दूब घास चारा – पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा

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दूब घास चारा – पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा

दूब घास पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा

नमस्कार किसान भाईयों, दूब घास चारा एक बहुवर्षीय घास है. इसका चारा सभी घासों के चारे से पौष्टिक और अच्छा माना जाता है. इसको खाने से पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. साथ ही दूध उत्पादन भी बढ़ जाता है. इसलिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख से दूब घास चारा की पूरी जानकारी देगा-

दूब घास चारा के फायदे 

दूब एक मूल्यवान चारे वाली घास है. तथा भारत में मुख्य रूप से पशुओं को चारे जाती है. इस घास को गाय, भैंस, भेड़, बकरियां व घोड़े बड़े चाव से खाते है. इस घास का चारा काफी स्वादिष्ट, कोमल व पौष्टिक माना जाता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक तथा कड़े रेशे की मात्रा कम होती है. इसके चारे में 10.4 से 11.1 प्रतिशत प्रोटीन, ईथर निष्कर्ष 1.8 प्रतिशत, रेशा 28.2 से 18.4 प्रतिशत, राख 11.8 प्रतिशत, नाइट्रोजन रहित निष्कर्ष 47.8 प्रतिशत, कैल्सियम 0.77 प्रतिशत, फ़ॉस्फोरस 0.59 प्रतिशत, पोटाश 2.08 प्रतिशत आदि पाए जाते है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

दूब घास का वानस्पतिक नाम साइनोडॉन डैक्टिलान (Cynodon dactylon) है. इसकी उत्पत्ति स्थान भारत माना जाता है. जहाँ से इसको उन्नीसवी सदी के प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका ले जाया गया.  यह भूसंरक्षण तथा चारगाह के लिए एक अच्छी घास मानी जाती है. भारत में इस घास को पाला रहित भागों में उगाया जाता है. दूब घास उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों एवं पहाड़ी भागों, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार तथा भारत के अन्य भागों में भी उगाई जाती है.

जलवायु एवं भूमि 

दूब घास समुद्र तल की ऊंचाई से लेकर 2130 मीटर की ऊंचाई तक उगती है. यह घास बलुई दोमट या दोमट भूमि पर सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. वैसे तो यह घास बलुई या दोमट भूमि में भी उगाई जा सकती है. परन्तु इसके उगाने में काफी सावधानी की आवश्यकता पड़ती है. यह घास क्षारीय भूमि पर भी उगाई जा सकती है. इसकी सबसे अच्छी वृध्दि 6 से 6.5 पी० एच० मान पर होती है. अधिक अम्लीय या क्षारीय भूमि पर उगाने से चारे की पैदावार कम हो जाती है.

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फसल चक्र 

यह एक बहुवर्षीय घास है. एक बार बुवाई करने के बाद कई वर्ष तक बिना किसी समस्या के खेत में अपने आप उगती है. इससे लगभग पूरे साल हरा चारा प्राप्त होता रहता है. चरागाह के लिए या एक उपयुक्त घास मानी जाती है. जिस खेत में इसे उगाया जाता है, उसमें कई वर्षों तक किसी अन्य फसल को नही उगाया जा सकता है.

उन्नत किस्में 

इसकी सबसे महत्वपूर्ण उन्नत संकर किस्म “कोस्टल बर्मूडा” के नाम से प्रसिध्द है. यह जार्जिया (संयुक्त राज्य अमेरिका) के टिफ्टन स्थान की टिफ्ट जाति और एक ऊँची बढ़ने वाली बरमूडा घास के संकरण से विकसित हुई है. इसकी पत्तियां तथा तने लम्बे और हरे होते है. यह रोग रोधी संकर किस्में है. इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक पायी जाती है. दूब घास की दूसरी उन्नत किस्म का नाम ग्रीनफील्ड, डूमांट, चैम्बरलेन और ए० के० 37 है.

खेत की तैयारी  

चूंकि दूब घास एक बहुवर्षीय घास है. अतः खेत की तैयारी करना अति आवश्यक है. खेत में जुताई एवं हैरो द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण करना आवश्यक है. अच्छी प्रकार से तैयार खेत में इसकी बुवाई करनी चाहिए.

अच्छे उत्पादन के लिए दूब के ताजे टुकडे लगाना आवश्यक है. इसके लिए घास की नर्सरी बलुई भूमि में लगानी चाहिए. एक एकड़ नर्सरी में लगभग 40 से 60 एकड़ के लिए अच्छे जड़दार टुकडे पैदा हो सकते है. नर्सरी में टुकड़े 45 से 50 सेमी० की दूरी पर कतारों में लगाते है. एक कतार घास को लगाने की दूरी 30 से 45 सेमी० तक बढाकर रखी जाती है. इस प्रकार 1,200 किलोग्राम जड़दार टुकड़ों की आवश्यकता होती है. ऐसे में एक हेक्टेयर नर्सरी से 40 से 60 हेक्टेयर क्षेत्र में यह घास लगाई जा सकती है.

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खेत में लगाने के लिए दूब घास के टुकड़े खुरपी, फावड़े या टैक्टर द्वारा निकाले जा सकते है. टैक्टर से डिस्क हैरो दोनों तरफ से चलाकर घास से छोटे-छोटे टुकड़े निकाल देना चाहिए. इस घास की रोपाई इन टुकड़ों द्वारा आसानी से की जा सकती है.

बुवाई 

दूब घास की बुवाई का सबसे अच्छा समय बरसात का प्रारंभ या बसंत ऋतु है. परन्तु बसंत ऋतु में इसकी बुवाई करने के लिए सिंचाई का उचित प्रबन्धन होना आवश्यक है. इसकी बुवाई के लिए 1 से 1.25 मीटर की दूरी पर लाइने बनातें है. इस प्रकार से बनी लाइनो में घास लगाना चाहिए. इसके लिए 9 से 12 कुंटल टुकड़े पर्याप्त होते है. बुवाई करते समय इस बात का ध्यान रहे कि टुकड़े एक दुसरे से कम से कम 30 से 50 सेमी० के अंतर पर होने चाहिए. प्रत्येक टुकड़े लगाने के पश्चात उसके चारों तरफ की मिट्टी को सख्त बनाना आवश्यक है. यदि भूमि में नमी हो तो बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता नही है.

खाद एवं उर्वरक 

इस घास की अच्छी वृध्दि के लिए खाद की अधिक आवश्यकता पड़ती है. नाइट्रोजन युक्त खादों से पैदावार में वृध्दि के साथ-साथ चारे में भी वृध्दि पाई जाती है. पोटाश देने से पौधों में कम तापमान सहने की बढती है. इसके लिए औसतन 100 से 200 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 से 45 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है. हर कटाई के पश्चात कम से कम 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन अवश्य देना चाहिए.

सिंचाई एवं जल निकास 

दूब घास की अच्छी पैदावार के लिए खेत से जल निकास का समुचित प्रबन्धन होना चाहिए. यदि सिंचाई की उचित सुविधा हो, तो इस घास की उपज तीन गुना बढ़ सकती है. गर्मियों में इसकी सिंचाई 15 दिन के अंतर पर करनी चाहिए. सर्दियों में भी सिंचाई 20 से 25 दिन के अंतर पर करना लाभदायक होता है.

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फसल सुरक्षा 

इस घास में सामान्यता फसल सुरक्षा संबंधी उपायों की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती है.

कटाई-प्रबन्धन एवं उपज 

बुवाई के 3 से साढ़े 3 महीने बाद यह घास कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद प्रत्येक 2 माह बाद इसकी कटाई करनी चाहिए. इसकी पूरे साल में 4 से 5 कटाईयां की जा सकती है. कटाई करते समय 5 से 8 सेमी० ऊँचे तने छोड़ने आवश्यक है. इसी प्रकार चारागाह में इसकी चारे 5 से 8 सेमी० की ऊंचाई तक कराने से पुनर्व्रध्दी अच्छी होती है. इसमें फलीदार फसल फसल मिलाकर बुवाई करने से चारे की पौष्टिकता बढ़ जाती है. इसके साथ ही चारागाह में पशुओं को चराने की क्षमता में भी वृध्दि होती है. नाइट्रोजन के प्रयोग से भी चरागाह की यह क्षमता बढ़ जाती है.

Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

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Source-https://gaonkisan.net

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