वर्षा ऋतु एवं मुर्गीपालन
पशु&पोषण विभाग] पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय अंजोरा] दुर्ग (छ.ग)
कल्याणी वर्मा, डॉÛ सोनाली , डॉÛ ऍम के गेंदले, डॉÛ मीनू दुबे ,डॉÛ रैना दोनेरिया, डॉÛ आर सी रामटेके, डॉÛ पूर्णिमा गुमास्ता
प्रस्तावना: मुर्गीपालन उद्योग की भूमिका आधुनिक भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण है] 2020-2021 के आंकड़ों के अनुसार] पोल्ट्री उत्पादन का औसत वार्षिक वितरण 1050 लाख टन से वृद्धि हुआ है इसके साथ ही] किसानों की आय को बढ़ाता है और रोजगार के अवसर प्रदान करता है] इससे स्पष्ट होता है कि पोल्ट्री उत्पादन व्यापार और आय की मुख्य स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है।
बरसात के मौसम में पोल्ट्री फार्म का संचालन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। इस मौसम में मुर्गियों को वैज्ञानिक प्रबंधन की जरूरत होती है] जो उनके आहार] पेयजल] रहने की जगह] और सामरिक वातावरण को शामिल करता है। बरसात के दिनों में मुर्गी पालन करते समय बीमारियों और इंफेक्शन के कारण कई नुकसानों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें मुर्गियों की अच्छी सेहत के लिए खान-पान और रहन-सहन का खास ध्यान रखना चाहिए।
महत्वपूर्ण सुझाव-
- पोल्ट्री शेड की देखभाल: बारिश से पोल्ट्री शेड को बचाने के लिए उचित सुरक्षा की जरूरत होतीहै] इसके अलावा छत के आसपास जमा होने से भी रोकना चाहिए।
- फ्लोरोसेंट रोशनी का उपयोग करके मुर्गियों की रोशनी की आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं] क्योंकि दिन के उजाले की अवधि छोटी है] इससे उनके शरीर का तापमान बना रहेगा और उन्हें अतिरिक्त दाना नहीं देना पड़ेगा।
- लीटर@बिछावन:गीले और गंदे बिछावन के कारण मुर्गियों में काक्सिडियोसिस जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं] इस समस्या से बचने के लिए] गीली या नमी वाली बिछावन में 2&3 इंच सूखी रेत या चूना डालना चाहिए।
- चूजों को रखने से पहले] सुखे बिछावन को लगभग 5 सेमी मोटी मोटाई में फर्श पर डालना चाहिए। और इसे मध्यम या छोटे कणों के साथ हल्का होनी चाहिए] जिससे नमी को अवशोषित करने और जमीन की नमी से फर्श को बचाने में मदद मिलेगी।
- आदर्श बिछावन में नमी की मात्रा लगभग २५ % से ३० % होनी चाहिए। नमी की मात्रा २० % से कम होने पर बिछावन धूलदार हो जाता है और ४० % से अधिक नमी होने पर यह गीला और जम जाता है।
- आहार नियंत्रण: बरसाती मौसम में मुर्गों की ऊर्जा की मांग बढ़ जाती है] एवं बरसात में मुर्गियों के शरीर में मोल्टिंग होती है] इस समय उच्च वसायुक्त ऊर्जा से भरपूर आहार उपलब्ध कराना आवश्यक है।
- भोजन भण्डारण: बरसात के मौसम में उमस और आर्द्रता के कारण फंगस और कीटाणु मुर्गियों के चारे और दाने में फैल सकते हैं] दाने में 10 % से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए] इससे आहार के सड़ने और कवक और फफूंदी का गंभीर संक्रमण हो सकता है। यह समस्या अधिकतर मूंगफली की खली में होती है] साथ ही मुर्गियों के दाने सुरक्षित स्थान पर रखनी चाहिए।
- दाने को लकड़ी के पाट पर] अथवा दीवारों और फर्श से एक फुट की दूरी पर रखना चाहिए एवं यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फर्श हमेशा सूखा रहे।
- मुर्गियों का और दाना जमीन पर सीधे नहीं रखना चाहिए एवं दस से पंद्रह दिन में मुर्गियों को नया आहार देना चाहिए] न कि बासी दाने।
- जल संरक्षण: फार्म में नमी अधिक होने या पानी निकासी का सही प्रबंधन नहीं होने से पानी कमरे में प्रवेश कर सकता है] जिससे अल्फा टॉक्सिन बी1] बी2] जी1 और जी2 का संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। बी1 सबसे गंभीरहै] इससे अंडे का उत्पादन कम होगा] विकास में देरी] भोजन रूपांतरण ¼एफ सी आर½ में कमी साथ ही मृत्यु दर में वृद्धि होती है ।
- मुर्गियों को समय-समय पर गर्म पानी दें] ताकि वे अधिक खाये और गर्म रहें।
- इस मौसम में चिकन हाउस में आर्द्रता बढ़ जाती है] जिससे स्वच्छ पेयजल की कमी और कोक्सीडियोसिस] ईÛ कोली संक्रमण और अमोनिया संद्रता जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- मच्छर और रोगों से बचाव: बरसात के मौसम में हमें ध्यान देना चाहिए कि मुर्गी बाड़े में उमस और मच्छर] मक्खी] बीमारी और फंगस का प्रकोप कम हो। इस समस्या को दूर करने के लिए मुर्गी फार्ममें फिनाईल और मुर्गी फार्म के बाहर मैलाथियान स्प्रे करें।
- फार्म में प्लास्टिक शीट या पर्दा लगाना चाहिए] ताकि मुर्गियों की बिछावन पर पर्दों से पानी न गिरे] पर्दा जाली से 1.5 फुट की दूरी पर लगाना चाहिए।
- खाली गड्ढों को मिट्टी से भरना चाहिए।
- बरसात से पहले पानी की टंकी को साफ कर लें] फिर उसे भरने के बाद पोटैशियम या ब्लींचिंग पाउडर डालें।
- पानी अक्सर बर्ड फ्लू और अन्य इंफेक्शन को बढ़ा सकता है] इसलिए मुर्गियों को साफ पानी देना चाहिए।
बरसात के मौसम में मुर्गीपालन में होने वाली सामान्य बीमारियाँ
रोग कारक का नाम | रोग का नाम | मृत्यु दर (%) | उत्पादन में हानि (%) | आर्थिक हानि (%) |
विषाणु
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फाउल पॉक्स | 5-50 % | 10-50 % | 5-30 % |
गुम्बोरो | 10-80 % | 10-50 % | 5-40 % | |
रानीखेत | 10-90 % | 10-60 % | 10-50 % | |
एवियन इन्फ्लुएंजा | 26-51% | 5-100 % | 5-80 % | |
जीवाणु
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साल्मोनेला | 5-30 % | 5-40 % | 5-30 % |
इ. कोली | 5-40 % | 5-30 % | 5-20 % | |
फाउल कॉलरा | 10-80 % | 10-50 % | 5-40 % | |
क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज | 5-30 % | 5-40 % | 5-20 % | |
गंगरेनॉस डर्मेटाइटिस | 5-40 % | 5-30 % | 5-20 % | |
क्लोस्ट्रिडियल एन्टेरिटिस | 5-30 % | 5-20 % | 5-15 % | |
कोरइजा | 5-20 % | 5-30 % | 5-20 % | |
अन्य
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मायकोटॉक्सिकोसिस | 10-50 % | 5-30 % | 5-20 % |
कोक्सिडीओसिस | 5-30 % | 5-40 % | 5-30 % | |
कृमि-संक्रमण | 5-20 % | 5-30 % | 5-20 % |
निष्कर्ष
बरसात से पहले ही मुर्गी फार्म में कुछ प्रबंधन कार्य कर लेने से हम मुर्गियों की देखभाल काफी आसानी से कर सकते हैं] इसमें मुर्गी फार्म की मरम्मत] ताजा दाना बनाना] बिछावन] फर्श की मरम्मत] प्लास्टिक के पर्दे लगाना और दवाओं का छिड़काव शामिल हैं, जिससे न केवल मुर्गिया विभिन्न संक्रमण से दूर रहती है अपितु मृत्यु दर एवं आर्थिक नुक्सान होने से भी समय रहते बचा जा सकता है।