पशु की गर्भावस्था, ब्याने के समय तथा ब्याने के बाद पशु की आवश्यक देखभाल

0
2277

१.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
२. प्रो०(डॉ०) अतुल सक्सेना निदेशक शोध, दुवासु मथुरा

गर्भावस्था के दौरान पशु की देखभाल:-

बछिया के स्वास्थ्य तथा संतुलित आहार का जन्म से ही समुचित ध्यान रखने से वह कम उम्र में ही ऋतु में आ जाती है तथा वीर्यदान करवाने पर 2 से ढाई साल में बच्चा देने योग्य हो जाती है। गर्भित पशु के गर्भ का विकास 6 से 7 महीने के दौरान तेजी से होता है इसलिए निम्नलिखित तथ्यों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए:-
6 से 7 माह के गर्भित पशु को चरने के लिए ज्यादा दूर तक नहीं ले जाना चाहिए तथा उबड़ खाबड़ रास्तों पर नहीं घुमाना चाहिए। यदि गर्भित पशु दूध दे रहा है तो गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद दूध निकालना बंद कर देना चाहिए। गर्भित पशु के उठने बैठने के लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए। पशु जहां बंधा हो उसके पीछे के हिस्से का फर्श आगे से कुछ ऊंचा होना चाहिए । गर्भित पशु को पोषक आहार की आवश्यकता होती है जिससे ब्याने के समय दुग्ध ज्वर जैसे रोग न हो तथा दुग्ध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। प्रतिदिन निम्नवत आहार की व्यवस्था होनी चाहिए-
हरा चारा 25 से 30 किलो, सूखा चारा 5 किलो, खली 1 किलो, खनिज मिश्रण 50 ग्राम, नमक 30 ग्राम।
गर्भित पशु को पीने के लिए 75 से 80 लीटर प्रतिदिन स्वच्छ व ताजा पानी उपलब्ध कराना चाहिए।
पशु के पहली बार गर्भित होने पर 6 से 7 माह के बाद उसे अन्य दूध देने वाले पशुओं के साथ बांधना चाहिए और शरीर पीठ और थन की मालिश करनी चाहिए।
ब्याने के 4 से 5 दिन पूर्व उसे अलग स्थान पर बांधना चाहिए। यह ध्यान रहे की स्थान स्वच्छ हवादार व रोशनी युक्त हो। पशु के बैठने के लिए फर्श पर सूखा चारा डाल कर व्यवस्था बनानी चाहिए। ब्याने के 1 से 2 दिन पहले से पशु पर लगातार नजर रखनी चाहिए।

READ MORE :  अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिये-भाग 8

ब्याने के समय पशु की देखभाल:-

ब्याने के 1 दिन पहले गर्भित पशु के जनन अंगों से द्रव का स्राव होता है। पशु को बाधा पहुंचाए बिना हर 1 घंटे रात के दौरान भी अवलोकन करना चाहिए। ब्याने के समय जनन अंगों से द्रव से भरा बुलबुला सा निकलता है जो धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है और अंत में फट जाता है उसमें बच्चे के पैर का खुर का भाग दिखाई देता है अगले पैरों के घुटनों के बीच सिर दिखाई देता है। धीरे धीरे अपने आप बच्चा बाहर आ जाता है। कभी-कभी गर्भित पशु अशक्त होता है तो बच्चों को बाहर आने में परेशानी होती है। ऐसी स्थिति में कोई अनुभवी व्यक्ति बच्चे को बाहर खींचने में मदद कर सकता है। बच्चे की ऊपर बताई गई स्थिति में कोई अंतर हो तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
ब्याने के 15 से 20 मिनट बाद दूध दुहना चाहिए एवं बच्चे को भी दूध पिलाना चाहिए जिससे बच्चे को अपने संपूर्ण जीवन में रोगों से लड़ने की क्षमता प्राप्त होगी तथा जेर निकलने में भी आसानी होगी। प्रसव के उपरांत गाय या भैंस को दो से तीन बार काढ़ा( प्रति काढ़ा अलसी 200 ग्राम अजवायन 100 ग्राम सौंफ 100 ग्राम सोंठ 50 ग्राम 5 लीटर पानी में खूब पका कर उसमें 1 किलो गुड़ डालकर )पिलाएं यह स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है ।

ब्याने के बाद पशु की देखभाल:-

बच्चा देने के बाद पशु को बहुत थकान होती है अतः आसानी से पचने वाला भोजन जैसे गर्म चावल उबला हुआ बाजरा तेल मिलाएं गेहूं गुड सोया अजवाइन मेथी अदरक देना चाहिए। यह जेर गिरने में भी सहायता करता है पशु को ताजा हरा चारा व पानी उसकी इच्छा अनुसार देना चाहिए।
ब्याने के बाद जेर गिरने का इंतजार करना चाहिए। सामान्यता 10 से 12 घंटे में जेर गिर जाता हैं । जैसे ही जेल गिर जाए उसे उठाकर जमीन में गड्ढा करके गाड़ देना चाहिए। यदि 24 घंटे तक जेर ना गिरे तो, पशु चिकित्सक से संपर्क करके निकलवाना चाहिए। जेर गिरने के बाद यदि सर्दी का मौसम हो तो थोड़े गर्म पानी से और यदि गर्मी हो तो स्वच्छता के पानी से पशु को स्नान कराना चाहिए। ब्याने के बाद उसको कोई बीमारी हो तो तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए। जाने के बाद गाय या भैंस 45 से 60 दिन में गर्मी में आती है लेकिन वीर्यदान के लिए अगली बार गर्मी में आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । यदि इस समय अंतराल में पशु गर्मी में नहीं आता है तो पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON