पशुचिकित्सक: एक आवश्यक स्वास्थ्यकर्मी: विश्व पशु चिकित्सा दिवस पर विशेष। 

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    Use  of Homeopathy in Veterinary Practice  

पशुचिकित्सक: एक आवश्यक स्वास्थ्यकर्मी: विश्व पशु चिकित्सा दिवस पर विशेष। 

डॉ तरुण सरदाना

पशु चिकित्सक  

पशुचिकित्सक: एक ऐसा नाम जिसके बारे में सुनते ही हमारे मन में एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है, जो गाँव की गलियों में गोबर से सने हुए वस्त्र पहन कर गाय, भैंस अथवा अन्य पशुओं का इलाज करता है। लेकिन एक पशुचिकित्सक स्वस्थ समाज एवं स्वस्थ वातावरण के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका शायद अंदाज़ा भी एक आम इंसान नहीं लगा पाता। पशुचिकित्सक इस समाज का एकमात्र ऐसा चिकित्सक है जिसके ऊपर न केवल पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य की बल्कि इंसानो और समाज को स्वस्थ बनाये रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। वह अदृश्य रूप में पर्दे के पीछे रह कर अपनी सभी  जिम्मेदारियों का निर्वहन करता रहता है। पशु स्वास्थ्य से जन स्वास्थ्य तथा खाद्य सुरक्षा से लेकर पर्यावरण सुरक्षा तक सभी कुछ इनके प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग होता है।  पशुचिकित्सक न केवल ऐसे समाज में अपनी सेवाएं देता है जहाँ किसी परिवार की आर्थिक दशा दूध, अंडा व् मांस उत्पादक पशुओं, माल ढोने व् परिवार के लिए मजदूरी करने वाले पशुओं पर निर्भर करती है, बल्कि एक ऐसे समाज को भी सेवाएं देता है जहाँ किसी मनुष्य की मानसिक सेहत भी अपने पालतू पशुओं से जुडी होती है। विश्व पशुचिकित्सा दिवस जोकि प्रतिवर्ष अप्रैल मास के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है, इस वर्ष भी पशुचिकित्सक: एक आवश्यक स्वास्थ्यकर्मी विषय को ध्यान में रख कर मनाया जा रहा है। एक पशुचिकित्सक की क्षमताओं को स्वास्थ्य सेवाओं के अभिन्न अंग के रूप में देखा जाना चाहिए। पशुचिकित्सक कई रूप में अपनी सेवाएं देता है जो उसको वन हेल्थ के परिदृश्य में आवश्यक तथा अभिन्न बनती है।

ज़ूनोटिक बीमारियां: एक सर्वेक्षण के अनुसार इंसानो में पायी जाने वाली 60% बीमारियां ज़ूनोटिक होती हैं अर्थात ऐसी बीमारियां जो पशुओं से मनुष्यों में फैलती हैं। पशुचिकित्सक अपनी रोज़मर्रा की प्रैक्टिस में निरंतर इन बीमारियों से जूझता है व् इनका निदान तथा उपचार करता है। एक पशुचिकित्सक ही पशुपालक को ऐसी बिमारियों के बारे में आगाह कर सकता है जो उसे उसके पशुओं के संपर्क में आने से हो सकती हैं। पशुचिकित्सक निरंतर इन बिमारियों पर काम करता हुआ ऐसी विशेषज्ञता हासिल करता है जो इन बिमारियों का समय से पहले निदान सुनिश्चित करती है।

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उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप के कई देशों में ब्रूसीलोसिस तथा ट्यूबरक्लोसिस जैसी ज़ूनोटिक बिमारियों का सम्पूर्ण खात्मा वहां के पशुचिकित्सकों के बहुमूल्य सहयोग के द्वारा ही संभव हो पाया है। इन देशों में ऐसी बिमारियों की पहचान कर इन्हे फार्म अथवा स्लॉटर हाउस के स्तर पर ही ख़त्म कर मनुष्यों में फैलने से रोकने में मदद मिली।

खाद्य सुरक्षा: उत्तर भारतियों की थाली तो दूध व् दुग्ध उत्पादों के बिना पूर्ण नहीं हो सकती।  इसी प्रकार मांस व् अंडा भी सम्पूर्ण विश्व में लोगों की भोजन सम्बन्धी जरूरतें पूरा करने का एक प्रमुख स्त्रोत है। खाद्य सुरक्षा सम्बंधित सरकार के नियम व् अन्य सरकारी एजेंसियां केवल बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच कर सकती हैं , परन्तु एक पशुपालक अपने उत्पादों को इन मानकों पर खरा उतरने लायक कैसे बनाये इसकी जानकारी पशुपालकों को एक पशुचिकित्सक ही उपलब्ध करवा सकता है, अर्थात उत्पादन के स्तर पर, जहाँ गुणवत्ता के मानकों को सबसे प्रमुखता से लागू किया जा सकता है, वहां तक पहुँच पशुपालक के अलावा केवल एक पशु चिकित्सक की ही हो सकती है। फार्म के स्तर पर पशुओं की स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल हो या प्रसंस्करण के विभिन्न चरणों में उत्पाद को दूषित होने से बचाना हो, एक पशुचिकित्सक यह सुनिश्चित करता है की केवल ज़ूनोटिक बिमारियों से मुक्त व् न्यूनतम बैक्टीरियल लोड वाला उत्पाद ही खाद्य श्रंख्ला में पहुंचे। इस प्रकार एक पशुचिकित्सक ही पशु स्वास्थ्य के साथ जन स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।

मानव चिकित्सा में नयी तकनीकों एवं नयी दवाओं की खोज के साथ पशु कल्याण का निरंतर बढ़ता महत्व: आज के बदलते परिदृश्य में  जहाँ नयी बिमारियों का प्रकोप इंसान को डरा रहा है,वहीँ वैज्ञानिक नित नयी खोजों के साथ चिकित्सा सुविधाओं को नए आयाम तक पहुंचा रहे हैं। लगातार तथा विवेकहीन इस्तेमाल से जहाँ पुरानी दवाओं व् एंटीबायोटिक्स का असर कम हुआ है, वहीँ नयी पीढ़ी की दवाओं का आविष्कार मानव स्वास्थ्य को बचाये रखने के लिए जरुरी हो गया है। इन सब नयी खोजों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव निरीह प्राणियों पर हुआ है, क्योंकि सभी प्रकार के नए चिकित्सा आविष्कारों को अंतिम स्वीकृति मिलने से पहले आवश्यक रूप से पशुओं पर टेस्टिंग की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। इन सब प्रयोगों के यज्ञ में न जाने कितने मूक प्राणी प्रयोगशालाओं में अपने प्राणो की आहुति दे देते हैं।

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आज के युग में जहाँ मानवाधिकारों के साथ पशु अधिकारों को भी बराबरी का स्थान दिया जा रहा है, कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने प्रयोगशालाओं में प्रयोग होने वाले पशुओं के कल्याण के लिए भी कई मानक बनाये हैं, ताकि मानव जाति की भलाई के लिए अपने प्राण न्योछावर कर देने वाले इन जीवों को भी सम्मान पूर्वक जीवन मिल सके। इंसान की इन जीवों के प्रति कृतज्ञता को चुकाने व् इनका वेलफेयर/कल्याण सुनिश्चित करने में पशुचिकित्सकों की भूमिका को कदापि नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

मानव बिमारियों की जांच में पशुचिकित्सक की भूमिका: जहाँ कुछ बीमारियां जैसे की ग्लैंडर्स की जांच देशभर में केवल पशुचिकित्सा संस्थानों में स्थित प्रयोगशालाओं में ही हो सकती है, वहीँ कुछ अन्य मुख्य बीमारियां जैसे की ब्रूसीलोसिस/ माल्टा ज्वर, रेबीज तथा बोवाइन ट्यूबरक्लोसिस एवं पैरा ट्यूबरक्लोसिस की जांच में मुख्यतः पशुचिकित्सकों का विशेष योगदान रहता है। इसके अतिरिक्त कोरोना महामारी के समय अधितकम जांच क्षमता को हासिल करने के लिए भी पशु चिकित्सा विज्ञान की प्रयोगशालाओं का भरपूर प्रयोग किया गया।

स्वास्थ्य शिक्षा, प्रचार एवं प्रसार: एक पशुचिकित्सक के कन्धों पर संक्रामक एवं असंक्रामक रोगों के बारे में आम जनमानस को जागरूक करने की जिम्मेदारी रहती है  अपने क्षेत्र में किसी समय विशेष में पनपने वाली बिमारियों के बारे में जानकारी रखना तथा इस जानकारी को समाज में प्रवाहित करना एक पशुचिकित्सक की दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है।

आपदा प्रबंधन: प्राकृतिक आपदा जैसे की भूकंप, बाढ़, तूफ़ान इत्यादि के दौरान जितनी मानव जीवन की रक्षा महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक है हमारे मवेशियों की जान को सुरक्षित करना। अक्सर आपदा की स्थिति में इंसान अपनी जान को प्राथमिकता देते हुए पशुओं के जीवन को भूल जाता है। परन्तु एक पशुचिकित्सक का अंतर्मन निरंतर इस फ़िक्र में रहता है की गैर इंसानो के जीवन को भी कैसे सुरक्षित किया जाये। आपदा में घायल पशुओं के इलाज़ से लेकर पशुओं को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना तथा उनके लिए चारे की व्यवस्था सुनिश्चित करने तक एक पशुचिकित्सक कई रोल अदा करता है।

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पशु स्वास्थ्य के साथ साथ जनस्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखने में एक पशुचिकित्सक के योगदान को अक्सर कमतर आँका जाता है। परन्तु उसकी क्षमताएं स्वस्थ समाज के निर्माण का एक अभिन्न हिस्सा हैं। पशुचिकित्सक भी एक समाज की सच्ची सेवा तभी कर सकता है जब किसी स्वास्थ्य समस्या के प्रति उसका दृष्टिकोण महामारी विज्ञान के नियमों का व्यावहारिक उपयोग करते हुए पशु स्वास्थ्य के साथ साथ जनस्वास्थ्य को भी सुरक्षित करने का काम करे।

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