शुकर शावकों की देखभाल एवं प्रारंभिक प्रबंधन

0
668
शुकर शावकों की देखभाल एवं प्रारंभिक प्रबंधन

   शुकर शावकों की देखभाल एवं प्रारंभिक प्रबंधन

                            डॉ धर्मेन्द्र कुमार , डॉ नीलम टान्डिया , डॉ अनुराधा नेमा

   कॉलेज ऑफ़ वेटेरिनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी,  रीवा (म.प्र.)

 

जन्म के उपरांत शावकों का उचित देखभाल एवं प्रवंधन उनके जीवित रहने के लिये एक महत्वपूर्ण बिंदु है| एक शोध के अनुसार लगभग १०% शावकों की मृत्यु जन्म के उपरांत लगभग १ महीने में हो जाती है | शावकों की मृत्यु को प्रमुख दो कारकों में बांटा जा सकता है | इसमें लगभग ४९% कारण  माँ का  बच्चों के ऊपर बैठने या लेटना  होता है, जिसके कारण बच्चे कुचल जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है साथ साथ  लगभग ५१% शावक भूख के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | मृत्यु प्राप्त शावकों में से प्रायः ५० प्रतिशत शुकरों के शावको की मृत्यु प्रथम तीन दिन में ही हो जाती है | अतः कृषकों को शावकों के जन्म के  उपरांत उचित एवं गहन देखभाल करना चाहिए |

  • शावकों को तेली / खीज का पान

शुकारों के शावक जन्म से बहुत नाजुक होते है उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमताऐ नगण्य होती है साथ साथ जीवन यापन हेतु उनके शरीर में लगभग २-३ दिन की ऊर्जा एवं वसा ही रहता है इस कारण वश प्रथम दुग्ध जो कि शावक के जन्म के उपरांत एवं २४ घंटे तक माँ की दुग्ध ग्रिथिओ  द्वारा स्त्रावित होता है उसमे ढेर सारे रोग प्रतिरक्षी अवयव होते हैं जो कि शावकों को विभिन्न प्रकार की बिमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है| इस कारण कृषक बंधुओं को यह ध्यान देना चाहिए कि समस्त शावकों को सामान्य रूप से खीज की प्राप्ति हो | जन्म से शावकों को  मूलतः दो भागों में विभक्त कर सकते हैं प्रथम वो शावक जो कि जन्म के १५ मिनट के अन्दर खड़े हो जाते हैं और माँके स्तन तक पहुँच जाते हैं ऐसे शावको को सामान्य एवं मजबूत शावक कहते हैं द्वितीय वो शावक जिन्हें जन्म से अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए लगभग आधे से पौन घंटे लगते हैं इन्हें असामान्य एवं कमजोर शावक की श्रेणी में रखा जाता है | सामान्य शावक माँ के स्तन के अग्र भाग से दूध पीने लगता है जहाँ सबसे ज्यादा दूध का स्त्रावण होता है| इस कारण वश सबसे  अधिक दूध सामान्य एवं मजबूत शावक को मिलता है और  कमजोर एवं  असामान्य शावक दूध से वंचित रह जाता है और काल के ग्रास में समा जाता है | इस कारण वश पशु पालकों को शावक के जन्म के उपरांत शावको को दो भागों में विभक्त करना चाहिए और बारी बारी से दोनों वर्गों को दुग्ध पान करवाना चाहिए  सर्व प्रथम असमान्य एवं तदुपरांत सामान्य शावकों को दुग्ध पान करवाना चाहिए | यह प्रक्रिया बाद के दिनों में भी दोहराई जानी चाहिए | शुकर के गर्भ धारण एवं प्रसव उपरांत शुकर के खान पान का अत्यधिक ध्यान रखना चाहिए जिससे कि पर्याप्त दुग्ध का उत्पादन हो सके और समस्त शावकों को सम्पूर्ण आहार मिल सके |  इस प्रक्रिया द्वारा शावकों की मृत्यु को कम किया जा सकता है |

  • प्रसव बाड़े का तापमान
READ MORE :  Combating African Swine Fever: A Comprehensive Guide to Prevention, Control, and Management

वयस्कों की तरह शावकों में तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है इस कारणवश कमजोर शावकों की मृत्यु ठंड के दिनों में ठंड लगने से हो जाती है | अतः कृषक बंधुओ को शुकर के बाड़े में हीटर, २०० वाट का बल्ब या अलाव जला कर तापमान का उचित प्रबन्ध करना चाहिए |

  • शावकों का एनीमिया से बचाव

शूकर शावक जन्म के उपरांत प्रारंभिक अवस्था में खूनकी कमी के कारण (पिगलेटएनीमिया ) मृत्यु को प्राप्त हो जाते है | इसका मुख्य कारण लोह तत्व  की कमी होना  है | इस कमी को दूर करने के लिए कृषक बन्धुओं को  मादा शूकर के स्तन पर खनिज पदार्थ का लेपन करना चाहिए इसके साथ ही प्रत्येक शावक को  इन्फेरौन का इंजेक्शन १ मि.ली. प्रति शावक की दर से अंतःपेशीय (इंट्रामस्कुलर) लगाना चाहिए |

  • शावकों के दांतों का कर्तन

जन्म से शावकों के जवडो के  चारों कोनों में  दो – दो दांत होते हैं | इन दांतों की कुल संख्यां आठ होती है| यह दांत अत्यंत पैने होते है | जन्म उपरांत दूध के आधिपत्य हेतु ये एक दुसरे से लड़ते हैं और एक दुसरे को बुरी तरह से जख्मी कर देते है जिस कारण कमजोर शावकों की मृत्यु हो जाती है | इससे बचाव हेतु जन्म के तीन दिन के भीतर इन शावको के दांतों का कर्तन किया जाना अति आवश्यक है | कर्तन हेतु दांतों  को  क्लिपर की सहायता से काट देना चाहिए | काटते समय पशु चिकित्सक को यह ध्यान रखना  चाहिए कि क्लीपर  के समनांतर हो और क्लिपर के बीच जीभ या मसूड़े नहीं आना चाहिए |

  • शावक की पूंछ को काटना
READ MORE :  Mastitis, Metritis, Agalactia (MMA)

जन्म उपरांत दो से तीन दिन के अन्दर शावकों की पूछ को काट देना चाहिए | अगर पूंछ को न कटा जाये तो ये एक दुसरे से लड़ते समय पूछ को जख्मी कर देते हैं और इससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है | पूंछ को काटने हेतु लोकल एनेस्थेसिया का उपयोग कर किसी गर्म धार दार औजार का उपयोग करना चाहिए गर्म औजार से खून का रिसाव बंद हो जाता है | पूछ को काटने के  पूर्व एवं काटने के उपरांत  संक्रमण को रोकने के लिए हर मुमकिन प्रयास करना चाहिए | कटे हुए पूँछ पर चार से पांच दिन कोई भी एंटी सेप्टिक मलहम लगाना चाहिए | पूँछ को जड़ से अपने अंगूठे के चौड़ाई के बराबर दूरी से काटना चाहिए |रवड का छल्ला भी उक्त दूरी पर लगाने से कुछ दिन उपरांत पूंछ सूख कर गिर जाती है |

  • शावकों का बधियाकरण

शावको के बधियाकरण हेतु एक से डेड माह की उम्र उचित होती है | इसके लिए शावकों को उनके पिछले पैर से उठा लिया जाता है एवं दो चीरे अंडकोष के दोनों तरफ लगाये जाते है | अंगूठे और तरजनी के दवाव से  वृषण को  अंड कोष से बाहर निकाल दिया जाता है| और खीच कर  अंडकोष से अलग कर दिया जाता है | तदुपरांत कोई भी एंटी बायोटिक का घोल अंडकोष में डाल दिया जाता है  और तीन से चार दिन तक उक्त घाव की ड्रेसिंग की जाती है, जिससे की संक्रमण को रोका जा सके तथा सही समय पर घाव भर जाये|

 सारांश

शूकर पालन के महत्वपूर्ण मापदंड यहीं हैं की सही प्रारंभिक प्रबंधन से ही शूकर पालक शूकर पालन से लाभ ले सकते हैं, तथा अपने आर्थिक स्तर को दिन प्रतिदिन नए आयामों तक ले जा सकते हैं , क्यूंकि शूकर पालन एक ऐसा छेत्र है जो की शूकर पालक को बहुत ही कम समय में आर्थिक उपलब्धि को प्राप्त कर सकता है|

आधुनिक सूकर पालन की पद्धति एवं प्रबंधन

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON