नस्ल सुधार का उत्तम उपाय है कृत्रिम गर्भाधान
१.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा
२. डॉ राजेश कुमार सिंह
पशु चिकित्सा पदाधिकारी जमशेदपुर
कृत्रिम गर्भाधान: उच्च गुणवत्ता वाले सांड के वीर्य को कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के गर्भाशय में विसंक्रमित, यंत्र की सहायता से गर्मी की उचित अवस्था में उचित स्थान पर पहुंचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है। कृत्रिम गर्भाधान का मुख्य उद्देश्य अधिक दुग्ध उत्पादन वाली संततियों की प्राप्ति करना है।
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ:
नस्ल सुधार हेतु।
इस विधि से सामान्य उत्पादन वाले मादा पशुओं से भी उच्च गुणवत्ता की बछिया प्राप्त की जा सकती है जो कि
अधिक दुग्ध उत्पादन करेगी। पशुपालक को सांड रखने की आवश्यकता नहीं ।
उत्तम नस्ल के सांड के वीर्य की आसानी से गांव-गांव में उपलब्धता।
उत्तम नस्ल के सांड से अधिक संतति की उत्पत्ति होना ।
उच्च गुणवत्ता के सॉड की मृत्यु उपरांत भी उसके वीर्य को संरक्षित रख उसका उपयोग संतति उत्पन्न करने हेतु संभव ।
नई एवं उन्नत प्रजातियां उत्पन्न करना।
इच्छित गुणों अथवा जाति की संतति उत्पन्न करना।
लागत कम और लाभ अधिक ।
बार-बार सांड बदलने की आवश्यकता नहीं।
कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले प्रजनन संबंधी संक्रामक रोगों से बचाव किया जा सकता है।
इस विधि में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है जिससे मादा पशु में प्रजनन संबंधी रोगों में काफी हद तक कमी आ जाती है तथा गर्भधारण की दर भी बढ़ जाती है।
इस विधि में पशु का प्रजनन रिकॉर्ड रखने में आसानी होती है।
कृतिम गर्भाधान करने से पहले मादा के जनन अंगों की जांच की जाती है। यदि पशु पहले से गर्भित है या उसके जनन अंगों में कोई दोष या संक्रमण है तो ऐसे पशुओं में समुचित उपचार के उपरांत ही इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
कृत्रिम गर्भाधान हेतु आवश्यक सावधानियां:
वीर्य का स्ट्रा पूरी तरह सदैव तरल नत्रजन में डूबा रहना चाहिए अन्यथा शुक्राणु मर जाएंगे।
स्ट्रॉ निकालते समय विशेष रुप से ध्यान रखना है कि स्ट्रा से भरे कनिस्टर को फ्रॉस्ट लाइन, से ऊपर नहीं लाना चाहिए।
कृत्रिम गर्भाधान से पूर्व अतिमीकृत वीर्य स्ट्रा को 37 डिग्री सेल्सियस तापमान पर थाइंग ट्रे में रखे हुए जल में छैतिज अवस्था में 30 से 45 सेकंड तक थॉ करनी चाहिए। थॉ करने के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी का तापमान हमेशा थर्मामीटर से देखना चाहिए। थॉइंग करते समय, वीर्य स्ट्रा पूरी तरह से पानी में डूबा रहना चाहिए।
थॉ करने के पश्चात स्ट्रा को टिशू पेपर से अच्छी तरह पोंछना चाहिए, ताकि उस पर पानी की एक भी बूंद नहीं रहे।
वीर्य स्ट्रा को हमेशा स्ट्रॉ कटर से ही काटना चाहिए जिससे स्ट्रा तिरछा कटने की संभावना ना रहे।
एआई गन में वीर्य स्ट्रा लोड करने से पहले यह सुनिश्चित करें की स्ट्रा में एयर स्पेस प्रयोगशाला सील के किनारे हो तथा वीर्य स्ट्रा को ए. आई. गन में कॉटन प्लग की दिशा में लोड कर प्रयोगशाला सील के किनारे कैची या स्ट्रा कटर की सहायता से सीधे कोण पर कांटे।
शीथ को एआई गन के ऊपर लगाते हुए ओ-रिंग लॉक करें।
कृत्रिम गर्भाधान सदैव गर्मी की मध्य अवस्था से अंतिम अवस्था के बीच करना चाहिए।
गर्मी के लक्षण:
गर्मी की प्रारंभिक अवस्था में रंभाना, बेचैनी, अन्य पशुओं पर चढ़ना, योनि मार्ग से तरल चिपचिपा, रंगहीन स्राव/ म्यूकस निकलना। दूसरे पशुओं पर चढ़ना परंतु उन्हें खुद अपने ऊपर नहीं चढ़ने देना। जबकि गर्मी की मध्य अवस्था में योनि मार्ग से श्राव/ म्यूकस निकलना एवं दूसरी गायों/ भैंसों के चढ़ने पर आराम से खड़े रहना (यह अवस्था गर्भधारण हेतु सर्वथा उपयुक्त है। )
कृत्रिम गर्भाधान के उपरांत पशुपालक को दी जाने वाली सलाह:
पशुपालक को अगले 12 से 24 घंटे तक उसको निगरानी में रखने के लिए कहे।
ऋतु की शेष अवस्था के दौरान पशु को आवारा सॉडो से बचाए रखने हेतु पशुपालक को निर्देशित करें।
यदि ऋतुमय अवस्था, 18 से 24 घंटे के बाद भी बनी रहे तो कृत्रिम गर्भाधान दोबारा कराएं।
यदि पशु लगातार दो बार 20 से 21 दिनों के अंतराल पर गर्मी में नहीं आता है तो कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता को 3 महीने के उपरांत गर्भ परीक्षण हेतु बुलाएं।
भारतीय नस्लों का संरक्षण एवं संवर्धन:
गौ एवं महिष वंशीय पशुओं की संख्या में भारत विश्व में प्रथम स्थान रखता है। भारत में 37 प्रकार की गोवंश की नस्लें चिन्हित है। वर्तमान परिदृश्य में इन नस्लों के पशुओं की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। जिसका मुख्य कारण इन नस्लों की उत्पादन क्षमता कम होना एवं कृषि के क्षेत्र में तेजी से मशीनीकरण शामिल है अतः इन नस्लों की उपयोगिता बढ़ाकर इनका संरक्षण एवं संवर्धन हमारा मुख्य उद्देश्य है। भारत सरकार द्वारा इस हेतु राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना, के अंतर्गत एन. ए. आई. पी.योजना प्रारंभ की गई है। जिसके अंतर्गत उच्च कोटि के सॉडो से प्राप्त उच्च गुणवत्ता के वीर्य द्वारा पशुपालक के द्वार पर नि:शुल्क कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है जिसका प्रथम चरण 31 मई 2020 को पूरा हो चुका है। इस योजना का दूसरा चरण 1 अगस्त 2020 से 10 माह के लिए प्रारंभ हो रहा है जो 31 मई 2021 को समाप्त होगा। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक जनपद से 500 ग्राम चयनित किए जाएंगे और प्रत्येक ग्राम में कम से कम 100 प्रजनन योग्य गाय या भैंस का चयन आवश्यक होगा यदि किसी गांव में 100 प्रजनन योग्य, मादा पशु उपलब्ध नहीं होंगे तो नजदीक के गांव को भी योजना में शामिल किया जाएगा। इस प्रकार प्रत्येक जनपद में 50,000 पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान का लक्ष्य रखा गया है।
स्वदेशी गोवंश की विशेषताएं:
स्वदेशी नस्ल के पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा गर्मी सहन करने की क्षमता अधिक होती है जिस कारण से यह आसानी से बीमार नहीं पड़ते। इनमें किलनी का संक्रमण कम होता है जिससे कलीली जनित, रोग नहीं होते हैं। पोषण आहार की अनुपलब्धता एवं अन्य विपरीत परिस्थितियों में भी भली-भांति गुजारा कर लेते हैं। गिर, साहिवाल, रेड सिंधी एवं राठी नस्ल के पशुओं में दुग्ध उत्पादन की अच्छी क्षमता होती है।