पशुओं में थनैला रोग के कारण, लक्षण, उपचार एवं बचाव।

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डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चोमूहां मथुरा

थनैला रोग मादा पशुओं में जीवाणुओं, द्वारा फैलने वाला
थनो का संक्रामक रोग है, जो पशुओं को गंदे, गीले और कीचड़ भरे स्थान पर रखने से होता है। थन में चोट लगने, दूध पीते समय बछड़े या बछिया का दांत लगने या गलत तरीके से दूध दुहने से इस रोग की संभावना बढ़ती है । यह रोग ज्यादातर अधिक दूध देने वाली गायों एवं भैसों में अधिक होता है। यदि प्रारंभ में इस रोग की देखभाल उचित रूप से नहीं की जाती है तो पशुओं के थन को बेकार करके सुखा देती है। इस रोग से पशु मरते तो नहीं है परंतु थन सूख कर पूर्ण रूप से बेकार हो जाते हैं।

कारण: इस रोग का मुख्य कारण जीवाणु होते हैं तथा पशुओं पर 70% जीवाणु का प्रभाव होता है। इसके अलावा 2% ईस्ट एवं मोल्ड एवं 28% शारीरिक चोट एवं खराब मौसम जैसे कुछ अज्ञात कारक भी इसके लिए उत्तरदाई हैं। थनैला रोग से संबंधित मुख्य जीवाणु निम्नलिखित हैं
स्ट्रैप्टॉकोक्कस, स्टेफिलोकोक्कस
कोरिनीबैक्टीरियम पायोजेनि स, माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरक्लोसिस, ई.कोलाई।

लक्षण — थन या आंचल में सूजन तथा दर्द होता है और कड़ा भी हो जाता है, बाद में थन में गांठ भी पड़ सकती है। दूध फट सा जाता है और फिर खून या मवाद पड़ जाता है। कभी-कभी दूध पानी जैसा पतला हो जाता है एवं दूध में छिछड़े अथवा रक्त मिश्रित दूधआने लगता हैं ।

रोग परीक्षण:
अम्लीयता परीक्षण:
सामान्य दूध का पीएच 6.0 से 6.8 परंतु थनैला रोग से युक्त दूध का पीएच 7.4 हो जाता है।
दूध को चखकर जांच: सामान्य तौर पर दूध में
0.12 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड होता है लेकिन थनैला रोग से पीड़ित पशु के दूध में इसकी मात्रा 1.4% या अधिक हो जाती है।

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थनैला रोग की चिकित्सा: रोग निदान शीघ्र हो जाने पर पशु का उपचार संभव है परंतु यदि जीवाणु अयन के अंदर पहुंचकर अपना समुचित विकास कर चुके हैं तो इसकी सफल चिकित्सा नहीं हो पाती है।
एंटीसेप्टिक औषधिया:
1: 1000 एक्रीफ्लेविन घोल को थन के अंदर इंजेक्शन देने से लाभ होता है। सिप्रोफ्लाक्सासिन बोलस खिलाने से आशातीत लाभ होता है। मैंस्टोडिन स्प्रे या विसपरेक स्प्रे का छिड़काव करने पर सूजन और दर्द कम हो जाता है।
प्रतिजैविकऔषधियां: इस रोग में एनरोफ्लाक्सासिन, पेनिसिलिन, जेंटामाइसिन, सीफोपेराजान+सलबैकटम, पेंडिस्ट्रिन, मेस्टीवर्क,
मेस्टीसिलिन थनैला रोग को
ठीक करने के लिए अत्यंत उपयोगी है। परंतु कोई भी औषधि या प्रतिजैविक औषधि खिलाने से पूर्व पशु चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।

रोकथाम– यह रोग अत्यधिक कुप्रबंधन से फैलता है, अत:ग्वालों के हाथों, कपड़ों , दूध निकालने वाली मशीनों, बर्तनों,
पशुशाला, तथा अयन की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देकर बचाव किया जा सकता है। रोग यदि फैल रहा हो तो रोगी अथवा स्वस्थ पशुओं में अलगाव की विधि अपनानी चाहिए। थन अथवा अयन पर लगी हुई चोटों का अतिशीघ्र उपचार करना चाहिए एवं एक भी पशु की आशंका होने पर सभी दुधारू पशुओं के दूध का परीक्षण करना चाहिए। थनैला की आशंका होते ही तत्काल उसका उपचार करना जरूरी है अन्यथा यह बीमारी चारों थनों को संक्रमित कर पशु को हमेशा के लिए बेकार
कर देती है। कभी-कभी थनैला के साथ अयन में क्षय रोग के जीवाणु प्रविष्ट होकर इसे और भी जटिल बना देते हैं। इस बीमारी का टीका ना होने के कारण रोकथाम के निम्नलिखित उपायों पर समुचित ध्यान देना चाहिए — १.थनों को बाहरी चोट लगने से बचाएं ।
२.पशु घर के फर्श को सूखा रखें, समय-समय पर चूने का छिड़काव करें और मक्खियों पर नियंत्रण करें। दूध दोहने के लिए पशु को दूसरे स्वच्छ स्थान पर ले जाएं।
३.दूध दोहन से पहले थनों को खूब अच्छी तरह से साफ पानी से धोना ना भूले उसके पश्चात पोटेशियम परमैंगनेट१:१०००० के घोल से हाथ तथा थन धोकर दूध निकालने से पशु को यह रोग लगने की संभावना कम होती है ।
४.दूध जल्दी से और एक बार में ही दोहन करें अधिक समय न लगाएं ।
५.दूध दुहने से पूर्व साबुन से अपने हाथ अच्छी तरह से धो लें।
६.थनैला बीमारी से ग्रस्त थन का दूध सबसे अंत में अलग बर्तन में दोहे तथा उसे उपयोग में ना लाएं।
७.घर में स्वस्थ पशुओं का दूध पहले और बीमार पशु का दूध अंत में दोहे।
८.दूध दोहन के पश्चात थनों को कीटाणुनाशक धोल जैसे कि आयोडोफोर या पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में डुबाएं या घोल का स्प्रे करें। ९.दूध दोहने के बाद थन नली (टीट कैनाल) कुछ देर तक खुली रहती है व इस समय पशु के फर्श पर बैठ जाने से रोग के जीवाणु थन नली के अंदर प्रवेश पाकर बीमारी फैलाते हैं। अतः दूध देने के तुरंत बाद दुधारू पशुओं को पशुआहार दें जिससे कि वह कम से कम आधा घंटा फर्श पर न बैठे ।
९.दुधारू पशुओं के दूध की समय-समय पर (कम से कम माह में एक बार ) मैंसटेकस्ट कागज से जांच करते रहें। पशु के रोग से प्रभावित थन में दवा चढ़वाएं। दूध रुकते ही थनैला रोग से बचाने वाली दवा अवश्य चढ़वाएं । १०.दूध सूखते ही थनैला रोग से बचाने वाली औषधि थनों में अवश्य चढ़ाएं।
११. पशु को विटामिन ई के साथ सेलेनियम लवण खिलाने से थनैला के प्रकोप को कम किया जा सकता है।
उपचार और परामर्श के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक से तत्काल सलाह लेनी चाहिए। थनैला ग्रसित पशु के दूध का उपचार के दौरान तथा उपचार के समाप्त होने के कम से कम 4 दिन बाद तक ना तो उपयोग में लाएं और नहीं विक्रय करें क्योंकि इस दूध के पीने से मनुष्यों में गले (सेप्टिक सोर थ्रोट) व पेट की बीमारियां हो सकती हैं।

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थनैला की रोकथाम करें और होने वाली आर्थिक हानि को बचाएं।

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