पशुओं में कीटनाशकों की विषाक्तता का दुष्प्रभाव एवं उनका प्राथमिक उपचार

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1978

डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा

किसानों द्वारा कृषि रसायनों का फसलों पर छिड़काव सामान्यता फसल की गुणवत्ता तथा उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह रासायनिक कीटनाशक भौतिक एवं जैविक पदार्थ होते हैं जिनको की अवॉछनीय पौधों को हटाने तथा, फसलों को नष्ट करने वाले कीड़ों को मारने हेतु प्रयोग किया जाता है। इन रासायनिक पदार्थों का मानक ता के अनुरूप सही रूप में, प्रयोग नहीं करने पर मनुष्य और पशुओं, के शरीर में पहुंचकर घातक प्रभाव प्रकट करते हैं जिसके फलस्वरूप पशु की कार्य एवं उत्पादन क्षमता का कम होना तथा स्वास्थ्य का ह्रास होने की संभावना बनी रहती है। कृषि रसायनों का उपयोग विज्ञान द्वारा दिए गए मापदंड एवं अत्यंत सावधानी से करना चाहिए। यह रासायनिक पदार्थ पशुओं के शरीर में मुख, स्वास अथवा त्वचा द्वारा अवशोषित होकर पहुंचते हैं। इन पदार्थों में मुख्यत: कीटनाशक, कृमि नाशक , खरपतवारनासी, कवकनाशी तथा चूहामार दवा प्रमुख है।

विष के प्रमुख स्रोत:
१. कीटनाशक की विषाक्तता दुर्घटनावश कीटनाशक छिड़काव युक्त संक्रमित चारे को खाने से।
२. किसी सत्रु द्वारा जानबूझकर हानिकारक रासायनिक विष, पशुओं को खिलाने से।
३. कीटनाशकों के खाली डिब्बे को सही ढंग से साफ न करना, तथा इन पात्रों में पशुओं को चारा खिलाने तथा पानी पिलाने से।
४. कीटनाशकों का फसलों पर छिड़काव करने के तुरंत बाद पशुओं का चरने आना या चरना, अथवा छिड़के हुए रसायन पदार्थ, के संपर्क में आने से त्वचा द्वारा अवशोषित होना।
५. कीटनाशकों तथा पशुओं के चारे को एक साथ भंडारित करने से।
६. कीटनाशक का छिड़काव पशुओं के आवास स्थल पर होने वाले किलनी, जूं, अथवा पिस्सू आदि को मारने के लिए तथा इनका पशुओं द्वारा चाटने तथा संपर्क में आने से।
७. बाहय परजीविओं को मारने वाली औषधियों को उसके शरीर पर लगाने पर कथा उसको पशुओं के द्वारा चाटने पर।
८. नदियों,तालाब तथा झरना के पानी में रासायनिक तत्वों का मिश्रण उद्योगों द्वारा छोड़े जाने पर तथा इस दूषित जल को पशुओं द्वारा पान करने पर।
९. दूषित जल, भोजन एवं धुएं के संपर्क में आने से।

रासायनिक गुणों के आधार पर कीटनाशकों को कई श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

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१.ऑर्गेनोफॉस्फेट कंपाउंड:
पैराथिऑन, मेलाथियान, सुमिथियान, क्लोरपायरी फास, डाईक्लोरोफास, कोमा फाश इत्यादि।
विषाक्तता के लक्षण:
ऑर्गेनोफॉस्फेट कंपाउंड विष, की विषाक्तता के कारण पशुओं में अत्याधिक उत्तेजना, बेचैन होना, दांतो का किटकिटाना, पीछे की तरफ चलना, दीवार पर चढ़ना, छलांग लगाना , शरीर का तापमान बढ़ना, झाग दार लार बहना ,अतिसार होना आंखों की पलकों का फड़कना, पुतलियों का फैलना , तथा बार-बार मूत्र विसर्जन करना इत्यादि।
रोग निदान:
ऑर्गेनोफॉस्फेट की विषाक्तता की पहचान पशुओं में निम्न प्रकार से करना चाहिए:-
१. विषाक्तता की जानकारी पीड़ित पशु के मालिक द्वारा होना।
२. विषाक्तता के लक्षणों के आधार पर।
३. रासायनिक कीटनाशक की पहचान जीवित पशु के दूध तथा रक्त की जांच द्वारा एवं मृत पशु के यकृत तथा गुर्दे की जांच द्वारा।

बचाव तथा उपचार:
विष संक्रमित, चारे को पशुओं के खाने के स्थान से हटाना। पीड़ित पशु को शांत स्वच्छ खुले एवं हवादार स्थान पर रखना चाहिए। एट्रोपिन सल्फेट की मात्रा कुत्ता एवं बिल्ली में 0.2 से 2 मिलीग्राम, प्रति किलोग्राम शारीरिक भार पर, छोटे तथा बड़े पशुओं जैसे गाय, भैंस, भेड़, घोड़े ,सूअर में 0.2 से 0.5 मिलीग्राम प्रति किलो शरीर भार के अनुसार देना चाहिए । इसकी एक चौथाई मात्रा इंट्रावेनस तथा तीन चौथाई मात्रा इंटरामस्कुलर अथवा सबक्यूटेनियस, इंजेक्शन द्वारा देना चाहिए । इस दवा को 3 से 4 घंटे के अंतर पर पुनः देना चाहिए, जब तक की विषाक्तता के लक्षण समाप्त नहीं हो जाते। अत्याधिक उत्तेजित पशु को शांत करने के लिए पेंटोबार्बिटल सोडियम अथवा डायजेपाम लगाना चाहिए। कोलीनस्टरेज रिएक्टीवेटर जैसे कि २- पाम, २-डाम, ओवीडॉग्जीम, जैसी औषधियों का प्रयोग विषाक्तता होने के 24 से 36 घंटे के अंदर करना चाहिए। कुत्ता एवं बिल्ली को 20 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तथा गाय एवं भैंस को 25 से 50 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तथा घोड़े को 10 से 40 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के भार के अनुसार धीरे धीरे इंट्रावेनस अथवा इंटरमस्कुलर लगाना चाहिए। एक्टिवेटेड चारकोल को 2 किलोग्राम पहले दिन इसके पश्चात 1 किलोग्राम रोजाना 2 हफ्तों तक सेवन कराना चाहिए। कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट इंट्रावेनस देना चाहिए। अवशोषित विष को
शरीर से बाहर उल्टी द्वारा एपोमार्फिन हाइड्रोक्लोराइड की मात्रा कुत्तों में 0.04 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के भार के अनुसार तथा दस्त द्वारा निकालने के लिए मैग्नीशियम सल्फेट की मात्रा कुत्ते में 5 से 25 ग्राम, बिल्ली में 2 से 5 ग्राम, गाय एवं भैंस में 250 से 500 ग्राम तथा घोड़े में 30 से 100 ग्राम तक सेवन कराना चाहिए।

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२. ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक:
डीडीटी ,एडरिन, एल्डरिन, एंडोसल्फान, क्लोरपायरिफॉस, डाईक्लोरो फास, कोमाफास इत्यादि।
इस कीटनाशक की विषाक्तता पशुओं में सामान्यता कीटनाशक छिड़काव युक्त फसलों के संपर्क में आने से होती है। क्योंकि यह कीटनाशक पशुओं की त्वचा द्वारा, अवशोषित हो जाते हैं। इस विष के दुष्प्रभाव के कारण, पीड़ित पशु में निम्न लक्षण जैसे अत्याधिक लार बहना, पसीना आना, अश्रु निकलना, बार-बार मूत्र विसर्जित करना, अतिसार होना, पेट में दर्द होना, रक्तचाप कम हो जाना, शरीर का तापमान कम हो जाना, नेत्र पुतलियों का संकुचित होना, अत्यधिक बेचैन होना, श्वास लेने में कठिनाई होना हृदय स्पंदन का कम होना तथा अंत में पशु की मृत्यु होना।
बचाव तथा उपचार:
एट्रोपिन सल्फेट, की मात्रा 0.2 से 0.5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के भार के अनुसार नॉरमल सलाइन में मिश्रित करके देना चाहिए। कैल्शियम बोरोग्लूकोनेट 200 से 400 मिलीलीटर इंट्रावेनस नॉरमल सलाइन में मिश्रित करके देना चाहिए। पशु के शरीर को स्वच्छ जल तथा साबुन से धीरे धीरे रगड़ रगड़ कर धोना चाहिए।

३.कारबामेट कंपाउंड:
कारबारिल, एलडीकारब, कार्बोफयूरान इत्यादि।
इन पदार्थों का उपयोग पशुओं के शरीर पर वाहय
परजीवियों को हटाने के लिए किया जाता है। इनके दुष्प्रभाव के लक्षण सामान्यता ऑर्गेनोफॉस्फेट कंपाउंड की तरह होते हैं तथा इनका उपचार भी आर्गनो- फास्फेट कंपाउंड की तरह करते हैं परंतु इनके उपचार के दौरान कोलीनस्ट्रेज रिएक्टीवेटर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

४.पायरेथ्रीन एवं पायरेथ्राइड कंपाउंड:
एल्थरिन, परमैथरीन, साइपरमैथरीन, फ्लूमथ्रीन इत्यादि।
इनका उपयोग पशुओं के शरीर पर बाहय परजीवी को हटाने के लिए किया जाता है। इनकी विषाक्तता के लक्षण तथा प्राथमिक उपचार ऑर्गेनोक्लोरीन की तरह है परंतु इनकी विषाक्तता के उपचार के दौरान फीनोथायजिन ट्रेंकुलाइजर तथा तेल युक्त परगेटिव नहीं देना चाहिए।

५.खरपतवारनासी कीटनाशक:
2 ,4 डी, 2,4,5 टी, एटराविन, मोनोयूरोन , डाईयूरोन, पैराक्वेट, डाईकवेट, सिमाविन इत्यादि।
इन खरपतवार नासी पदार्थों का उपयोग किसानों द्वारा अवॉछनीय पौधों को हटाने के लिए, किया जाता है। इनकी विषाक्तता पशुओं में दुर्घटना वश होती है। इन रसायनिक पदार्थों के कारण पीड़ित पशु के शरीर का तापमान बढ़ना, भूख न लगना, रूमैन का स्थिर हो जाना, मुंह में छाले पड़ना ,अतिसार होना, पेट फूलना तथा सांस में तकलीफ होना इत्यादि है।
उपचार:
पीड़ित पशु को शांत तथा हवादार कमरे में रखना चाहिए तथा उसके शरीर के तापमान को कम करने के लिए ठंडे पानी से नहलाना चाहिए। पीड़ित पशु के श्वास क्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए कृत्रिम ऑक्सीजन देना चाहिए। बड़े पशु जैसे गाय, भैंस ,बकरी, भेड़ को मिथाईलीन सलूशन (2 से 4% )10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम इंट्रावेनस 8 घंटे के अंतर पर 24 से 48 घंटे तक देना चाहिये। तथा विटामिन सी 5 से 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के भार के अनुसार इंट्रावेनस 24 से 48 घंटे तक देना चाहिए। शरीर के तापमान को कम करने वाली औषधि भूल कर भी नहीं देना चाहिए अन्यथा विष की, विषाक्तता और बढ़ जाती है।

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६.चूहामार दवा:
वारफेरिंन, जिंक फास्फाइड, क्लोरोएसिटेट इत्यादि।
चूहा मार दवा की विषाक्तता सामान्यता कुत्ता तथा बिल्ली में दुर्घटना रैट बिस्किट खाने से होती है। इसकी विषाक्तता के लक्षण पीड़ित पशु में इस प्रकार हैं जैसे उल्टी आना, हृदय की धड़कन बढ़ना, मसूड़ों तथा शरीर के सभी छिद्रों से रक्त निकलना, शरीर के अंदर रक्त स्राव, त्वचा के नीचे अंदर की तरफ रक्त एकत्रित होना, श्वास लेने में तकलीफ होना तथा पीड़ित पशु की मृत्यु होना।
निदान:
विषाक्तता की जानकारी पीड़ित पशु के मालिक द्वारा देना। पीड़ित पशु द्वारा दिखाए गए मुख्य लक्षणों के आधार पर तथा मृत पशु के शव परीक्षण द्वारा।
उपचार:
पीड़ित पशु को विटामिन K1 का इंजेक्शन 5 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शरीर भार के अनुसार इंट्रावेनस 2 दिन तक देना चाहिए तथा इसके बाद विटामिन के K1 का सेवन रोजाना 4 से 6 दिनों के लिए करवाना चाहिए। पशु को शांत करने के लिए सीडेटिव-, बार्बीटूरेट का प्रयोग करना चाहिए।

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