पौष्टिक हरा चारा उगाने की योजना कृषकों को अवश्य बनानी चाहिए।  खरीफ एवं रबी के कुछ पौष्टिक हरे चारे उगाने की विधि इस प्रकार हैंः

पशुओं को हरा चारा खिलाने के लाभ

पशुधन को निरंतर हरा चारा खिलाने से उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. हरा चारा खिलाने से अनेक फायदे होते है जैसे:

1.हरे चारे पाचक, स्वादिष्ट तथा पोषक तत्वों से भरपूर होते है। पशु इन्हें चाव से खाते है।

  1. हरे चारे के उपयोग से दुग्ध उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि हरे चारे के पोषक तत्व सस्ते होते है।हरा चारा खिलने से दुग्ध उत्पादन में 20-25 % की वृद्धि होती है।

3.वर्ष भर कोई न कोई हरा चारा उगाया जा सकता है।  अतः हर मौसम में हरा चारा खिलाने से पशुओं को ज्यादा दाना, चोकर एवं खली खिलाने की आवश्यकता नहीं होती है।

4.दलहनी हरा चारा पोषक तत्वों से भरपूर होता है अतः एकदलीय चारे के साथ मिलाकर इसे खिलाने से पशुओं के लिए सम्पूर्ण आहार के समान गुणकारी होता है।

5.पशुपालक हरे चारे को स्वयं उगा सकते है अथवा खरीद कर खिला सकते है।

  1. हरा चारा रसीला होता है।अतः इन्हें खिलाने से पशुओं को पानी की आवश्यकता कम होती है।
  2. हरा चारा खेत से काटकर अथवा उसकी घर पर कुट्टी काटकर ताजा खिलाया जाता है।अतः इसके भण्डारण की आवश्यकता नहीं होती है।
  3. हरे चारे में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स, कार्बोहाईड्रेट, रेशा एवं खनिज लवण पाए जाते है। अतः इसे खिलाने से पशुओं में रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और वे स्वस्थ रहते है।

कहाँ और कैसे करें चारा फसलों की खेती

शहर/कस्बों के आस-पास उचित जल निकास एवं पर्याप्त सिंचाई सुविधा वाली अमूमन सभी प्रकार की  भूमियों  में चारा फसलों की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है. जानवरों की चराई से फसल की सुरक्षा  के लिए खेतों में बाड़ (तार घेरा) लगाना आवश्यक है. स्वयं की भूमि उपलब्ध न होने पर आप कृषि भूमि किराये पर लेकर भी लाभकारी खेती कर सकते है. सबसे पहले खेतों की मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर घास-पात (खरपतवार) मिटटी में मिला कर खेत में सिंचाई कर 4-5 दिन के लिए छोड़ देवें. इसके पश्चात 5-8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद/कम्पोस्ट अथवा 2-4 टन मुर्गी की खाद खेत में फैलाकर 2-3 बार कल्टीवेटर से आदि-खड़ी जुताई कर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।  अब आप अग्र सारणी में दर्शित चारा फसलों की उन्नत किस्मों का आवश्यकतानुसार बीज की व्यवस्था कर बुवाई कर सकते है. चारा फसलों को 20-25 दिन के अन्तराल से अलग अलग समय पर बोने से आपको सतत हरा चारा प्राप्त होता है. उत्तम एवं पौष्टिक हरे चारे के लिए एक बीज पत्रिय अर्थात घास कुल की फसलों (ज्वार चरी, बाजरा, नेपिएर, जई आदि) के साथ दलहनी अर्थात लेग्युमिनेसी कुल की फसलें (लोबिया, गुवार, बरसीम आदि) की खेती से अधिक मात्रा में गुणवत्ता युक्त चारा प्राप्त किया जा सकता है. इस मिश्रित चारे को बाजार में ऊंचे दामों में बेचा जा सकता है. इसके अलावा सहफसली (मिश्रित) खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार भी होता है.  हरे चारे की बुवाई के 60-65 दिन बाद कटाई प्रारंभ कर आवश्यकतानुसार पशुपालकों को उपलब्ध कराया जा सकता है.

प्रमुख चारा फसलों की  उत्पादन समय सारणी

चारा फसलें बुवाई का समय बीज दर (किग्रा./ हे.) चारा  उपलब्धता कटाई संख्या   उत्पादन  (क्विंटल/हे.)
एमपी चरी फरवरी-जुलाई 25-30 अप्रैल-नवम्बर 2-3 500-600
मक्का फरवरी-जुलाई 50-60 अप्रैल-नवम्बर 01 250-300
मकचरी फरवरी-जुलाई 25-30 अप्रैल-नवम्बर 2-3 500-600
बाजरा फरवरी-अगस्त 12-15 मार्च-अक्टूबर 2-3 250-300
लोबिया मार्च-जुलाई 40-50 मई-सितम्बर 01 200-250
नैपिएर घास मार्च-सितम्बर 15-20 क्विंटल सम्पूर्ण वर्ष 7-8 1500-2000
गिनी घास मार्च-सितम्बर 12-15 क्विंटल सम्पूर्ण वर्ष 7-8 1500-2000
पैरा घास मार्च-सितम्बर 10-12  क्विंटल सम्पूर्ण वर्ष 7-8 1000-1200
बरसीम अक्टूबर-नवम्बर 25-30 दिसंबर-मई 5-6 400-500
लुसर्न अक्टूबर-नवम्बर 20-25 दिसंबर-मई 6-7 500-600
जई अक्टूबर-दिसंबर 75-90 जनवरी-अप्रैल 1-2 250-300

चारे को कहाँ और कैसे बेचें 

यदि आप स्वयं एक पशु पालक/डेयरी संचालक है और आपके पास कुछ कृषि योग्य भूमि है तो अपने पशुओं के लिए स्वयं हरा चारा पैदा कर अपनी डेयरी को आर्थिक रूप से अधिक लाभकारी बना सकते है।  यदि आप रोजगार और आय के साधन के रूप में चारा उत्पादन करना चाहते है तो  इसकी कार्य योजना बनाने से पूर्व अपने आस-पास के पशुपालकों/ डेयरी संचालकों से संपर्क कर उन्हें पशुओं को हरा चारा चारा खिलाने से होने वाले फायदों से अवगत कराएँ।  उन्हें बताएं कि पशुओं को हरे चारे की कुट्टी खिलाने से दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है और दाने पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकता है।  हरा चारा क्रय करने हेतु पशु पालकों से आपसी लेन-देन अर्थात चारे की मात्रा,मूल्य एवं चारा पहुचाने का समय आदि विषयों पर पूर्ण सहमति (आवश्यक समझे तो एक इकरारनामें पर हस्ताक्षर करवा लें) सुनिश्चित करने के पश्चात चारा फसलों की खेती प्रारंभ करें।  हरे चारे को सीधे खड़ी फसल अथवा कुट्टी काटकर बेचा जा सकता है।  पशुपालक अपनी आवश्यकतानुसार चारा फसल स्वयं कटवा सकते है अथवा उनके यहाँ आप पहुंचा सकते है।

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चारा उत्पादन: कम खर्चे में अधिक आमदनी 

डेयरी संचालक यदि अपने पशुओं को हरा चारा खिलाना प्रारंभ कर देवें तो निश्चित रूप से पशुपालन सतत लाभ का व्यवसाय हो सकता है।  खद्यान्न या अन्य  फसलों की खेती की तुलना में चारा उत्पादन कृषि का सबसे लाभकारी व्यवसाय है।  चारा फसलों की खेती में लागत बहुत कम आती है और लाभ  बेसुमार हो सकता है।  उदहारण के लिए नेपिएर घास की खेती करने में 25-30 हजार रुपये  प्रति हेक्टेयर की लागत आती है। नेपिएर, गिनी एवं पैरा बहुवर्षीय घास है जिन्हें एक बार लगाने से 4-5 वर्ष तक हरा चारा प्राप्त होता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में भी इनसे पर्याप्त चारा मिलता रहता है। नेपिएर घास  से  7-8 बार हरे चारे की कटाई करते हुए 1000 क्विंटल से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।  पशुपालक हरी नेपिएर घास को 300 रूपये प्रति क्विंटल के भाव से भी खरीदते है तो आपको 300,000 (तीन लाख) रुपये प्राप्त होंगे जिसमे से खेती की उत्पादन लागत (30 हजार रुपये) एवं अन्य खर्चे (जमीन का किराया,चारा कटाई,कुट्टी बनाने एवं परिवहन में अधिकतम  40,000 रुपये) प्रति हेक्टेयर घटाकर 2,30000/- (दो लाख तीस हजार) का शुद्ध मुनाफा हो सकता है जो अन्य फसलों की खेती अथवा कृषि व्यवसाय से आकर्षक एवं लाभकारी माना जा सकता है। यदि किसी कारण आवश्यकता से अधिक चारा उत्पादन होने लगा है अथवा हरा चारा बच जाता है तो इसके गट्ठर बना कर अथवा कुट्टी काटकर अच्छी प्रकार से सुखा कर छायादार और सूखे स्थान पर सरंक्षित किया जा सकता है। इनका सूखा चारा पौष्टिकता में धान के पुआल से बेहतर होता है अतः सूखे चारे की कुट्टी को भी पशुपालकों को अच्छे भाव में  बेचा जा सकता है।

हाईड्रोपोनिक्स हरा चारा उत्पादन तकनीक

विश्व में सर्वाधिक पशुधन संख्या में सुमार होने के कारण भारत सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। देश की कुल सकल आय का लगभग 15-16 प्रतिशत आय पशुधन से प्राप्त होती है। परन्तु हमारे देश में प्रति पशु उत्पादकता बहुत कम है जिसका मुख्य कारण पशुधन को संतुलित आहार का उपलब्ध न होना है। भारतीय दुग्ध उत्पादन में 70 % दूध की आपूर्ति भूमिहीन किसानो से होती है। दूध का उत्पादन तेजी से बढ़ाने के लिए पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला चारा आवश्यक है। यह सर्व विदित है की दुधारू पशुओं पर करीब 60 से 70 फीसदी खर्च सिर्फ उनकी खुराक पर होता है। आवश्यक है कि पशुओं की खुराक उनके उत्पादन के अनुरूप उचित एंव संतुलित हो जिसमे सभी आवश्यक तत्व यथा प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन, वसा, कार्बोहाइड्रेट एवं जल संतुलित मात्रा में विद्यमान हो। प्राय: पशुपालक सूखा चारा तथा थोड़ा बहुत दाना ही अपने दुधारू पशुओं को खिलाते हैं, जिससे पशु पालक को जितना उत्पादन मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता। परिणामस्वरूप अधिकांश किसानों का पशुपालन व्यवसाय से मोह भंग होता जा रहा है।

पशुधन आबादी एवं चारा फसलों का क्षेत्रफल

पशुओं के संतुलित आहार में हरे चारे का विशेष महत्व होता है क्योंकि हरा चारा पशुओं के लिए पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व के संपूर्ण भू-भाग का मात्र 2 प्रतिशत है जबकि यहॉं पशुओं की संख्या विश्व की संख्या का 15 प्रतिशत है। देश में पशुओं की संख्या अमूमन 450 मिलियन है जिसमें प्रतिवर्ष 10 लाख पशु के हिसाब से बढ़ोत्तरी हो रही है। हमारे देश में पशुओं के लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की हमेशा से ही कमी रही है क्योकिं हमारे देश में लगभग 4 % भूमि में ही चारा उत्पादन का कार्य किया जाता है। जबकि पशुधन की आबादी के हिसाब से 12 से 16 % क्षेत्रफल में चारा उगाने की आवश्यकता है।

पशुधन के लिए चारा उत्पादन के लिए संभावित विकल्प

देश में कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता दिन प्रति दिन कम होती जा रही है। सीमित भूमि एवं अन्य संसाधनो में ही हमें खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, गन्ना, कपास, सब्जिओं आदि फसलों की खेती करना है। अतः चारा फसलों के अंतर्गत उपलब्ध क्षेत्र एवं बेकार परती पड़ी जमीनों एवं चरागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है। शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पशुधन की बाहुल्यता है यहां बंजर एवं लवणीय भूमि में चारा उगा कर 90 मिलियन टन हरे चारे की पैदावार की जा सकती है। इसके साथ ही बहुवर्षीय घास लगाकर तथा फसलों के अवशेष के प्रसंस्करण से तैयार चारा भारत के पशुधन को उपलब्ध कराया जा सकता है ।अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को भी अमल में लाना होगा जिससे कि हरे चारे की कमी के समय पर इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके। पशु पालन एवं दुग्धोत्पादन की सफलता मुख्य रूप से उत्तम नश्ल के दुधारू पशुओं एवं पौष्टिक चारे की उपलब्धता पर निर्भर करती है । ईस संदर्भ मे हयड्रोपोणिक पद्धति से हारा चारा का उत्पादन येक अच्छा विकल्प उभरकर सामने आया है ।

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हाइड्रोपोनिक चारा : हरा चारा बनाने की आधुनिक विधि

भारत दुनिया में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करता है। ऐसे में पशुओं के लिए हरा चारे का प्रबंध करना काफी चुनौती पूर्ण है। खासकर उन इलाकों में जहां पानी की उपलब्धता कम है। अधिकांश रकबा सूखे की चपेट में है। इन जगह पर पशुपालन कर डेयरी उद्दोग को आमदनी का जरिया बनाना लाभकारी है। राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के अन्तर्गत देश में आधुनिक विधि से हरा चारा उत्पादन की तकनीकों का प्रचलन शुरु हुआ। यह हमारे यहां कोई नई शुरुआत नहीं है इसके लिए वैज्ञानिक पिछले 30 वर्षों से सतत प्रयास कर रहें हैं। इस आधुनिक विधि का नाम हाइड्रोपोनिक विधि है। इस विधि द्वारा पानी की बचत होती है। साथ ही किसान कम मेहनत में पशुओं के लिए हरा चारे का उत्पादन कर सकता है।
इसके अन्तर्गत कम समय व लागत में बोहतर हरा चारा के उत्पादन किया जाता है। पशुओं के लिए हरा चारा संतुलित एवं पौष्टिक आहार है। अतएव किसानों के समक्ष चारे का प्रबंध करने का सिरदर्द होता है। देश में कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां वर्षा बहुत कम होती है। ऐसी जगहों पर यह विधि काफी हद तक कारगर साबित हुई है। हरा चारा दूध में पोषकता बढ़ाने के लिए उपयोगी है। जिसके द्वारा दूध में असंतृप्त वसा,वसीय अम्लों,विटामिन्स की मात्रा बढ़ती है। आधुनिक अनुसंधान के मुताबिक हरा चारे से गाय का दूध उच्च वसीय अम्लों से युक्त है। इस प्रकार के गाय के दूध में ओमेगा 3 नामक महत्वपूर्ण तत्व पाया जाता है। जो आंखों एवं मस्तिष्क के लिए काफी लाभदायक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत में अधिक लाभकारी विधि का इस्तेमाल सर्वाधिक महाराष्ट्र में किया गया है।

क्या है हाईड्रोपोनिक विधिः

इस विधि में प्लास्टिक की एक ट्रे में जिनकी माप 2 फीट x1.5 फीट x3 इंच होती है। इसमें बाजरा या गेहूं के बीजों को पानी में भिगोकर लगभग 12 घंटे के लिए रख ली जाती है। 72 ट्रे( तश्तरी) का प्रबंध किया जाता है। जिनमें प्रत्येक ट्रे में 1 किलो सूखे बीज रखते हैं। प्रारंभ में जमे बीजों पर लगातार पानी का छिड़काव करते हैं। इस लगतार प्रक्रिया के द्वारा 7 से 8 दिन के अंदर पशुओं को खिलाने योग्य हरा चारे की प्राप्ति होती है। ज्ञात हो कि इस प्रक्रिया के दौरान एक टाइमर एसेंबली का भी प्रयोग किया जाता है। सात दिनों के भीतर लगभग एक किलोग्राम बीज से 8 से 10 किग्रा चारा उत्पादित किया जाता है। एक ट्रे से लगभग एक गाय को खिलाने के लिए पर्याप्त चारा प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार एक सप्ताह के लिए प्रति गाय के लिए एक ट्रे से पर्याप्त मात्रा में चारा प्राप्त किया जा सकता है। अर्थात एक किसान यदि 10 गाय हैं तो उसे लगभग 80 ट्रे का प्रबंध करना होगा। मक्का द्वारा प्राप्त किये जाने वाले चारे के लिए एक किलोग्राम के लिए लगभग दो रुपए का खर्चा आता है।
हाईड्रोपोनिक विधि से चारा बनाने के लिए किसान को पूरा ढांचा तैयार करने के लिए कुल 35000 हजार रुपए की लागत लगानी होगी। जिसमें 80 ट्रे साथ ही 1 हॉर्स पावर का इलेक्ट्रानिक मोटर व फॉगर एवं टाइमर की लागत शामिल है।

मक्के से उगाया जाता है यह चारा

यह चारा मक्के से उगाया जाता है। इसके लिए 1.25 किलोग्राम मक्के के बीज को चार घंटे पानी में भिगोया जाता है फिर उसे 90X32 सेमी की ट्रे में रख दिया जाता है। एक हफ्ते में यह हरा चारा तैयार हो जाता है। ट्रे से निकालने पर यह चारा जड़, तना और पौधे वाले मैट की तरह दिखता है। एक किलोग्राम पीला मक्का से 3.5 किलोग्राम और एक किलोग्राम सफेद मक्का से 5.5 किलोग्राम हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा तैयार होता है। सफेद मक्के से तैयार किए गये हाइड्रोपोनिक्स चारे की उत्पादन लागत चार रुपए प्रति किलोग्राम जबकि पीला मक्का से तैयार करने पर उत्पादन लागत पांच रुपए प्रति किलोग्राम आती है। परंपरागत हरा चारा में क्रूड प्रोटीन 10.7 प्रतिशत होती है जबकि हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा में क्रूड प्रोटीन 13.6 प्रतिशत होती है। परंपरागत हरा चारा में क्रूड फाइबर 25.9 प्रतिशत जबकि हाइड्रोफोनिक्स हरा चारा में क्रूड फाइबर 14.1 प्रतिशत ही होता है। एक डेयरी मवेशी के लिए एक दिन में 24 किलो हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा पर्याप्त है। हरा चारा डेयरी मवेशियों के लिए अनिवार्य है। हालांकि जहां पर इसकी उपलब्ध्ता न हो वहां हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा का उत्पादन किसान कर सकते हैं।

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Fodder Production and Animal Nutrition-HINDI

कैसे करें वर्ष भर हरा चारा उत्पादन

चारा उत्पादन की पद्धतियां

चारा फसलों एवं चरागाह विकास की उन्नत तकनीकीया

वर्षीय-हरा-चारा-फसल-चक्र

वर्ष भर हरा चारा उत्पादन करने  की प्रमुख विधिया तथा आवश्यक सुझाव

Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 

Image-Courtesy-Google

 

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