नाभि रोग /Navel ill

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नाभि रोग /Navel ill
रोग के अन्यः नाम – सून्डी पकना , जोडों का रोग (joint ill)
नाभि व इससे सम्बन्धित संरचनाओ का संक्रमण सामान्यतःनवजात पशुओ मे होता है ,तथा इसे ही navel ill कहते है ! यह अधिकांशतः नवजात बछडों मे होता है

रोग कारक /etiology
इस रोग मे सामान्यतः मित्रित जीवाण्वीय संक्रमण (mixed bacterial infection) होता है !रोगकारक जीवाणु निम्न प्रकार हो सकते है –
Escherichia coli , staphylococcus spp, streptococcus spp ,
Corynebacterium pyogenes, proteus spp, etc.
नवजात पशु की नाभि अनिषाक्रमित उपकरणो जैसे – गन्दे चाकू ,ब्लेड आदि से काटते है या नाभि को शरीर के निकट से काटते है अथवा नाभि पर गाँठ नही लगाते है तो इस रोग के होने की संभावनाएँ ज्यादा होती है !

लक्षण /symptoms
१. नवजात पशु की नाभि के आस – पास व जोडों मे सूजन आ जाती है !
२. नवजात पशु के तीव्र बुखार हो जाता है ,पशु खाना पीना कम कर देता है !
३. नाभि से मवादयुक्त स्राव निकलता है !
४. पशु को चलने फिरने मे दिक्कत होती है !
५. गम्भीर स्थिती मे रोग का संक्रमण मूत्राशय (urinary bladder) , लीवर आदि अंगों तथा अधिक गम्भीर स्थिती मे संक्रमण शरीर के विभिन्न हिस्सो मे पहुँच सकता है , इसी गम्भीरता के कारण कभी – कभी प्राणी की मृत्यु भी हो सकती है !

उपचार/treatment
Antibiotic का इन्जेक्शन अवश्य 3-5 दिन तक लगाये ,जैसे- sulphonamides, tetracyclines,
,,फोडे को खोलकर अथवा चीरा लगाकर मवाद को बाहर निकाल दे तथा एन्टीसेप्टिक पाउडर व मलहम से ड्रेसिंग करे !
,, घाव के गहराई तक होने व एब्सेस बन जाने की स्थिती मे सम्बन्धित भाग का अॉपरेशन करके हटाना आवश्यक है , इसके लिए exploratory laparotomy की जा सकती है !
,, रोगी प्राणी की स्थिती के अनुसार उसे सहारात्मक व लक्षणात्मक उपचार प्रदान करने चाहिए !

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रोग की रोकथाम के उपाय (control)-
१, नाभि की नाल को aseptic सावधानी से काटे , काटने के तुरन्त बाद Tr.iodine, povidine ,लगा दे अथवा डुबो दे !
२, छोटे बच्चो को दूर -दूर बाँधें ताकि वे एक दूसरे की नाभि को चाट नही सकें !

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