भैंस के नवजात बच्चों का रख रखाव

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भैंस के नवजात बच्चों का रख रखाव

भैंस के नवजात बच्चों का रख रखाव

डॉ. मौसमी यादव एवं डॉ. मनोज यादव, पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ

पशुधन विकास विभाग, छत्तीसगढ़

किसान भाईयों भारत के विभिन्न प्रांतों में भैंस के नवजात बच्चों के लिऐ अलग अलग शब्दावली का प्रयोग किया जाता है जैसे पडडे-पडिडया, कटड़े-कटड़ियो या पड़वा या पड़िया। हम आपको वैज्ञानिक पद्धति द्वारा नवजात पडडे एवं पडिडयो के रख रखाव पर जानकारी दे रहे है। दुग्ध व्यवसाय में नवजात पडडे एवं पडिडयो का उचित प्रबन्धन बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकतर नवजात पडडे पडिडयो की मृत्यु 1-3 महीने की आयु में हो जाती है, विषेशतौर पर जन्म से लेकर 15 दिन की आयु के पडडे-पडिडयों में मृत्यु- दर अधिक होती है। ऐसा पाया गया है कि जिन पडडे-पडिडयों का भार जन्म के समय 20 कि.ग्रा. से कम होता है उनमें मत्यु दर भी अधिक होती है। स्वस्थ पडडे एवं पडिडयां प्राप्त करने हेतु यह आवश्यक है कि मादा पशु को एक स्वस्थ्य एवं उचित शारीरिक भार वाले सांड से ही गाभिन कराया जाये, गाभिन पशु को उचित प्राशन दिया जाये एवं नवजात को जन्म के तुरन्त बाद खीश पिलाया जाये। हमें आशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि सभी किसान भाई इस वार्ता से लाभान्वित होंगें। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि नवजात पशु के जन्म के पहले एवं तुरन्त बाद किसान क्या करें – 1. गर्भित पशु का दुग्ध दोहन ब्याने के दो माह पूर्व हो बंद कर दें ताकि भ्रूण का विकास अच्छा हो एवं नवजात स्वस्थ पैदा हो। 2. गर्भाधान कराने से पहले मादा पषु को अन्तः परजीवी नाषक औषधी देनी चाहिये। ऐसा करने से माॅ द्वारा बच्चों के पेट में कीडों का प्रवेश रूक जाता है। 3. गर्भकाल के दौरान मादा पशु को आवश्यकतानुसार पोषक आहार खिलाए विषेशकर गर्भकाल के अन्तिम दो महीनों में पोषक आहार के साथ पशु को प्रतिदिन 50 ग्राम खनिज मिश्रण, अवश्य दें। 4. नवजात पशु के जन्म के समय जब नवजात योनि से बाहर निकलता है, तो उसे टोकरे आदि में संभाल ले ताकि वो यकायक जमीन पर गिरकर चोट आदि से ग्रसित न हो। 5. जन्म के तुरन्त बाद नवजात पषु की नाल को उसके शरीर से एक इंच की दूरी पर स्वच्छ धागे से गाॅठ लगा दे। तत्पश्चात गाॅठ के आगे से नये ब्लेड, अथवा संक्रमण रहित कैची से नाल को काट दे । कटे हुए भाग को रोगाणुशोधक अर्थात एन्टीबायोटिक एवं एंन्टीसेप्टिक औषधि जैसे टिंचर आयोडीन, डिटोल, सेवलोन, लाल दवा इत्यादि से उपचारित करें। 6. नवजात पडडे पडिडयों के शरीर को जन्म के तुरन्त बाद साफ कपड़े से साफ करे उसके कान, नाक, नथुने, मुह इत्यादि से ष्लेषमा को निकाल दे। वैसे मादा पषु अपने नवजात पडडे- पडिडयों को चाटकर भी अच्छी तरह साफ कर देती है। इन प्रक्रियाओं से नवजात पशुओं में रक्त संचार सुचारू रूप से होने लगता है। यदि नवजात पडडे-पडिडयों को सांस लेने में कठिनाई आ रही हो तो पषुपालक को खुद अपने मुॅह से बछड़े के मुॅह में हवा डालनी चाहिये। इसके अलावा नवजात पशु को पिछली दोनों टाॅगों से झटके के साथ उल्टा उठाना भी फायदेमंद होता है। परन्तु ध्यान रखे कि ऐसा करते समय नवजात पशु फिसल कर जमीन पर न गिरे। 8. जन्म के 15 मिनट बाद से लेकर आधे घंटे के अंदर ही नवजात को खीस अवश्य पिलाए। खीस की मात्रा नवजात के शरीर भार का 10 प्रतिशत होना चाहिये। 9. नवजात को ठण्डी हवा और खराब मौसम से बचाने के लिये उनके बांधने के स्थान पर पुआल आदि बिछायें, उन्हें हवादार जगह में रखे तथा मच्छर-मक्खी से बचाव का प्रबंध रखे। अक्सर किसान भाई नवजात पशु की नाल को खुला छोड. देते है, जिसके कारण संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ब्याने के बाद , बतायी गयी सावधानियों को अपनाने से पशु को संक्रमण व बीमारियों से बचाया जा सकता है। आशा करते है कि आप भी इन बातों को अपनाकर नवजात पडडे -पडिड्यो को स्वस्थ रख पायेंगे।

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धन्यवाद

नवजात एवं छोटे बछड़ो की देखभाल एवं प्रबन्धन

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