एक विश्‍व, एक स्‍वास्‍थ: जूनोसिस से बचाव एवं जूनोसिस के प्रसार को रोकें।

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एक विश्‍व, एक स्‍वास्‍थ: जूनोसिस से बचाव एवं जूनोसिस के प्रसार को रोकें।

डॉ ज्‍योति जैन, अति‍रिक्‍त उपसंचालक 

राज्‍य पशुपालन प्रशिक्षण संस्‍थान, भोपाल

एक विश्‍व, एक स्‍वास्‍थ्‍य दृष्टिकोण के विषय में यह कहना अतिश्‍योक्ति नहीं होगी, कि एक विश्‍व, एक स्‍वास्‍थ्‍य: की अवधारणा हमारे सहस्‍त्राब्‍दी ईसा पूर्व के बृहदारण्‍यक उपनिषद के श्‍लोक सर्वे भवन्‍तु सुखिन:, सर्वे सन्‍तु निरामय: पर आधारित है। एक स्‍वास्‍थ्‍य दृष्टिकोण इस श्‍लोक के भावार्थ को पूर्णत: सा‍र्थक करता प्रतीत हो रहा है।

” एक विश्‍व, एक स्वास्थ्य” दृष्टिकोण एक ऐसी अवधारणा का सारांश है, जो एक सदी से भी अधिक समय से जानी जाती है; कि मानव, पशु, पक्षी और पौधो का स्वास्थ्य एक दूसरे पर निर्भर है और उन पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, जिनमें वे मौजूद हैं। वन हेल्थ एक एकीकृत विचार है जो स्वास्थ्य, उत्पादकता और संरक्षण चुनौतियों को हल करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ लाता है।

भारत के लिए यह दृष्टिकोण बहुत महत्‍वपूर्ण हैं, क्‍योंकि भारत अपने विविध वन्यजीवों, सबसे बड़ी पशुधन आबादी और मानव आबादी के उच्च घनत्व के साथ, बीमारियों के प्रसार के लिए उच्च जोखिम उठाता है। कोविड महामारी व  पशुओं में हाल ही में लम्पी स्किन डिजीज का प्रकोप और एवियन इन्फ्लूएंजा का लगातार खतरा यह दर्शाता है, कि यह केवल मानव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण (जूनोसिस) से बीमारियों को संबोधित करने के बारे में नहीं है, बल्कि हमें पशुधन और वन्यजीव पहलुओं को संबोधित करने की आवश्यकता है। यह विभिन्‍न क्षेत्रो में विद्यमान शक्तियों का लाभ उठाने एवं एक मजबूत प्रतिक्रिया प्रणाली तैयार करने के अवसर भी खोलता है। “हम वैश्विक स्वास्थ्य के लिए जोखिमों को समझने, उनका पूर्वानुमान लगाने और उनका समाधान करने के लिए एक सहयोगात्मक, संपूर्ण समाज, संपूर्ण सरकार के दृष्टिकोण के रूप में इसकी परिकल्पना और क्रियान्वयन करते हैं।

वन हेल्‍थ अवधारणा की कोई अंतराष्‍ट्रीय स्‍तर पर सहमत परिभाषा नहीं है, हॉलाकि कुछ सुझाई गई है, जो कि निम्‍न है-

परिभाषा-2021

वन हेल्‍थ हाई लेवल एक्‍सपर्ट पैनल, जो कि चतुर्पक्षीय संगठनों का एक स्‍वतंत्र सलाहकार समूह है,(एफएओ, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूओएएच और यूएनईपी)    ने वन हेल्‍थ की एक व्‍यापक परिभाषा प्रदान की है, जिसके अनुसार-

“वन हेल्थ एक एकीकृत, दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य मनुष्यों, पशुओं, पौधों और पारिस्थितिकी तंत्रों के स्वास्थ्य को स्थायी रूप से संतुलित और अनुकूल बनाना है। यह मानता है कि मनुष्यों, पालतू और वन्‍य जीवो, पौधों और व्यापक पर्यावरण (पारिस्थितिकी तंत्र सहित) का स्वास्थ्य निकटता से जुड़ा हुआ है और एक दूसरे पर निर्भर है। यह दृष्टिकोण समाज के विभिन्न स्तरों पर कई क्षेत्रों, विषयों और समुदायों को संगठित करता है, ताकि वे स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए खतरों से निपटने और विश्‍व कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक साथ काम कर सकें, साथ ही स्वच्छ जल, ऊर्जा और हवा, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की सामूहिक आवश्यकता को पूर्ण कर सकें, जलवायु परिवर्तन पर कार्य कर सकें और सतत विकास में योगदान दे सकें।

डब्ल्यूएचओ, 2017

“वन हेल्थ’ कार्यक्रमों, नीतियों, कानूनों और अनुसंधान को डिजाइन करने और लागू करने का एक दृष्टिकोण है, जिसमें कई क्षेत्र बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त करने के लिए संवाद करते हैं और एक साथ काम करते हैं”

“वन हेल्थ अवधारणा व्यापक है और इसमें सभी जीवित प्राणियों के साथ-साथ पर्यावरण का समग्र स्वास्थ्य भी शामिल है। इसमें खाद्य सुरक्षा, जल गुणवत्ता, रोगाणुरोधी प्रतिरोध और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे शामिल हैं।”

वन हेल्थ इनिशिएटिव टास्क फोर्स (OHITF)

वन हेल्थ एक दृष्टिकोण है जो “लोगों, जानवरों और हमारे पर्यावरण के लिए इष्टतम स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर काम करने वाले कई विषयों के सहयोगी प्रयासों” का आह्वान करता है, यह प्रजातियों के बीच जूनोटिक रोगों के फैलने के साक्ष्य और “मानव और पशु स्वास्थ्य और पारिस्थितिक परिवर्तन के आपसी अटूट संबधो के कारण इसके बारे में बढ़ती जागरूकता के जवाब में विकसित हुआ। इस दृष्टिकोण में, सार्वजनिक स्वास्थ्य को अब विशुद्ध रूप से मानवीय शब्दों में नहीं देखा जाता है। एक साझा पर्यावरण और अत्यधिक संरक्षित शरीर क्रिया विज्ञान के कारण,  पशु और मनुष्य न केवल एक ही जूनोटिक रोगों से पीड़ित होते हैं, बल्कि संरचनात्मक रूप से संबंधित या समान दवाओं द्वारा उनका इलाज भी किया जा सकता है। इस कारण से, जूनोटिक रोगों के अनावश्यक या अति-उपचार से बचने के लिए विशेष देखभाल की जानी चाहिए, विशेष रूप से संक्रामक रोगाणुओं में दवा प्रतिरोध के संदर्भ में।

वन हेल्‍थ सिध्‍दॉत

 

स्‍थानीय
क्षेत्रीय
राष्‍ट्रीय
वैश्विक

कार्य विधि:- संचार/सूचना, प्रसारण, समन्‍वय,सहयोग व क्षमता निमार्ण  संस्‍थान/ संगठन

ग्रामीण/शहरी/घुमन्‍तु कम्‍यूनिटी
क्षेत्र/ विषय

1. स्‍वास्‍थ्‍य

2. पशुपालन

3. शिक्षा

4. उद्योग

5. अनुसंधान

6. सरकार नीती

 

 

पशु पक्षी
परिस्थितिकी (पर्यावरण)
मनुष्‍य

वन हेल्‍थ (एक स्‍वास्‍थ):भविष्‍य के लिये आशा की नई किरण

 

 

स्‍वस्‍थ मनुष्‍य                       स्‍वस्‍थ पशु                   स्‍वस्‍थ पारिस्थितकी

(सभी का इष्‍टतम स्‍वास्‍थ्‍य)

 

मुख्य उद्देश्य

  1. जूनोटिक, ट्रांसबाउंड्री पशु रोगों और महामारी/महामारी क्षमतावाले संक्रामक रोगों को संबोधित करने के लिए मानव, पशु और पर्यावरण क्षेत्रों के भीतर और उसके बाहर एकीकृत रोग निगरानी को लागू करना। इसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का निर्माण और महामारी विज्ञान डेटा से आने वाली जानकारी को एकीकृत करना, इसे लागू करने वाले क्षेत्रों में विभिन्न निगरानी कार्यक्रमों से जानकारी और बीमारियों का उचित समय पर और सटीक तरीके से पता लगाने के लिए पर्यावरण निगरानी जैसे नए तरीकों को लागू करना शामिल है।
  2. महामारी और महामारी जन्‍य रोगों की रोकथाम और पारिस्थिकी  अखंडता को बनाए रखने लिए अंतर विषयक,बहुक्षेत्रिय, अंतरक्षेत्रिय दृष्टिकोण स्‍थापित करना।

 

  1. मनुष्‍यों पशुओं एवं सम्‍पूर्ण पारिस्थिकी की हित में वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा को मजबूत करना।
  2. भोजन की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं संरक्षा में वृद्धि।
  3. मनुष्‍यों और पशुओं को जूनोटिक बीमारियों के प्रकोप से बचाना ।
  4. एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों(A.M.R)को कम करना।
  5. जैवविवधता को सु‍रक्षित और संरक्षित करना।
  6. जलवायु परिवर्तन एवं ग्‍लोबल वार्मिग से उत्‍पन्‍न जोखिम को कम करना।
  7. व्‍यवसायिक स्‍वास्‍थ्‍य जोखिमों को कम करना।
  8. भूमि उपयोग में होने वाले परिवर्तन से बचाना।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

  1. विश्‍व भर में पिछले तीन दशकों में उभरे सभी मानव संक्रामक रोगों में से लगभग 75% पशुओं से उत्‍पन्‍न हुए है। जिसमें रेबीज ब्रुसेलोसिस इत्‍यादि मुख्‍य है।
  2. 200 से अधिक प्रकार के जूनोसिस ज्ञात है मनुष्‍यों में होने वाली नई और मौजूदा बीमारियों में जूनोसिस का प्रतिशत बहुत बड़ा है।
  3. बढ़ती वैश्विक आबादी के लिये पर्याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, भोजन और पानी उपलब्‍ध कराने के लिए, स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवसायों और उनसे संबंधित विषयों और संस्‍थानों को मिलकर काम करना होगा।

इतिहास

एक विश्‍व एक स्‍वास्‍थ्‍य  का इतिहास 200 साल का पहले का माना जा सकता है।  सबसे पहले वन मेडिसिन के रूप में, लेकिन फिर वन वर्ल्‍ड वन हेल्‍थ और अंतत: वन हेल्‍थ के रूप में।

सन् 1856 में मार्डन पेथोलोजी के पितामह रोडाल्‍फ विरचाउ ने बताया था, कि पशुओं और मनुष्‍यों की मे‍डीसिन के मध्‍य कोई विभाजन रेखा नहीं है, हाल ही में कोविड 19 माहमारी(पेन्‍डेमिक) के दौरान यह बात सत्‍य साबित होती प्रतीत हुई इस अप्रोच को वन हेल्‍थ कहा गया।

सन् 1964 में सार्वजनिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित पशु चिकित्सक केल्विन श्‍वाबे ने 1964 में एक पशु चिकित्सा पाठ्यपुस्तक में “वन मेडिसिन” शब्द लिखा था, जिसका उद्देश्य पशु और मानव चिकित्सा के बीच समानता को दर्शाना और वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में मदद करने के लिए पशु चिकित्सकों और चिकित्सकों के बीच सहयोग के महत्व पर जोर देना था उन्होंने पशु और मानव स्वास्थ्य विज्ञान में मुद्दों को संयुक्त रूप से संबोधित करने के लिए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस में एक विभाग की स्थापना की।

2000 के दशक के मध्य में H5N1 इन्फ्लूएंजा के प्रकोप से जुड़ी वैश्विक आशंकाओं के कारण, अमेरिकन वेटनरी मेडिकल एसोसिएशन ने 2006 में वन हेल्थ इनिशिएटिव टास्क फोर्स की स्थापना की, अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने 2007 में पशु चिकित्सा और मानव चिकित्सा संगठनों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए वन हेल्थ प्रस्ताव पारित किया।

2004 में ‘वन हेल्थ’ शब्द का पहली बार इस्तेमाल वाइल्डलाइफ़ कंज़र्वेशन सोसाइटी ने न्यूयॉर्क में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी में “वन वर्ल्ड, वन हेल्थ” नामक एक सम्मेलन में किया। इस सम्‍मेलन में महामारी रोगो को रोकने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिए बाहर मैनहट्टन सिद्धांत बनाये गए थे। यह सम्‍मेलन 2003 की शुरुआत में गंभीर तीव्र श्‍वसन रोग (SARS) के उद्भव और उसके बाद अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा H5N1 के प्रसार और मैनहट्टन सिद्धांतों के रूप में जाने जाने वाले रणनीतिक लक्ष्यों की श्रृंखला से जुड़ा था, जिसने मानव और पशु स्वास्थ्य और खाद्य आपूर्ति और अर्थव्यवस्थाओं के लिए बीमारियों के खतरों के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से पहचाना था। ये सिध्‍दांत उभरती और फिर से उभरती बीमारियों का जवाब देने के लियें स‍हयोगी सिध्‍द हुए। जो विशेष रूप से वैश्विक रोग रोकथाम, निगरानी व नियंत्रण और शमन के आवश्‍यक घटक के रूप में वन्‍यजीव स्‍वास्‍थ्‍य को शामिल करने के लिये महत्‍वपूर्ण थे।। इन सिद्धांतों ने मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के बीच संबंधों, रोग की गतिशीलता को समझने में उनके महत्व और रोकथाम, शिक्षा, निवेश और नीति विकास के लिए अंतःविषय दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया।

2009  में, लोनी किंग ने सी.डी.सी. में जूनोटिक, एंटरिक और वेक्टर जनित रोगों (23) के निदेशक के रूप में वन हेल्थ कार्यालय की स्थापना की, जिससे पशु स्वास्थ्य संगठनों और सी.डी.सी. के बीच संपर्क की सुविधा मिली और वित्त पोषण के अवसर बढ़े।

वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य जोखिम और कल की चु‍नौतियॉं।

कोविड -19 महामारी एक मानव सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य संकट जो संभावित रूप से पशु मूल के वायरस से उत्‍पन्‍न हुआ था, इसने वैश्विक स्वास्थ्य  जोखिमों को समझने और उनका सामना करने में वन हेल्थ अवधारणा की वैधता को रेखांकित किया है। अक्सर जूनोटिक रोगों ( जो पशुओं से मनुष्यों में या मनुष्यों से जानवरों में फैल सकते हैं) की बहु-क्षेत्रीय रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया प्रयासों को समन्वित करने के लिए वन हेल्‍थ अवधारणा का उपयोग किया जाता है, यह दृष्टिकोण रेबीज, एवियन फ्लू या इबोला जैसे वायरल रक्तस्रावी बुखार जैसे प्राथमिकता वाले जूनोटिक् रोगों के नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कई अन्‍य विषय जैसे कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध, खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन इत्‍यादि मुद्दो पर एक बहुक्षेत्रीय और बहु-विषयक दृष्टिकोण से संबोधित करने की आवश्यकता है, जो वन हेल्थ दृष्टिकोण  से काफी हद तक हल हो सकता है। असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ, वैश्वीकरण और वन्यजीव व्यापार जैसे कारक रोगजनक जीवाणु एवं विषाणु इत्‍यादि  को नए रूपों में विकसित होने के कई अवसर प्रदान करते हैं, जिससे पशुओं से मनुष्यों में रोग फैलने की घटनाएँ अधिक लगातार और तीव्र हो जाती हैं। जुनोटिक बीमारीयों का जोखिम केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं है, अधिकांश जोखिम आकंलन पशुओं से मनुष्यों में रोगजनकों के संचरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं,  किन्‍तु  बीमारियाँ मनुष्यों से पशुओं में भी फैल सकती हैं, और पशुओं के स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव डाल सकती हैं, चाहे वे पालतू हों या जंगली। गोरिल्ला और चिंपांजी, मनुष्यों के समान आनुवंशिक संरचना के साथ, विशेष रूप से मानव रोगों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। इसी तरह, अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए, उन्हें पशु चिकित्सा सेवाओं, वन्यजीव अधिकारियों और शोधकर्ताओं द्वारा सावधानी से संभाला जाना चाहिए।

इन प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों का प्रबंधन अकेले संभव नहीं है। इसके लिए पशु, मानव, पौधे और पर्यावरण स्वास्थ्य क्षेत्रों के पूर्ण सहयोग की आवश्यकता है। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) पशु स्वास्थ्य और कल्याण में अपनी विशेषज्ञता को बहुत जरूरी बहुक्षेत्रीय साझेदारी में लाता है। साथ मिलकर, हमारा लक्ष्य प्रमुख बीमारियों या व्यापक . स्वास्थ्य खतरों, जैसे कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिए वैश्विक रणनीति विकसित करना है।

डॉ. मोनिक एलोइट की यह निम्‍न पंक्तियां यहां सार्थक होती हुई प्रतीत होती है।

“यह सभी के स्वास्थ्य का सवाल है। हम सब मिलकर एक स्वस्थ और अधिक टिकाऊ दुनिया के लिए ठोस समाधान खोज सकते हैं।”- डॉ. मोनिक एलोइट (महानिदेशक WAOH ,1 जनवरी 2016)

वन हेल्‍थ संरचना

दुनिया भर में कई संगठन “वन हेल्थ” के उद्देश्यों का समर्थन करते हैं, जिनमें वन हेल्थ कमीशन (OHC), वन हेल्थ इनिशिएटिव, वन हेल्थ प्लेटफॉर्म, CDC वन हेल्थ ऑफिस और क्वाड्रिपार्टाइट ऑर्गनाइजेशन शामिल हैं। क्वाड्रिपार्टाइट संगठन निम्‍नानुसार हैं-

* संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ),

* विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ),

* विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH, पूर्व में OIE),

* संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)।

वन हेल्‍थ जूनोटिक डिसीज प्राथमिकता प्रक्रिया का नेतृत्‍व रोग के नियंत्रण और रोकथाम के लिए सेंटर (सी.डी.सी.) करता है।

वन हेल्‍थ का सिध्‍दांत इस सभी संगठनों के गठबंधन एवं उनके बीच हुए समझौते के अंतर्गत एक पहल/ब्‍लू प्रिन्‍ट है एवं वन हेल्थ चुनौती से प्रेरित टीमवर्कके लिए एक वैश्विक प्रतिमानहै।

भारत का वन हेल्थ फ्रेमवर्क/राष्ट्रीय एक स्वास्थ्य मिशन

भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में, निजी संगठनों में तथा वैश्विक स्तर पर अनेक गतिविधियों के अलावा वन हेल्थ के कई प्रयास चल रहे हैं। यह प्रत्येक प्रयास के अंतर्गत आने वाले फोकस के क्षेत्रों की समीक्षा करने, सहयोग के अवसरों की पहचान करने तथा शेष बची हुई कमियों को भरने की दिशा में काम करने की संभावना प्रस्तुत करता है। इसे ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार सलाहकार परिषद (पीएम-एसटीआईएसी) ने अपनी 21 वीं बैठक में एक अंतर-मंत्रालयी प्रयास के साथ एक राष्ट्रीय वन हेल्थ मिशन स्थापित करने को मंजूरी दी, जो देश में सभी मौजूदा वन हेल्थ गतिविधियों का समन्वय, समर्थन तथा एकीकरण करने तथा जहां उचित हो, वहां कमियों को भरने का काम करेगा

वन हेल्थ फ्रेमवर्क विकसित करके, भारत कुशल रोग रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया समन्वय, संसाधनों के इष्टतम उपयोग, आपातकालीन तैयारी, आर्थिक और जूनोटिक महत्व के रोगों से निपटने की क्षमता का निर्माण, और जूनोटिक और आर्थिक महत्व के पशु रोगों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को सफलतापूर्वक पूरा करेगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में नागपुर में राष्ट्रीय वन हेल्थ संस्थान की आधारशिला रखी। चिकित्सा उत्कृष्टता का यह नया संस्थान हमारी कमजोर आबादी की सेवा के लिए स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ाने में देश के प्रयासों को और तेज करेगा। इंसानों से जूनोटिक बीमारियों को दूर रखने के लिए भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इसी साल के अंत में नागपुर में ग्लोबल साउथ का पहला वन हेल्थ पर राष्ट्रीय संस्थान शुरू होगा, जो न सिर्फ इंसान बल्कि पक्षी, पेड़-पौधे और जलवायु परिवर्तन पर काम करेगा। अभी तक यह एक विभाग के तौर पर आईसीएमआर के अधीन संचालित हो रहा था, लेकिन जी-20 राष्ट्राध्यक्षों के आगे भारत ने वन हेल्थ विषय पर प्रस्ताव रखा तो सभी ने इस पर सहमति दी है। नागपुर में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर वन हेल्थ भारत के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचागत मील का पत्थर है। संस्थान नए और अज्ञात जूनोटिक एजेंटों की पहचान के लिए तैयारी और प्रयोगशाला क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह समर्पित संस्थान बायो सेफ्टी लेवल (बीएसएल-IV) प्रयोगशाला से सुसज्जित होगा। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित उभरते जूनोटिक एजेंटों के प्रकोप की जांच और बेहतर नियंत्रण रणनीति विकसित करने में मदद करेगा। साथ ही बायोटेक्‍नोलॉजी विभाग ने देश का पहला वन हेल्‍थ कंसोर्टियम लांच किया है।

भारत सरकार के पशुपालन एवं डेयरी (डीएएचडी) ने वन हेल्थ सपोर्ट यूनिट द्वारा वन हेल्थ फ्रेमवर्क को लागू करने के लिए उत्तराखंड राज्य में एक पायलट परियोजना शुरू की है। इस इकाई का मुख्य उद्देश्य पायलट परियोजना के कार्यान्वयन से प्राप्त सीखों के आधार पर एक राष्ट्रीय वन हेल्थ रोडमैप विकसित करना है सरकार ऐसे कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करने के लिए काम कर रही है जो पशु चिकित्सकों के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं पशु स्वास्थ्य निदान प्रणाली जैसे कि राज्यों को पशु रोग नियंत्रण हेतु सहायता प्रदान करना (ASCAD) हेतु उपयोगी है।

विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास व उद्देश्य

विश्व जूनोज दिवस या विश्व जूनोसिस दिवस पहली बार वर्ष 2007 में 6 जुलाई को रेबीज के पहले टीकाकरण की याद में मनाया गया था। दरअसल फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने रेबीज़ वैक्सीन की खोज करने के बाद 6 जुलाई, 1885 को उसका पहला टीका सफलतापूर्वक लगाया था।

जूनोटिक रोग एवं रोकथाम

जूनोटिक संक्रमण वे रोग होते हैं जो पशुओं से इंसानों में फैल सकते हैं. वहीं कई बार कुछ परिस्थितियों में मनुष्यों से भी जानवरों में संक्रमण फैल सकता है. ऐसी अवस्था को रिवर्स जुनोसिस कहा जाता है. जूनोटिक संक्रमण मनुष्यों में संक्रमित पशु की लार, रक्त, मूत्र, बलगम, मल या शरीर के अन्य तरल पदार्थों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने में आने से फैल सकते हैं. इस प्रकार के रोगों में वेक्टर जनित रोग भी आते हैं जो किलनी, चीचड़, मच्छर या पिस्सू से फैलते हैं. जूनोटिक रोग बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद अथवा परजीवी किसी भी रोगकारक से हो सकते हैं. जो मनुष्यों में कई बार गंभीर व जानलेवा प्रभाव भी दिखा सकते हैं. वर्तमान समय में दुनिया भर में 200 से ज्यादा ज्ञात जूनोटिक रोग हैं।

पशुओं तथा विभिन्न स्वास्थ्य संस्थाओं की रिपोर्ट की मानें तो हर 10 संक्रामक रोगों में से 6 जुनोटिक होते हैं. वहीं सी.डी.सी. के अनुसार भी सभी मौजूदा संक्रामक रोगों में से 60% जुनोटिक हैं. वैसे तो दुनिया भर में कई प्रकार के जुनोटिक संक्रमण या रोगों के मामले देखने में आते हैं लेकिन भारत में जिन जूनोटिक रोगों के मामले सबसे ज्यादा देखने में आते हैं उनमें रेबीज, स्केबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, डेंगू, मलेरिया, इबोला, इंसेफेलाइटिस, बर्ड फ्लू, निपाह, ग्लैंडर्स, सालमोनेलोसिस, मंकीफीवर / मंकी पॉक्स, प्लाक, हेपेटाइटिस ई, पैरेट फीवर, ट्यूबरक्युलोसिस (टीबी), जीका वायरस, सार्स रोग तथा रिंग वॉर्म आदि शामिल हैं।

जूनोसिस की रोकथाम, प्रसार को रोके।

वर्ष 2020 में’ संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान’ द्वारा कोविड़ 19 महामारी के में प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिकः जूनोटिक डिजीज़ एंड हाउ टू ब्रेक द चेन ऑफ ट्रांसमिशननामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी।  इस रिपोर्ट में मनुष्यों में होने वाली जूनोटिक बीमारियों ( Zoonotic Diseases) की प्रकृति एवं प्रभाव पर चर्चा की गई है।

इस रिपोर्ट का प्रकाशन 6 जुलाई को ‘विश्व जूनोसिस दिवस (World Zoonoses Day) के अवसर पर किया गया था।

जिसमें कहा गया गया था मनुष्यों में 60% जुनोटिक रोग हैं, लेकिन ऐसे अभी भी 70% जुनोटिक रोग ऐसे है जो अभी ज्ञात नहीं हैं। यहीं नहीं दुनिया भर में हर साल विशेषकर निम्न- मध्यम आय वाले देशों में लगभग 10 लाख लोग जूनोटिक रोगों के कारण जान गवा देते हैं।

रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई हैं कि यदि पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए जरूरी प्रयास नहीं किये गए तो भविष्य में कोविड़-19 जैसी अन्य महामारियों का सामना भी करना पड़ सकता है. इस रिपोर्ट में जुनोटिक रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेदार कारणों का भी उल्लेख किया गया था। जिनमें पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग, गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि, वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग, प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग व हनन, खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव तथा जलवायु परिवर्तन संकट शामिल थे।

भारतीय समाज में लावारिस डॉग्स एक सबसे बड़ी समस्या है। इनकी अंधाधुंध बढ़ती संख्या के रोकथाम के लिए कुत्तों का नसबंदी ऑपरेशन बड़े पैमाने पर चलाया जाना चाहिए। पालतू कुत्तों का भी हर वर्ष बड़े पैमाने पर टीकाकरण करना चाहिए। देश, प्रदेश या किसी क्षेत्र में बाहर से नये कुत्ते के प्रवेश के समय रैबीज हेतु जांच होनी चाहिए तथा 4-6 महीने तक निगरानी में रखना चाहिए। रैबीजग्रस्त डॉग द्वारा अन्य डॉग को काट लेने पर एंटीरैबीज टीकों का कोर्स लगवाएं।

  • टीवी एवं रेडियो वार्ता के माध्‍यम से जूनोटिक बीमारीयो के प्रति सभी को जागरूक करते रहें।
  • विश्‍व जूनोटिक दिवस,विश्‍व रेबीज दिवस व डॉक्‍टर डे पर Anti Vaccination शिविरो के माध्‍यम से स्‍ट्रीट डाग्‍स को टीकारकरण करायें।
  • पशुओं के मूत्र, मल या उल्टी से गंदी किसी भी चीज़ को न हुए।
  • अपने पालतू पशु को स्वस्थ रखें एवं पशुजनित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने पर बल देना चाहिये।
  • सरीसृप (सांप, छिपकली, कछुए और गेकी), जंगली पक्षियों और प्राइमेट (बंदर) सहित आवारा जानवरों से दूर रहें।
  • घर के बाहर के पशुओं से दूर रहें (पालतू जानवरों वाले अन्य घर, चिडियाघर या मेले, स्कूल में जानवर) और इसी प्रकार की सावधानियों बरतें।
  • पोल्‍ट्री फार्म, डक फार्म इत्‍यादी का विजिट करते ससय उचित पी.पी.ई. किट एवं एंटीसेप्टिक फुट डिप का स्‍तेमाल करें।
  • पालतू पशुओं की नियमित पशु चिकित्सा देखभाल होनी चाहिए और उन्हें टीके लगवाने चाहिए। पालतू पशुओं की त्वचा, कोट और दांतों को स्वस्थ रखने के लिए उन्हें तैयार किया जाना चाहिए। खरोंच के जोखिम को कम करने के लिए नाखूनों को काटा जाना चाहिए। बीमार पालतू पशुओं को उनके पशु चिकित्सक को दिखाना चाहिए और जब तक वे स्वस्थ नहीं हो जाते, तब तक उन्हें आपके बच्चे के आस-पास नहीं होना चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) एक अनुकूलतम विधि है जिसके माध्यम से महामारी से निपटने के लिये मानव स्वास्थ्य, पशु एवं पर्यावरण पर एक साथ ध्यान दिया जाता है।

 

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