आधुनिक गौशाला प्रबंधन
1. डॉ रेखा शर्मा
प्रधानाचार्य
महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज सौंख मथुरा
2. डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
गौशाला या डेयरी फार्म की स्थापना करने के समय इस बात का ध्यान रखें कि निर्माण स्थल ऊंचा तथा समतल होना चाहिए ताकि पानी की निकासी आसानी से हो सके तथा पानी इकट्ठा होने के कारण दुर्गंध व बीमारी फैलने की, संभावना भी ना रहे। जहां तक हो सके गौशाला के स्थान का चयन बाजार के नजदीक करें जो कि सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ हो,इससे पशुपालक अपना उत्पाद दूध एवं खाद नियमित रूप से लाभप्रद भाव पर बेच सकेंगे व दिन पर दिन उन्हें गौशाला या डेयरी फार्म पर काम आने वाली वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो सकेगी। गौशाला पर स्वच्छ व शुद्ध पानी के साथ साथ बिजली की भी व्यवस्था होनी चाहिए। फार्म का क्षेत्र पर्याप्त तथा वर्गाकार होना चाहिए और भविष्य में उसे बढ़ाने का प्रावधान रखना चाहिए। इसके साथ साथ सस्ते दुग्ध उत्पादन के लिए उपयुक्त मात्रा में हरा चारा उगाने हेतु फार्म के पास पर्याप्त उपजाऊ भूमि अवश्य उपलब्ध हो, ताकि पूरे वर्ष हरे चारे की आपूर्ति हो सके। गौशाला स्थापित करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि गौशाला में काम करने हेतु कुशल,अनुभवी व सस्ते श्रमिक उपलब्ध हो सकेंगे ताकि गौशाला का कार्य सुचारू रूप से होता रहे। पशुशाला की जगह का चयन करने के उपरांत उसके निर्माण में विशेष ध्यान दें। पशुशाला निर्माण के समय पशुओं के आराम तथा स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है। जहां तक संभव हो सके पशुशाला का निर्माण आसपास में उपलब्ध सामग्री से हो ताकि निर्माण पर कम लागत आए। पशुशाला में हवा और रोशनी रोशनी का समुचित प्रबंध हो। फार्म के चारों तरफ छायादार वृक्ष लगाने चाहिए, जिससे तेज ठंडी व गर्म हवाओं से पशुओं का बचाव हो सके। पशुशाला में मुक्त घर व्यवस्था को ही अपनाएं। इस प्रणाली से पशुओं को हमेशा बाड़े में खुला रखा जाता है। केवल
दोहने के समय, उन्हें एक अलग दुग्धशाला में बांध कर दोहा जाता है। बाड़े का एक तिहाई हिस्सा ऊपर से छत द्वारा ढका जाता है। बाड़े में स्थित एक टंकी से उस बाड़े के सभी पशु पानी पीते हैं। इसी प्रकार एक लंबी नांद या चरही, जो की छत से ढके हुए स्थान में बनी होती है उसमें सभी पशु चारा व दाना खाते हैं। ऐसे बाडों में काम, कम श्रम से सरलता से किया जा सकता है। इस प्रकार की आवास व्यवस्था पर लागत भी कम आती है।
उत्तम प्रबंधन के अंतर्गत गौशाला में हवा, रोशनी, स्थान, पानी आदि का समुचित प्रबंध होना चाहिए एवं छायादार वृक्ष होने चाहिए। पशुशाला संख्या के अनुसार सुविधा के लिए पूंछ से पूंछ एवं सिर से सिर रखनी अधिक उचित रहती है। इसकी जानकारी हेतु नजदीक के पशु चिकित्सालय से संपर्क किया जा सकता है। सुबह शाम व्यक्तिगत रूप से पशुओं का निरीक्षण हो ताकि मदकाल या बीमार पशु की समय से पहचान कर, उचित प्रबंध किया जा सके। पशुओं की संख्या तथा अवस्था को ध्यान में रखकर बाड़ो का फर्श पक्का एवं खुरदुरा होना चाहिए तथा फर्श का ढलान नाली में हो, ताकि मूत्र एवं गंदे पानी की निकासी में सुविधा हो। पशुओं की संख्या के आधार पर उससे पूंछ से पूंछ, 2 पंक्तियों में एवं बीच में रास्ता के दोनों और नाली होनी चाहिए एवं सिर की तरफ से चरही हो साथ ही हर उम्र के पशुओं को एक साथ न रखकर अवस्था अनुसार समूह में जैसे तीन माह 3 से 6 माह, 6 माह से 1 वर्ष, 1 वर्ष से 3 वर्ष तक के वयस्क नर व मादा को अलग अलग रखना चाहिए। सूखे पशुओं गर्भित पशुओं एवं सॉडो के बाड़े, दाने चारे के गोदाम व अन्य इमारतें पशुशाला में सुव्यवस्थित ढंग से एक दूसरे के साथ जुड़ी हो ताकि पशुओं का रखरखाव आसानी से कम समय में संभव हो सके। दुधारू पशुओं तथा 1 से 3 माह के नवजात बच्चों के बाड़े दुग्धशाला के साथ हो ताकि दूध दोहने, का काम आसानी से कम समय में स्वच्छता के साथ संभव हो सके।
गौशाला में चयन करने के उपरांत ही अच्छे उत्पादक पशुओं को ही रखें ताकि सीमित साधनों से अधिक लाभ लिया जा सके। पशुओं को कृमि नाशक दवा एवं टीकाकरण की प्रक्रिया पूर्व से ही माहवार निर्धारित होनी चाहिए। पशुओं के उचित प्रबंध तथा रिकॉर्ड के लिए व्यक्तिगत लाभ हानि देखने के दृष्टिकोण से एवं पहचान के लिए टैग नंबर अवश्य डाले जाएं जिससे भविष्य में वंशावली तैयार करना आसान रहेगा। पशुओं की उन्नति एवं विकास के लिए यह परम आवश्यक है कि उनसे संतान उत्पादन वैज्ञानिक विधि से किया जाए।
दुग्ध व्यवसाय के लिए स्थापित गौशालाओं में उच्च श्रेणी के उपयोगी पशु ही पालने चाहिए, पशु उस ही नस्ल के पाले जो उस क्षेत्र के लिए निर्धारित हो ताकि उनके रखरखाव पर कम से कम खर्च आए। पशु प्रजनन के लिए कृतिम गर्भाधान का प्रयोग कर उत्तम व शुद्ध नस्ल के सॉडो का, बीज निकटतम पशु चिकित्सालय द्वारा प्रयोग कर सकते हैं। क्योंकि इनका अनुवांशिकी रिकॉर्ड उपलब्ध रहता है। जो दुधारू पशु औसतन 8 से 10 लीटर से कम दूध देने वाले हो ऐसे पशुओं को गौशाला में रखने से बचें, क्योंकि इनका रखना गौशाला के लिए लाभप्रद नहीं होगा। पशुओं की संख्या उतनी ही रखें जितनी कि चारे पानी व रहने की उचित व्यवस्था गौशाला में संभव हो सके। पशुओं के उचित प्रबंध तथा रिकॉर्ड के लिए उनको 12 नंबर का यूआईडी टैग अवश्य लगवाने चाहिए।
पशुपालन में कुल लागत का लगभग 70% खर्च मात्र पशुओं के आहार पर होता है। इसलिए डेयरी व्यवसाय की सफलता दुधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता तथा उनके आहार पर आए खर्च पर निर्भर करती है। यदि कम खर्च में सस्ता,संतुलित एवं पौष्टिक आहार पशुओं को उपलब्ध कराया जाए तो इस व्यवसाय से अधिक लाभ कमाया जा सकता है । इसके लिए पशुपालकों को अपने यहां हरा चारा जैसे बरसीम, लोबिया, जई, ज्वार, मकका आदि उगाने चाहिए, ताकि पशुओं को निर्बाध रूप से वर्ष भर हरा चारा उपलब्ध हो सके यह बाजार से खरीदे चारे की अपेक्षा सस्ता तो पड़ेगा ही साथ ही साथ पशुओं को फलीदार हरा चारा देने के उपरांत उन्हें दाना देने की आवश्यकता भी कम रह जाती है तथा पशुओं का स्वास्थ्य भी बना रहता है।
पशुओं के बाड़े में पीने के लिए साफ ताजा व स्वच्छ पानी हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए। पशुओं के उचित आवास व आहार के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें क्योंकि एक स्वस्थ पशु ही अपनी क्षमता के अनुसार स्वच्छ दूध का उत्पादन कर सकता है। बीमारी से पशु के उत्पादन में कमी आ जाती है व पशु मर भी सकता है। इससे पशुशाला की आय में कमी आ जाती है। इसके लिए पशुपालकों को चाहिए कि वह अपने पशुओं की नियमित जांच एक अनुभवी पशुचिकित्सक से कराते रहें तथा बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से तुरंत अलग कर उनका उपचार कराएं। पशुओं में होने वाली बीमारियों का उपचार करवाने से रोकथाम करना अधिक लाभप्रद होता है। इसके लिए गौशाला की सफाई पर विशेष ध्यान दें। गोबर और अन्य ठोस पदार्थ जैसे बिछावन चरही से नीचे गिरा हुआ भूसा आदि पशु घर में से दिन में कम से कम 2 बार हटाना चाहिए तथा इन्हें पशु घर से कम से कम 100 मीटर दूरी पर, किसी गड्ढे में इकट्ठा करें ताकि इससे निर्मित खाद को खेतों में डाला जा सके। सप्ताह में एक बार फिनायल के 1 से 2% घोल से पशु घर के फर्श की सफाई करें। महीने में एक बार उपयुक्त कीटनाशक दवा जैसे मेलाथियान का छिड़काव बाड़े में करना चाहिए।
पशुओं में विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण नियमित रूप से मानसून से पहले करा लेना चाहिए। पशुओं को खासतौर से छोटे बच्चों को आंतरिक परजीवियों, से बचाव हेतु औषधि पशुचिकित्सक की सलाह लेने के उपरांत अवश्य पिलाएं। पशुओं को बाहय परजीविओं से बचाव हेतु, उनके पूरे शरीर पर 5ml साइपरमैथरीन 2.5 लीटर पानी में मिलाकर उसके पूरे शरीर पर लगाएं तथा पशु घर के फर्श व दीवार, पर भी उपरोक्त दवा का स्प्रे करें।
गोशाला के उचित संचालन के लिए एक कुशल ईमानदार व अनुभवी प्रबंधक या व्यवस्थापक का होना अति आवश्यक है। जिसे पशु उत्पादन व उनके प्रबंधन का समुचित ज्ञान हो। प्रबंधक को चाहिए कि वह पशुशाला में दिन प्रतिदिन के कार्यकलापों पर नजर रखें। श्रमिकों को समय समय पर निर्देशित करते रहें। प्रबंधक को श्रमिकों के साथ सौहार्द पूर्वक रिश्ता रखना चाहिए तथा उनके हितों का समुचित ध्यान रखें क्योंकि एक खुश वह संतुष्ट श्रमिक या कर्मचारी ही अपने कार्य में रुचि लेता है तथा पूरी लगन व ईमानदारी के साथ अपने काम को पूर्ण करने की कोशिश करता है।
यदि पशुपालक अपनी गौशाला की स्थापना व संचालन करते समय उपरोक्त सभी तथ्यों का ध्यान रखेंगे तो वे निश्चित ही अपनी गौशाला को एक आदर्श गौशाला के रूप में विकसित कर सकेंगे तथा अधिक व स्वच्छ दूध उत्पादन कर पशुपालन व्यवसाय से नियमित व अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकेंगे।