पशुओं को अधिक मात्रा में बासी भोजन खिलाने से उत्पन्न समस्याएं एवं उनका उपचार
1.डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुहां मथुरा
2. डॉ राजेश कुमार सिंह
पशु चिकित्सा पदाधिकारी जमशेदपुर
अक्सर ऐसा देखा गया है की पालतू पशुओं जैसे गाय एवं भैंस आदि को पशुपालक रात का बचा हुआ भोज्य पदार्थ जैसे छोले, पनीर आदि की सब्जी एवं दही बड़े इत्यादि सुबह खिला देते हैं। उनके लिए उसकी मात्रा और गुणवत्ता का कोई महत्व नहीं रह जाता है सिवाय इसके कि उनके खाने का नुकसान न हो परंतु ऐसा करने से पशुओं में अधिक छार का उत्पादन हो जाता है और वह छारीयकरण की लपेट में आ जाते हैं। कभी-कभी तो छार का उत्पादन इतना अधिक हो जाता है की उपचार के अभाव में 2 घंटे के अंदर उन पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है। विवाह जन्मदिन आदि समारोहों के अवसरों पर पनीर, छोले, दही बड़े, पूड़ी इत्यादि भोज्य पदार्थ अधिक मात्रा में बच जाते हैं और कुछ लोगों द्वारा प्लेट में यूं ही छोड़ दिए जाते हैं। इन सबको पशुपालक अपने घर में पाले हुए पशुओं को बचत के दृष्टिकोण से खिला देते हैं परंतु इनकी बचत से पशुओं को कितना नुकसान होता है वे यह नहीं जानते। इस तरह का भोजन खाने से पशु कुछ ही क्षणों में बीमार हो जाते हैं। गर्मी में जब तापक्रम अधिक हो जाता है तब यह अति तीव्र रूप ले लेता है और फिर पशु को बचाना काफी कठिन हो जाता है। जुगाली करने वाले पशु इस तरह का भोजन जिसमें अधिक प्रोटीन है को खाने के आदी नहीं होते हैं अतः वे शीघ्र ही इससे प्रभावित हो जाते हैं।
इस प्रकार का भोजन पशुओं में उदर रोग बढ़ाता है। अधिक प्रोटीन वाला भोजन शरीर में अमोनिया गैस के उत्पादन को बढ़ा देता है जिससे पेट फूलना या अफारा की बीमारी हो जाती है। यह अमोनिया पानी में घुलकर लिकर अमोनिया बनाती है। छारीय पदार्थों का रूमन( जुगाली करने वाला पेट) मे जब चपापचय होता है, तो निम्नांकित परिणाम प्राप्त होते हैं –
१. सोडियम बाई कार्बोनेट बनता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड का अधिक उत्पादन होता है।
२. मूत्र की पीएच बढ़कर छारीय हो जाती है।
३. रक्त प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट की मात्रा अधिक हो जाती है और क्लोराइड की मात्रा कम हो जाती है। ऐसा जठर रस हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के बनने से होता है। हाइड्रोजन और क्लोराइड आयन से क्लोराइड आयन कम हो जाते हैं और पीएच बढ़ जाता है। जठर से स्रावित, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को उदासीन करने से यह स्थिति नहीं रहती है क्योंकि तब सोडियम क्लोराइड बन जाता है और वह रक्त में अवशोषित हो जाता है और स्थिति पूर्ववत हो जाती है।
४. श्वसन में कमी हो जाती है। पोटेशियम की कमी हो जाती है तथा साइट्रिक अम्ल का उत्सर्जन अधिक हो जाता है।
इस प्रकार से छारीयकरण की स्थिति मैं पशुओं में निम्न लक्षण प्रकट होते हैं-
१. प्रभावित हो चुका पेट अचानक से फूल जाता है। पेट फूलने का मुख्य कारण बुलबुले दार गैस का बनना होता है।
२. अधिकतर पशु लेट जाते हैं एवं मुंह से झाग निकलने लगता है तथा सांस लेने में घबराहट होती है।
३. कभी-कभी गोबर में बिना पचे हुए दाने निकलते हैं।
४. बेचैनी के कारण प्रभावित पशु फड़फड़ाता है। यदि इसी हालत में वह पड़ा रहता है और समय पर चिकित्सा उपलब्ध नहीं हो पाती है तो कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।
यदि पशुपालक के घर में हुए उत्सवों आदि का बचा हुआ खाद्य पदार्थ पशु को खिलाया जाता है तो इसके निदान में अधिक परेशानी नहीं होती है। परंतु यदि ऐसा पशु आवारा किस्म का है या बाहर चरने जाता है तो बाहर कहीं फेंके गए ऐसे खाद्य पदार्थों को खाता है तो उसका निदान लक्षणों से हो सकता है। पेट से गैस निकालने के लिए छेदी गई सुई से निकले पदार्थ की पी.एच.छारीय लगभग 9 से 10के आसपास हो सकती है।
प्राथमिक उपचार:
निदान होने के तुरंत पश्चात पशु चिकित्सक की सलाह लेना बेहतर होगा। इस बीच निम्नांकित उपचार किए जा सकते हैं:
१. प्रभावित पशु को 5% ग्लूकोस सलाइन 3 से 4 लीटर अंतः शिरा सूची वेध विधि से दिया जाना चाहिए।
२. 50 से 100 ग्राम पाचक पदार्थ में 5 से 6 नींबू का रस मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाएं जिससे साइट्रिक अम्ल द्वारा छारीयकरण की स्थिति, नियंत्रण में लाई जा सके।
३. नींबू के रस के अतिरिक्त सिरका मट्ठा या 5% ग्लेशियल एसिटिक अम्ल का घोल भी पिलाया जा सकता है जिससे छारीय पी.एच. पर नियंत्रण किया जा सके।
४. रक्त की पी.एच.छारीय होने पर ग्लूकोस सलाइन में साइट्रिक अम्ल मिलाकर ड्रिप द्वारा दिया जा सकता है। यह छारीय अवस्था, पूरे शरीर में फैल जाती है जिसने समुचित उपचार करने के बाद भी प्रभावित पशु को बचाना कठिन हो जाता है।
५. बुलबुले दार गैस बनने की अवस्था में 1% फॉर्मलीन का घोल 100 मिलीलीटर स्वच्छ जल में सीधे सिरिंज द्वारा पहले पेट में डाल दिया जाता है जिससे गैस का बनना तुरंत रुक जाता है।
६. प्रभावित पशु पाचक युक्त टॉनिक जैसे रुचामैक्स पाउडर 15-15 ग्राम सुबह शाम दिए जाएं।
७. सड़े हुए पदार्थों में कई तरह के पदार्थ शामिल हो सकते हैं। इसके लिए 50 से 100 ग्राम सोडियम थायो सल्फेट मुंह द्वारा खिलाया जाए या इसका करीब 5% का 200 मिलीलीटर घोल, अंता सिरा सूची वेध विधि द्वारा दिया जाए। इसके अतिरिक्त अट्रोपिन सल्फेट 5 से 6 मिलीग्राम का इंजेक्शन देना लाभप्रद हो सकता है।