कुक्कुट पालन में जल का महत्व

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Innovations in Poultry Production and Processing Technologies for Sustainable Poultry Farming

कुक्कुट पालन में जल का महत्व

कुक्कुट पालन एक महत्वपूर्ण और लाभकारी उद्योग है जो खाद्य और उपजाऊ उत्पादों के लिए मांस और अंडे उत्पादित करता है। जल, कुक्कुट पालन में एक प्रमुख संसाधन है जो कुक्कुटों के सही स्वास्थ्य, उत्पादकता और कुक्कुट उत्पादों की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है।

कुछ पोल्ट्री किसान  जितने भी प्रयास कर लें उनके पोल्ट्री फार्म पर बेहतर परिणाम नहीं आते ! वह पानी की कमी भी हो सकती है ! मात्र कुछ रुपयों से जांच करके आप पोल्ट्री फार्म पर पानी में मौजूद कमियाँ पहचान कर उन्हें दूर कर सकते है !

पानी पोल्ट्री फार्म में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है ! पक्षी के शरीर का लगभग 65 से 80  % हिस्सा उम्र के हिसाब से जल ही होता है !

पानी की लागत ,आद्रता ,तापमान फीड फॉर्मूले और कितना वजन बढ़ रहा है उसपर निर्भर करती है ! पानी की गुणवत्ता के लिये पानी में खनिज लवण ( मिनरल )पी.एच् (P.H) , और पानी में कितना सूक्ष्म जीव संदूषण (  microbial contamination) सब बातों पर ध्यान देना होता है !

उम्र के हिसाब और वातावरण के हिसाब से पानी की लागत बढ़ती जाती है ! अगर किसी वजह से पानी की लगत घटती है तो तुरंत इस बात पर तुरंत  ध्यान देना चाहिए , कि कहीं कोई गलती तो नहीं हो रही !

पानी में लोहे और मैगनीस की मात्रा पानी को कड़वा कर देती है ! इससे भी पानी की लागत कम हो सकती है ! और सर्दियों में गाउट आने और गर्मियों में हीट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है !

पानी में कैल्शियम और मैग्नीशियम की अधिकता पानी  की कठोरता को बड़ा देती है !

इसलिए फ़िल्टर इनको साफ़ करने में मदद करता है ! अगर ऐसा नहीं किया जाता तो ये पानी की पाइप लाइन में जमकर ड्रिंकर्स और पानी की सप्लाई को बाधित कर सकते है !

पानी को फ़िल्टर करने के लिये 40 -50 माइक्रोन का फ़िल्टर बेहतर होता है !

पी एच् अगर 8 से ज्यादा हो तो पानी कड़वा महसूस होता है ! और ये पक्षी के  बाधित करता है और ज्यादा बीमारियों का जनक होता है !

पोल्ट्री में पी।  एच को 6 -6.5 के बीच बेहतर होता है ! और  इसे आर्गेनिक या इनऑर्गेनिक एसिड से कम किया जा सकता है ! परन्तु  आर्गेनिक एसिड से ज्यादा इनऑर्गेनिक एसिड होता है !

आर्गेनिक  एसिड पानी की खपत को कुछ कम कर सकते है ! परन्तु निर्माता कंपनी की सलाह से अधिकतर पोल्ट्री किसान इसे उपयोग में लाते है !

टीडीएस  (TDS) (पानी  में पूर्णतः घुले हुए ठोंस पदार्थ –  पानी में घुले हुए काफी मिनरल या सख्त पदार्थ होते है ! उनकी मात्रा की गणना कर  TDS मापा जाता है ! जो एक साधारण से  TDS   मीटर से माप लिया जाता है !जो बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाता है !

अनेकों पोल्ट्री किसान  TDS को मापते ही नहीं है ! इससे कईं बार बहुत नुक्सान हो जाते है !

पोल्ट्री फर्म पर TDS 1000   ppm से कम  बहुत बेहतर माना जाता है !

पोल्ट्री फर्म पर TDS  1000-3000 ppm से कम  बहुत बेहतर माना जाता है !

कईं बार पतली बीटों की समस्या जरूर हो सकती है ! परन्तु लेकिन 1000-3000 ppm पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई समस्या नहीं देखी गयी है !

परन्तु 1000-3000 ppm से अधिक टीडीएस  (  TDS) पोल्ट्री के पक्षियों के लिए सही नहीं मानी जाती !

इसलिए  TDS को भी जरूर मापना चाहिये !

हाइड्रोजन पेरोक्साइड बायो फिल्म को ख़त्म करने के लिये बेहतर माना जाता है ! ये निर्माता  हाइड्रोजन पेरोक्साइड की मात्रा के % से आपको बता देता है ! और पक्षी की उपस्थिति और अनुपस्थिति में मात्रा अलग अलग हो सकती है !

क्लोरीन की गोलियां या पॉवडर (Sodium Dichloro-IsoCynunurate ) भी बाजार में आसानी से उपलब्ध होती है ! जिसे भी आप निर्माता के बताये  डोज़ के हिसाब से उपयोग में ला सकते है !

क्लोरीन की गोलियां या पॉवडर   6.0 to 7.0  पी।  एच पर बेहतर परिणाम देती है !

पानी में सूक्ष्म जीव पनपते रहते है ! उन दुष्प्रभावों से ब्रायलर पक्षी को बचाने के लिये पानी को पानी को सैनेटाइज़ करना जरूरी होता है ! ताकि पानी में रोगाणुओं की संख्या ना बड़े !

पानी के साथ साथ पानी की पाइपलाइन ,पानी की टंकी , पानी के बर्तन भी साफ़ करने जरूरी है ! और अच्छे डिसइंफेक्टेंट से ही साफ़ करना चाहिए  !

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पर ये ध्यान रखना चाहिये , कि पक्षी की उपस्थिति में तथा पक्षी की अनुपस्थिति में कौन सा उत्पाद उपयोग में लाना चाहिये ! ये उत्पाद पर हर निर्माता बताता है! और निर्माता के बताये निर्देशों का सख्ती से पालन करना चाहिये !

अगर पानी में रोगाणुओं या विषाणुओं ने बायो फिल्म ( एक कफ जैसी परत जो किसी भी परत पर  पर चिपक जाती है और उसमे विषाणु या रोगाणु  ( वायरस या बैक्टीरिया ) एक स्थायी ग्रुप बना लेते है ! ) बना ली तो हानिकारक  विषाणु या रोगाणु ( वायरस या बैक्टीरिया ) डिसइंफेक्टेंट  से भी बच जाते है ! और और ज्यादा नुकसानदायक होते जाते है !

पानी का टैंक और पूरे सिस्टम की साफ़ सफाई !

ब्रायलर पक्षी निकल जाने के बाद सबसे पहले पानी के टैंक की सफाई करनी है ! किसी अच्छे डिसइंफेक्टेंट से पूरे टैंक को रगड़ कर साफ़ करना चाहिए !

डिसइंफेक्टेंट  का उपयोग उसे बनाने वाले निर्माता के निर्देशों के अनुसार उपयोग में लायें !

पानी की टंकी और सम्बंधित सभी ड्रिंकर्स से पानी निकाल देना चाहिये ! बाद में कुछ पानी टंकी में फिर से भर दें ! ! सिर्फ पानी की मूख्य टंकी में इतना पानी छोड़ देना चाहिये कि , प्रत्येक ड्रिंकर और पूरी पाइपलाइन में वह पानी कम ना पडे !

आगे समझते है ! पानी के टैंक में इतना पानी क्यों भरा है ! पानी के टैंक में पानी ,सभी पाइपलाइन सप्लाई के भीतर बीमारी पैदा करने वाले रोगाणुओं , विषाणुओं  और बायो फिल्म को जड़ से ख़त्म करने के लिये किया है ! पानी की टंकी में कुछ पानी में अच्छा डिसइंफेक्टेंट मिलाना है ! और पानी की सप्लाई शुरू कर देनी है !

फिर पानी को किसी टूंटी से बाहर निकलने दे और तब तक निकालें जब तक डिसइंफेक्टेंट का पूरा पानी हर ड्रिंकर और हर पाइपलाइन में अच्छे से पहुँच जाये ! अब इस पानी को लगभग 12 घंटे तक या उससे भी ज्यादा तक पाइपों और ड्रिंकर में रहने दें ताकि हर बीमारी फैलाने वाले रोगाणु और विषाणु पूरी तरह ख़त्म हो जायें !

सभी ड्रिंकर्स में भी पानी पूरी तरह आ जाना चाहिये ! ताकि सभी ड्रिंकर भी साफ़ हो जायें ! ड्रिंकर्स  में आये डिसइंफेक्टेंट्स भी कम से कम 12 घंटे पड़े रहें !

सावधानियाँ – किसी भी केमिकल को उपयोग करने से पहले आप या आपका स्टाफ पूरी सावधानियां बरतें ! आँखों में केमिकल जाने  और पानी की टंकी साफ़ करते वक़्त अनेकों बुरी घटनायें हो चुकी है !

इसलिये किसी बोतल को खोलते वक़्त आँखों और स्प्रे करते वक़्त , पानी की टंकी साफ़ करते वक़्त आप या आपका स्टाफ पूरी सावधानी रखें ! नहीं तो आप परेशानी में पढ सकतें है !

उसके बाद सभी डिसइंफेक्टेंट वाले पानी को बहा कर सभी ड्रिंकर्स और टैंक साफ़ कर लें ! सभी ड्रिंकर्स और फीडर भी  डिसइंफेक्टेंट युक्त पानी से साफ़ करने चाहियें !

पानी के टेस्ट –

पानी के टेस्ट साल में एक बार जरूर कर लेने चाहियें ! और पानी का सैंपल टंकी से नहीं अंतिम टूंटी से लेना चाहिये ! ो सैंपल बेहद साफ़ शीशी में लेना होता है ! जिसमे किसी भी प्रकार का केमिकल का अंश तक भी ना हो !

सैंपल लेने के बाद ध्यान रखें पानी संदूषित ( contaminate) नहीं होना चाहिये !

और पानी का सैंपल लेने से पहले पानी कुछ सेकंड बह जाने के बाद ही लें !

नीचे दिये पैरामीटर अच्छे पानी के लिये बेहतर होते है !

Contaminant , mineral

or  ion

Level Considered Average Maximum Acceptable Level
Bacteria Total bacteria 0CFU/ml 100 CFU/ml
Coliform bacteria 0CFU/ml 50CFU/ml
Acidity and hardness

Ph

6.8-7.5 6.0-8.0
Total Hardness 60-180 ppm 110 ppm
Naturally occurring elements Calcium (Ca) 60mg/L
Chloride (Cl) 14 mg/L 250MG/L
Copper (Cu) 0.002mg/L 0.6mg/L
Iron (Fe) 0.2mg/L 0.3mg/L
Lead (Pb) 0 0.02 mg/L
Magnesium (Mg) 14mg/L 125 mg/L
Nitrate 10 mg/L 25 mg/L
Sulphate 125 mg/L 250 mg/L
Zinc 1.5 mg/L
Sodium (Na) 32mg/ L 50 mg/L

 

 पोल्ट्री फार्म पर पीने वाले पानी का तापमान -पोल्ट्री फार्म पर पीने वाले पानी का तापमान भी काफी महत्व रखता है ! सर्दियों में जरूरत से ज्यादा ठंडा पानी देने से और गर्मियों में जरूरत ये ज्यादा गर्म पानी देने से ग्रोथ बुरी तरह प्रभावित हो सकती है ! और सर्दियों में गाउट की समस्या भी परेशान कर सकती है !

ये जानने के लिये जो पानी पक्षी को दिया जाना है !उसमे थर्मामीटर डाल कर चेक कर लें ! अगर पीने वाले पानी का तापमान 18 डिग्री से कम है तो वो पानी पक्षी को नहीं देना चाहिये !

ऐसा देखा गया है सर्दियों में 18-21 Degree Celsius ( (64-70°F) तक के तापमान का पानी देना बेहतर माना गया है ! साधारण शब्दों में गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में बिना ठंडक का पानी देना चाहिये !

कुक्कुट पालन में जल का महत्व

कुक्कुट के लिए जल सबसे आवश्यक (महत्वपूर्ण) पोषक तत्व है। आयु के अनुसार पक्षियों के शरीर में जल की मात्रा 60 से 85 प्रतिशत तक पाई जाती है। अंडों में सामान्यत: 65 प्रतिशत जल होता है। पक्षी भोजन के आभाव में तो कई दिनों तक जीवित रह सकते हंै, परन्तु जल के बिना 1-2 दिन भी जीवन संभव नहीं है। सामान्यत: कुक्कुट के लिए भोजन से दुगनी मात्रा में पेयजल की आवश्यकता होती है, तथा अत्यधिक गर्मियों के दिनों में उपरोक्त मात्रा में 4 गुना तक का इजाफा हो जाता है। दूषित जल के माध्यम से जल जनित बीमारियों के फैलाव की संभावना सदैव बनी रहती है, जो कि कुक्कुट की उत्पादन क्षमता को प्राभावित करती है। अत: सफल कुक्कुट पालन के लिए सदैव स्वच्छ एवं निरापद जल की आपूर्ति आवश्यक है।

जल के कार्य

  • जल शरीर के सभी अंगों का प्रमुख घटक है।
  • जल शरीर के आतंरिक वातावरण का रखरखाव करता है।
  • जल शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जल लगभग हर शारीरिक प्रक्रिया में शामिल होता है।
  • जल शरीर में कई बुनियादी रसायनिक प्रतिक्रियाओं का एक घटक है।
  • जल पोषक तत्वों के पाचन एवं परिवहन के लिए एक माध्यम है।
  • जल शरीर में से अनुपयोगी पदार्थों को किडनी की माध्यम से उत्सर्जन में सहायक है।

जल के स्रोत

कुक्कुट के शरीर में जल की आपूर्ति हेतु तीन प्रमुख स्रोत है।
संयोजित जल – खाद्य पदार्थों का आवश्यक भाग बनकर भोजन के साथ शरीर में पहुँचता है।
स्वतंत्र जल – प्यास लगने पर पेयजल के रूप में शरीर में पहुँचता है।
उपापचयी जल – शरीर के भीतर प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट तथा वसा में सम्मलित हाइड्रोजन के ऑक्सीकरण से जो पानी बनता है।
उपरोक्त तीनों स्रोतों में से पक्षियों के शरीर में 90 प्रतिशत जल की आपूर्ति पेयजल के द्वारा होती है। उक्त जल की गुणवत्ता कुक्कुट पालन में सदैव महत्वपूर्ण होती है, व पक्षियों की उत्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।

पेयजल की खपत को प्रभावित करने वाले कारक

पक्षियों के पेयजल के खपत की मात्रा कई कारकों के द्वारा प्रभावित होती है।
पक्षियों की आयु – पानी के सेवन की मात्रा पक्षियों की आयु की वृद्धि के साथ साथ बढ़ती है, परन्तु शारीरिक भार के अनुपात में कम होती जाती है।
कुक्कुट परिवेश का तापमान- परिवेश के तापमान की वृद्धि के साथ-साथ पक्षियों द्वारा किये गए पानी के सेवन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। गर्म दिनों में पक्षियों द्वारा शारीरिक तापमान को नियंत्रित करने के लिए श्वसन तंत्र के माध्यम से जो अतिरिक्त जल का हनन होता है, उसकी पूर्ति हेतु अधिक जल के सेवन की आवश्यकता होती है।

पेयजल का तापमान

कुक्कुट के लिए पेयजल का तापमान कुक्कुट के शारीरिक तापमान से अधिक नहीं होना चाहिए। गर्म पेयजल पक्षियों द्वारा जल के सेवन की मात्रा में नकारात्मक प्रभाव डालता है। गर्मियों के दिनों में पक्षियों को सदैव शीतल जल उपलब्ध करना चाहिए।

पेयजल में इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा – गर्मियों के दिनों में पक्षियों के शरीर में से इलेक्ट्रोलाइट्स की हनन दर में काफी वृद्धि हो जाती है, जिसे पेयजल के साथ आपूर्ति करना महत्वपूर्ण होता है। उपरोक्त इलेक्ट्रोलाइट्स की पेयजल के साथ आपूर्ति न सिर्फ उपरोक्त कमी को पूरा करती है साथ ही साथ जल के सेवन में भी वृद्धि करती है।

प्रकाश की मात्रा – कुक्कुट सामान्यत: प्रकाश की अनुपस्थिति में भोजन व जल ग्रहण नहीं करते हैं। प्राय: यह देखा गया है, कि डार्क पीरियड के आरंभ होने के पूर्व व समाप्ति के तुरंत बाद पेयजल की खपत बहुत अधिक पायी जाती है।

पेयजल की गुणवत्ता

कुक्कुट के अच्छे स्वास्थ्य और विकास के लिए गुणवत्ता पूर्ण पेयजल की आपूर्ति सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। पक्षियों तक पहुंचने वाले पानी का हर तरह से स्वच्छ रहना महत्वपूर्ण है। पेयजल में गुणवत्ता की कमी जल के सेवन की मात्रा में नकारात्मक प्रभाव डालता है। पक्षियों में पेयजल के माध्यम से दी जाने वाली दवाइयाँ व वैक्सीन की उपयोगिता भी पेयजल में गुणवत्ता से प्रभावित होती है, अत: पानी और पेयजल लाइनों की स्वच्छता का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

पेयजल की गुणवत्ता को प्रभाभित करने बाले कारक

पानी की गुणवत्ता अक्सर स्रोत के आधार पर प्रत्येक स्थान या क्षेत्र में मौसम के अनुसार बदलती रहती है। पेयजल की गुणवत्ता मापने के लिए उसका रंग, गंध, स्वाद श्च॥ तथा मैलापन प्रमुख भौतिक मानक है। पेयजल का मैलापन रेत, शैवाल, व अन्य कार्बोनिक पदार्थों की उपस्थिति से होता है। पेयजल का कड़वापन अत्यधिक आयरन, मैंगनीज व सल्फर के द्वारा होता है। आयरन की अधिक मात्रा से जल लाल तथा भूरे रंग का हो जाता है। कॉपर की अधिक मात्रा से जल नीला हो जाता है। जब जल के मैलापन का स्तर 5 श्चश्चद्व से अधिक हो जाता है, तब जल पक्षियों के पीने योग्य नहीं रह जाता है। रसायनिक मानकों में क्षारीयता, कठोरता और अवांछित खनिजों की मात्रा प्रमुख मानक है। कैल्शियम व मैग्नीशियम के लवण जल की कठोरता के प्रमुख कारण है। पेयजल में अवांछित खनिज सीसा, आर्सेनिक व सेलेनियम की मात्रा 1पीपीएम से अधिक पक्षियों के स्वास्थ्य में विपरीत असर करती है। बोरिंग से प्राप्त पेयजल में क्षारीयता और कठोरता उच्च स्तर पर होती है। सतही जल में सोडियम, पोटेशियम और लोहे के उच्च स्तर हो सकते हैं। इनके अतरिक्त पक्षियों के पेयजल में टोटल बैक्टीरियल काउंट भी निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं होना चाहिए।

पेयजल की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रबंधन

निस्पंदन (छानना) अम्लीकरण और जल स्वच्छता (सैनिटेशन) ऐसी प्रथाएं हैं जो प्रभावी रूप से पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के प्रयोग की जाती है।

  • कुक्कुट आवास के जल का नियमित रूप से अवलोकन करना चाहिए व प्रत्येक मौसम के बदलाव के साथ उसकी प्रयोगशाला में विस्तृत जाँच करवानी चाहिए।
  • पेयजल की सप्लाई लाइन को नियमित रूप से उच्च दाव जल से फ्लैश करना चाहिए।
  • पेयजल की सफाई में प्रयुक्त फिलटरों की नियमित सफाई करना चाहिए व जरुरत महसूस होने पर तुरंत बदलना चाहिए।
  • जल के जैविक सूक्ष्म भार को कम करने के लिए पेयजल का अम्लीकरण व सैनेटाइज़ेशन करना चाहिए।
  • सैनेटाइज़ेशन के लिए क्लोरीनेशन सबसे सरल उपाय है, उपरोक्त के लिए 5-10 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर को 1000 लीटर पेयजल में मिलाकर कम से कम 1 घंटा रखना चाहिए उपरोक्त पानी को पक्षियों को देने के पहले ये सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि़ जल में क्लोरीन की मात्रा 2 श्चश्चद्व से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • कार्बनिक अम्लों जैसे साइट्रिक और एसिटिक एसिड का उपयोग पेयजल के क्कद्ध मान तथा सूक्ष्म भार को कम करने किया जाता है, परन्तु यह भी ध्यान देना चाहिए कि़ यह क्कद्ध मान 6 से कम न हो जाये अन्यथा यह उत्पादन क्षमता पर विपरीत असर डालता है।
  • पेयजल पाइपलाइन की भीतरी सतह पर जमी बैक्टीरिया व गंदगी के संयोजन से निर्मित जैव-फिल्म को तोडऩे की लिए 50त्न हाइड्रोजन पेरोक्साइड को 12 घंटे की लिए पाइपलाइन में भरकर छोडऩा चाहिए। उसके उपरांत पाइपलाइन की सफाई उच्च दाब जल के माध्यम से करना चाहिए, उपरोक्त क्रिया में यह भी ध्यान देना चाहिए की टूटी हुई जैव-फिल्म के अवशेष पक्षियों के पेयजल में नहीं मिलना चाहिए।

STANDARD OF DRINKING WATER

Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

 Image-Courtesy-Google

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