१.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथु रा
२. प्रो०( डॉ) अतुल सक्सेना निदेशक शोध, दुवासु मथुरा उत्तर प्रदेश
यदि बच्चा देने की शुरुआत होने पर या बच्चा देने के समय गर्भाशय के संकुचन कमजोर हो या अनुपस्थित हो तो इस स्थिति को गर्भाशय की जड़ता कहते हैं।
यह दो प्रकार का होता है प्राथमिक और द्वितीयक। प्राथमिक प्रकार की जड़ता गाय-भैंसों में बहुत कम होती है, परंतु अधिक बच्चे देने वाले पशुओं जैसे कुत्तिया और सुकरी में अधिकांशत: पाई जाती है।
कारण:
ब्याने के समय हारमोंस विशेषकर एस्ट्रोजन व ऑक्सीटॉसिन का संतुलन नहीं होने से ऐसा होता है। कभी-कभी हार्मोन होने के बावजूद गर्भाशय की मांसपेशियों में टोन नहीं होती है और संकुचन नहीं होते हैं। गर्भावस्था में कैल्शियम और फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलने से या कम और अधिक मिलने से कैल्शियम फास्फोरस का अनुपात बिगड़ जाता है। कैल्शियम की कमी होने पर भी गर्भाशय जड़ता हो जाती है । ऐसा अधिकांश अधिक दूध देने वाली गायों में पाया जाता है।
गर्भाशय की दीवार में अधिक खिंचाव या तनाव आने से जड़ता हो जाती है। ऐसा बच्चे का आकार बहुत बड़ा होने, बच्चे में पानी भर जाने या एक ही नवजात पैदा करने वाली प्रजाति में जुड़वा हो जाने से ऐसा होता है। शारीरिक कमजोरी या व्यायाम की कमी के कारण भी गर्भाशय जड़ता हो सकती है। गर्भावस्था के समय गर्भाशय की कोई बीमारी और अपरा/ प्लेसेंटा में सूजन आ जाने से भी जड़ता हो सकती है।
गर्भावस्था की अंतिम अवस्था में पशु का लंबी दूरी तक यातायात करने पर थकान के कारण गर्भाशय जड़ता हो जाती है।
लक्षण:
प्राथमिक गर्भाशय जड़ता:
जब ब्याने के वे सभी लक्षण प्रकट होते हैं जो सामान्य रूप से होते हैं जैसे अयन का आकार बढ़ना, पेल्विक का चौड़ा होना, गर्भाशय ग्रीवा का खुलना, हल्का पेट दर्द आदि, परंतु गर्भाशय के संकुचन नहीं होते हैं। पशु हल्के उदर के संकुचन प्रकट कर सकता है लेकिन उसमें प्रगति नहीं होती है। वह गाय या भैंस जो पहली बार बच्चा देती है उसमें बच्चा देने की दूसरी अवस्था का कोई भी लक्षण प्रकट नहीं होता है। ऐसी स्थिति में जितना जल्दी हो सके विशेषज्ञ पशु चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए अन्यथा मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा हो सकता है। गायों में ऐसे मामले में अपरा में बच्चा तो महसूस हो जाता है परंतु पानी की थैली फट नहीं पाती है क्योंकि गर्भाशय के मजबूत संकुचन नहीं होते हैं।
उपचार:
जब यह निश्चित हो जाता है कि ब्याने की दूसरी अवस्था शुरू हो गई है परंतु गर्भाशय के संकुचन नहीं होने से बच्चा बाहर नहीं आ रहा है तो तत्काल उपचार करना चाहिए। यदि बच्चे की प्रेजेंटेशन पोजीशन या पोस्चर ठीक नहीं है तो उसे सही कर पानी की थैली या मुतलेडी़ को फाड़ कर बच्चे को हल्के ढंग से खींच कर बाहर निकाले। यदि बच्चेदानी का मुंह पूरी तरह से खुला हुआ है और बच्चे की प्रेजेंटेशन, पोजीशन और पोस्चर भी सामान्य है तो 5ml ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन लगवाएं। इसके साथ ही कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट देना भी काफी लाभकारी होता है। यदि ऐसे प्रयासों से 3 से 4 घंटे में भी बच्चा बाहर नहीं निकाल पाए तो, यदि बच्चा जीवित है तो सिजेरियन द्वारा एवं यदि बच्चा मृत है
फीटोटॉमी द्वारा बच्चे को बाहर निकालना चाहिए।
द्वितीयक गर्भाशय जड़ता:
कठिन प्रसव के कारण गर्भाशय की मांसपेशियों में थकान आ जाने के कारण द्वितीयक गर्भाशय जड़ता हो जाती है। यह लगभग सभी प्रजाति में पाया जा सकता है। बच्चे की प्रेजेंटेशन, पोजीशन एवं पोस्चर सही नहीं होने, बच्चे का आकार बड़ा होने, दैत्याकार आकार होने, जुड़वा बच्चा होने या संकरी बर्थ कैनाल आदि कारणों से द्वितीयक गर्भाशय जड़ता होती है। इसमें ब्याने की दूसरी अवस्था शुरू होने के बावजूद कोई प्रगति नहीं होती,इससे पानी की थैली फट जाती है और गर्भाशय ग्रीवा भी चौड़ी हो जाती है।
उपचार:
बर्थ कैनाल को लुब्रिकेंट (जैसे कारबॉक्सी मिथाइलसैलूलोज सोडियम 20 ग्राम प्रति लीटर हल्के गुनगुने पानी में घोलकर
) का उपयोग कर , हल्के ढंग से खींच कर बच्चे को बाहर निकाले। ऑक्सीटॉसिन एवं कैल्शियम के प्रयोग से गर्भाशय के संकुचन बढ़ते हैं लेकिन निम्न परिस्थितियों में ऑक्सीटॉसिन का प्रयोग कदापि न करे–
जब गर्भाशय ग्रीवा का मुख पूरी तरह से खुला नहीं है। जब गर्भाशय से अवांछित श्राव आ रहा हो। बच्चे की प्रेजेंटेशन, पोजीशन एवं पाश्चर सामान्य नहीं हो। पेल्विस का मार्ग सकरा हो।