‘ एक धरती एक स्वास्थ्य ‘ के दृष्टिकोण को साकार करने में पशु चिकित्सकों तथा पशुपालकों की भूमिका

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एक धरती एक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को साकार करने में पशु चिकित्सकों तथा पशुपालकों की भूमिका

डॉ. जयंत भारद्वाज ,

शोधछात्र ,

पशु विकृति विज्ञान विभाग ,

पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय , जबलपुर (म. प्र.) I

सारांश : धरती पर उपस्थित सभी प्राणी एक – दूसरे पर निर्भर रहते हैं I ऐसे में आवश्यकता है कि सभी के स्वास्थ्य को एक साथ ध्यान में रखा जाये I इसके लिए पशु चिकित्सक एवं पशुपालकों की भागीदारी काफी महत्वपूर्ण है I जैसे कि प्राणी जन्य रोग , संक्रमित पशु उत्पादों से फैलने वाले रोग , जंगली पशुओं का पालतू पशुओं पर हमला करना , जंगली पशुओं के रोगों का पालतू पशुओं में फैलना , पशु पालन एवं उत्पादन , गोबर गैस बनाना और न जाने कितनी ही समस्याओं का निदान पशुचिकित्सक एवं पशुपालक की भूमिका से ही संभव है I

मुख्य शब्द : धरती , चक्र , संक्रामक , पशुचिकित्सक , पशुपालक , स्वास्थ्य I

धरती को माँ का दर्ज़ा यूँ ही नहीं दिया गया है I धरती माँ के समान ही उस पर उपस्थित सभी जीवों का पालन पोषण करती है I धरती पर उपस्थित सभी सजीव और निर्जीव किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं I यही तो कारण है विभिन्न जैव – भू – रासायनिक चक्रों का , जैसे कि जल चक्र, ऑक्सीजन चक्र, कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, सल्फर चक्र, फॉस्फोरस चक्र इत्यादि I किसी एक स्तर पर भी अगर किसी चक्र में समस्या आती है तो वह पूरा का पूरा चक्र ही असंतुलित हो जाता है I उदाहरणतः खाद्य श्रृंख्ला में अगर निचले स्तर पर पौधे खत्म हो जाएं, तो उच्च श्रृंख्ला वाले जीव भी जीवित न बचेंगे I इसी कारणवश आज आवश्यकता है कि हम धरती के सभी घटकों के स्वास्थ्य को एक साथ लेकर आगे बढ़ें जिससे सम्पूर्ण धरती ही सुखमय हो सके I इसलिए ही आज के समय में ‘ एक धरती एक स्वास्थ्य ’ की अवधारणा इतनी प्रचलित हो रही है I इस दृष्टिकोण को साकार करने में पशु चिकित्सक तथा पशुपालक अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं I

कहा जाता है कि लगभग 60% ज्ञात संक्रामक रोग और 75% तक नए/उभरते हुए संक्रामक रोग प्राणीजन्य हैं अर्थात ऐसे रोग पशुओं से मानवों में एवं मानवों से पशुओं में फैलते हैं I ऐसे रोगों की रोकथाम बिना पशुचिकित्सक के संभव नहीं है I ऐसे रोगों को रोकने के लिए आवश्यकता है कि पशुपालकों को इन रोगों से सम्बंधित सामान्य जानकारी देवें ताकि पशुपालक पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार उचित कदम उठा सकें I प्राणीजन्य रोगों की पहचान शीघ्र अति शीघ्र पशु चिकित्सक द्वारा की जानी चाहिए जिससे सही समय पर पशुओं का उचित उपचार किया जा सके और रोग को अन्य पशुओं और मानवों में फैलने से रोका जा सके I

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पशु उत्पादों का आहार के रूप में सेवन किया जाता है I यदि पशु ही रोग ग्रस्त होगा तो उसका मांस व अन्य उत्पाद भी संक्रमित होंगे I परिणामतः जो भी उस मांस या अन्य किसी उत्पाद का भक्षण करेगा वह भी रोगी हो सकता है I ऐसे में पशु चिकित्सक बूचड़खानों में इस बात का ध्यान रखेंगे कि किसी भी ऐसे पशु को सेवन के लिए न मारा जाये जो कि दिखने में रोगी हो I कुछ पशु ऐसे भी हो सकते है जो बाहर से तो स्वस्थ दिखते हों परन्तु अंदर से रोगी हों I ऐसे पशुओं के मांस का परीक्षण कर ख़राब मांस को उपयोग में नहीं लेना चाहिए I

आज के दौर में हर जगह मिलावट ही मिलावट नज़र आती है I बढ़ती जनसँख्या का भरण पोषण करने में अकेली कृषि समर्थ नहीं है I ऐसे में पशु उत्पाद की महत्ता बढ़ जाती है I परन्तु कम पशु उत्पादन और अधिक मांग के कारण कुछ लालची लोग पशु उत्पादों में मिलावट कर बेचते हैं I ऐसे उत्पाद मानवों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत ही हानिकारक होते हैं I बढ़ती महंगाई के कारण कुछ गरीब लोग दो जून की रोटी जुटाने में असमर्थ हैं I ऐसे में वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं I अतः पशु चिकित्सक को चाहिए कि वो पशुपालकों को पशुपालन की ऐसी तकनीकें बताये जिससे पशु उत्पादन बढे और मिलावट खोरी तथा कुपोषण से आम जनता को छुटकारा मिले I

पशु को उचित मात्रा में राशन देना, कब क्या देना है और कब क्या नहीं देना है ये समझाना, सही नस्ल का चुनाव करना इत्यादि की जानकारी पशुपालकों को देनी होगी I पशुपालकों को समझाना होगा कि जब भी किसी नए पशु को समूह में शामिल करें तो उसे उचित समय तक पशुओं से दूर रखें और बीमार होने पर पशुओं को अलग रखें I

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पशुशाला से उत्सर्जित मल – मूत्र इत्यादि पदार्थ वातावरण में मिलकर वातावरण को दूषित कर देते हैं जिससे मानवों और वृक्षों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है I इधर – उधर फैला गोबर वातावरण में दुर्गन्ध फैला देता है I साथ ही यहाँ कई प्रकार के मक्खी, मच्छर इत्यादि कीटों के पनपने का भी खतरा बना रहता है I अतः पशुचिकित्सक को चाहिए कि वो पशुपालकों को गोबर गैस के उत्पादन के लिए प्रेरित करें , जिससे वातावरण शुद्ध होगा, खाद मिलेगी और जैविक खेती की जा सकेगी I साथ ही पशुपालन भी जैविक तरीके से किया जायेगा I

आजकल प्राकृतिक जंगल घट रहे हैं और कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं ऐसे में मानव प्रजाति धीरे – धीरे जंगली पशुओं के निकट पहुँचती जा रही है परिणामतः पशु मानव मुठभेड़ देखने को मिलती है I इससे मानवों को और पालतू पशुओं को जान का नुकसान भी झेलना पड़ता है I ऐसे में पशुचिकित्सक को चाहिए कि वो सम्बंधित जिम्मेदार लोगों को अवगत कराये कि किन कारणों से ऐसा हो रहा है तथा इसके रोकथाम के लिए क्या प्रभावी कदम उठाये जा सकते हैं I साथ ही जंगली पशुओं के हमले से कैसे अपने पालतू पशुओं को बचाया जाये ये भी पशुपालक को बताएं जिससे पशुपालक आर्थिक नुकसान से बच सके I

जंगली पशुओं का मानव बस्तियों में लगातार अतिक्रमण कई बीमारियों को भी पालतू पशुओं और मानवों में फैलाने का कारण बनता है I ऐसे में पशु चिकित्सक को चाहिए कि वो इस बात का अध्ययन करें कि कौन से क्षेत्र में कौन से जंगली पशु हैं , कौन से रोग हैं और उनमे से कौन से रोग मानव और पालतू पशुओं में फ़ैल सकते हैं I साथ ही यदि ये रोग हो जाएं तो इनके लक्षण क्या होंगे एवं निदान कैसे होगा I इसके साथ ही ऐसे रोगों की रोकथाम कैसे संभव है तथा इनसे सम्बंधित सामान्य जानकारी उस अंचल के पशुपालकों को देवें I

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हम जानते हैं कि जुगाली करने वाले पशुओं से मीथेन गैस निकलती है जो कि प्रदूषण का कारण है I ऐसे में पशु चिकित्सक को चाहिए कि वो ऐसी तकनीकें विकसित करे जो कि मीथेन गैस से होने वाले प्रदूषण को रोक सकें I जैसे कि ऐसी मोहरी विकसित की जाए जिसे पशु के मुँह पर लगाने से उसकी नासिका से निकलने वाली मीथेन गैस का ऑक्सीकरण हो सके और वायु प्रदूषण नहीं फैले I

विश्व भर में पशुओं की संख्या में भारत प्रथम स्थान पर है I हमारे यहाँ आज भी कई ग्रामीण अंचलों में पशु बाहर चरागाह में चरने जाते हैं I अधिक पशु वहां जल्दी ही घास ख़त्म कर देते हैं जिसे उगने में समय लगता है I घास न मिलने पर पशु जहरीले पौधों का सेवन कर सकते हैं जो कि उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा I अतः पशुपालकों को चाहिए कि चारागाह को कुछ हिस्सों में विभाजित कर दें और एक बार में पशुओं को सिर्फ एक ही हिस्से में चरने दिया जाये जिससे अन्य हिस्से में घास को उगने का समय मिल सके I ऐसा करने से ही प्रकृति में संतुलन बना रह सकता है I

उपर्युक्त विभिन्न उदाहरणों के आधार पर हम पूर्णतः यह कह सकते हैं कि हाँ सच में ‘ एक धरती एक स्वास्थ्य ‘ के दृष्टिकोण को साकार करने में पशु चिकित्सकों तथा पशुपालकों की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है I

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