गाय की भारतीय नस्लें – भाग 4
*महाराष्ट्र* में गाय की सात नस्लें विकसित हुई। डांगी, देवनी, गौलाओ, खिल्लार, कृष्णावेली, रेड कन्धारी और कोंकण कपिला।
गुजरात के डांग एरिया के साथ साथ महाराष्ट्र के अहमदनगर, नासिक एयर ठाणे में *डांगी* फली फूली। यह मूलतः द्विकाजी नस्ल है। इस नस्ल के पशु अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में रहने के अभ्यस्त हैं क्योंकि इनकी त्वचा से तैलीय पदार्थ निकलता है जिसके कारण पानी इनके ऊपर नहीं ठहरता। इनकी गायों का औसत उत्पादन 450 लीटर होता है। वैसे 800 लीटर तक दूध उत्पादन वाली गायें देखी गई हैं।
कर्नाटक के बीदर जिले के साथ साथ महाराष्ट्र के लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और परभणी जिलों में द्विकाजी *देवनी* नस्ल विकसित हुई। यह भी मूलतः द्विकाजी नस्ल है। बैल भारी काम के लिए अच्छे हैं तो गायें 1200 लीटर तक दूध दे देती हैं। वैसे इसकी गायों का औसत दूध उत्पादन 900 लीटर प्रति ब्यान्त है। ऐसा माना जाता है कि देवनी नस्ल का विकास गिर से ही हुआ है। इसीलिए इस नस्ल की गायों का उत्पादन अच्छा है।
मध्यप्रदेश के बालाघाट, छिंदवाड़ा, दुर्ग, सिवनी और राजनन्दगाँव के साथ साथ महाराष्ट्र के नागपुर और वर्धा जिलों में द्विकाजी *गौलाओ* नस्ल विकसित हुई। इस नस्ल की गायें औसतन 600 लीटर दूध देती हैं और इनके बैल तेज़ी से भारवाहन के लिए उपयुक्त हैं। इस नस्ल की एक ब्यान्त में 725 लीटर तक दूध देने वाली गाय देखी गई है।
महाराष्ट्र की *खिल्लार* भी मुख्य भारवाहक नस्ल है जो कर्नाटक के बेलगाम, बीजापुर, धारवाड़, गुलबर्गा और बागलकोट जिलों के साथ साथ महाराष्ट्र के कोल्हापुर, उस्मानाबाद, पुणे, सांगली, सतारा और सोलापुर में भी पनपी। इसके बैल तेज गति के लिए प्रसिद्ध हैं और गायें 450 से 550 लीटर तक दूध दे देती हैं।
महाराष्ट्र की *कृष्णावेली* भी भारवाहक नस्ल है जो मुख्यतः कर्नाटक के बेलगाम, बीजापुर और रायचूर जिलों के साथ साथ महाराष्ट्र के सांगली, सतारा और सोलापुर जिलों में पाई जाती है। गिर, कांकरेज, ओंगोल और स्थानीय पशुओं की मिक्सिंग से इस नस्ल की उत्पत्ति हुई। इसके बैल कृष्णा नदी के आसपास की ब्लैक कॉटन साइल में काम करने के लिए बहुत उपयुक्त हैं।
महाराष्ट्र की *रेड कन्धारी* मूलतः भारवाहक नस्ल है जो अहमदनगर, बीड, लातूर, नान्देड़ और परभणी जिलों मन विकसित हुई। इसके पशुओं का रंग लाल होने और नान्देड़ के कंधार इलाके में पाए जाने के कारण इसे रेड कन्धारी नाम से जाना गया। इसकी गायों का औसत दूध उत्पादन 600 लीटर प्रति ब्यान्त है।
*कोंकण कपिला* महाराष्ट्र के कोंकण इलाके की प्रमुख द्विकाजी नस्ल है। इसके पशु मूलतः पालघर, रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग और ठाणे इलाके में पाए जाते हैं। इसके पशु ढलानों पर भी चल सकते हैं और इनके अंदर गर्मी सहने की क्षमता भी होती है। इसकी गायों का दूध उत्पादन 450 लीटर प्रति ब्यान्त तक होता है।
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डॉ संजीव कुमार वर्मा
*प्रधान वैज्ञानिक (पशु पोषण)*
*भाकृअनुप – केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान*
*मेरठ छावनी – 250001*
*9933221103*