पंढरपुरी भैंस की विशेषताएं
पंढरपुरी भैंस पर विस्तार से बात करने से पहले भारत में डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) के बारे में कुछ तथ्य जानें। डेयरी व्यवसाय की बारीकियों को अगर समझ लिया जाए तो ये किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया बन सकता है। दूध और इससे बनने वाले बाई-प्रॉडक्ट्स जैसे दूध, दही, छाछ और पनीर की मांग बाज़ार में हमेशा रहती है। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, देश के 80 करोड़ से ज़्यादा किसान डेयरी क्षेत्र से जुड़े हैं। इसी डेयरी व्यवसाय में भैंसपालन की भी बड़ी भूमिका है। भारत के कुल दुग्ध उत्पादन में 55 प्रतिशत दूध यानी 20 मिलियन टन दूध भैंस पालन से मिलता है।
हमारे देश में भैंस की कई नस्लें पाई जाती हैं और इनमें से पंढरपुरी भैंस काफ़ी मशहूर है। ये नस्ल देश के कई हिस्सों में पाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) में इसका पालन सबसे ज़्यादा होता है। महाराष्ट्र के पंढरपुर, पश्चिम सोलापुर, पूर्व सोलापुर ,बार्शी, अक्कलकोट, सांगोला, मंगलवेड़ा, मिराज, कर्वी, शिरोल और रत्नागिरी जैसी कई जगहें इस नस्ल की भैंसों के लिए जानी जाती हैं। भैंस की इस नस्ल को धारवाड़ी भी कहा जाता है। इस भैंस का नाम पंढरपुर गांव से पड़ा है, जो कि महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले में है।
अगर भैंसों की नस्ल अच्छी होगी तो दूध उत्पादन ज्यादा होगा और किसान की ज्यादा कमाई होगी। आइए भैंस की इस नस्ल के बारे में विस्तार से पढ़ते हैं और जानते हैं कि पंढरपुरी भैंस की क्या-क्या विशेषताएं होती हैं।
पंढरपुरी भैंस को विभिन्न नामों से जाना जाता है। ये विशेष तौर पर महाराष्ट्र के क्षेत्रों में पाई जाती हैं। वैसे तो भैंस की इस नस्ल की कई सारी विशेषताएं हैं। परंतु, इसे अपनी दूध उत्पादन क्षमता के लिए काफी जाना जाता है। ये भैंस एक दिन के अंदर 15 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है।
भारत में गाय के साथ – साथ भैंसों का भी पालन किया जाता है। भैंस के दूध में फैट की मात्रा ज्यादा होती है। इस वजह से बाजार में इसकी काफी ज्यादा मांग रहती है। वहीं, डेयरी उत्पादों में भी भैंस के दूध का काफी उपयोग किया जाता है। ज्यादा मुनाफे की वजह से विभिन्न डेयरी पालक एवं किसान भैंसों का पालन करते हैं। अब यदि ऐसी स्थिति में आप भी एक भैंस अपने तबेले में लाने की सोच रहे हैं, तो ये खबर अवश्य पढ़ लें। वैसे तो भैंस की समस्त नस्लें ही एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन इस लेख में हम आपको एक ऐसी नस्ल से अवगत कराऐंगे, जो कि आपको शानदार मुनाफा प्रदान करेगी। इस भैंस को अपनी दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए जाना जाता है। जो कि बाकी भैंसों की तुलना में अधिक दूध देती है। हम भैंस की पंढरपुरी नस्ल की बात कर रहे हैं।
पंढरपुरी भैंस की उत्पत्ति महाराष्ट्र के पंढरपुरी इलाके से हुई है। ऐसा कहते हैं, भैंस का नाम पंढरपुर गांव से पड़ा है, जो महाराष्ट्र के सोलापुर जनपद में मौजूद है। इसे पंधारी, महाराष्ट्र भैंस अथवा धारवाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि, ये भैंस देश के विभिन्न इलाकों में पाई जाती है। परंतु, महाराष्ट्र में इसका सर्वाधिक पालन किया जाता है। यह भैंस महाराष्ट्र के पंढरपुर, पश्चिम सोलापुर, पूर्व सोलापुर ,बार्शी, अक्कलकोट, सांगोला, मंगलवेड़ा, मिराज, कर्वी, शिरोल और रत्नागिरी जैसे जनपदों में पाई जाती है। इस नस्ल को उसकी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। लेकिन, इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, इसके दूध देने की क्षमता। ये भैंस प्रतिदिन 15 लीटर तक दूध दे सकती है। यदि आप भी इस भैंस को आय का एक स्त्रोत बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले इसकी पहचान, कीमत और विशेषताऐं जान लें।
पंढरपुरी भैंस की पहचान एवं विशेषताएं इस प्रकार हैं
- पंढरपुरी भैंस के सींग किसी तलवार की भांति नजर आते हैं। इनकी लंबाई लगभग 45 से 50 सेंटीमीटर तक होती है। सींग सिर से ऊपर की तरफ आते हुए अंदर की ओर मुड़ जाते हैं।
- इस भैंस का वजन लगभग 450 से 470 किलो के मध्य होता है।
- पंढरपुरी भैंस हल्के काले रंग अथवा भूरे रंग की होती है। बहुत सारी पंढरपुरी भैंस में सफेद धब्बे भी दिखने को मिल जाते हैं।
- इस भैंस के बाल चमकदार और मध्यम साइज के होते हैं।
- इस भैंस का सिर लंबा एवं पतला होता है, जबकि नाक की हड्डी थोड़ी बड़ी होती है।
- पंढरपुरी भैंस शरीर से कठोर तथा मजबूत होती है।
- पंढरपुरी भैंस की प्रतिदिन दूध देने की क्षमता औसतन 6 से 7 लीटर तक होती है। सही रखरखाव मिलने पर ये रोजाना 15 लीटर तक भी दूध देने की क्षमता रखती है।
पंढरपुरी भैंस का प्रतियोगिताओं में भी काफी दबदबा है
महाराष्ट्र में पंढरपुरी भैंस का पालन केवल दूध के लिए नहीं किया जाता बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में किसान इन्हें इस वजह से भी पालते हैं, ताकि वे रेसिंग तथा बुल फाइटिंग जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले सकें। ये अत्यंत शांत स्वभाव की होती हैं, इसलिए किसान इन्हें सहजता से पाल सकते हैं। इन्हें अधिकांश क्षेत्रों में पाला जाता है। जहां धान, गन्ना और ज्वार सहजता से उपलब्ध हो सके। यह इनकी मुख्य खुराक में से एक है। इसकी कीमत की बात की जाए तो एक पंढरपुरी भैंस की कीमत लगभग 50 हजार से 2 लाख रुपये के मध्य होती है। यह कीमत क्षेत्र एवं भैंस के दूध देने की क्षमता पर निर्भर करती है।
पंढरपुरी भैंस की पहचान कैसे करें
पंढरपुरी भैंस नस्ल की उत्पत्ति पंढरपुर क्षेत्र में हुई, जो भारत के महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित है. इस भैंस का आकार तुलनात्मक रूप से बड़ा होता है. इसका चेहरा लंबा और चौड़ा होता है. इसके कान बड़े और झुके हुए होते हैं और इसकी पीठ पर एक कूबड़ होता है. पंढरपुरी भैंस आमतौर पर गहरे भूरे या काले रंग की होती है.
पंढरपुरी भैंस की खासियत
पंढरपुरी भैंस की लोकप्रियता के मुख्य कारणों में से एक इसकी उच्च दूध उत्पादन क्षमता है. यह पर्याप्त मात्रा में दूध का उत्पादन करने की अपनी क्षमता के लिए जानी जाती है. इसके दूध में फैट की भरपूर मात्रा होती है. ये भैंसें स्थानीय जलवायु के अनुकूल होती हैं और अत्यधिक तापमान के साथ ही पानी और चारे की कमी जैसी परिस्थितियों का सामना भी कर सकती हैं.
पंढरपुरी भैंसों को अन्य भैंसों की तरह ही पाला जा सकता है. इसके सही स्वास्थ्य और दूध उत्पादन को बनाए रखने के लिए उचित पोषण, स्वच्छ पानी और नियमित पशु चिकित्सा की आवश्यकता होती है.
डेयरी क्षेत्र में इस नस्ल का है बोलबाला
पंढरपुरी भैंस महाराष्ट्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से डेयरी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इन भैंसों से दूध उत्पादन क्षेत्र के कई किसानों की आजीविका बेहतर बनाने में मदद मिलती है. इसके अतिरिक्त इस नस्ल ने अपनी उच्च दूध उपज और गुणवत्ता के कारण मान्यता और लोकप्रियता भी हासिल की है.
घी, मक्खन और दही जैसे उत्पाद बनाने में किया जाता है इस्तेमाल
पंढरपुरी भैंस से प्राप्त दूध का उपयोग आमतौर पर घी, मक्खन और दही जैसे विभिन्न डेयरी उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल मिठाइयों और अलग-अलग व्यंजन बनाने में भी किया जाता है.
पंढरपुरी भैंस की प्रजनन क्षमता
पंढरपुरी भैंसों की प्रजनन क्षमता काफ़ी अच्छी होती है। हर 12 से 13 महीनों में एक बछड़ा-बछिया को जन्म दे सकती हैं। प्रजनन के बाद 305 दिन तक ये दूध दे सकती है।
पंढरपुरी भैंस का दूध लाभकारी
पंढरपुरी भैंसों की एक और खासियत ये भी है कि इनके दूध में लगभग 8 फ़ीसदी वसा की मात्रा पाई जाती है। एक तय मात्रा में वसा, शरीर के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होती है। इसीलिए पंढरपुरी भैंसों के दूध से विक्रेता अच्छा मुनाफ़ा भी कमाते हैं।
किस तरह के वातावरण में रह सकती है पंढरपुरी भैंस?
पंढरपुरी भैंस 9 डिग्री से लेकर 42 डिग्री सेल्सियस के तापमान और 43 तो 87 फ़ीसदी की नमी वाले क्षेत्रों में पाली जा सकती है। सूखाग्रस्त क्षेत्र में भी पंढरपुरी भैंस को पाला जा सकता है।
पंढरपुरी भैंसा कई प्रतियोगिताओं में लेता है भाग
महाराष्ट्र के कई पशु पालक पंढरपुरी भैंसों को सिर्फ़ इसलिए भी पालते हैं ताकि वो कई तरह की प्रतियोगिताओं जैसे रेसिंग और Bull Fighting में भाग ले सकें।
भैंस को होने वाले रोगों से कैसे करें बचाव?
भैंसों को मुख्य तौर पर खुरहा-मुहंपका (foot and mouth disease), जहरवाद ( Black Quarter Disease), पशु प्लेग (Rinderpest), सूजन (Bloat), थनैल और दस्त (Diarrhoea) बीमारी होती हैं। इनसे बचाव के लिए ज़रूरी है कि भैंसों का समय-समय पर टीकाकरण कराएं। साथ ही चिकित्सक की देखरेख में भी भैंसों को रखें।
Compiled & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the
Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
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