ठंड के मौसम में पशुओं की देखभाल

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WINTER CARE OF FARM ANIMALS

ठंड के मौसम में पशुओं की देखभाल

अक्टूबर-नवंबर महीने से देश के विभिन्न क्षेत्रों में ठंड की शुरुआत हो जाती है। बदलते मौसम के साथ पशुओं के बीमार होने की संभावना भी बढ़ जाती है। ठंड के मौसम में पशुपालकों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इस समय पशुओं की उचित देखभाल नहीं करने पर उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर तो होता ही है, इसके साथ ही पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता में भी कमी आ जाती है।

उत्तर भारत में समय ठंड का मौसम चल रहा है. ठंड के इस मौसम में पशुओं के बीमार होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. इसलिए पशुपालक किसान ठंड के इस मौसम में अपने पशुओं को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है.

इस बदलते मौसम में अपने पशुओं की उचित देखभाल नहीं करने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही ठंड के इस मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता पर भी असर पड़ता है .और वह कम दूध देने लगते हैं. इसीलिए सर्दी के इस मौसम में यदि पशुओं के रहन-सहन और आहार की ठीक प्रकार से प्रबंधन नहीं किया जाता है. तो ऐसे मौसम में पशुओं के स्वास्थ्य पर व दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. तो आइए जानते हैं, ठंड के इस मौसम में आप अपने पशु की देखभाल कैसे करें, पूरी जानकारी-

ठंड के मौसम में किसान अपने पशुओं की देखभाल में विशेष एहतियात बरतें, ताकि पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर बदलते मौसम का असर न पड़े। सर्दी के मौसम में यदि पशुओं के रहन-सहन और आहार का ठीक प्रकार से प्रबंध नहीं किया गया, तो ऐसे मौसम का पशु के स्वास्थ्य व दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय मौसम में होने वाले परिवर्तन से पशुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है, परंतु ठंड के मौसम में पशुओं की दूध देने की क्षमता शिखर पर होती है तथा दूध की मांग भी बढ़ जाती है। अतः इस प्रभाव से बचने के लिए पशुपालकों को मुख्यतः निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 पशुओं में पोषण प्रबंधन

पशुओं को खिलाएं संतुलित आहार

कृषि वैज्ञानिकों का कहाना है सर्दियों के मौसम में पशुओं की खिलाई-पिलाई की देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि सर्दियों के दिनों में ज्यादातर गाय-भैंस एवं अन्य दुधारू पशु दूध दे रही होती हैं। इसलिए सर्द मौसम में पशुओं को ऐसे आहार की आवश्यकता होती है जिससे पशुओं की भूख भी मिट जाए और इस मौसम उनकी ऊर्जा भी बरकार रहे। ऐसे में पशुपालक पशुओं के आहार में प्रोटीन, विटामिन व मिनरल की मात्रा अधिक दे। पराली को चारे के विकल्प के रूप में उपयोग कर सकते हैं। पराली में मक्की, हरा चारा मिलाकर उसे चारे के रूप में पशुओं को खिलाएं।

इसके अलवा संतुलित आहार में सरसों चरी, लोबिया, रजका या बरसीम आदि के साथ ही गेहूं का दलिया, चना, खल, ग्वार, बिनौला पशुओं को खिला सकते हैं। इसे बनाने के लिए 35-40 प्रतिशत खल, दालों और चने का चोकर 20-25 प्रतिशत और प्रोटीन, विटामिन व मिनरल मिश्रण 2-3 और नमक 2-3 प्रतिशत मात्रा में लेकर तैयार कर सकते है। पशुओं को संतुलित आहार में चारे के लिए दानों का मिश्रण भी देना चाहिए। दुधारू पशुओं के अलावा गर्भवती पशुओं को भी सर्दियों में एक से दो किग्रा संतुलित आहार देते रहना चाहिए। पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला सूखा चारा, बाजरा कड़बी, रिजका, सीवण घास, गेहूं की तूड़ी, जई का मिश्रण पशुओं को खिला सकते हैं, जिससे दूध उत्पादन में वृद्धि होगी।

सर्दियों में दुधारू मवेशियों से अधिक दुग्ध उत्पादन करने के लिए अधिक मात्रा में हरे चारे के रूप में बरसीम और जई को खिलाएं अच्छी गुणवत्ता वाला सूखा चारा, बाजरा कड़बी, रिजका, सीवण घास, गेहूं की तूड़ी, जई का मिश्रण पशुओं को खिला सकते हैं। छोटे पशुओं को सर्दियों के दिनों में अरहर, चना, मसूर का भूसा खिलाना चाहिए।

 ठंड के मौसम में पशुओं को संतुलित आहार दें। जिसमें ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज तत्व, पानी, विटामिन व वसा आदि पोषक तत्व मौजूद हो। इन दिनों में पशुओं को विशेष देखभाल की जरुरत होती है, ऐसे में पशुओं के खान-पान व दूध निकालने का समय एक ही रखना चाहिए। खान पान में सावधानी बरतें, दुधारू पशुओं को बिनौला अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए।

बिनौला दूध के अंदर चिकनाई की मात्रा बढ़ाता है। बाजरा किसी भी संतुलित आहार/बाखर में 20 प्रतिशत से अधिक नहीं मिलाना चाहिए। शीत लहर के दिनों में पशु की खोर के उपर या नांद में सैंधा नमक का ढेला रखें ताकि पशु जरूरत के अनुसार उसका चाटता रहे। ठण्ड के दिनों में पशुओं के दाना बाटा में 2% खनिज मिश्रण व 1% नमक जरुर मिलाकर दे।

सर्दी में पशुओं को हरा चारा जैसे बरसीम पशुओं को दे, परन्तु ध्यान यह दे की सिर्फ हरा चारा खिलाने से अफारा व अपचन भी आ जाती है, ऐसे में हरे चारे के साथ सूखा चारा मिलाकर खिलाए। 4 किलो बरसीम 1 किलो तक दाना बाटा की बचत कराता है । 10 लीटर दुधारू पशु के लिए 20-25 किलो हरा चारा (दलहन) 5-10 किलो सूखा चारा के साथ मिला कर दे।

विभिन्न तरह की खली इस क्रम में उपलब्ध कराये, सरसों का खल, कपास खल, मूंगफली का खल, सोयाबीन खल. दाना बाटा दुग्ध उत्पादन के अनुसार दे। 2-2.5 लीटर दूध उत्पादन पे 1 किलो बाटा पशुओं को जीवन निर्वाह के अलावा उपलब्ध कराये। पशु को सप्ताह में दो बार गुड़ जरूर खिलाएं। गुनगुना व ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं, क्योंकि पानी से ही दूध बनता है और सारी शारीरिक प्रक्रियाओं में पानी का अहम योगदान रहता है।

ठण्ड से होने वाले पशुओं में रोगों का रोकथाम

पशुओं में आफरा:

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय पशुओं को जरूरत से ज्यादा दलहनी हरा चारा जैसे बरसीम व अधिक मात्रा में अन्न व आटा, बचा हुआ बासी भोजन खिलाने के कारण यह रोग होता है। इसमें जानवर के पेट में गैस बन जाती है। बायीं तरफ पेट फूल जाती है।

पशुओं में निमोनिया:

दूषित वातावरण व बंद कमरे में पशुओं को रखने के कारण तथा संक्रमण से यह रोग होता है। रोग ग्रसित पशुओं की आंख व नाक से पानी गिरने लगता है। ठण्ड के दिनों में पशु निमोनिया के शिकार हो जाते है, खास कर बछड़े या बछड़ी इसलिए जरुरी है की पशुओं को इससे बचाया जाए।

निमोनिया होने पर बुखार भी हो जाता है जिससे पशु खाना एवं जुगाली करना छोड़ देता है अथवा उसकी उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है। निमोनिया की शिकायत होने पर तुरंत नजदीकी पशुचिकित्सक को संपर्क करे ।

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पशुओं को ज़ुकाम :

इससे प्रभावित पशु को नाक व आंख से पानी आना, भूख कम लगना, शरीर के रोंएं खड़े हो जाना आदि लक्षण आते हैं। उपचार के लिए एक बाल्टी खौलते पानी के ऊपर सूखी घास रख दें। रोगी पशु के चेहरे को बोरे या मोटे चादर से ऐसे ढ़के कि नाक व मुंह खुला रहे। फिर खौतले पानी भरे बाल्टी पर रखी घास पर तारपीन का तेल बूंद-बूंद कर गिराएं। भाप लगने से पशु को आराम मिलेगा।

इसके अलावा ठंड में पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से चलाए जाने वाले विशेष टीकाकरण अभियानों में टीके लगवाने चाहिए। जिससे पशु ठंड के मौसम में निरोग रह सके।

पशुओं को जूट के बोरे को ऐसे पहनाएं जिससे वे खिसके नहीं। सर्दी में वातावरण में नमी के कारण पशुओं में खुरपका, मुंहपका तथा गलाघोटू जैसी बीमारियों से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण करें। साथ ही पशुओं को कृमिनाशक दवाई और बाह्य परजीवी मुक्त कराये ।

पशु आवास प्रबंधन 

ठंढ के मौसम में पशुपालन करते समय ,पशुओं के आवास प्रबंधन पर विशेष ध्यान दें। सर्दी के मौसम में अंदर व बाहर के तापमान में अच्छा खासा अंतर होता है। पशु के शरीर का सामान्य तापमान विशेष तौर से गाय व भैंस का क्रमश: 101.5 डिग्री फारेनहाइट व 98.3-103 डिग्री फारेनहाइट (सर्दी-गर्मी) रहता है और इसक विपरीत पशुघर के बाहर का तापमान कभी-कभी शून्य तक चला जाता है यानि पाला तक जम जाता है।

अत: इस ठंड से पशु को बचाने के लिए पशु का बिछावन की मोटाई (4-6 इंच), खिड़कियों पर बोरी व टाट के पर्दे आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे पशुओं पर शीत लहर का सीधे प्रकोप न पड़ सके। साथ में ध्यान रखे की पशुशाला को पूरी तरह बंद ना करे, ताकि पशुओं के गोबर द्वारा अमोनिया गैस पशुशाला से निकल सके।

इसके अलावा धूप निकलने पर पशुओं को बाहर बांधे और दिन गर्म होने पर नहलाकर सरसों के तेल की मालिश करें जिससे पशुओं को खुश्की आदि से बचाया जा सकता है। सर्दी में पशुओं को सुबह नौ बजे से पहले और शाम को पांच बजे के बाद पशुशाला से बाहर न निकालें। दिन में दो बार पशुओं का बाड़ा साफ़ करे ताकि वहां गोबर का ढेर न लगे। पशुशाला में गोबर और मूत्र निकास की उचित व्यवस्था करे ताकि जल जमाव न हो पाए।

पशुओं में पोषण प्रबंधन:  ठंड के मौसम में अपने पशुओं को ऐसे आहार दें जिसमें ऊर्जा, प्रोटीन, खनिज तत्व, पानी, विटामिन व वसा आदि पोषक तत्व मौजूद हो. पशुओं के खान-पान व दूध निकालने का समय एक ही रखें. पशुओं को हरा चारा जैसे बरसीम पशुओं को दें, लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रहे कि सिर्फ हरा चारा खिलाने से पशु को अफारा व अपचन की समस्या हो जाती है, ऐसे में हरे चारे के साथ सूखा चारा मिलाकर खिलाएं.

इसके अलावा पशु को सप्ताह में दो बार गुड़ जरूर खिलाएं. गुनगुना व ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाएं, क्योंकि पानी से ही दूध बनता है और सारी शारीरिक प्रक्रियाओं में पानी का अहम योगदान रहता है.

समय रहते टीकाकरण कराएं: ठंड मेंमौसम में पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से चलाए जाने वाले विशेष टीकाकरण अभियानों में पशु को टीके जरूर लगवाएं, जिससे पशु ठंड के मौसम में निरोग रह सके. इसके अलावा ठंड के कफ, निमोनिया, बछड़ों में खांसी संबंधित रोग होने की पशु स्थिति में चिकित्सक से सलाह लेकर ही पशु को दवा दें.

उचित आवास का प्रबंधन: सर्दी के मौसम में घर के अंदर व बाहर के तापमान में काफी अंतर होता है. इसलिए ठंड से पशुओं को बचाने के लिए पशु का बिछावन की मोटाई, खिड़कियों पर बोरी व टाट के पर्दे आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए. जिससे पशुओं पर शीतलहर का सीधे असर नहीं  पड़सके.

 सर्दी से बचाने के लिए अपनाएं ये तरीके

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोग पशुपालन में छोटे, बडे़ और दुधारू मवेशियों का पालन कर दूध उत्पादन एवं उनके अन्य उत्पादों की बिक्री से अर्थव्यवस्था में सहयोग भी करते हैं। लेकिन इसमें किसानों और पशुपालकों को पशुओं की देखभाल का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए, नहीं तो पशुपालन घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है। सर्दियों में छोटे, बडे़ और दुधारू मवेशियों को ठंड से बचाने के लिए उनके खानपान व संरक्षण के प्रति विशेष प्रबंधन के साथ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। सर्दियों के मौसम में दुधारू मवेशियों की अच्छे से देखभाल करने और खास ख्याल रखने की आवश्यकता होती है।

  • ठंड के मौसम में मवेशियों में बुखार एवं पेट खराब होने जैसी समस्या दिखने पर घरेलू प्राथमिक उपचार करें तथा जल्द से जल्द पशु चिकित्सक से पशुओं का उपचार कराएं।
  • मवेशियों की सबसे ज्यादा मौत ठंड में होती है, इसलिए दुधारू पशुओं एवं अन्य छोटे पालतू मवेशियों को सर्दी में कम से कम नहलाये।
  • अच्छी धूप होने पर ही पशुओं को नहलाये और सरसों का तेल पूरे शरीर पर लगाकर अच्छे से धूप दिखाएं।
  • पशुओं का उचित समय टीकाकरण कराते रहे, जिससे पशुओं में होने वाले खुरपका, मुंहपका रोग से बचाव हो सकें।
  • पशुओं की समय-समय पर गर्भ जांच कराएं। साथ ही पशुओं की समय-समय पर पशु चिकित्सक से जांच करवाएं ताकि समय से बीमारियों का पता लगाकर उपचार किया जा सके।

छोटे और नवजात पशुओं की देखभाल

ठंड में सबसे ज्यादा छोटे और नवजात पशु प्रभावित होते हैं। ठंड की वजह से इन पशुओं में दस्त, निमोनिया होने का खतरा बढ़ जाता है। दस्त, निमोनिया से ज्यादातर गाय-भैंस के नवजात बच्चे एवं छोटे पशुओं की बड़ी संख्या में मौत हो जाती है। छोटे एवं नवजात पशु के लीवर में फ्लूक नाम रोग हो जाता है। इस रोग से बचाने के लिए गाय-भैंस के नवजात शिशुओं को उनके शरीर भार के अनुसार कृमिनाशक दवाएं अल्बोमार, बैनामिन्थ, निलवर्म, जानिल आदि देते रहना चाहिए और परजीवी नाशक औषधि बदल-बदल कर देते रहना चाहिए। वहीं, पशु चिकित्सक को जल्द से जल्द दिखाना चाहिए।

पशुओं को सप्ताह में 2 से 3 बार नहलाए

ठंड में अधिकतर पशु मालिक अपने पालतू पशुओं को ठंड लगने के डर से नहलाते ही नहीं है, वे सोचते हैं कि ठंड में पशुओं को नहलाने से वे बीमार हो पड़ जाएंगे। लेकिन पशुओं को कीट- जूं, पिस्सू, किलनी के प्रकोप से बचाने लिए धूप निकलने पर सप्ताह में 2 से 3 बार नहलाए। कीट- जूं, पिस्सू, किलनी से ग्रसित पशुओं के शरीर पर बूटॉक्स और क्लीनर दवा की दो मिली मात्रा 1 लीटर पानी के अनुपात में घोलकर लगाएं और 3 से 4 घंटे के पश्चात नहलाए। लेकिन इन दवा का इस्तेमाल पशु चिकित्सक की सलाह पर ही करें।

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ठंड में उचित तापमान की व्यवस्था करें 

मवेशियों में अपना एक कमफर्ट जोन होता है, जिसके हिसाब से वह अपना विकास करते हैं। लेकिन ठंड के मौसम में जैसे-जैसे तापमान कम होता जाता है, पशुओं का भी शारीरिक तापमान प्रभावित होता है। जिसके कारण उनके शरीर में परिवर्तन देखने को मिलने लगता है। तापमान में गिरावट से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन कम हो जाता है। मवेशियों के शारीरिक तापमान को स्थिर बनाने के लिए मवेशियों को ताजा एवं गर्म पानी पिलाएं। उन्हें अच्छी धूप खिलने पर बाड़े से बाहर निकाले। रात में बाड़े में अलाव जलाए ताकि बाड़े का उचित तापमान बना रहे। अधिक सर्दी होने पर सुबह-शाम एवं रात में पशुओं को टाट की पल्ली या पुआल से बनी पल्ली उढ़ाएं। बाड़े में फर्श को सूखा रखे। इसके लिए पुआल, रखा, टाट और सूखी घास-फूस का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा, मवेशी को मेथी दाना, गुड एवं सरसों खल खिलाएं और महीने में एक बार सरसों का तेल भी पिलाएं।

अपने जानवरों को ठंड से बचाने के लिए अपनाएं ये तरीक़े

  • गलन वाली हवाओं से अपने जानवरों को बचाना चाहतें हैं तो उन्हें जूट के बने बोरे पहनाएं. आप पशु के नाप का जूट वस्त्र बनवा सकते हैं.
  • ध्यान रखें कि जिस बाड़े में आपने पशुओं को रखा है वहां नमी न होने पाएं. अगर नम स्थान पर जानवर देर तक रहेगा तो उसके बीमार होने की संभावना बढ़ जाएगी.
  • बाड़े के फ़र्श पर बोरा या पुवाल हमेशा बिछाकर रखें जिससे पशु का ठंड में बचाव हो सके. वैसे पुवाल बोरे से बेहतर उपाय हो सकता है.
  • सर्दी के दिनों में पशुओं को ताज़ा और संतुलित आहार दें. ऐसा करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और ठंड के मौसम का असर उन पर कम होगा.
  • 1:3 के अनुपात में हरा व मुख्य चारा मिलाकर अपने जानवरों को खिलाना चाहिए.
  • हो सके तो उनके पीने के लिए गुनगुने पानी का इंतज़ाम करें ताकि गर्म पानी से उनका शरीर गर्म रह सके.
  • सर्दी के मौसम में इस बात का विशेष ध्यान दें कि पशु खुले में न रहे.
  • जब धूप तेज़ हो तो पशुओं को धूप ज़रूर दिखाएं क्योंकि सूरज की किरणों में विषाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है.
  • जिस बाड़े में पशु को रखा गया हो वहां के जंगले, खिड़कियां और दरवाज़ों पर मोटे बोरे लगाएं ताकि सर्द के मौसम में जब गलन वाली हवाएं चलें तो पशु सुरक्षित रह सके.
  • अक्सर ये देखने में आया है कि ठंड के दिनों में पशुओं का पेट ख़राब हो जाता है, अमूमन उनमें दस्त की शिकायत पाई जाती है. इस स्थिति में पहले घर पर उसका इलाज करें. अगर पशु की सेहत नहीं सुधरती है तो पशु चिकित्सक को दिखाने में देर न लगाएं.
  • ठंड जब ज़्यादा बढ़े तो पशुशाला के बाहर अलाव जलाने का इंतज़ाम करना चाहिए जिससे अंदर रह रहे पशुओं में गर्माहट बनी रहे और वो ठंड से सुरक्षित रह सकें.
  • आप चाहें तो पशुशाला या बाड़े में हीटर भी जला सकते हैं बशर्ते हीटर पशुओं की पहुंच से दूर रहे.

 ठंड के इस मौसम में रखें इन बातों का विशेष ध्यान

  • ठंड के मौसम में पशुओं को पशुपालक भाई द्वारा संतुलित आहार देना चाहिए. संतुलित आहार में उर्जा, प्रोटीन, खनिज तत्व, पानी, विटामिन, वसा आदि पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद होने चाहिए.
  • ठंड के इन दिनों में पशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे में पशुओं के खान-पान व दूध निकालने का समय एक ही रखना चाहिए.
  • इसके अलावा ठंड में पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से चलाए जाने वाले विशेष टीकाकरण अभियान में टीके लगवाने चाहिए. जिससे ठण्ड के मौसम में पशु निरोग रह सके.
  • सर्दी के मौसम में अंदर और बाहर के तापमान में अच्छा खासा अंतर होता है. पशु के शरीर का सामान्य तापमान विशेष तौर से गाय और भैंस क्रमश 101 डिग्री फारेनहाइट व3 से 103 डिग्री फारेनहाइट रहता है. इसके विपरीत पशु घर के बाहर का तापमान कभी-कभी शून्य चला जाता है.यानी कि पाला जम जाता है.
  • इसके लिए ठंड से बचाने के लिए पशुओं का बिछावन की मोटाई, खिड़कियों पर बोरी के पर्दे आदि का विशेष ध्यान रखना चाहिए. जिससे पशुओं पर शीतलहर का प्रकोप सीधे ना पड़ सके.
  • ठंड के इस मौसम में दुधारू पशुओं को बिनोला अधिक मात्रा में खिलाना चाहिए. बिनोला दूध के अंदर चिकनाई की मात्रा को बढ़ाता है. साथ ही पशुओं को बाजरा कम हजम होता है. इसलिए बाजरा किसी भी संतुलित आहार में 20% से अधिक नहीं मिलाना चाहिए.
  • शीतलहर में पशु के खुर के ऊपर सेंधा नमक का ढेला रखें. ताकि पशु जरूरत के अनुसार उसे चाटता रहे.
  • साथ ही सर्दी में पशुओं को सिर्फ हरा चारा खिलाने से अपचन व अफारा भी आ जाता है. ऐसे में हरे चारे के साथ सूखा चारा मिलाकर खिलाएं. पशुओं के आहार में हरा चारा एवं मुख्य चारा 1:3 मिलाकर खिलाना चाहिए. इससे पशु स्वस्थ और निरोग रहेगा और दूध का उत्पादन भी कम नहीं होगा.
  • पशुओं को सर्दी के मौसम में गुनगुना ताजा व स्वच्छ पानी भरपूर मात्रा में पिलाना चाहिए. क्योंकि पानी से ही दूध बनता है. और सारी शारीरिक प्रक्रिया में पानी का अहम योगदान भी रहता है.
  • इसके अलावा पशुओं को बाहर धूप में बांधना चाहिए. और दिन गर्म होने पर नहलाकर सरसों की तेल की मालिश भी करनी चाहिए.
  • ठंड के मौसम में अक्सर पशुओं में दस्त की शिकायत होती है. पशुओं के दस्त होने पर तुरंत पक्ष चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिए.
  • वातावरण में नमी होने के कारण पशुओं में खुरपका मुंह पका और गला घोटू होने की समस्या बढ़ जाती है. पशुओं को इन रोगों से बचाने के लिए सही समय पर टीकाकरण जरूर कराएं.

पशुओं में ठंड लगने के प्रमुख लक्षण

  • सभी पशुओं के ठंड लगती है.तो पशुओं के नाक और आंखों से पानी बहने लगता है.
  • पशुओं के भूख में कमी आ जाती है. और वह कम खाना खाते हैं.
  • इसके अलावा पशु के शरीर के सभी रोए खड़े हो जाते हैं. और उन्हें ठंड लगती है.

पशुपालक ठंड के इस मौसम में कैसे करें अपने पशुओं की उचित देखभाल

पशुओं को धूप में बाहर बांधे

ठंड के दिनों में अपने पशुओं को बाहर धूप में जरूर बांधना चाहिए. क्योंकि बिना धूप के ठंडी हवा में दिन में बाहर निकलना उनकी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है. इसलिए जब भी धूप निकले उन्हें बाहर बांधना चाहिए. धूप तो उन्हें जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं. जो उनके सेहत के लिए काफी लाभकारी साबित होते हैं.

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साफ सफाई का उचित ध्यान रखें

पशुशाला जहां पशुओं को बांधा जाता है. उस स्थान को सूखा एवं स्वस्थ बनाए रखना चाहिए. पशुशाला में पुआल या कोई नरम चीज जरूर डाल कर रखें. जिससे फर्श के गीलापन को सुखा जा सके. गीलेपन से पशुओं में कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं. इसके अलावा पशुओं को अधिक ठंडा पानी ना पिलाए और ना ही अधिक गर्म पानी.

अफारा से बचाना चाहिए

ठंड के इस मौसम में पशुओं को अफारा होने की अधिक संभावना रहती है. इसलिए हरा चारा खिलाने से पहले थोड़ा सा सूखा चारा जरुर खिलाना चाहिए. फिर भी यदि पशु को अफारा की शिकायत हो, तो उसे अलसी या सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए. और नजदीकी पशु चिकित्सालय में जरूर संपर्क करें.

पशुओं को पहनाये बोरी

अभी ठंड होने पर अपने पशुओं को टाट या जूट की बोरी जरूर पहनाएं. जिससे पशुओं को ठंड से बचाया जा सके. इसके अलावा सुरक्षित देने पर अलावा जरूर जलाएं. इससे पशुओं को ठंड से बचाया जा सकता है.

बाड़े एवं पशुशाला में उचित तापमान की व्यवस्था करें 

सर्दियों में मवेशियों को ताजा एवं गर्म पानी पिलाएं। पशुओं को बढि़या धूप होने पर उन्हें, बाहर निकाल सकते हैं। रात के समय ज्यादा ठंड होने पर बाड़े एवं पशुशाला  में अलाव जला सकते हैं। सर्दी से बचाव के लिए सुबह-शाम और रात को टाट की पल्ली एवं पुआल से बनी पल्ली उढ़ाएं। पशुशाला और बड़े में जहां भी आप पशुओं को रखते है। वहां फर्श पर सूखे बिछावन का प्रयोग करें इसके लिए आप पुआल, रखा, टाट और सूखी घास-फूस का इस्तेमाल कर सकते है। नवजात बच्चों एवं छोटे पशुओं को सर्दी से बचाने के लिए उन्हें टाट की पल्ली से ढ़ककर रखे एवं सूखे स्थान पर बांधे। ठंड के मौसम में मवेशी को मेंथी दाना, गुड एवं सरसों खल खिलाएं और महीने में एक बार सरसों का तेल भी पिलाएं, ताकि पशुओं का शरीर का रक्त संचार अच्छा रहे और उनका शरीर गर्म रहें।

ठंड में अन्तः परिजीवियों से बचाव

ठंड में अन्तः परिजीवियों सभी पशुओं को बचाना चाहिए. क्योंकि यह पशुओं को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. जिससे पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है. साथ ही नवजात बच्चों को दस्त, निमोनिया होने का खतरा भी बना रहता है. अक्टूबर तक पैदा होने वाले ज्यादातर भैंस के बच्चे बड़ी तादाद में सर्दियों का मौसम खत्म होने तक वो के गाल में चले जाते हैं. जिसकी मुख्य वजह अंतर परजीवी का होना होता है. इसलिए इन पशुओं को अन्तः परिजीवियों से बचाने के लिए शरीर के भार के अनुसार कब नाशक दवाई देनी चाहिए. साथ ही अब चिकित्सक की सलाह जरूर लें.

ठंड में वाह्य परिजीवियों से पशुओं का बचाव

ठंड के दिनों में अधिक जाड़ा लग जाने के डर से ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं को लहराते नहीं है. इसीलिए जाड़े के मौसम में पशुओं का शरीर की ज्यादा साफ सफाई नहीं होने के कारण पशुओं के शरीर में वाह्य परजीवी का प्रकोप हो जाता है. जो पशुओं का खून चूस कर बीमारी का कारण बन जाते हैं. इसलिए जाड़े के मौसम में पशुओं की साफ सफाई का काफी ध्यान रखना चाहिए. और धूप निकलने पर सप्ताह में दो से तीन बार पशुओं को नहलाना चाहिए.वाह्यपरजीवीयों से रक्षा के लिए पशु चिकित्सक की सहायता से कोई उपयुक्त दवा लेकर पशु को लगानी चाहिए.

पशुओं को खिलाएं अधिक ऊर्जा युक्त आहार

सर्दियों के शुरू होते ही दुधारू पशुओं को ऊर्जा प्रदान करने के लिए समय-समय पर गुण अथवा शीरा अवश्य खिलाते रहना चाहिए. इस मौसम में गाय और भैंस के बच्चों  को 30 से 60 ग्राम गुड़ जरूर खाने को देना चाहिए. इसके अलावा पशुओं को 200 ग्राम तक मेथी सर्दियों के मौसम में खिलाने से जाने से बचाव होता है. और साथी दूध का उत्पादन भी अच्छा हो जाता है.

पशुओं  को नमी वाले अस्थान से बचाएं

ठंड का मौसम शुरू होते ही गाय भैंस और नवजात बच्चे बच्चियों को जाड़े से बचाने की जरूरत होती है. इसीलिए पशुओं को बांधने वाली जगह पर नमी नहीं होनी चाहिए. अगर नमी होती है तो स्वास्थ संबंधी रोग और निमोनिया हो सकता है. नमी वाले स्थानों की साफ सफाई करने के बाद चुनाव चूने का छिड़काव जरूर कर दें. पशुशाला को दिन में दूध निकालने के बाद खुला छोड़ देना चाहिए. जिससे उसने हवा का संचार हो और नमी दूर हो जाए.

ठंड के मौसम में मवेशियों की सही देखभाल करना आवश्यक है, ताकि उन्हें ठंड, बीमारियों और अन्य समस्याओं से बचाया जा सके। उपरोक्त सुझावों का पालन करते हुए किसान अपने मवेशियों को सुरक्षित रख सकते हैं और उनकी सेहत व उत्पादन क्षमता को बनाए रख सकता है।

 बीमार होने पर जल्द से जल्द पशु चिकित्सक को दिखाएं

सर्दियों के दिनों में ठंड की वजह से दुधारू पशुओं एवं छोटे पशुओं में दस्त, निमोनिया होने का खतरा रहता है। निमोनिया से सर्दियों के मौसम में ज्यादातर गाय-भैंस के बच्चे एवं छोटे पशु प्रभावित होते है। और बड़ी तादात में मौत के मुंह में चले जाते हैं। सर्दियों मे छोटे पशुओं में लीवर फ्लूक भी हो जाता है। ऐसे में पशुओं को इससे बचाने के लिए शरीर भार के अनुसार कृमिनाशक दवाएं अल्बोमार, बैनामिन्थ, निलवर्म, जानिल आदि देते रहना चाहिए। और जल्द से जल्द पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए। और समय समय पर चिकित्सक की सलाह लेते रहेना चाहिए।

सर्दियों के दिनों में ज्यादातर पशुपालक ठंड के डर से पशुओं को नहलाते ही नहीं हैं। जिस वजह से पशुओं कीट- जूं, पिस्सू, किलनी का प्रकोप हो जाता है। और परजीव पशुओं का खून चूसकर बीमारी का कारण बनते हैं। इसके लिए पशुपाल पशु चिकित्सक की सलाह पर पशुओं धूप निकलने पर सप्ताह में दो से तीन बार पशुओं को नहलाये। और बूटॉक्स और क्लीनर दवा की दो मिली मात्रा 1 लीटर पानी के अनुपात में घोलकर ग्रसित पशु के शरीर पर ठीक तरीके से लगाएं। इसके 2-3 घंटे बाद नहलाये।

 Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the

Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

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