मृत पशुओं का शव निपटान
डॉ. बलराम यादव1, डॉ. ममता मील2 एवं डॉ. अमित3
- एम.वी.एससी. छात्र,पशु विकृति अध्ययन विभाग, सी.वी.ए.एस., नवानिया, उदयपुर
- एम.वी.एससी.छात्रा, पशु मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग, सी.वी.ए.एस., नवानिया, उदयपुर
- एम.वी.एससी. छात्र, पशु पोषण विभाग, सी.वी.ए.एस., नवानिया, उदयपुर
मृत पशुओं का शव निपटान पशुपालन में एक महत्वपूर्ण विचार हैं। मृत्यु के बाद एक उचित निपटान पशुओं में होने वाली बीमारियों को फैलने से रोकने और हवा एवं पानी की गुणवत्ता को दूषित होने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। मृत पशुओं के निपटान में शव को जलाना, दफनाना और जलाने के बाद खाद बनाना आदि परंपरागत तरीके शामिल है, जिसमें प्रत्येक प्रक्रिया की अपनी – अपनी चुनौतियाँ हैं।
शव निपटान के लिए भूमिभरण विकासशील देशों जैसे भारत में एक अच्छा परंपरागत उपाय हैं। जहां लगभग 70% आबादी आजीविका के लिए कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर हैं। भारत में विश्व की सर्वाधिक पशुधन संपदा है, लेकिन किसान एवं पशुपालक गरीब और अधिक साक्षर नहीं होने के कारण उन्हें मृत पशुओं के शव निपटान के उपयुक्त तरीकों की या तो जानकारी नहीं होती या उनका लागत मूल्य अधिक होने के कारण उनको अपना नहीं पाते हैं। इसलिए भारत जैसे देशों में भूमिभरण सबसे कम लागत पर होने वाला एक सामान्य उपाय है, जिसमें पशुओं के शव को जमीन में गड्ढा बनाकर दफना दिया जाता हैं।
शव निपटान जगह का चयन –
- चयनित जगह एक समतल धरातल पर हो,जिससे शव को आसानी से वहाँ तक ढोया जा सके।
- चयनित जगह के रूप में पशुपालक सार्वजनिक स्थल को छोड़कर खुद की जमीन या खेत का उपयोग कर सकते हैं।
- रेतीली मिट्टी वाली जगह का चुनाव ना करें।
- गड्ढा ऐसी जगह बनाये जहांबारिश का पानी संग्रहित ना हो और गड्ढा सामान्य भू जल स्तर से 8 से 10 मीटर एवं जल स्रोतों से 300 से 500 मीटर दूर हो।
शव निपटान के लिए भूमिभरण प्रक्रिया –
- गड्ढे की लंबाईऔर चौड़ाई पशु के शव के आकार के अनुसार होनी चाहिए, लेकिन गहराई लगभग 8 से 10 फीट या 2 से 3 मीटर होनी चाहिए।
- गड्ढा बनाने के बाद सबसे पहले इसमें नीचे चूने की एक परत बनायी जाती हैं,जिसके ऊपर लगभग 2 फीट मिट्टी की परत बनाते हैं।
- उसके बाद पशु शव को गड्ढे में पीठ के बल डाला जाये,बिना गड्ढे में स्वयं उतरे।
- बड़े पशुओं जैसे गाय,भैंस, घोड़ा आदि के पेट में गैस बनने से, पहले उनकी सुई की सहायता से गैस निकाले और फिर उनको गड्ढे में डालें।
- पशु शव के साथ ही संक्रमित दूध, गोबर,मूत्र, भूसा आदि भी साथ ही दफना दें।
- बड़े पशुओं केपैरों को पशुचिकित्सक की सहायता से मोड़ा भी जा सकता हैं, जिससे वो आसानी से गड्ढे में आ जायें।
- शव को गड्ढे में डालने के बाद फिर से उस पर 2 से 3 फीट मिट्टी की परत बनाये और उसके ऊपर एक चूने की मोटी परत बनाये।
- अंत में गड्ढे को पूरी तरह मिट्टी से भर दें,लेकिन ध्यान रखें बड़े पशुओं के शव पर कम से कम 2 फीट एवं छोटे पशुओं के शव जैसे मुर्गियों, कुत्ते, बिल्ली, सुअर के बच्चे आदी पर 1 फीट मोटी मिट्टी की परत आनी ही चाहिये।
शव निपटान के बाद ध्यान रखने योग्य बातें –
- गड्ढे में कम से कम 2 से 3 चूनेएवं मिट्टी की परत जरूर बनाये और 2 गड्ढों में कम से कम 3 फीट या 1 मीटर का गैप जरूर रखें।
- शव निपटान की पूरी प्रिक्रिया के बाद गड्ढे के चारों तरफ कीटाणुनाशक दवा का छिड़काव करें।
- गड्ढे की जगह को अच्छे से सुनिश्चित कर ले और कम से कम एक साल तक उस जगह का उपयोग ना करें।
- गड्ढों का नियमित रिकॉर्ड रखें, उनकी नियमित अन्तराल से जांच करते रहे की उनपर पानी तो नहीं रुका, कोई बदबू तो नहीं आ रही या किसी जानवर ने उसे खोल तो नहीं दिया हैं।
शव निपटान में भूमिभरण के लाभ –
- अन्य शव निपटान तरीकों की तुलना में कम लागत पर संभव एवंपशुपालक इसके लिए स्वयं की जमीन का भी उपयोग कर सकते हैं।
- इसप्रक्रिया के लिए पशुपालक को ज्यादा जानकारी एवं अनुभव की जरूरत नहीं होती हैं।
शव निपटान में भूमिभरण की सीमाएं –
- भूमिभरण जमीन की उपलब्धता और रोगग्रस्त शवों के संचलन की सीमाओं के अधीन हैं।
- निपटान किए गये शवों को सड़ने में लगने वाला समय तापमान, नमी, गड्ढे की गहराई, मिट्टी के प्रकार और जल निकासी पर महत्वपूर्ण रुप से निर्भर करता हैं।
- बड़े पैमाने पर शव निपटान से जमीन एवं सतह का पानी विभिन्न आपदाओं से शव के रोगजनकों एवं अपघटन से निकलने वाले रासायनिक उत्पादों से प्रदूषित हो सकता हैं, इसलिए ये छोटे पशुपालको के लिए ही एक सीमित उपाय हैं।
- हमेशा निपटान स्थल पशुधन क्षेत्रों से दूर और पर्याप्त गहराई के साथ करना चाहिए ताकी संक्रामक एजेंट और एंथ्रेक्स, स्क्रैपी जैसी बीमारियों के वापस स्थानांतरित होने की संभावना कम से कमहों ।
- भूमिभरण के दौरानमृत पशु शव पर सीधे या अधिक चूने का उपयोग अपघटन की प्रक्रिया को धीमे कर सकता हैं।
- मानव खाद्य श्रृंखला में संक्रामक एजेंटोंके प्रवेश और पर्यावरण प्रदूषण के कारण ये पद्धति अधिकांश देशों में प्रतिबंधित है, हालांकि साहित्य में जानवरों के शवों के भूमिभरण से निपटान से मानव व पशु स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव को जोड़ने वाला कोई अध्ययन नहीं बताया गया है।