गोबर से सोने की चिड़िया बन सकता है देश

0
351

गोबर से सोने की चिड़िया बन सकता है देश

पशुधन प्रहरी नेटवर्क

30th june 2020

छत्तीसगढ़ सरकार ने फैसला लिया है कि वह गोबर की खरीद करेगी और उसे कोई तीन हजार गोठान, महिला स्वयं सहायता समूह के माध्यम से कंपोस्ट व वर्मी कल्चर में बदल कर बेचगी। साथ ही, गोबर गैस प्लांट, उपले-कंडे, दीपावली के दीये बनाने व अंतिम संस्कार में भी गोबर का इस्तेमाल होगा। यदि यह योजना सफल हुई, तो ऊर्जा संरक्षण और ग्राम स्वाबलंबन का बड़ा उदाहरण हो सकती है।

रासायनिक खाद के इस्तेमाल से बांझ हो रही जमीन को राहत देने के लिए पुरानी परंपराओं को पलट कर देखना सुखद हो सकता है। जब हम कहते हैं कि भारत सोने की चिड़िया था, तब यह गलत अनुमान लगाते हैं कि देश में सोने का अंबार था। हमारे खेत और मवेशी हमारे लिए सोने से कीमती थे। सोना अब भी यहां चप्पे-चप्पे में बिखरा हुआ है। पर उसे चूल्हों में जलाया जा रहा है। दूसरी तरफ अन्नपूर्णा धरती नई खेती के प्रयोगों से कराह रही है।

विकसित देश न्यूजीलैंड में आबादी के बड़े हिस्से का जीवन-यापन पशुपालन से होता है। वहां के लोग दूध और दुग्ध उत्पादों का व्यापार करते हैं। वहां पीटर प्रॉक्टर पिछले 40 साल से जैविक खेती के विकास में लगे हैं। उन्होंने पाया कि जैविक खेती में गाय के सींग की भूमिका चमत्कारी होती है। वह सितंबर में एक गहरे गड्ढे में गाय का गोबर भरते हैं, जिसमें गाय के सींग का एक टुकड़ा दबा देते हैं। फरवरी या मार्च में वह कंपोस्ट को इस्तेमाल के लिए निकाल लेते हैं।

READ MORE :  Minimum Standard Protocol (MSP) and Standard Operating Procedures (SOP) formulated for Regulating Artificial Insemination

गाय के सींग से तैयार मिट्टी सामान्य मिट्टी से 15 गुना और केंचुए द्वारा उगली हुई मिट्टी से दोगुनी उर्वरा होती है। इस कंपोस्ट को पानी में घोलकर सूर्योदय से पहले खेतों में छिड़कने पर पैदावार अधिक पौष्टिक होती है, जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और कीटनाशकों के उपयोग कीजरूरत नहीं पड़ती।

भारत में मवेशियों की संख्या करीब तीस करोड़ है। इनसे रोज करीब 30 लाख टन गोबर मिलता है। इसमें से तीस फीसदी को उपला बनाकर जला दिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में गोबर गैस से हर साल सोलह लाख यूनिट बिजली का उत्पादन होता है, तो चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अपने यहां गोबर का सही इस्तेमाल हो, तो सालाना छह करोड़ टन लकड़ी व साढ़े तीन करोड़ टन कोयला बचाया जा सकता है।

हालांक देश में गोबर को लेकर कई नवाचार हो भी रहे हैं। लखनऊ के बायोवेद शोध ने गोबर से गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायन, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैंड व ट्रॉफियां तैयार की हैं, तो उत्तराखंड के काशीपुर में गोबर से तैयार टाइल्स खूबसूरत होने के साथ कमरे के लिए एसी की तरह काम भी करते हैं। जयपुर के कुमारप्पा नेशनल हैंडमेड पेपर इंस्टीट्यूट में तैयार कागज इतने मजबूत हैं कि इनसे कैरी बैग बनाए जा रहे हैं। आईआईटी, दिल्ली ने तो अंतिम संस्कार के लिए गोबर से तैयार लट्ठों की मशीन बनाई है, जो कम कीमत की है और इसकी मात्रा भी लकड़ी से कम लगती है।

READ MORE :  डेयरी चलाने वाले ध्यान दें, डेयरियों में मनमानी पर NGT सख्त, देशभर में डेयरी संचालन के लिए बनेंगे कड़े नियम

कुछ साल पहले हॉलैंड की एक कंपनी ने भारत को गोबर निर्यात करने की योजना बनाई थी, तो बवाल मचा था। पर इस बेशकीमती कार्बनिक पदार्थ की देश में कुल उपलब्धता आंकने के आज तक प्रयास ही नहीं हुए। वर्ष 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि गोबर को चूल्हे में जलाया जाना अपराध है। पर इसके व्यावहारिक इस्तेमाल के तरीके ‘गोबर गैस प्लांट’ की दुर्गति यथावत है। निर्धारित लक्ष्य के 10 फीसदी प्लांट भी नहीं लगाए गए हैं और ऐसे प्लांट सरकारी सब्सिडी गटकने से ज्यादा काम में नहीं हैं।

जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि हमारे यहां गोबर के जरिये 2,000 मेगावाट ऊर्जा पैदा की जा सकती है। गोबर के उपलों पर खाना बनाने में बहुत समय लगता है। यदि इसका इस्तेमाल खेतों में किया जाए, तो अच्छा होगा। इससे महंगी रासायनिक खादों का खर्चा कम होगा, जमीन की ताकत बनी रहेगी और पैदा फसल शुद्ध होगी। गोबर गैस प्लांट का उपयोग रसोई में अच्छी तरह होगा और उससे निकला कचरा बेहतरीन खाद का काम करेगा। इस तरह गोबर फिर हमारे देश को सोने की चिड़िया बना सकता है।

Source-Amar Ujala

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON