मछली पालन के लिए तालाब निर्माण की पुरी जानकारी ।
मत्स्य पालन में तालाब से मछलियों की उत्पादकता जल की प्राथमिक उत्पादकता पर निर्भर करती है । जिसमें तालाब की मिट्टी की किस्म का महत्वपूर्ण भूमिका है । तालाब निर्माण के साथ-साथ उसके जल की मिट्टी अनेक रासायनिक – जैविक क्रियाओं के माध्यम से तालाब के पानी की उत्पादकता निर्धारित करती है । प्राथमिक उत्पादकता कालांतर में मत्स्य उत्पादन को नियंत्रित करती है । इसका कारण यह है कि तालाबों में मछलियाँ अपना भोजन प्राथमिक तौर पर जल में उपलब्ध प्लवकों तथा अन्य जीव जंतुओं पर करती हैं।
तालाब की मिट्टी निम्न प्रकार से जलकृषि में सहायक होती है
यह तालाब के जल-धारण क्षमता को निर्धारित करती है ।
यह वायु संजोने में सहायक है जो नितलों में उपस्थित जीवों के श्वसन प्रदान करती है ।
तालाब की मिट्टी अपनी तली पर कई जैव रसायनिक / रसायनिक क्रियाओं में सहायक है ।
इसके अघुलनशील कण जल में टब्रिडीटी उत्पन्न करते हैं,जिससे सूर्य की किरणे तली तक नहीं पहुँच पाती है ।
मिट्टी की रसायनिक क्रियाएं पादक प्लवकों में वृद्धि में सहायक होती है,जिन्हें मछलियाँ भोजन के रूप में ग्रहण करती है ।
उन्नत तालाब हेतु मिट्टी के आवश्यक गुण
मत्स्य पालन हेतु उपयुक्त मिट्टी की भौतिक जाँच, मिट्टी के गठन एवं उसकी संरंचना पर की जाती है । मिट्टी में उपलब्ध बालू एवं क्ले की मात्रा से स्थापित होता है कि मिट्टी तालाब निर्माण के लिए उपयुक्त है अथवा नहीं । तालाब निर्माण का तात्पर्य उसके जल –धारण से है । अधिक बालू का अनुपात जल रिसाव को बढ़ावा देता है जिससे तालाब में बार-बार पानी भरना आवश्यक हो जाता है तथा जलकृषि आर्थिक घाटा उन्मुख हो जाती है । मिट्टी की संपीडता द्वारा मिट्टी की आपसी पकड़ अथवा मजबूती का ज्ञान होता है जिससे तालाब के बाँध निर्माण में उनकी चौड़ाई एवं ढलान के निर्धारण में सहायता मिलती है ।
मिट्टी के रसायनिक गुण
मिट्टी के भौतिक गुण के अतिरिक्त इसके रसायनिक गुण तथा पी०एच० आर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन एवं मिट्टी में उपलब्ध फस्फोरस प्रमुख है। उदासीन मिट्टी अथवा न्यूट्रल स्वायल (पी०एच०: 7.0) सर्वाधिक उपयुक्त मिट्टी मानी जाती है क्योंकि इस मिट्टी के पोषक तत्वों की जल में विमुक्ति संतुलित मात्रा में होती है। अम्लीय पी०एच० मछलियों में कई बीमारियाँ उत्पन्न करता है तथा उच्च पी०एच० होने पर मछलियों को भूख कम लगने एवं अल्प वृद्धि की शिकायत हो जाती है । आर्गेनिक कार्बन की कमी से तालाब की प्राथमिक उत्पादकता कम हो जाती है। इससे प्लवकों का उत्पादकता कम हो जाती है । इससे प्लवकों का उत्पादन कम होता है ।
मिट्टी का वर्गीकरण
मछली पालन में मिट्टी में उपलब्ध कणों के आधार पर इसका वर्गीकरण किया जाता है । कणों या अन्य गुण जैसे प्लास्टिसिटी, कम्प्रेसिब्लिटी के आधार पर मिट्टी के 12 किस्मों में वर्गीकरण किया गया है । मुख्यत: मिट्टी के कण तीन आकर में होते हैं ।
(क) सैंड – 2.0 से 0.50 मि०मी०।
(ख) सिल्ट – 0.05 से 0.002 मि०मी०।
(ग) क्ले – 0.02 मि०मी० से कम।
निर्माण या उत्पत्ति के आधार पर मिट्टी को काली मिट्टी लाल मिट्टी, लैटेराईट मिट्टी, एलुवियल मिट्टी, रेगिस्तानी मिट्टी, तराई मिट्टी, दलदली मिट्टी आदि में विभाजित किया जाता है । यह वर्गीकरण अत्यंत जटिल है एवं भारत में इस प्रकार मिट्टी को करीब 25 किस्मों में विभाजित किया गया है । मछली पालन के मद्देनजर काली मिट्टी में कार्बनिक कार्बन, नाइट्रोजन तथा फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों की कमी होने के कारण एवं कैल्शियम तथा मैग्नेशियम की कमी होती है । लाल मिट्टी तथा लैटेराईट स्वायल में पी०एच० कम होने के कारण एवं कैल्शियम तथा मैग्नेशियम की कमी से मछली पालन के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है । एलुवियल स्वायल भारत में पाई जाने वाली प्रमुख मिट्टी है तथा रंग में यह हल्की स्लेटी से पीली भूरी या गहरी स्लेटी हो सकती है । इस मिट्टी में पोटाश तथा अल्कली भरपूर मात्रा में होता है । अगर इस मिट्टी में अन्य पोषक तत्व यथा नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि को समुचित मात्रा में पूरक के तौर पर दिया जाय तो यह मिट्टी मछली पालन के लिए सर्वथा उपयुक्त हो जाती है ।
रेगिस्तानी मिट्टी में बालू के कण की अधिकता होती है । इस मिट्टी में कार्बन अधिक होने के साथ-साथ लवण की मात्रा भी समुचित होती है । इसके कारण इसका पी०एच० मछली पालन हेतु उपयुक्त होता है और संरचना में यह मिट्टी सैंडी लोम जैसी होती है । मछली पालन के लिए यह उपयुक्त है ।
दलदली मिट्टी तथा लवणीय मिट्टी मछली पलान हेतु बहुत उपयुक्त नहीं होती है । अगर नए तालाब का निर्माण करना है तो उचित यही प्रतीत होता है कि मिट्टी को ध्यान में रखकर स्थल का चयन क्या जाय । अगर तालाब पुराना है तो उसका जीर्णोद्धार तथा उसकी तली का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसकी मिट्टी का परिसंशोधन हो जाए एवं जल में आवश्यक तत्व उपलब्ध हो जाएं ।
मछली पालन के लिए तालाब का निर्माण
मछली पालन के लिए तालाबों का आकार, उसका क्षेत्रफल, उसकी गहराई, उसकी बनावट महत्वूर्ण है । तालाब बनाने से पहले स्थानों का चयन करना चाहिए । इसके लिए महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं : –
उस स्थान की मिट्टी में पानी जामव की क्षमता अधिक होनी चाहिए ।
जमीन जहाँ कृषि कार्य करने में कठिनाई होती है तथा जल जमाव की सम्भावना हो, ऐसी जमीन मत्स्यपालन के दृष्टिकोण से काफी उपयुक्त होती है ।
ऐसी जमीन जहां उर्वरकों का शोषण नहीं हो ।
उस स्थान की मिट्टी का पी०एच० मान उदासीन के करीब (6.5 – 8.5) होना चाहिए ।
तालाब के लिए खुली जगह का चुनाव आवश्यक है । तालाब छायादार जगह में नहीं होना चाहिए ।
तालाब के आस-पास सदाबहार जलस्त्रोत होना आवश्यक है ।
तालाब तक पहुंचने के लिए सड़क की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए ।
यदि ऊपर दी गई शर्तों में से अधिकांश उपलब्ध हों तो इस तरह का पोखर व्यवसायिक दृष्टिकोण से काफी उपयुक्त होगा ।
तालाब बनाने से पहले मिट्टी की जाँच
जिस स्थान पर तालाब है उस स्थान के मिट्टी की जाँच प्रयोगशाला से अवश्य करा लेनी चाहिए। मिट्टी जाँच का एक आसान तरीका है जो स्वयं किया जा सकता है । करीब 10-12 स्थान से 3-4 इंच अन्दर की मिट्टी को खोदकर निकाल लें । सभी जगह की मिट्टी को अच्छी तरह मिलाकर एक जगह किसी प्लास्टिक के बर्तन में रख लें। यदि मिट्टी सुखी हुई हो तो उसमें थोडा पानी का छींटा डालकर हल्का गीला कर लें । फिर हाथ के द्वारा मिट्टी का गोला बनाकर बाल की तरह उपर उछालते हुए हाथ में वापस लें । यदि गोला हथेली में वापस आने तक टूट कर बिखर जाय तो समझें की मिट्टी तालाब निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है । यदि वापस हथेली में गोला उसी रूप में आ जाये जो समझे कि मिट्टी मत्स्यपालन के लिए उपयुक्त है । ऐसी मिट्टी में पानी रखने की क्षमता काफी होती है ।
तालाब का आकार एवं बनावट
तालाब आयताकार होना चाहिए । लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 2:1 या इसके आसपास होनी चाहिए । चौड़ाई हमेशा 50मी० से कम होनी चाहिए । माडल तालाब के लिए लम्बाई 50 मी० और चौड़ाई 20 मी० होनी चाहिए । सूर्य प्रकाश पानी में 2.5 मी० गहराई तक ही जा सकती है । इसे Euphotic Zone कहते हैं । अत: ज्यादा गहराई व्यर्थ होती है ।
बाँध
बांधों की चौड़ाई एवं उसकी बनावट ऐसी होनी चाहिए कि तालाब के जल द्वरा डाले गये दबाव को सहन कर सकें । साथ ही पानी को रिस कर बाहर नहीं जाने दें । बाँध का निर्माण करने के पहले बांस की खुटियाँ गाड़कर रेंखांकित कर लेना चाहिए । बाँध बनाने से पहले उसके आसपास के पेड़ पौधे, खर-पतवार जड़ सहित एवं रोड़ा पत्थर भी हटा लेना चाहिए । रेखांकित किये गये सतह के उपरी भाग में करीब 20 से.मी. मिट्टी काटकर हटा देना चाहिए । ऐसा करने से बाँध का उपरी स्तर एक सतह में आ जाता है । तालाब की खुदाई के द्वारा निकली गई मिट्टी से बांध बनाना चाहिए । बाँध बनाने के लिए चिकनी मिट्टी का होना बहुत आवश्यक है । क्योंकि चिकनी मिट्टी, कणों को एक दूसरे से जोड़ सकती है । लेकिन केवल चिकनी मिट्टी से भी बाँध नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि उसके सूखने पर उसमें दरार पड़ जाती है । इसलिए अच्छा बाँध बनाने के लिए 15 से 25 प्रतिशत रेतीली मिट्टी, 60 से 80 प्रतिशत बलुई मिट्टी, 8 से 15 प्रतिशत चिकनी मिट्टी को मिलाकर बाँध का निर्माण करना चाहिए । बाँध बनाते समय प्रति एक फीट डालने के बाद उसपर पानी का छिड़काव कर पीट-पीट कर दबा देना चाहिए ताकि वः धंस नहीं सके ।
बाँध का निर्माण
बाँध सीधे खड़ा नहीं होना चाहिए क्योंकि खड़ा बांध काफी कमजोर होता है । अत: पाने के दबाव को बर्दाश्त करने के लिए इसे ढलान युक्त होना चाहिए ।
तालाबों के बाँध प्राय: मिट्टी के बनाये जाते है । कुछ राज्यों में जहां तालाबों में सघन मत्स्य पालन किया जाता है वहीँ सीमेंट या कंक्रीट के बाँधों का निर्माण भी कराया जाता है । इन तालाबों में प्राकृतिक उत्पादकता का कोई महत्त्व नहीं होता है क्योंकि सघन मत्स्य पालन में आहार तथा घुलनशील आक्सीजन की पूरक व्यवस्था होती है ।
बाँध की ऊंचाई एवं बांध की शिखर की चौड़ाई
तालाब के चारों ओर बनाये गये बाँध की ऊंचाई तालाब की तली से 3.8 मी० रखी जाती है, जिससे मिट्टी बैठने के बाद भी ऊंचाई कम से कम 3.5 मी० रह जाय । मिश्रित मत्स्यपालन में तालाब में पानी की गहराई 2-2.5 मी० होनी चाहिए ।
बांधों के प्रकार
प्रक्षेत्र पर दो प्रकार के बांधों की आवश्यकता होती है
मुख्य अथवा बाहरी (पेरिफेरल डाईक) – इन बंधों के निर्माण में जल भराव की क्षमता विकसित करने हेतु तालाब को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से किया जाता है। तालाब के चारों ओर निर्मित होने वाला बाँध पेरिफेरल डाईक की श्रेणी में आता है ।
विभाजन बाँध (पार्टीशन या सेकेंडरी डाईक) –यह बाँध एक तालाब को दूसरे तालाब से अलग करने के उदेश्य से बनाया जाता है।मुख्यतया बाँध की अपेक्षा यह थोड़ा नीचा तथा पतला होता है ताकि निर्माण लागत कम हो सके ।
बाँध की ऊंचाई की गणना
तालाब के बाँध के निर्माण में बांधों की ढलान तथा बाँध के उपरी सतह की चौड़ाई का भी अपना महत्त्व है । व्यवसायिक मत्स्य प्रक्षेत्रों में तालाबों के बांधों पर मध्यम एवं भारी वाहन भी गुजरते हैं । ऐसी स्थिति में कम से कम 3.7 मी० से 6.0 मी० तक बाँध की चौड़ाई रखना आवश्यक हो जाता है । वैसे सामान्य आकार में उपरी बाँध की चौड़ाई बाँध की ऊंचाई पर निर्भर करती है जो निम्न प्रकार हो सकती है –
बाँध की ऊंचाई (मीटर में)
बाँध की चौड़ाई (मीटर में)
3.0 से कम
2.4
3.0 से 4.5
3.0
4.5 से 6.0
3.7
6.0 से 7.5
4.3
बांधों की ढलान
साधारण मिट्टी के लिए बाँध की ढलान यानि आकार और ऊंचाई का अनुपात 2:1 होना चाहिए । हल्की भुरभुरी मिट्टी के लिए आधार और ऊंचाई का अनुपात 3:1 होना चाहिए एवं हल्की– बलुई एवं नर्म चिकनी मिट्टी के लिए अनुपात 4:1 होना चाहिए ।
तालाब के बांधों को ढाल देने का मुख्या उदेश्य इन्हें समुचित मजबूती प्रदान करना है । अधिक ढाल के बाँध की निर्माण लागत कम होती है किन्तु वे बांध तालाबों की लहरों अथवा बाहरी दबाव को झेल नहीं पाते हैं । मजबूती की दृष्टि से कम ढाल के बाँध को इतना समुचित ढाल दिया जाता है की वे मजबूत भी रहें तथा निर्माण लागयत न्यूनतम रहें । विभिन्न प्रकार की मिट्टियों के लिए अनुशंसित ढाल की गणना निम्न रूप से दी जा रही है ।
मिट्टी के प्रकार
अन्दर का ढाल
बाहर का ढाल
सैंडी-लोम
1:2 – 1:3
1:1.5 – 1:5
सैंडी क्ले
1:0 – 1:5
1:0 – 1:5
मजबूत क्ले
1:1
1:1
अन्दर की इंटों की सतह
1:1 – 1:1.5
1:1.5 – 1:2
अन्दर की और कंकरीट की सतह
0:75 – 1:1
1:1.5 – 1:2
फ्री बोर्ड – यह बाँध की ऊंचाई का वह भाग है, जो तालाब के जल स्तर से उपर रहता है । इसके अतिरिक्त ऊंचाई द्वारा तालाब का पानी तरंगों के रूप में बहार नहीं जा सकता है तथा मछलियों भी कूद कर तालाब से बाहर नहीं जा सकती है । फ्री बोर्ड ऊंचाई सामान्यत आकस्मिक वर्षा से भी तालाब को सुरक्षित रखता है । फ्री बोर्ड की ऊंचाई विभिन्न परिस्थितियों में अलग-अलग होती है किन्तु भूमिबंधित राज्यों के लिए सामान्य आकलन निम्न प्रकार से किया जा सकता है –
तालाब की विभिन्न लम्बाईयों पर फ्री बोर्ड की अनुमानित ऊंचाई
तालाब की ऊंचाई (मी.में )
न्यूनतम फ्री बोर्ड (मी.में )
20 से कम
0.3
200 से 400
0.5
400 से 800
0.6
बांध बैठाने की गणना
बाँध निर्माण की प्रक्रिया में मिट्टी को अधिकतम घनत्व देना आवशयक है । यह तभी संभव है जब मिट्टी में समुचित मात्रा में नमी उपस्थित हो । सामान्यत: 15 से 20 सें० मी० मोटी मिट्टी की तह को रोलर से बैठा कर दूसरी सतह देनी चाहिए । यदि मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बहुत ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति में स्वायल सेटलमेंट अलाउंस 15-20 प्रतिशत तक रखी जाती है ।
जल निकासी का प्रबंध
बांधों के निर्माण के लिए मजबूत तथा कम जल रिसाव वाली मिट्टी का उपयोग आवश्यक है । एक आदर्श मत्स्य प्रक्षेत्र के लिए सभी तालाबों से जल निकासी का प्रबंध आवश्यक है । तालाब में पानी की आउटलेट दो प्रकार का होता है जो स्थानीय आवश्यकता पर निर्भर करता है । एक प्रकार के आउटलेट में तालाब की औसत जल धारण सतह के ठीक उपरी जाली के साथ पाइप लगा दिया जाता है ताकि अतिवृष्टि के समय तालाब का पानी बांधों के ऊपर से नहीं निकले । महाझींगा, मांगुर तथा इसी प्रकार के अन्य जलकृषि में तालाबों को यदाकदा पूर्ण रूप से सूखने की आवश्यकता होती है । ऐसी स्थिति में तालाब की तली के स्तर पर या उससे थोडा नीचे की ओर की आउटलेट पाइप (ह्युम पाइप) लगा रहता है । आउटलेट पाईप का व्यास तालाब के आकार एवं जलक्षेत्र पर निर्भर करता है सामान्यत: छोटे तालाबों के लिए एक फीट व्यास का पाइप इस्तेमाल होता है । औसतन एस बात का ख्याल रखा जाता है कि पानी अधिकतम दो से तीन दिनों के अन्दर पूर्ण रूप से बाहर निकाल जाय ताकि मछलियों पर अचानक प्रतिकूल स्थिति नहीं आए तथा उनके रक्षा की समुचित व्यवस्था हो सके।