भेड़ और बकरियों में प्राणिरुजा रोग, लक्षण एवं निदान के उपाय

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भेड़ और बकरियों में प्राणिरुजा रोग, लक्षण एवं निदान के उपाय

भेड़ और बकरियों में कई प्राणिरुजा रोग है जो कि संक्रामक रोगों की श्रेणी में आते हैं जो पशुओं और मनुष्यों के बीच फैले हुए हैं। यह रोग मनुष्य में दूषित भोजन या पानी, सा°स लेना, सन्धिपद वैक्टर जैसे मक्खियों, चीचड़, मच्छरों और कीटों की खपत से या संक्रमित जानवरों के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से फैलते हैं।

**रेबीज

➤ यह बीमारी भेड़-़बकरियों को पागल कुत्तो के काटने से होती है। यह बीमारी विषाणु द्वारा होती है तथा पागल पशुओं या पागल कुत्तो के काटने व उनकी लार के द्वारा भेड़-़बकरियों में हो जाती है।
➤ बीमारी हो जाने पर इसका इलाज सम्भब नहीं है इसलिए भेड़ पालकों को सुझाव दिया जाता है कि जब भी भेड़ बकरियों को
पागल कुत्तो काट ले तो उसे अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय में जाकर इसकी सूचना दे और समय पर स्वयं का टीकाकरण करवायें ।
➤ प्रारंभ में मानव लक्षण में बुखार, सिर दर्द, भ्रम और असामान्य व्यवहार आदि लक्षण दिखाई देते है।
➤ आपको किसी जानवर ने काटा है तो तुरन्त पास के चिकित्सक से संपर्क करें।

**ब्रूसीलोसिस

➤ यह एक जीवाणु जन्य रोग है जो भेड़ और बकरियों सहित सभी पशु प्रजातियों के साथ मनुष्य को भी प्रभावित करता है।
➤यह रोग भेड़ और बकरियों में ब्रुसेल्ला मेलिटेंसिस के कारण होता है तथा अधिकतर वयस्क पशुओं में देखा जाता है। इस रोग से प्रभावित मादा पशु को गर्भावस्था में ही गर्भपात की समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
➤ पशुपालन एवं पशु चिकित्सा से जुड़े व्यक्ति, नवजात मेमने की जेर हटाते समय संक्रमित हो जाते हैं।
➤ रोगी मनुष्य मैं कमजोरी व सुस्ती आने लगती है, ज्वर में उतार-चढ़ाव, सिर, मा°सपेशियों तथा जोड़ों में दर्द रहता हैं।

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** संक्रामक पूयस्फोटिका
➤ लोगों में संक्रामक प्यूस्फोटिका ‘आॅर्फ’ विषाणु के कारण होता है।
➤ लोग आमतौर पर चेहरे और संक्रमित पशुओं के मु°ह पर त्वचा के घावों के साथ सीधे संपर्क में आने से संक्रमित हो जाते हैं।
➤ यदि इन पर ध्यान न दिया जाये तो इनमे मवाद पड़ जाती है और कीड़ें भी हो जाते हैं।
➤ कीड़ो वाले घाव पर तारपीन के तेल को लगायें ।
➤ प्रभावित पशु को अलग करें और महामारी की स्थिति में पशुशाला की अच्छे से साफ-सफाई रखे ।

**दाद

➤ टज्डाइकोफाइटान प्रजातियों से प्रभावित भेड़ के संपर्क में आने पर भी यह रोग मनुष्यों में फैल जाता है।
➤ यह पशुओं के बाल/ऊन या त्वचा मैं पर हो सकता है।
➤ दाद भेड़-़ बकरी की तुलना में भेड़ के बच्चे में अधिक सामान्य रुप में पाया जाता है।
➤ खुजली सबसे आम लक्षण है और सिर के आसपास स्पष्ट और बृत्ताकार चकक्रिया गंजेपन के साथ दिखाई देती है।

**कैम्पाइलोबेकटिरियोसिस

➤ यह मनुष्यों में आंत्रशोथ का प्रमुख कारण होता है।
➤ यह अक्सर लोगों को दूषित पानी या अधपका मांश क्रीम दूध या डेयरी उत्पादों की खपत से संक्रमित होता है।
➤ इससे संक्रमित लोगो में दस्त, बुखार, मतली, उलटी, पेट में दर्द, सिर में दर्द, मांशपेशिओं में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

**क्यू ज्वर

➤ यह श्वास या अतिरिक्त मार्ग के द्वारा मनुष्य को संक्रमित कर सकता है।
➤ इसमें बुखार, ठंड लगना, रात को पसीना, सिर दर्द,थकान और सीने में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते है।
➤ यह जीवाणु रोगी पशु के सभी स्त्रावों या नवजात के साथ आई परतों तथा बाड़े की मिट्टी में पाया जाता है।
➤ रोगवाहक पशुओं, जेर तथा निःस्त्राव आदि का उचित निस्तारण करना चाहिए।
➤इस जीवाणु से गर्भवती महिलाओं मे गर्भपात या समय से पहले प्रसव हो सकता है इसलिए गर्भवती महिलाओं को इन
पशुओं से दूर रखना चाहिए।

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**कैलामिडियोसिस

➤ यह भेड़ और बकरियों में कैलामिडिया अबोर्टस जीवाणु के कारण होता है।
➤ कुछ पशुओ में यह जन्म के समय उत्तक के साथ सम्पर्क में आने से गर्भपात हो जाता है।
➤ लोगों में बुखार, सिर दर्द, शरीर में दर्द, लाल आ°खें और निमोनिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
➤ गर्भवती महिलाओं को इनके संपर्क से बचना चाहिए।

**करयप्टोस्पोरिडिओसिस

➤ बीमार जानवरों के साथ, दूषित भोजन या मल या गंदे हाथों के सीधे संपर्क से लोगों में यह संक्रमण होता है।
➤ लोगों में इसके संक्रमण से पेट में दर्द, पानी दस्त, मतली और भूख की कमी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं और इस रोग से अवयस्क पशुओं की वृि रुक जाती है और उनका वजन बढ़ना भी कम हो जाता है।
➤ पशु बाड़े में काम करने वाले कर्मी भी इस रोग को फैलाने में भूमिका निभाते है।
➤ ये परजीवी फिल्टर में से भी पार हो जाते है तथा ठंडे या गरम पानी से भी प्रभावित नहीं होता।
➤ इसके इलाज हेतु शरीर कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए।

**चकरी रोग

➤ यह रोग गोबंशी पशुओं और भेड़ – बकरियों में पाया जाने वाला संक्रामक रोग है। इस रोग की उत्पातिया लिस्टिरिया मोनोसाइट्रोजेन नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है।
➤ यह गर्म और्र आी जलवायु में ज्यादा फैलता है। इस रोग का प्रसारण संक्रमित भोजन, जल एवं वीर्य के द्वारा होता है यह मानव में भी पशुजन्य रोग है और संक्रमित दूध पीने से होता है।
➤ लोगों में हल्का तथा तेज बुखार, भूख की कमी, लार और मा°सपेशियों की शिथिलता जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
➤ मानसिक रुप से प्रभावित पशुओं में चक्कर एवं भोचक्कपन देखा जाता है जो भेड़ बकरियों में ज्यादातर दिखाई देता है।
➤ प्रभावित पशु अपने सिर को किसी सख्त वस्तु या दीवार से टकराने लगता है इसलिए प्रभावित पशुओं को सभी पशुओं से अलग रखना चाहिए।

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प्राणिरुजा रोगों से बचने के उपाय – पशुओं में होने वाले संक्रामक रोगों से पशुपालोको को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। यह संक्रामक रोग मनुष्य के लिए भी हानिकारक सि हो सकते हैं इसलिए समय से नियमित टीकाकरण करके संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है तथा रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। रोगी पशुओं के प्रयोग में आने वाले उपकरणों और मनुष्यों से स्वस्थ पशुओं को दूर रखना चाहिए। बकरियों का दूध अच्छी तरह उबाल के पीना चाहिए। मादा पशुओं के गर्भपात होने पर उसके मलमूत्र व संक्रमित स्त्राव से बचना चाहिए। नवजात पशु इन संक्रामक रोगों के जीवाणु से ज्यादा प्रभावित होते हैं इसलिए उन्हें अपनी निगरानी में रखना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को पशुओं के संपर्क में नहीं आना चाहिए। पशुपालकों को पशुशाला का अच्छे से रख-रखाव करना चाहिए और पशु चिकित्सक से समय-समय पर सलाह लेनी चाहिए व ज्यादा समस्या हो तो पास के पशु चिकित्सालय में संपर्क करें।

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