ब्लैक बंगाल बकरी : गांव के गरीबों का एटीएम
बकरीपालन रोजगार का एक सशक्त साधन है, झारखंड में बकरीपालन को एटीएम कहा जाता है. क्योंकि इसमे जब भी किसान को जरूरत होती है, वह इसे बेचकर पैसे जुटा लेता है.
बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं आसानी से पाल सकते हैं। मान परिस्थितियों में कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है और चारागाह सिकुड़ रहे हैं। ऐसे में बड़े पालतू पशुओं का पालन ज्यादा मुनाफं का व्यवसाय नहीं है। अत: बकरी जैसा छोटा पशु इस कसौटी पर खरा उतरता है। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता की अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रशिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होने के कारण इसकी आबादी में वृद्धि दर अन्य नस्लों की तुलना में अधिक है। इस जाति के नर बच्चा का मांस काफी स्वादिष्ट होता है तथा खाल भी उत्तम कोटि का होता है। इन्हीं कारणों से ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियाँ मांस उत्पादन हेतु बहुत उपयोगी है। परन्तु इस जाति की बकरियाँ अल्प मात्रा (15-20 किलो ग्राम/वियान) में दूध उत्पादित करती है जो इसके बच्चों के लिए अपर्याप्त है। इसके बच्चों का जन्म के समय औसत् वजन 1.0-1.2 किलो ग्राम ही होता है।
शारीरिक वजन एवं दूध उत्पादन क्षमता कम होने के कारण इस नस्ल की बकरियों से बकरी पालकों को सीमित लाभ ही प्राप्त होता है।इस जाति की बकरियाँ पश्चिम बंगाल, झारखंड, असोम, उत्तरी उड़ीसा एवं बंगाल में पायी जाती है। इसके शरीर पर काला, भूरा तथा सफेद रंग का छोटा रोंआ पाया जाता है। अधिकांश (करीब 80 प्रतिशत) बकरियों में काला रोंआ होता है। यह छोटे कद की होती है वयस्क नर का वजन करीब 18-20 किलो ग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15-18 किलो ग्राम होता है। नर तथा मादा दोनों में 3-4 इंच का आगे की ओर सीधा निकला हुआ सींग पाया जाता है। इसका शरीर गठीला होने के साथ-साथ आगे से पीछे की ओर ज्यादा चौड़ा तथा बीच में अधिक मोटा होता है। इसका कान छोटा, खड़ा एवं आगे की ओर निकला रहता है।
इस नस्ल की प्रजनन क्षमता काफी अच्छी है। औसतन यह 2 वर्ष में 3 बार बच्चा देती है एवं एक वियान में 2-3 बच्चों को जन्म देती है। कुछ बकरियाँ एक वर्ष में दो बार बच्चे पैदा करती है तथा एक बार में 4-4 बच्चे देती है। इस नस्ल की मेमना 8-10 माह की उम्र में वयस्कता प्राप्त कर लेती है तथा औसतन 15-16 माह की उम्र में प्रथम बार बच्चे पैदा करती है।यह गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी उपलब्ध है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बकरियों का महत्वपूर्ण स्थान है। इनसे प्राप्त मांस, दूध, रेशे, चमड़ा एवं खाद के द्वारा किसान न केवल अपनी आमदानी बढ़ाते है। परन्तु भारतीय अर्थव्यवस्था को दृढ़ता प्रदान होती है। बकरियां प्रति वर्ष राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 190 करोड़ डालर का योगदान करती है। जिसमें सर्वाधिक 79.3 प्रतिशत उनके मांस से आता है।
बकरी पालन शेड बनाने का तरीका
बकरी पालन कारोबार को शुरू करने के लिए आपको कहीं भाड़े पर कमरे लेने की जरुरत नहीं है. इस कारोबार को शुरू करने के लिए आप अपने घर ही थोड़ी जगह में शुरू कर सकते हैं. अगर आप चाहे तो इस व्यवसाय को अपने घर के पास बगीचों में झोपड़ी लगाकर भी शुरू कर सकते हैं. जब आपको लगे की अब इस बकरी पालन कारोबार को और बड़ा करना है तब आप एक बड़ा सा फार्म बनाकर इस बकरी पालन बिजनेस को कार्मशियल व्यवसाय में बदल सकते है. लेकिन बकरी पालन की शुरुआत किसानों को सबसे पहले लगभग 5 से 10 के बीच में करनी चाहिए. इससे आपको बकरी पालन में कितना खर्च आता है इसका अनुमान लग जायेगा. और 10 बकरी पालने में कितना खर्चा आएगा इसका भी पता चल जाता है.
बकरी पालन व्यवसाय के लाभ
बकरी पालन व्यापार से एक नहीं बल्कि 3 प्रकार के लाभ होते है.
बकरी का दूध- गाय और भैस के दूध के साथ बकरी का दूध भी काफी फायदेमंद होता है. छोटे बच्चों में प्रोटीन के साथ उनकी ग्रोथ के लिए बकरी का दूध काफी लाभदायक होता है. इसके साथ इसमें फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होती है. इसके साथ ही यह हृदय रोग, सूखा रोग, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना, कोलाइटिस से राहत देना आदि फायदे होते हैं.
बकरी उत्पाद एवं उपयोग-
1- बकरियों से दूध उत्पादनः- भारत वर्ष के कुल दूध उत्पादन में बकरियों से प्राप्त दूध 3 प्रतिशत, 5.4 मिलियन मैट्रिक टन का योगदान है। ग्रामीण अंचलो में मुख्यतः ग्रामीणों द्वारा बकरियों से प्राप्त दूध अपने परिवार के सदस्यों विशेषतया बच्चों में खपत कर लेते है। क्योंकि सामान्यतः गावों में किसान 1-5 तक की बकरियों की ईकाई रखते है।
2- प्राचीन काल से ही बकरी का दूध कई रोगों जैसे- अस्थमा, एग्जीमा पेप्टिक अल्सर और बच्चों के हे ज्वर आदि के उपचार में प्रयुक्त होता आया है।
3- बकरी के दूध में वसा ग्लोब्यूल गाय के दूध की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे होते है। जिसके कारण छोटे बच्चों, रोगी तथा वृद्ध व्यक्तियों में इसके दूध का पाचन आसान होता है।
इसके दूध की रासायनिक संरचना इसके नस्ल, उम्र, मौसम और दूध स्त्रवण की अवस्था एवं पोषण इत्यादि पर निर्भर करता है। विभिन्न पशुओं के दूध की रासायनिक संरचना निम्न तालिका में प्रदर्शित की गयी है।
विभिन्न पशुओं के दूध की संरचना
क्र.स. | पशु | जल | प्रोटीन | वसा | राख | कुल ठोस | लेक्टोज |
1 | मनुष्य | 87.5 | 1.0 | 4.4 | 0.2 | 12.7 | 7.0 |
2 | गाय | 87.2 | 3.5 | 3.7 | 0.7 | 12.0 | 4.9 |
3 | भैंस | 83.0 | 3.8 | 7.4 | 0.8 | 17.0 | 4.9 |
4 | बकरी | 86.5 | 3.6 | 4.0 | 0.8 | 13.5 | 5.1 |
5 | भेड़ | 80.1 | 5.8 | 8.2 | 0.9 | 19.9 | 4.8 |
6 | ऊॅंट | 87.2 | 3.7 | 4.2 | 0.7 | 12.8 | 4.1 |
बकरियों से मांस उत्पादन- भारत वर्ष में मुख्यतः बकरी पालन मांस उत्पादन (9.4 लाख टन) के लिए किया जाता है। क्योंकि बकरी का मांस सभी राज्यों, वर्गों और धर्मों के लोग द्वारा बिना किसी भेदभाव से खाया जाता है। बकरी का मांस चेवोन कहलाता है। भारत में बकरी का ताजा मांस अपेक्षाकृत अधिक पसंद किया जाता है। और इसकें मांस से बनने वाले विभिन्न उत्पाद बहुत कम मात्रा में बनाये और उपयोग में लिए जाते है।
बकरियों की विभिन्न नस्लों द्वारा मांस उत्पादन-
क्र.स. | नस्ल | औसत भार (किलोग्राम) | |||
जन्म | 3 महीन | 6 महीन | 12 महीन | ||
1 | जमुनापारी | 3.06 | 10.94 | 14.06 | 26.86 |
2 | बीटल | 3.03 | 8.49 | 12.44 | 22.47 |
3 | बारबरी | 1.74 | 7.13 | 10.86 | 18.84 |
4 | सिरोही | 2.74 | 9.78 | 13.49 | 21.02 |
5 | ब्लैक बंगाल | 1.33 | 4.71 | 6.81 | 12.08 |
क्र.स. | नस्ल | 1 वर्ष की उम्र में मांस उत्पादन | ||
मांस प्राप्त(कि.ग्रा) | डेऱसिंग प्रतिशत | मांस हड्डी का अनुपात | ||
1 | जमुनापारी | 10.39 | 46.16 | 80.00:19.52 |
2 | बीटल | 9.38 | 46.15 | 76.72:23.21 |
3 | बारबरी | 10.55 | 49.88 | 83.08:16.52 |
4 | ब्लैक बंगाल | 5.17 | 44.62 | 86.08:13.42 |
बकरियों से खाद उत्पादन-
बकरी के खाद में गाय और भैंस से प्राप्त खाद की तुलना में नाइट्रोजन, पोटैशियम एवं फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है। सामान्यतः एक बकरी प्रतिदिन अपने शारीरिक भार का 1-2 प्रतिशत तक शुष्क खाद प्रदान करती है। इस प्रकार 25 किलोग्राम की बकरी से लगभग 250 से 500 ग्राम खाद मिलत है। इसके खाद में नमी 40-60%, नाइट्रोजन 1.1-3.0%, फास्फोरस 0.2-0.8% और पोटेषियम 0.4-0.8% होती है। इसकी खाद भूमि की उर्वरता वृद्धि में बहुत आवश्यक होती है।
बकरियों से रेशा उत्पादन-
पश्मीना एवं मोहैर दो अत्यधिक कीमती रेशे क्रमशः बकरियों के पश्मीना नस्ल एवं अंगोरा नस्ल की बकरियों से प्राप्त होती है। पश्मीना एवं अंगोरा दोनों नस्ल की बकरिया भारत के पर्वतीय स्थलों पर ही पायी जाती है। और वही पर्वतीय जलवायु ही इनके पालने के लिये उपयुक्त होती है।
अन्य उत्पादन-
इनके अलावा बकरियों से चमड़ा, आंत्र, खुर सींग, पित्त गुर्दा, हृदय आदि प्राप्त होते है। इसकी हड्डियों से जिलेटिन बनाई जाती है इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों के बनाने में लायी जाती है।
बकरी पालन से खाद उत्पादन- अगर आप बड़े पैमने पर बकरी पालन करेंगे तो आप इनके खाद को भी अपने खेतों में डाल सकते हैं या इनको बेच भी सकते हैं.और कहीं-कहीं देखा जाता है की बहुत से किसान अपने खेतों में देशी खाद के लिए बकरियों के झुण्ड को अपने खेतों में रात के समय बकरी पालक से रखने को कहते हैं. जिससे रात को बकरियों द्वारा किया गया मल-मूत्र खाद के काम आता है और इसके बदले बकरी पालक को एक रात के 500 से 700 रुपये की कमाई होती है.
बकरी के मांस- देसी बकरी के मीट की डिमांड भारतीय बाजार में सबसे अधिक है. बकरी पालन से सबसे अधिक लाभ मीट से ही होता है, यदि आप बकरी पालन करते हैं तो आपको इनको बेचने के लिए कहीं भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी बल्कि मीट की दुकान चलाने वाले आपसे खुद ही संपर्क करके आपसे खरीदने आयेंगे. और बकरे की हाईट के हिसाब से 10 से 12 हजार रूपये में खरीदते हैं.
बकरी पालन लोन
किसानों के विकास के लिए सरकार समय-समय पर सब्सिडी जैसी योजनायें लाती रहती है. और ऐसे में सरकार बकरी पालक किसानों के लिए बकरी पालन व्यवसाय योजना के तहत 90% तक सब्सिडी दे रही है. यहाँ हम आपको बता दें की हरियाणा सरकार राज्य के पशुपालकों को 90 प्रतिशत तक सब्सिडी देने का प्रावधान किया है. ऐसे में अगर कोई किसान बकरी पालन शुरू करने की सोच रहे हैं और उनके पास पैसे नहीं हैं तो आप बैंकों से लोन लेकर बकरी पालन व्यवसाय शुरू कर सकते हैं.
बकरी पालन में कितना खर्च आता है
बकरी पालन व्यवसाय शुरू करने के लिए आपको बकरियों को रखने के लिए सबसे पहले किसी बगीचे के आसपास एक अच्छे स्थान का चयन करना होगा ताकि गर्मियों के मौसम में दिक्कतों का सामना ना करना पड़े. इसके बाद इनको पानी पिलाने के लिए भी ब्यवस्था करनी होगी, यानि कुल मिलाकर आपको स्थान और पानी की ब्यवस्था पहले आपको करनी होगी.
उसके बाद अब बात आती है इनके चारे की इसके लिए आप यदि चाहें तो इनको सुबह के समय और शाम के समय किसी मैदानी इलाके में छोड़कर चारा खिला सके हैं. या फिर अगर आपके आस-पास मैदानी इलाके नहीं हैं तो आप अपने घर पर ही चारे की ब्यवस्था करके इनको डाल सकते हैं.
बकरी पालन कारोबार से दूध, देशी खाद और मांस को लेकर बकरी पालक बहुत कमाई हो जाती है. और यदि इसके मांस की बात करें तो मार्केट में इसके मांस की कीमत 500 रुपये से लेकर 650 रुपये किलो बिकती है. इसलिए अगर कोई भी इच्छुक किसान या ब्यक्ति बकरी गांव में पालते हैं तो भी desi bakri palan से काफी मोटी पैसा कमा सकते हैं. और इसमें आने वाले खर्चे की बात करें तो आप 5 या 10 छोटी बकरियों को प्रति बकरी 5 हजार रूपये में खरीदकर कर सकते हैं.
बकरी पालन से कमाई
बकरी पालन उद्योग काफी फायदे वाला कारोबार है. इस बिजनेस में लगने वाले लागत की अपेच्छा बकरी पालन से कमाई काफी अधिक होती है. इसके एक बकरे की कीमत उनके वजन के हिसाब से 10000 से लेकर 15000 हजार रुपये होती है. इस व्यवसाय में दूसरा कमाई का कारण यह है की ये एक वर्ष में दो बार बच्चे देतीं हैं. इसलिए अगर बकरी पालन का कारोबार किसान करते हैं तो इससे उनको एक्स्ट्रा इनकम हो सकती है. यह एक ऐसा बिजनेस है जो खेतीबाड़ी के साथ भी बहुत आसानी से किया जा सकता है.
बकरी को खाने में क्या देना चाहिए
अगर आपके आस-पास बकरियों चराने के लिए मैदान है तो आपको इनके खाने के लिए चारे की चिंता नहीं होती है. लेकिन यदि आप घर पर ही बकरियों की पूरी ब्यवस्था करते हैं तो आपको इन्हें खाने में हरी घास, दूब, आम की पत्तियां, महुआ की पत्तियां, खेतों से निकाले गए फसलें, और अरहर, सरसों, चना की भूसी, गेहूं का भूसा ये सब चारे के रूप में दे सकते हैं.
बकरी का वजन कैसे बढ़ाएं
देसी बकरी की कीमत हमेशा महंगी ही होती है. इससे अधिक पैसे कमाने के लिए इनकी वजन भी भरी होनी चाहिए. इसलिए बकरी का बजन बढ़ाने के लिए इनकों सूखे चारा जैसे- गेहूं का भूसा बहुत ही अच्छा मन जाता है. गेहूं के सूखे भूसे में हल्की पानी मिलाकर इसमें गेहूं के आटे के चोकर या चना, अरहर की भूसी गेहूं के कुछ दाने मिलाने से बकरियां इन्हें बहुत चाव से खाती हैं और इससे इनका वजन तेजी से बढ़ता है.
FAQ.
Q1. बकरी पालन में कितना फायदा होता है?
ANS. इस बिजनेस में लगने वाले लागत की अपेच्छा बकरी पालन से कमाई काफी अधिक होती है. इसके एक बकरे की कीमत उनके वजन के हिसाब से 10000 से लेकर 15000 हजार रुपये होती है.
Q2. एक बकरी की आयु कितनी होती है?
ANS. 12 से 15 वर्ष.
Q3. बकरी कितने दिन में बच्चे को जन्म देती है?
ANS. बकरियां 6 महीने में एक बार यानि 1 साल में 2 बार बच्चे को जन्म देती हैं.
Q4. बकरी को बच्चा देने के बाद क्या खिलाए?
ANS. बकरी को बच्चा देने के बाद उसके बच्छे को केवल बकरी की दूध पिलायें और बकरी को 1 सप्ताह तक सुखी चारा खिलाना चाहिए.
Q5. बकरी को गेहूं खिलाने से क्या होता है?
ANS. बकरी को गेहूं खिलाने से दूध बढती है, इनकी आयु बढ़ती है तथा इनका वजन भी बढ़ता है.
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डॉ राजेश कुमार सिंह, प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी, बहरागोड़ा, पूर्वी सिंहभूम
डॉ आरती विना एका
कृषि वैज्ञानिक -सह- निदेशक ,कृषि विज्ञान केंद्र, दारिसाई ,पूर्वी सिंहभूम
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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