फसल कटाई उपरान्त मशीनों द्वारा पराली का प्रबंधन
देश के किसनों के सामने पराली प्रबंधन एक बड़ी समस्या बन गई है। कई क्षेत्रों में किसान पराली से छुटकारा पाने के लिए उसे खेत में ही जला दिया करते हैं। जिससे प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए सरकार के द्वारा पराली जलाने पर रोक लगा दी गई है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर पराली से निजात कैसे पाएं? इसका जवाब है आधुक मशीने। इन दिनों बाजार में कई तरह की मशीनें उपलब्ध हैं जिनकी मदद से आसानी से पराली से छुटकारा पाया जा सकता है।
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में फसल के अवशेषों को जलाना, पर्यावरण प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में भी योगदान देता है। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस द्विवार्षिक गंभीर खतरा से निपटने के लिए सख्त उपाय करने के लिए दिल्ली सरकार और इन चार उत्तरी राज्यों को निर्देश दिए हैं।
उपरोक्त के संदर्भ में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने भी समय-समय पर राज्य सरकारों को advisory जारी की गई है कि वे पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों के बारे में किसानों मे जागरूकता पैदा करें।
ज़ीरो टिल, सिड ड्रिल, हैप्पी सीडर, स्ट्रॉ बेलर, रोटावेटर, पैड़ी स्टॉ चोपर (मल्चर), रेक, स्ट्रॉ रिपर, श्रेडर जैसे अवशेष प्रबंधन मशीनों और उपकरणों को कस्टम हायरिंग सेंटर या ग्राम स्तरीय फार्म मशीनरी बैंकों के माध्यम से किसानों द्वारा उपयोग के लिए उपलब्ध करें।
राज्य सरकारों को यह भी बताया गया कि कृषि यंत्रीकरण पर उप-मिशन के अंतर्गत नयी तकनीक एवम मशीनों के प्रदर्शन हेतु उपलब्ध राशि में से 4000 रुपये प्रति हेक्टेयर की राशि का उपयोग फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के किसानों के खेत पर प्रदर्शन हेतु करे।
पराली का मशीनों द्वारा प्रबंधन
पराली का मशीनों द्वारा प्रबंधन