**लैंप – पशुओं की बीमारी पहचानने के लिए एक कारगर तकनीक**
भेड़ एवं बकरी पालन व्यवसाय किसान भाइयों की आमदनी का एक अच्छा स्त्रोत हैं। अतः यह नितांत आवश्यक हैं कि भेड़ एवं बकरियों की बीमारियों को अति शीघ्र पहचाना जाए एवं सही समय पर उपचार किया जाए। इनमें से कुछ बीमारियाँ जसैे की नीली जीभ, भेड़ और बकरियों का चेचक एवं पी.पी.आर. प्रमुख है। इन बीमारियों से ग्रस्त होने पर पशुपालन व्यवसाय को भारी आर्थिक नुकसान होता है। अतः इन बीमारियों को जल्द से जल्द पहचानना आवश्यक हो जाता है।
बीमारियों के लक्षण –
नीली जीभ भेडा़ें की एक संक्रामक बीमारी हैं। जिसमे बुखार, मुँह आरै जीभ पर सूजन आरै जीभ का नीला होना प्रमुख लक्षण हैं। यह बीमारी गाय और भैंसों में भी होती है, परन्तु इनमें बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। गाय और भैंस इस विषाणु के कैिरयर भी हो सकते हैं। नीली जीभ के अतिरिक्त भेड़ एवं बकरियों में भेड़ आरै बकरियों का चेचक एवं पी.पी.आर. भी पाया जाता है। भेड़ और बकरियों का चेचक एक विषाणुजन्य रोग है जो भेड़ों में बहुत अधिक भयानक रूप धारण कर लेता है। पशुओं के मिलने वाले रोग में भेड़ चेचक सबसे अधिक गंभीर होता है। पी.पी.आर. भी भेड़ एवं बकरियों का रोग है जो की एक विषाणु द्वारा होता है। इसमें बुखार, दस्त और मुँह में छाले होना प्रमुख लक्षण हैं।
उपलब्ध टेस्ट/तकनीक –
इन बीमारियों को लैब में पहचानने के लिए अनेक टेस्ट उपलब्ध हैं जैसे पी.पी.आर., एल-आसीया, सेल कल्चर इत्यादि। परन्तु ये सभी टेस्ट लबै में ही किये जा सकते हैं आरै इन्हें करने में 5 घण्टे से लेकर 5 दिन तक लग सकते हैं। अतः एक ऐसे टेस्ट की नितांत आवश्यकता है जो की कम समय में ही फील्ड अथवा सैंपल लेते समय ही किया जा सके। इससे कम समय में फील्ड में ही बीमारी का पता लगाया जा सकता हैं एवं बीमारी की रोकथाम के लिए आवश्यक प्रयाद जल्द से जल्द उठाए जा सकते हैं। ऐसे ही एक टेस्ट/तकनीक का नाम लैंप टेस्ट है।
लैंप तकनीक की उपयोगिता –
लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, डिपार्टमेंट ऑफ़ एनिमल बाॅयोटेक्नोलाॅजी में नीली जीभ, भेड़ और बकरियों का चेचक एवं पी.पी.आर. की जा°च के लिए लैंप टेस्ट विकसित किया गया है। इस टेस्ट की 2 विशेषताए° हैं प्रथम की यह टेस्ट 1-2 घण्टे में एक वाॅटर बाथ अथवा गर्म पानी जिसका तापमान 60-65 डिग्री हो, किया जा सकता है दूसरा, इस टेस्ट के परिणाम के निष्कर्ष को जानने के लिए किसी यन्त्र की आवश्यकता नहीं होती है। इसे टेस्ट करने के पश्चात् मैलापन पैदा होने पर अथवा रंग में परिवर्तन होने पर पाॅजिटिव एवं मैलापन अथवा रंग परिवर्तन ना होने पर नेगेटिव माना जा सकता है। अन्य शोध कार्यों में पाया गया है की टेस्ट विषाणुओं की मौजूदगी अन्य उपलब्ध टेस्टों से 100 गुना अधिक क्षमता से टूट सकता हैं। यह टेस्ट फील्ड (पेन साइड टेस्ट) पर भी कारगर, हालांकि इसको पेन साइड बनाने के लिए प्रयास जारी हैं। अतः ऊपर दिए तर्कों द्वारा इस टेस्ट की उपयुक्तता अन्य उपलब्ध टेस्टों पर सिह् होती है।
निष्कर्ष –
सही और कम समय पर इन बीमारियों का पता लगने से और उसको फैलने से रोककर हमारे देश को हर वर्ष होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है। सारांश में उपरोक्त दी गयी बीमारियों की पहचान के लिए विकसित किया गया लैंपटेस्ट एक कारगर तकनीक है जो कि कम समय में नतीजे दे सकती है और इन बीमारियों की रोकथाम से हमारे देश के पशुओं को इन बीमारियों के होने से बचाया जा सकता है।