लम्पी स्किन डिजीज: बीमारी का संचरण एवम पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
डॉ अनीता तिवारी
सह प्राध्यापक, पशु जन स्वास्थ्य एवं महामारी विभाग,
पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा
बीमारी का संचरण या फैलाव:
लम्पी स्किन डिजीज/ गाँठदार त्वचा रोग एक संक्रामक बीमारी है जो एक पशु से दूसरे पशु को होती है। संक्रमित पशु के संपर्क में आने से दूसरा पशु भी बीमार हो सकता है। इस बीमारी की फैलने की दर बहुत तीव्र हैं। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की भारत जिसके पास दुनिया के सबसे अधिक मवेशी हैं, यह बीमारी सिर्फ १६ महीनों के भीतर १५ राज्यों में फैल गई है।
रोग संचरण के मुख्य मार्ग:
- कीट पतंगे जो की एक बीमारी के कीटाणु को एक पशु से दूसरे पशु तक ले जाते है उन्हें वेक्टर / रोग का वाहक कहते हैं। लम्पी स्किन डिजीज भी वेक्टर के माध्यम से फैलने वाली बीमारी है और पशुओ में रक्त-पान/ खून चूसने वाले कीड़ों जैसे मक्खी, मच्छर, जूं आदि द्वारा प्रेषित होता है। अतः वेक्टर की रोकथाम से बीमारी की रोकथाम भी जा सकती है।
- इसके अलावा संक्रमित पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से भी फैलता है।
- यह रोग संक्रमित गाय के दूध से दूध पिने वाले बछड़ों में भी फैलता है।
- संक्रमित सांड के वीर्य से यह विषाणु उत्सर्जित होता है जो की बीमारी सक्रमण का एक और महत्वपूर्ण मार्ग है।
- दूषित उपकरण के माध्यम से।
एलएसडीवी एक अत्यधिक स्थिर वायरस है, जो लंबे समय तक बाहरी वातावरण को सहन करता है। यह त्वचा के नेक्रोटिक नोड्यूल्स में 33 दिनों या उससे अधिक समय तक जीवित रह सकता है, अतः उनका इलाज करते समय सावधान रहे और दूसरे पशुओं को संपर्क में ना आने दे।
गाँठदार त्वचा रोग का नियंत्रण और रोकथाम चार रणनीतियों पर निर्भर करता है, जो निम्नलिखित हैं –
- ‘आवाजाही पर नियंत्रण (क्वारंटीन/ पृथक्करण):
- संक्रमित पशु अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- जिन क्षेत्रों में यह बीमारी फैली हो वहां मवेशी मेले, जानवरों से जुड़े शो और पशुधन बाजार जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।
- पशुपालक और चिकित्षकों को चाहिए की पहले स्वस्थ्य पशुओं का दौरा करे, अंत में संक्रमित पशु के बाड़े में जाये।
- टीकाकरण–
- संक्रमित पशु को गोट पॉक्स वैक्सीन लगवाएं। यह रोकथाम और नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है।
- संक्रमित पशुओं का वध
- यदि कोई एक पशु लम्बे समय तक त्वचा रोग से ग्रस्त है और ठीक नहीं हो रहा, तो दूसरे पशुओं में संक्रमण फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पशु को मानवीय तरीके से मार देना चाहिए।
- अगर इस बीमारी से किसी जानवर की मृत्यु हो जाए तो उसके शव को खुला नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसे मिट्टी के अंदर गाड़ देना चाहिए, और उसके बाद उस पूरे इलाके को कीटाणुनाशक द्वारा स्वच्छ किया जाना चाहिए।
- प्रबंधन‘
- पृथक्करण के नियमो का नियमित रूप से पालन
- किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण हैं।
- यह आमतौर पर गीली गर्मी और शरद ऋतु के महीनों के दौरान अधिक प्रचलित होता है, अतः गौशाला को सूखा और साफ रखें।
- पशुओं को चिकित्सक की सलाह पर दवा दे सकते हैं।
- बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए।
- वायरस सूरज की रोशनी के प्रति संवेदनशील है, अतः संक्रमित सामान को धुप में सुखना भी एक कारगर प्रक्रिया हो सकती है।
- केमिकल जैसे फिनाइल आदि द्वारा बाड़े का कीटाणुशोधन करना चाहिए। बाड़े में भूसा कंडे आदि जलाकर मच्छर मक्खी भागने का प्रबंद करना चाहिए।
पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
अन्य मुख्य प्रश्न यह है की क्या यह रोग इंसानों में भी फैल सकता है?
यह रोग गैर-जूनोटिक है यानि कि यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता । इसलिए जानवरों की देखभाल करने वाले पशुपालकों के लिए डरने की कोई बात नहीं है । फिर भी पशुपालको को चाहिए की बीमार पशु की देखभाल करते समय, एक सामान्य सुरक्षा के नियमो का पालन करे, जैसे की-
- पहले और बाद में हाथ पैर साबुन से धोना,
- हो सके तो मास्क और दस्तानो का प्रयोग करे,
- गौशाला से लौट कर नहा धोके घर में प्रवेश करे आदि।
- प्रभावित पशुओं के दूध का उबाल कर सेवन किया जा सकता है
पर्यावरण की सुरक्षा हेतु लम्पी स्किन डिजीज के कारण मरने वाले मवेशियों का निपटान कैसे करें?
अगर लम्पी स्किन डिजीज से संक्रमित पशु की मौत हो जाती है, तो उसकी बॉडी को सही तरीके से डिस्पोज करना चाहिए ताकि ये बीमारी और ज्यादा न फैले।
- तुरंत बड़े से हटा के जलाये या दफनाए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
- प्रयोग किये गए वाहन की सफाई होनी चाहिए।
- दूषित बिस्तर, खाद या चारा का उचित निपटान करें- जला कर या कीटाणुनाशक छिड़क कर ।
- मृत जानवर को संभालते समय सुरक्षात्मक कपड़े पहनें।
- बाड़े की जमीं और दीवारों की धुलाई एवम १% फिनॉल का छिड़काव द्वारा कीटाणुशोधन करें।
- दीवारों पे चुने का लेपन और छिड़काव करे। २-३ दिन तक बाड़े को सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए।
इस प्रकार अगर सही समय पर पशुओं का खयाल रखा जाए, और रोकथाम के नियमो का पालन किया जाये तो पशु और पशुपालक दोनों इस गंभीर बीमारी के प्रकोप से बच सकते है।