नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों से बदलता भारत का मुर्गीपालन क्षेत्र
डॉ. जयंत भारद्वाज, सहायक प्राध्यापक, पशु विकृति विज्ञान विभाग, महात्मा गाँधी वेटरनरी कॉलेज, भरतपुर ( राजस्थान ) I
सारांश : भारत में कई वर्षों से मुर्गीपालन पारम्परिक ढंग से होता आ रहा है I परन्तु बढ़ती जनसँख्या और मुर्गी उत्पादों की मांग के कारण आज हम भी नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों को अपना चुके हैं, जिससे उत्पादन बढ़ा है, रोग कम हुए हैं और आम जन को लाभ पंहुचा है I
मुख्य शब्द : मुर्गीपालन, क्षेत्र, नवीन, तकनीक, उत्पादन, नस्ल I
भारत के ग्रामीण अंचलों में किसी न किसी घर के आँगन में मुर्गियों की चहल कदमी देखने को मिल ही जाती है I हमारे यहाँ मुर्गीपालन कई वर्षों से पारंपरिक तरीकों से होता आ रहा है I परन्तु समय के साथ – साथ मुर्गीपालन के पारम्परिक तरीके बदलते गए और हम आज अंडा उत्पादन में विश्व में तीसरे पायदान पर हैं और मुर्गी मांस उत्पादन में पांचवे स्थान पर खड़े हैं I बदलते भारत ने खुले दिल से मुर्गीपालन के क्षेत्र में नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों को अपनाया है I यही तो कारण है कि आज मुर्गीपालन घर के आँगन में चार – पांच मुर्गियों के पालने से लेकर एक वृहद् व्यवसाय का रूप ले चुका है I आज जो इलाके इन नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, आवश्यकता है कि शीघ्र अति शीघ्र वे भी इनका लाभ ले पाएं और आजीविका का स्तर बढ़ा पाएं I
मुर्गियों का पालन दो कारणों से किया जाता है – पहला अंडा उत्पादन के लिए और दूसरा मांस के लिए I उत्पादन अधिक हो इसके लिए जरुरी है कि मुर्गी की नस्ल बेहतर हो I दूसरा प्रमुख बिंदु जिस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, वह है पोषण I मुर्गी की नस्ल ऐसी होनी चाहिए जो कि कम दाना – पानी में अधिक उत्पादन करे I उत्पादन के साथ ही अलग – अलग नस्लों में विभिन्न गुण भी होते हैं, जिस हेतु विशेष गुणों वाली नस्ल को पाला जाता है I आज हम नवीन तकनीकों के माध्यम, जैसे कि कृत्रिम गर्भाधान आदि, की सहायता से हर प्रकार की बेहतर नस्ल उत्पादित कर चुके हैं और कम से कम दाने में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं I साथ ही हमें ऐसी तकनीकों को अपनाना होगा जिससे मुर्गियों को आवश्यकता अनुसार ही दाना मिल सके I
पहले के समय में नर और मादा दोनों मुर्गियों का पालन किया जाता था I नर की वृद्धि दर अधिक होती है जिससे मुर्गीपालक को कम लाभ मिलता है I परन्तु आज हम जन्म के उपरांत नर और मादा को अलग कर सकते हैं और सिर्फ मादा मुर्गी को पाल सकते हैं I
पहले मुर्गियों के विभिन्न सामान्य रोगों की जानकारी आमजन को नहीं थी और न ही वे यह जानते थे कि इन रोगों के प्रकोप से मुर्गियों को कैसे बचाया जाये I परन्तु आज आमजन कई जागरूकता अभियान, प्रशिक्षण आदि के माध्यम से न सिर्फ इन रोगों के प्रति जागरूक हुए हैं अपितु वो इन रोगों से अपनी मुर्गियों को बचाने के लिए आसान उपाय भी सीख चुके है I जब भी मुर्गियों में कोई रोग आता है तो आम आदमी सबसे पहले मुर्गी उत्पादों का उपयोग करना बंद कर देता है I वर्ष २०२० में भारत का उत्तरी भाग कौओँ में एवियन इन्फ्लुएंजा के कहर को झेल चुका है, जो कि एवियन इन्फ्लुएंजा विषाणु के एक विशिष्ट स्ट्रेन से होता है और यह मुर्गी और मानव दोनों को ही प्रभावित नहीं करता I परन्तु अफवाहों के कारण उस समय भी भारत के मुर्गीपालकों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा था यदि हम मुर्गियों में उनके रोहों की रोकथाम कर लेवें तो इस प्रकार के आर्थिक नुकसान से बचा जा सकता है
पूर्व में हमारे पास मुर्गियों की कई बीमारियों का टीका उपलब्ध नहीं था I परन्तु आज हमारे पास मुर्गियों की लगभग सभी प्रमुख बीमारियों का टीका उपलब्ध है I ये टीका न सिर्फ बड़े व्यवसायी अपितु सुदूर इलाके के मुर्गीपालकों को भी उपलब्ध हो यह यत्न होना चाहिए I
बड़े – बड़े मुर्गीफार्म में चूँकि मुर्गियों की संख्या अधिक होती है, ऐसे में दाना – पानी देने के लिए ज्यादा लोग भी चाहिए I ज्यादा मजदूर एक ओर जहाँ खर्चा बढ़ाते हैं, वहीँ दूसरी ओर संक्रमण का खतरा भी बढ़ा देते हैं I आज के समय में ऐसी मशीने उपलब्ध हैं जो कि बिना मानव सहायता के प्रत्येक मुर्गी के पिंजड़े में दाना व् पानी उपलब्ध कर देती है I ऐसा करने से समय बचता है, मजदूर खर्च कम होता है और मानव से मुर्गियों में और मुर्गियों से मानवों में संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है I
मुर्गीघर में अमोनिआ गैस सदैव से ही संकट का कारण रही है I यह मुर्गियों में श्वसन रोगों का खतरा बढाती है और उत्पादन को घटाती है I आजकल ऐसी मशीनें उपलब्ध हैं जो कि इस ज़हरीली अमोनिया गैस को अवशोषित कर लेती हैं और मुर्गियों पर उत्पन्न संकट को कम कर देती हैं I
भारत में सरकार, गैर सरकारी संस्थाएं, विभिन्न शोध संस्थान इत्यादि ने मिलकर मुर्गीपालन के क्षेत्र में नवीन तकनीक और कार्यप्रणालियों की सहायता से क्रांति ला दी है I आज आवश्यकता मात्र इतनी है कि इन सभी सुविधाओं का लाभ भारत के आखिरी छोर पर बसे मुर्गीपालक को भी पहुंचाया जाये और इसके लिए भी भारत की सरकार अथक प्रयास कर रही है I अब वो दिन दूर नहीं जब मुर्गीपालन में हम विश्व में सर्वोच्च होंगे और उस दिन ही हम कह सकेंगे कि हाँ सच में भारत की भूमि सुखदाम् वरदाम् भूमि है I
Innovative Technology and Practices Revolutionizing India’s Poultry Farming Sector