गलघोंटु (haemorrhagic septicemia/HS)
यह रोग मुख्यतः भैस , गौवंश , ऊँट ,घोड़ों व सुअर मे हो सकता है ! यह एक जीवाणुजनित (bacterial disease) है जो एक संक्रामक रोग भी है ! इसे Barbone , septicemic pasteurellosis of cattle/baffalo भी कहते है !
रोगकारक (etiology):
यह रोग पास्चूरेला मल्टोसिडा (pasteurella multocida ) नामक जीवाणु के कारण होता है !
Epidemiology :
भारत मे यह रोग अधिकता से होता है व अधिकांशतः भैसों को संक्रमित करता है ! बरसात के मौसम (rainy season) मे यह रोग अधिक होता है , युवा प्राणियो मे यह रोग अधिक होता है !
लक्षण (symptoms):
1. पशु का सुस्त होना (dullness)
2. अचानक तेज बुखार होना
3. अत्यधिक लार स्रावण (frofused salivation)
4. # गले मे सूजन( oedematous swelling in neck region ) जो गर्म व दर्दयुक्त होती है तथा dewlap तक पहुँच सकती है !
5. जीभ को बाहर निकाल कर घर्र-घर्र की आवाज के साथ श्वास लेना !
6. गम्भीर स्थिती मे रोगी प्राणी की मृत्यु हो सकती है !
निदान (diagnosis):
* लक्षणों के आधार पर !
* प्रयोगशाला द्वारा रक्त परीक्षण मे जीवाणु की उपस्थिती !
विभेदिय पहचान (differential diagnosis):
√ Acute leptospirosis
√ Black leg
√ Anthrax
√ CBPP etc.
उपचार (treatment):
* अधिक मात्रा (higher dose) मे antibiotics काम मे लेकर —
e.g. Sulphadimidine (130-150 mg./kg.b.wt,I/v) , Oxytetracycline (10-20 mg./kg .b.wt., I/m or I/v) , Sulpha- trimethoprim combinations (15-20 mg./kg.b.wt) , Strepto-penicillin , Ciprofloxacin/enrofloxacin , etc.
* इसके अतिरिक्त NSAIDs , Corticosteroids , Antihistaminics , Respiratory stimulants , Diuretics आदि भी आवश्यकतानुसार काम मे लिए जा सकते है !
* सहारात्मक व लक्षणात्मक उपचार भी आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने चाहिए !
रोकथाम व नियंत्रण (prevention and control ):
रोग से बचाव के लिए रोगी प्राणी को अन्य स्वस्थ प्राणियो से अलग रखकर उपचार करना चाहिए तथा मृत रोगी प्राणी के शव का उचित निस्तारण करना चाहिए !
# बरसात के मौसम से पहले स्वस्थ पशुओ का टीकाकरण अवश्य करावें !